इस व्रत के दौरान साधक नवपद की पूजा कर तप और ध्यान से आत्मिक शुद्धि प्राप्त करता है।
अपने आराध्य के प्रति कृतज्ञता व आस्था प्रकट करने के लिए प्रत्येक धर्म अपने विशेष त्यौहार मनाते हैं। इसी प्रकार जैन धर्म द्वारा मनाया जाने वाला नवपद ओली भी अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है।
साल 2024 में आश्विन नवपद ओली 17 अक्टूबर 2024, गुरुवार से प्रारंभ होगा। नौ दिनों तक चलने वाला ये विशेष पर्व हर वर्ष दो बार मनाया जाता है। नवपद ओली पहली बार चैत्र मास यानि मार्च या अप्रैल में मनाया जाता है। दूसरी बार ये पर्व अश्विन मास यानि सितंबर या अक्टूबर में पड़ता है। दोनों बार ही ये पर्व शुक्ल पक्ष में सप्तमी एवं पूर्णिमा तिथि के बीच मनाया जाता है।
जैन समुदाय इस पर्व के दौरान नौ सर्वोच्च पदों को आभार प्रकट करने के लिए नौ दिनों तक विशेष आयंबिल तप का पालन करते हैं। इन नौ पदों में अरिहंत, आचार्य, सिद्ध, साधु, उपाध्याय, सम्यक, दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र व सम्यक तप सम्मिलित हैं।
नवपद ओली से जुड़ी एक किवदंती के अनुसार लगभग 11 लाख वर्ष पूर्व की बात है, जब जैन धर्म के 20वें तीर्थंकर मुनिसुवरत स्वामी के समय एक राजा श्रीपाल हुआ करते थे। वो कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। इस रोग से निदान पाने हेतु राजा की पत्नी मयनसुंदरी उन्हें मुनीचंद्र नामक संत के पास ले गई, जिन्होंने राजा को 9 दिनों का एक विशेष उपवास सिद्धचक्र महापूजा करने का निर्देश दिया। आपको बता दें कि सिद्धचक्र एक यंत्र है, जिसमें नौ सर्वोच्च पद हैं। इन्हें दो समूह में बांटा गया है।
पंच परमेष्ठी- इसके अंतर्गत अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय व साधु पद आते हैं।
धर्म तत्व- इसके अंतर्गत सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र एवं सम्यक तप आते हैं।
ऐसी मान्यता है कि जो अनुयायी धर्म तत्व यानि अंतिम चार पदों का अनुसरण करते हैं, उन्हें जीवन मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।
इस पर्व के दौरान अनुयायी नवपद की विधिवत् पूजा करते हैं। नवपद ओली के नौ दिनों के दौरान जैन समुदाय के लोग एक तरह का आयंबिल उपवास करते हैं, जिसमें सिर्फ़ एक बार उबला हुआ अन्न ग्रहण किया जाता है। इस भोजन में नमक, चीनी, तेल, घी, दूध, दही, हरी कच्ची सब्जियां, भूमि के अंदर उगने वाली सब्जियां, फल या किसी प्रकार के मसाले का प्रयोग नहीं होता है।
यदि अरिहंत का शाब्दिक अर्थ देखा जाए तो अरि का अर्थ है शत्रु एवं हंत का अर्थ है नाश करने वाला। इस प्रकार इस पद का अर्थ है कि जिसने घृणा, क्रोध, अहंकार, एवं मोह जैसे आंतरिक शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली हो। ये पद सिद्धचक्र के मध्य में स्थित है। नवपद ओली के पहले दिन शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर जैन समुदाय के लोग अरिहंत पद की पूजा करते हैं। अरिहंत का रंग सफेद होता है, इस कारण इस दिन उपवास के दौरान सफेद उबला हुआ चावल खाया जाता है।
सिद्ध पद का अर्थ है मुक्त आत्मा । ये नवपद का दूसरा चक्र है एवं सिद्धचक्र यंत्र के शीर्ष पर स्थित होता है। जैन समुदाय के लोग नवपद ओली के दूसरे दिन यानि शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर सिद्ध पद की उपासना करते हैं। इस दिन उपवास रखने वाले अनुयायी उबले हुए गेंहू का सेवन करते हैं। सिद्ध का रंग लाल है, इस कारण इस दिन के लिए लाल रंग का अन्न अर्थात् गेंहू को चुना गया है।
नवपद का तीसरा पद है 'आचार्य पद', जिसका अर्थ है 'आध्यात्मिक गुरु'। ये पद सिद्धचक्र यंत्र में अरिहंत के दाहिनी ओर स्थित होता है। नवपद ओली के तीसरे दिन यानि शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर जैन समुदाय के लोग आचार्य पद की पूजा करते हैं। आचार्य का रंग सुनहरा पीला होता है, इसलिए इस दिन उपवास रखने वाले अनुयायी उबले हुए चने का सेवन करते हैं।
नवपद में चौथा स्थान है 'उपाध्याय पद' का। यह सिद्धचक्र यंत्र में अरिहंत के नीचे स्थित है। नवपद ओली के चौथे दिन यानि शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर जैन समुदाय के लोग उपाध्याय पद की पूजा करते हैं। उपाध्याय का रंग हरा होता है, इसलिए उपवास रखने वाले अनुयायी इस दिन भोजन में उबली हुई मूंग का सेवन करते हैं।
साधु नवपद में पांचवें स्थान पर है। इसका अर्थ होता है 'भिक्षु'। यह सिद्धचक्र में अरिहंत के बाईं ओर स्थित होता है। इस दिन जैन समुदाय के लोग साधु पद की पूजा करते हैं। नवपद का उपवास रखने वाले अनुयायी इस दिन उबला हुआ उड़द ग्रहण करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि साधुपद का प्रतीक काला रंग है, और उड़द भी काले रंग का होता है।
सम्यक दर्शन का अर्थ होता है 'सही विश्वास'। ये अरिहंत के उपदेश में विश्वास को दर्शाता है। सम्यक दर्शन धर्म तत्व का पहला और नवपद का छठा पद है। सफेद रंग को सम्यक दर्शन का प्रतीक माना गया है, इसलिए शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर उपवास रखने वाले लोग उबले हुए चावल का सेवन करते हैं।
सम्यक ज्ञान नवपद में सातवें स्थान पर होता है। इसका अर्थ होता है 'सही ज्ञान'। इसका प्रतीकात्मक रंग सफेद होता है, इसलिए जैन समुदाय के लोग शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर भी उबला हुआ चावल ही ग्रहण करते हैं।
सम्यक चरित्र का अर्थ होता है 'सही आचरण'। ये नवपद में आठवें स्थान पर है। इसका भी प्रतीकात्मक रंग सफेद होता है, इसलिए जैन समुदाय के लोग इस दिन भी उबले हुए चावल का ही सेवन करते हैं।
सम्यक तप का अर्थ है सांसारिक इच्छाओं से दूर रहते हुए सही परिप्रेक्ष्य में तपस्या करना। ये नवपद में नौवें स्थान पर है। सम्यक तप का प्रतीक भी सफेद रंग होता है, इसलिए उपवास रखने वाले जैन अनुयायी इस दिन भी उबले हुए चावल का ही सेवन करते हैं। यह नवपद ओली के अंतिम दिन, यानि पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है।
तो दोस्तों, यह थी नवपद ओली की संपूर्ण जानकारी। इसी तरह की धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर पर।
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