मीन संक्रांति का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह पुण्यकारी तिथि है, जिसमें दान और उपासना से शुभ फल मिलता है।
मीन संक्रांति हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह में आती है, जब सूर्य कुंभ राशि से मीन राशि में प्रवेश करता है। यह दिन धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। मीन संक्रांति के अवसर पर पवित्र नदियों में स्नान, दान और पूजा-पाठ करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और पापों का नाश माना जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्यदेव के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश को संक्रान्ति कहा जाता है। आगामी 14 मार्च, शुक्रवार को सूर्यदेव कुंभ राशि से मीन राशि में प्रवेश करेंगे। अतः इस दिन मीन संक्रान्ति का पर्व भगवान सूर्यनारायण की पूजा-अर्चना के साथ संपन्न किया जाएगा।
मीन संक्रान्ति पुण्य काल | 12:07 PM से 06:06 PM |
अवधि | 05 घण्टे 59 मिनट |
मीन संक्रान्ति महा पुण्य काल | 04:07 PM से 06:06 PM |
अवधि | 02 घण्टा 00 मिनट |
मीन संक्रान्ति का क्षण | 18:59 |
संक्रान्ति करण | 12:23 PM तक, बालव – 01:26 AM, 15 मार्च तक |
संक्रान्ति चन्द्रराशि | सिंह राशि – 12:56 PM तक |
संक्रान्ति नक्षत्र | पूर्वाफाल्गुनी – 06:19 AM तक |
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:32 AM से 05:20 AM तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:56 AM से 06:08 AM तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:43 AM से 12:31 PM तक |
विजय मुहूर्त | 02:07 PM से 02:55 PM तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:04 PM से 06:28 PM तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:06 PM से 07:18 PM तक |
अमृत काल | 12:56 AM, 15 मार्च से 02:42 AM 15 मार्च तक |
निशिता मुहूर्त | 11:43 PM से 12:31 AM, 15 मार्च तक |
नमस्कार, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है। साल के प्रत्येक महीने में आने वाली संक्रांति का अपना विशेष महत्व होता है। मीन संक्रांति भी उन्हीं में से एक है, जो हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार माना जाता है।
चलिए जानते हैं,
मीन संक्रांति प्रत्येक वर्ष में आने वाली 12 संक्रांतियों में से एक है। जैसा कि आपको ज्ञात होगा कि हर माह सूर्य देवता अपना स्थान परिवर्तन कर एक नई राशि में प्रवेश करते हैं। इस क्रिया को संक्रांति कहा जाता है। इसी प्रकार जब साल के अंतिम महीने में भगवान सूर्य 12वीं मीन राशि में प्रवेश करते हैं तो उसे मीन संक्रांति के रूप में मनाया जाता है।
हिंदू शास्त्रों में मीन संक्रांति बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है। इस व्रत व पूजा अर्चना करना अत्यंत फलदाई होता है, परंतु धार्मिक दृष्टि से यह दिन पवित्र नहीं माना गया है। इस संक्रांति के दौरान पूरे माह कोई भी मांगलिक कार्य करना वर्जित होता है, क्योंकि इस दिन से मलमास प्रारंभ होता है। आपको बता दें कि वर्ष में दो बार मलमास पड़ते हैं। पहला मलमास मीन संक्रांति पर होता है, एवं दूसरा धनु संक्रांति पर। हालांकि देश के अलग अलग क्षेत्रों में इस पर्व को मनाने की परंपराएं भी भिन्न हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन से रातें छोटी होने लगती हैं, और दिन बड़े होते हैं।
एक मान्यता ऐसी भी हैं कि मीन संक्रांति के दिन ही मृत्यु के देवता यमराज सावित्री के पति सत्यवान के प्राण हर कर स्वर्ग लेकर जा रहे थे। उनके अनुसार सत्यवान का जीवन काल समाप्त हो चुका था। परंतु सावित्री के अटूट पतिप्रेम के आगे यमराज को झुकना पड़ा। फलस्वरूप उन्होंने सत्यवान को जीवनदान दे दिया। सावित्री सत्यवान के इसी प्रसंग से प्रेरणा लेते हुए इस दिन विवाहित स्त्रियां अपने पति की रक्षा के लिए पीले रंग का कच्चा सूत बांधती हैं, और पूरे दिन व्रत रखती हैं। इसलिए इस दिन को सावित्री नोम्बु नाम से भी मनाते हैं।
तो ये थी मीन संक्रांति के महत्व एवं लाभ से जुड़ी जानकारी। इस पर्व की पूजा विधि सहित इस दिन से जुड़ी अन्य जानकारियों के लिए जुड़े रहिये श्री मंदिर के साथ! धन्यवाद
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष में 12 संक्रांति होती हैं, जिनमें मीन संक्रांति हिन्दू वर्ष की अंतिम संक्रांति होती है। इस दिन सूर्य मीन राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए इस संक्रांति पर पूरी सृष्टि में ऊर्जा के स्रोत माने जाने वाले भगवान सूर्य की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन दान-पुण्य करने से व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि का वास होता है।
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार सूर्य का किसी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है। इस प्रकार सूर्य के मीन राशि में प्रवेश करने को मीन संक्रांति कहते हैं। इस संक्रांति से मलमास या खरमास का भी प्रारंभ होता है, इसलिए इस दिन जहां सूर्य देव की पूजा अर्चना करने से अनेकों फल प्राप्त होते हैं, वहीं कुछ ऐसे कार्य हैं, जिन्हें मीन संक्रांति में करना वर्जित माना जाता है।
चलिए जानते हैं,
ये थी मीन संक्रांति से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी। इसी ही धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' पर।
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