नागुला चविथी | Nagula Chavithi 2024
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को अर्थात दीपावली के चौथे दिन नागुला चविथी मनाई जाती है। यह आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में एक प्रमुख त्योहार माना जाता है।
नागुला चविथी नाग देवताओं के पूजन-अनुष्ठान का पर्व है। विवाहित महिलाएं अपनी संतान की मंगलकामना के लिए इस दिन पूजा करती हैं।
- वर्ष 2024 में नागुला चविथी 05 नवम्बर, मंगलवार को मनाई जाएगी।
- नागुला चविथी पूजन मुहूर्त - 05 नवम्बर को 10:35 AM से 12:48 PM तक रहेगा।
- जिसकी कुल अवधि - 02 घण्टे 13 मिनट्स होगी।
- चविथी तिथि प्रारम्भ - 04 नवम्बर, सोमवार को 11:24 PM से
- चविथी समाप्त - 06 नवम्बर, बुधवार को 12:16 AM तक रहेगा।
नागुला चविथी का महत्व
नाग देवताओं की पूजा करने का त्योहार नागुला चविथी मुख्य रूप से महिलाओं का त्योहार है। चविथी उत्सव के दौरान, महिलाएं उपवास रखती हैं और नागों की पूजा करती हैं। इस दिन सर्प देवता को दूध और सूखे मेवे का भोग लगाया जाता है। नाग चतुर्थी के दिन अष्टनाग की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि सांपों को समर्पित कोई भी पूजा सीधे नाग देवता तक पहुंचती है। इसलिए लोग नाग देवता के प्रतिनिधि के रूप में उस दिन जीवित सांपों की पूजा करते हैं, जो हिंदू धर्म में पूजनीय हैं। मान्यताओं के अनुसार नागुला चविथी के व्रत और पूजन से परिवार के सभी तनाव दूर होते हैं।
नागुला चविथी से जुड़े अनुष्ठान
- नागुला चविथी से जुड़े अनुष्ठान और पूजा हर जगह अलग-अलग होती हैं। कुछ लोग नाग देवता की मूर्ति को घर में स्थापित करके इनकी पूजा करते हैं।
- वहीं कुछ क्षेत्रों में भक्त पुट्ट कहे जाने वाले सांप के बिल के समीप ही सम्पूर्ण पूजा करते हैं।
- इस दिन लोग सांप के बिल अर्थात पुट्ट में दूध, कुमकुम, हल्दी, विभूति, गुड़ और काले तिल के मिश्रण से बनी मिठाई और गुड़ और सफेद तिल से बने लड्डुयों का भोग लगाते हैं।
- पूजा करने वाले लोग इस दिन पुट्ट के पास दीये भी जलाते हैं और इसपर फूल चढ़ाते हैं। इस तरह यह अनुष्ठान शुभ मुहूर्त में पूर्व दिशा की ओर मुख करके किया है।
- पूजा संपन्न होने के बाद लोग इस पुट्ट की थोड़ी सी मिट्टी लेकर अपने कानों के पिछले हिस्से पर लगाते हैं।
- आमतौर पर इन अनुष्ठानों को मंदिरों में या किसी स्थान पर मौजूद पुट्ट के पास किया जाता हैं।
- इस दिन साँपों को दूध पिलाने का विशेष महत्व है। कई सपेरे भी इस दिन गांवों और कस्बों में सांपों की कोबरा प्रजाति को लाते हैं, जिन्हें भक्तों द्वारा पूजा जाता है और दूध पिलाया जाता है।
नागुला चविथी की किंवदंती
तेलुगु संस्कृति के अनुसार नागुला चविथी से जुड़ी एक लोकप्रिय किंवदंती है, कि इसी दिन भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल की विध्वंसक ज्वाला से ब्रह्मांड को बचाने के लिए इस विष को पी लिया था। यह विष उन्होंने अपने कंठ में ही रोक लिया, जिसके प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया। तभी से भगवान शिव नीलकंठ कहलाएं। भगवान शिव को नाग देवता बहुत प्रिय है, और इसे वे अपने कंठहार की तरह धारण करते हैं। इसीलिए इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती हैं।
नागुला चविथी की सीख
इस दिन नागों की पूजा करने का आदर्श तरीका है उन जंगलों और पुट्ट की रक्षा करना, जहाँ सांप और अन्य जंतु निवास करते हैं। नागों की पूजा मनुष्य को प्रकृति के साथ सद्भाव से रहने और उनकी रक्षा करने के लिए प्रेरित करती है।