महाशिवरात्रि और उससे जुड़ी पौराणिक कथाएँ (Mahashivratri Vrat Katha)
धर्म शास्त्रों में कहा गया है की, महाशिवरात्रि का व्रत करने वाले साधक को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। लेकिन क्या आपको पता है महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है और इसके पीछे की पौराणिक घटना क्या है? आइए, श्री मंदिर की इस ख़ास प्रस्तुति में जानते है, महाशिवरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथाओं के बारे में, जो इस दिन के महत्व के बारे में बताती हैं।
महाशिवरात्रि की पहली कथा
एक बार माता पार्वती ने भोलेनाथ से पूछा कि, “कौन सा व्रत उन्हें सर्वोत्तम भक्ति और पुण्य प्रदान कर सकता है? तब भोले शंकर ने स्वयं, इस पवित्र महाशिवरात्रि के बारे में बताया था। उन्होंने कहा कि “फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात मुझे प्रसन्न करती है” इसीलिए कहा जाता है कि, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को प्रसन्न करना बहुत आसान होता है।
महाशिवरात्रि की दूसरी कथा
इस पर्व से एक और पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. इस कथा के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु और ब्रह्मा के सामने, सबसे पहले शिव, करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए, ईशान संहिता के अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु के बीच, अपनी महानता और श्रेष्ठता सिद्ध करने पर बहस हो गई। तब भगवान शिव को हस्तक्षेप करना पड़ा। और वह अग्नि के स्तंभ के रूप में प्रकट हुए। इस स्तंभ का आदि या अंत दिखाई नहीं दे रहा था। तब विष्णु और ब्रह्मा ने इस स्तंभ के किनारे और छोर को जानने का फैसला किया। यह जानने के लिए विष्णु पाताल लोक गए और ब्रह्मा अपने हंस वाहन पर बैठ गए और ऊपर की ओर ऊपर की ओर ऊंचाई नापने चल दिए। लेकिन दोनों ही इसकी शुरुआत और अंत नहीं जान सके और लौट आए, परन्तु तब तक उनका क्रोध शांत हो चुका था औरऔर उन दोनों के बड़प्पन का अहंकार चूर चूर हो चूका था। तब शिव प्रकट हुए और सभी चीजों का बहाल किया। ऐसा कहा जाता है, कि शिव का, यह प्रकटीकरण, फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात को हुआ था। इसलिए इस रात को महाशिवरात्रि कहा जाता है।
वहीं एक और पौराणिक कथा के अनुसार, ये भी कहा जाता है कि मां सती के पुनर्जन्म में जब वह माता पार्वती बनीं, तब मां पार्वती, शिवजी को पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थी। और उन्होंने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए, कई जतन किए थे। लेकिन भोलेनाथ प्रसन्न नहीं हुए। जिसके बाद मां पार्वती ने गौरीकुंड में कठिन साधना की और शिवजी को मोह लिया। जिसके बाद इस दिन शिवजी और मां पार्वती का विवाह हुआ और शिव ने गृहस्थ जीवन में वैराग्य के साथ प्रवेश किया था। और तभी से महाशिवरात्रि के दिन, शिव और शक्ति के मिलन के उत्सव के रूप में, भक्त उपवास और पूजा कर के इस त्योहार को मनाते हैं और शिव और शक्ति का आशीर्वाद लेते हैं।
महाशिवरात्रि की तीसरी कथा
महाशिवरात्रि की एक और पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान अमृत और विष दोनों का कलश निकला था। विष का पात्र देखकर देवता और राक्षस दोनों डर गए, क्योंकि यह विष पूरी दुनिया को तबाह कर सकता था। दुनिया को बचाने के लिए देवताओं ने भगवान शिव से मदद मांगी और शिव जी ने सृष्टि को बचाने के लिए पूरा विष स्वयं पी लिया, लेकिन उन्होंने विष को निगला नहीं। विष को गले में ही रोक लिया जिससे उनके गले का रंग नीला हो गया। और शिव जी नीलकंठ कहलाये। ऐसा माना जाता है की, क्यूंकि भगवान शिव ने दुनिया की रक्षा की थी इसलिए आज भी धरतीवासी महाशिवरात्रि का पर्व मनाकर शिव जी के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं ।
भगवान शिव को महाशिवरात्रि अति प्रिय है और शास्त्रों में बताया गया है कि महाशिवरात्रि के दिन पूरी रात जागने से, भाग्य भी जागता है और हमेशा उन्नति की प्राप्ति होती है। क्यूंकि भगवान शिव मनुष्य के सभी कष्टों और पापों का नाश करने वाले हैं। भगवान शिव ही सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिला सकते हैं और इसी कारण महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा करने से जाने-अनजाने में किए गए पापों की क्षमा और आने वाले महीने में भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
महाशिवरात्रि व्रत की कथा (Mahashivratri Vrat Ki Katha)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने शिव जी से पूछा “ वो व्रत और पूजा क्या है, जिससे मृत्युलोक के प्राणियों को आपकी कृपा आसानी से मिल सकती है”। तब महादेव ने स्वयं, महाशिवरात्रि व्रत की यह कथा माता पार्वती को सुनाई।
कथा के अनुसार , पौराणिक काल में, किसी गाँव में चित्रभानु नाम का एक शिकारी रहा करता था, वो बेहद ही क्रूर स्वभाव का था, और क्रूरपूर्ण कर्म भी किया करता था, वो रोज़ वन में जा कर, हिरण, ख़रगोश और अन्य मासूम जानवरों को मारा करता था। उसने बचपन से ही, कभी कोई शुभ कार्य नहीं किया था। और इसी प्रकार उसका जीवन ज्ञापन हो रहा था। एक बार की बात है, महाशिवरात्रि की शुभ बेला आई, लेकिन उस दुराचारी शिकारी को, इसके बारे में कोई ज्ञान नहीं था। वो तो बस एक ही काम जानता था, जानवरों की हत्या करना।
उसी दिन शिकारी के परिवार वाले भूख से व्याकुल होकर, उससे, खाने की मांग करने लगे। ऐसा करने पर शिकारी तुरंत, अपना धनुष बाण लेकर वन की और निकल पड़ा और जानवरों के शिकार के लिए वन में घूमता रहा। लेकिन उसे कुछ भी नही मिला और घूमते घूमते सूर्यास्त भी हो गया। ये देख कर शिकारी को बड़ा दुःख हुआ और वो सोचने लगा की मैं क्या करूं? कहां जाऊं, आज तो कोई शिकार नही मिला, अब घर कैसे जाऊं, घर में परिवार वाले भूखे हैं। ऐसे में मुझे कुछ न कुछ, घर लेके जाना ही होगा।” ऐसा सोच कर शिकारी एक जलाशय के पास पहुंचा और घाट पर खड़े होकर सोचने लगा “की यहाँ कोई न कोई जानवर, पानी की तलाश में जरूर आएगा”, ऐसा सोचकर वो पास में मौजूद, बेल के पेड़ में अपने साथ थोडा पानी लेकर बैठ गया, उसके मन में तो बस यही ख्याल था की कब कोई जानवर पानी पीने आएगा और वो उसका शिकार कर पायेगा। इसी प्रतीक्षा में भूखा,प्यासा वो शिकारी बैठा रहा। इस तरह काफ़ी रात हो गई।
और जब रात का पहला पहर शुरू हुआ, तो तब उस समय, तालाब के पास एक गर्भवती हिरणी आई। चित्रभानु ने उस गर्भवती हिरणी को मारने के लिए धनुष-बाण उठाया, ऐसा करते हुए उसके हाथ के धक्के से पानी और बेलपत्र नीचे गिर पड़े। उस बेल के पेड़ के नीचे एक शिवलिंग मौजूद था, जिसके बारे में वो शिकारी नही जानता था। और इस तरह से अनजाने में, उसके हाथों से शिवलिंग पर जल और बेलपत्र गिरने से, शिव जी की पहले पहर की पूजा संपन्न हुई।
उधर वहां, कडकडाहट की आवाज़ से हिरणी घबरा गई और ऊपर की तरफ शिकारी को देख कर, वो भय से शिकारी से बोली,” हे शिकारी, मैं जल्द ही अपने बच्चे को जन्म देने वाली है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर, आपके पास वापस आऊंगी तब आप मेरा शिकार कर लीजिएगा। गर्भवती हिरणी की बात सुनकर, चित्रभानु ने उसे जाने दिया और इस तरह महाशिवरात्रि का प्रथम पहर भी बीत गया।
तब वहां एक दूसरी हिरणी आई। हिरणी को देखते ही चित्रभानु शिकार के लिए तैयार हो गया और पहले की भाँती ही उसके हाथ के धक्के से बेलपत्र, नीचे मौजूद शिवलिंग पर गिर पड़े, और इस तरह दूसरे पहर की पूजा भी संपन्न हो गई। तभी उस हिरणी ने भयभीत होकर, शिकारी से कहा कि “हे, शिकारी, मैं अपने पति की खोज कर रही हूँ, मुझपर कृपा करो, और मुझे जाने दो, मैं तुमसे वादा करती हूँ, कि मैं अपने पति से मिलकर तुम्हारे पास वापस लौटूंगी”। यह सुनकर, चित्रभानु ने उसे भी जाने दिया।
कुछ समय बाद, जब रात का तीसरा पहर शुरू हुआ तो वहां तीसरी हिरणी अपने बच्चों के साथ आई, चित्रभानु फिर से हिरणी के शिकार के लिए तैयार हो गया। और पहले की भाँती ही उसके हाथ के धक्के से, बेलपत्र नीचे मौजूद शिवलिंग पर गिर पड़े। जब उस हिरणी ने शिकारी को देखा तो वो उससे बोली, “शिकारी, मैं अपने इन बच्चों को, अपने पति के पास छोड़ कर, वापस तुम्हारे पास आउंगी, कृपा मुझ पर दया करो” हिरणी की बात सुनकर चित्रभानु ने उसे भी छोड़ दिया। और इस तरह चित्रभानु ने भूखे प्यासे, रात्रि के तीसरे पहर की पूजा भी संपन्न कर ली।
चित्रभानु अपने परिवार की चिंता में डूबा हुआ था की तभी वहां एक हिरण आया। चित्रभानु बड़ा खुश हुआ और तीर साधने के लिए, अपना धनुष उठाया, और ऐसा करते हुए पहले की भाँती उसके हाथ के धक्के से बेलपत्र नीचे मौजूद शिवलिंग पर जा गिरे। और उसके द्वारा भगवान शिव की चौथे पहर की पूजा भी संपन्न हो गई। उधर उस हिरण ने चित्रभानु को देखते हुए कहा “कि अगर तुमने तीन हिरणी और उनके बच्चों को मार दिया है, तभी तुम मुझे मार सकते हो। और अगर तुमने उनको छोड़ दिया है तो मुझे भी छोड़ दो मैं अपने पूरे परिवार के साथ यहां वापस आ जाऊंगा।”
चित्रभानु ने हिरण को, घटित घटना बताई तब हिरण ने जवाब दिया कि वह तीन हिरणियां, उसकी पत्नी थीं। “अगर तुमने मुझे मार दिया तो वह तीन हिरणी अपना वादा पूरा नहीं कर पाएंगी। मेरा विश्वास करो मैं अपने पूरे परिवार के साथ यहां जल्दी वापस आऊंगा।”
हिरण की बात सुनकर,चित्रभानु ने उसे जाने दिया। इस तरह चित्रभानु का हृदय परिवर्तन हो गया और उसका मन पवित्र हो गया। रात भर चित्रभानु ने अनजाने में ही सही, भगवान शिव की आराधना की थी, जिसके वजह से भगवान शिव उससे प्रसन्न हो गए थे। वहीं, कुछ देर बाद हिरण अपने पूरे परिवार के साथ चित्रभानु के पास पहुंच गया ।
हिरण और उसके परिवार को देखकर चित्रभानु बहुत खुश हुआ और उसने हिरण के पूरे परिवार को जीवनदान देने का वचन लिया। यह देख कर, भगवान शिव ने प्रसन्न होकर, शिकारी को अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन करवाया, और उसे सुख, समृद्धि का वरदान दिया। इस तरह चित्रभानु को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी और मरने के बाद उसे शिवलोक में जगह मिली थी।