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नागुला चविथी 2025

नागुला चविथी 2025 कब है? जानें तारीख, शुभ समय और पूजा विधि, नाग देवता की कृपा से पाएं सुख-समृद्धि और आशीर्वाद!

नागुला चविथी के बारे में

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को अर्थात दीपावली के चौथे दिन नागुला चविथी मनाई जाती है। यह आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में एक प्रमुख त्योहार माना जाता है। नागुला चविथी नाग देवताओं के पूजन-अनुष्ठान का पर्व है। विवाहित महिलाएं अपनी संतान की मंगलकामना के लिए इस दिन पूजा करती हैं।

क्या है नागुला चविथी?

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाने वाला नागुला चविथी दक्षिण भारत का एक प्रमुख पारंपरिक पर्व है। यह दीपावली के चौथे दिन पड़ता है और विशेष रूप से आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु के कुछ भागों में बड़े श्रद्धा-भाव से मनाया जाता है। यह पर्व नाग देवताओं की पूजा को समर्पित है और इसे मुख्य रूप से महिलाएं अपने परिवार, विशेषकर संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए मनाती हैं।

नागुला चविथी कब है?

  • वर्ष 2025 में नागुला चविथी 25 अक्टूबर, 2025, शनिवार को मनाई जाएगी।
  • नागुला चविथी मुहूर्त - 10:34 ए एम से 12:50 पी एम तक रहेगा।
  • अवधि - 02 घण्टे 16 मिनट्स
  • चविथी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 25, 2025 को 01:19 ए एम बजे
  • चविथी तिथि समाप्त - अक्टूबर 26, 2025 को 03:48 ए एम बजे

इस दिन के अन्य शुभ मुहूर्त

मुहूर्त

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:20 ए एम से 05:11 ए एम

प्रातः सन्ध्या

04:46 ए एम से 06:02 ए एम

अभिजित मुहूर्त

11:19 ए एम से 12:04 पी एम

विजय मुहूर्त

01:35 पी एम से 02:21 पी एम

गोधूलि मुहूर्त

05:22 पी एम से 05:47 पी एम

सायाह्न सन्ध्या

05:22 पी एम से 06:38 पी एम

अमृत काल

12:54 ए एम, अक्टूबर 26 से 02:42 ए एम, अक्टूबर 26

निशिता मुहूर्त

11:17 पी एम से 12:07 ए एम, अक्टूबर 26

नागुला चविथी क्यों मनाते हैं?

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, नाग देवता पाताल लोक के रक्षक हैं और वे धरती पर वर्षा, उर्वरता और संतुलन का प्रतीक माने जाते हैं। नागुला चविथी के दिन महिलाएं नाग देवता की पूजा करती हैं ताकि उनके परिवार को सर्पदंश, भय और रोगों से मुक्ति मिले। ऐसी मान्यता है कि इस दिन नाग देवता को प्रसन्न करने से जीवन में शांति, समृद्धि और रक्षा का वरदान प्राप्त होता है। इस दिन भक्तजन मंदिरों या घरों में मिट्टी या चाँदी के बने नागों की पूजा करते हैं। दूध, हल्दी, चावल और पुष्पों से नाग देवता को स्नान कराया जाता है। कई स्थानों पर लोग जीवित सर्पों की भी पूजा करते हैं, उन्हें दूध और अन्न का भोग लगाते हैं।

नागुला चविथी का महत्व

  • यह पर्व नाग देवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का प्रतीक है, जो प्रकृति और जीवन के संतुलन के रक्षक हैं।
  • महिलाएं इस दिन उपवास रखकर परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं।
  • ऐसा माना जाता है कि नाग चतुर्थी के दिन की गई पूजा सीधे नाग लोक तक पहुँचती है, जिससे नाग देवता विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं।
  • इस व्रत के पालन से रोग, भय और संकट से मुक्ति मिलती है तथा घर में शांति और सौभाग्य बढ़ता है।
  • यह त्योहार मानव और प्रकृति के बीच सम्मान और सह-अस्तित्व के संदेश को भी दर्शाता है।

नागुला चविथी के दिन किसकी पूजा करें

नागुला चविथी के दिन नाग देवताओं की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में नागों को पाताल लोक के देवता और पृथ्वी के संरक्षक माना गया है। इस दिन विशेष रूप से अष्टनागों की पूजा का विधान बताया गया है—

  • अनंत
  • वासुकि
  • शेषनाग
  • पद्म
  • महापद्म
  • तक्षक
  • कुलिक
  • कर्कोटक
  • इन आठों नागों की पूजा करने से परिवार को सर्पदंश, भय और नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा मिलती है।
  • कुछ स्थानों पर भगवान शिव की पूजा भी की जाती है, क्योंकि नाग उनके गले का आभूषण माने जाते हैं।

नागुला चविथी की पूजा कैसे करें

पूजन विधि

स्नान और संकल्प

  • सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करें और स्वच्छ पीले या लाल वस्त्र धारण करें। फिर पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और नाग देवता की पूजा का संकल्प लें।

नाग प्रतिमा या चित्र स्थापित करें

  • मिट्टी, चाँदी या धातु से बनी नाग प्रतिमा को पूजा स्थान पर रखें। यदि जीवित सर्प के दर्शन हों तो उसे दूध चढ़ाकर प्रणाम करें (लेकिन सर्प को छुएं नहीं)।

पूजन सामग्री तैयार करें

  • पूजा के लिए दूध, हल्दी, कुमकुम, अक्षत (चावल), पुष्प, बेलपत्र, दूब, धूप, दीपक और प्रसाद तैयार करें।
  • पहले भगवान गणेश का ध्यान करें।
  • उसके बाद नाग देवता का आह्वान करते हुए उन्हें दूध और पुष्प अर्पित करें।
  • “ॐ नमो भगवते सर्पराजाय नमः” या “ॐ नमो नागदेवाय नमः” मंत्र का जप करें।
  • हल्दी, कुमकुम, चावल और फूल चढ़ाएँ।
  • दूब (दूब का घास) नाग देवता को विशेष रूप से प्रिय होती है, इसे अवश्य अर्पित करें।

भोग और आरती

  • नाग देवता को दूध, गुड़, चावल, सूखे मेवे और नारियल का भोग लगाएँ।
  • फिर दीपक जलाकर नाग देवता की आरती करें और परिवार की रक्षा की प्रार्थना करें।

व्रत और भोजन

  • महिलाएं दिनभर व्रत रखती हैं और पूजा के बाद फलाहार या सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं।

विशेष ध्यान दें

  • इस दिन ज़मीन की खुदाई या गड्ढा करने से बचें, क्योंकि इसे नागों का अपमान माना जाता है।
  • नाग देवता को दूध चढ़ाते समय उसमें लोहा या नमक न मिलाएँ।
  • नाग देवता की पूजा हमेशा शुद्ध मन और श्रद्धा से करें, भय या दिखावे से नहीं।

नागुला चविथी से जुड़े अनुष्ठान

  • नागुला चविथी से जुड़े अनुष्ठान और पूजा हर जगह अलग-अलग होती हैं। कुछ लोग नाग देवता की मूर्ति को घर में स्थापित करके इनकी पूजा करते हैं।
  • वहीं कुछ क्षेत्रों में भक्त पुट्ट कहे जाने वाले सांप के बिल के समीप ही सम्पूर्ण पूजा करते हैं।
  • इस दिन लोग सांप के बिल अर्थात पुट्ट में दूध, कुमकुम, हल्दी, विभूति, गुड़ और काले तिल के मिश्रण से बनी मिठाई और गुड़ और सफेद तिल से बने लड्डुयों का भोग लगाते हैं।
  • पूजा करने वाले लोग इस दिन पुट्ट के पास दीये भी जलाते हैं और इसपर फूल चढ़ाते हैं। इस तरह यह अनुष्ठान शुभ मुहूर्त में पूर्व दिशा की ओर मुख करके किया है।
  • पूजा संपन्न होने के बाद लोग इस पुट्ट की थोड़ी सी मिट्टी लेकर अपने कानों के पिछले हिस्से पर लगाते हैं।
  • आमतौर पर इन अनुष्ठानों को मंदिरों में या किसी स्थान पर मौजूद पुट्ट के पास किया जाता हैं।
  • इस दिन साँपों को दूध पिलाने का विशेष महत्व है। कई सपेरे भी इस दिन गांवों और कस्बों में सांपों की कोबरा प्रजाति को लाते हैं, जिन्हें भक्तों द्वारा पूजा जाता है और दूध पिलाया जाता है।

नागुला चविथी की किंवदंती

तेलुगु संस्कृति के अनुसार नागुला चविथी से जुड़ी एक लोकप्रिय किंवदंती है, कि इसी दिन भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल की विध्वंसक ज्वाला से ब्रह्मांड को बचाने के लिए इस विष को पी लिया था। यह विष उन्होंने अपने कंठ में ही रोक लिया, जिसके प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया। तभी से भगवान शिव नीलकंठ कहलाएं। भगवान शिव को नाग देवता बहुत प्रिय है, और इसे वे अपने कंठहार की तरह धारण करते हैं। इसीलिए इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती हैं।

नागुला चविथी की सीख

इस दिन नागों की पूजा करने का आदर्श तरीका है उन जंगलों और पुट्ट की रक्षा करना, जहाँ सांप और अन्य जंतु निवास करते हैं। नागों की पूजा मनुष्य को प्रकृति के साथ सद्भाव से रहने और उनकी रक्षा करने के लिए प्रेरित करती है।

नाग देवता को प्रसन्न करने के उपाय

नागुला चविथी के दिन नाग देवता को प्रसन्न करने के लिए कुछ विशेष उपाय बताए गए हैं। इन उपायों से जीवन में शांति, समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है

दूध और दूब चढ़ाएँ

  • नाग देवता को शुद्ध दूध, दूब और केसर अर्पित करें। ऐसा करने से नागदोष और पितृदोष से मुक्ति मिलती है।

नाग मंत्र का जाप करें

  • पूजा के समय “ॐ नमो भगवते सर्पराजाय नमः” या “ॐ नमो नागदेवाय नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें। यह मंत्र नाग देवता की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली है।

काले तिल और गुड़ का दान करें

  • इस दिन काले तिल, गुड़, चावल और दूध का दान करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और धन-संपत्ति में वृद्धि होती है।

शिवलिंग पर दूध चढ़ाएँ

  • नाग भगवान शिव के गले में विराजमान हैं, इसलिए इस दिन शिवलिंग पर दूध और जल चढ़ाना भी शुभ माना जाता है।

सर्पों को भोजन दें

  • यदि संभव हो तो किसी सुरक्षित स्थान पर नागों को दूध या अन्न अर्पित करें। यह सीधा नाग देवता की प्रसन्नता का प्रतीक है।

नाग पंचमी या नागुला चविथी के दिन व्रत रखें

  • श्रद्धा से व्रत रखने से परिवार में शांति, संतान की दीर्घायु और सुख-संपन्नता बनी रहती है।

नागुला चविथी मनाने के लाभ

नागुला चविथी व्रत और पूजा के धार्मिक व आध्यात्मिक लाभ अनेक हैं

सर्पदोष और कालसर्प दोष से मुक्ति

  • नाग देवता की पूजा करने से कुंडली में उपस्थित सर्प या कालसर्प दोष के प्रभाव कम होते हैं।

संतान सुख की प्राप्ति

  • विवाहित महिलाएं इस दिन संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। यह व्रत पुत्र प्राप्ति और परिवार की सुरक्षा के लिए अत्यंत फलदायी माना गया है।

पितृ दोष से मुक्ति

  • नागों को पितरों का प्रतीक माना गया है, अतः इस दिन नाग पूजा करने से पितृ दोष का शमन होता है और पितरों की कृपा प्राप्त होती है।

घर में शांति और समृद्धि

  • नाग देवता की कृपा से परिवार में कलह समाप्त होता है, धन की वृद्धि होती है और जीवन में स्थिरता आती है।

आध्यात्मिक शुद्धि और मन की स्थिरता

  • इस व्रत से मन की एकाग्रता बढ़ती है, और साधक में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

प्रकृति और जीवों के प्रति सम्मान

  • नागुला चविथी हमें यह सिखाती है कि सभी जीव-जंतु, विशेष रूप से सर्प, पृथ्वी के संतुलन के रक्षक हैं। इस दिन उनकी पूजा करना प्रकृति के प्रति आभार का प्रतीक है।
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Published by Sri Mandir·October 15, 2025

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