नवरात्रि का दूसरा दिन (Second Day of Navratri)
नवरात्रि के दिनों में माँ दुर्गा की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दौरान माँ की सच्चे मन से की गई पूजा से माँ बहुत जल्दी प्रसन्न होती हैं और भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। नौं दिनों के इस उत्सव में दूसरा दिन माता के ब्रह्मचारिणीन स्वरूप को समर्पित होता है और इस दिन इनकी पूजा की जाती है। आइए, जानते हैं नवरात्र के दूसरे दिन का महत्व, पूजा विधि और इससे जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी।
नवरात्रि के दूसरे दिन का महत्व (Importance of the Second Day of Navratri)
“दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥”
माँ दुर्गा के दूसरे शक्ति स्वरूप को ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है, और शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन देवी जी के इसी स्वरूप को समर्पित होता है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन अर्थात 04 अक्टूबर, शुक्रवार को माँ ब्रह्मचारिणी की साधना की जाएगी। माँ ब्रह्मचारिणी को वैराग्य की देवी कहा जाता है। एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में जपमाला धारण किये हुए माँ ब्रह्मचारिणी हम सभी साधकों को वैराग्य और तप का मार्ग दिखाती हैं।
नवरात्रि के दूसरे दिन का शुभ मुहूर्त (Auspicious time of second day of Navratri)
नवरात्र के दूसरे दिन माँ दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का बहुत महत्व है। इस वर्ष नवरात्रि का दूसरा दिन 04 अक्टूबर को है।
द्वितीया तिथि प्रारंभ: 04 अक्टूबर, शुक्रवार 02:58 AM द्वितीया तिथि समापन 05 अक्टूबर, शनिवार, 05:30 AM
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा सामग्री और विधि (Mata Brahmacharini Puja Samagri and Puja Vidhi)
दूसरे दिन की पूजन सामग्री में माँ ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या तस्वीर, सफ़ेद रंग के पुष्प, सफ़ेद रंग की मिठाई, (यदि आपके पास माँ ब्रह्मचारिणी व माँ के अन्य रूपों की तस्वीर उपलब्ध नही हो तो आप माँ दुर्गा की ऐसी तस्वीर ले सकते हैं, जिसमें माता के नौ स्वरूप दिखाई दें। अगर वह भी संभव न हों तो माँ दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर भी उपयुक्त है। क्योंकि माँ दुर्गा में ही उनका हर स्वरूप निहित है)
- सर्वप्रथम सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। चौकी को साफ करके, वहां गंगाजल का छिड़काव करें, चौकी पर आपने एक दिन पहले जो पुष्प चढ़ाए थे, उन्हें हटा दें।
- आपको बता दें, चूंकि चौकी की स्थापना प्रथम दिन ही की जाती है, इसलिए पूजन स्थल पर विसर्जन से पहले झाड़ू न लगाएं।
- इसके बाद आप पूजन स्थल पर आसन ग्रहण कर लें।
- अब माता की आराधना शुरू करें- सबसे पहले दीपक प्रज्वलित करें।
- अब ॐ गं गणपतये नमः का 11 बार जाप करके भगवान गणेश को नमन करें।
- इसके बाद ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥ मन्त्र के द्वारा माँ ब्रह्मचारिणी का आह्वान करें।
- प्रथम पूज्य गणेश जी और देवी माँ को कुमकुम का तिलक लगाएं।
- साथ ही, कलश, घट, चौकी को भी हल्दी-कुमकुम-अक्षत से तिलक करके नमन करें।
- इसके बाद धुप- सुगन्धि जलाकर माता को फूल-माला अर्पित करें।
- नर्वाण मन्त्र ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे’ का यथाशक्ति अनुसार 11, 21, 51 या 108 बार जप करें।
- एक धुपदान में उपला जलाकर इस पर लोबान, गुग्गल, कर्पूर या घी डालकर माता को धुप दें, और इसके बाद इस धुप को पूरे घर में दिखाएँ। -आपको बता दें कि कई साधक केवल अष्टमी या नवमी पर हवन करते हैं, वहीं कई साधक इस विधि से धुप जलाकर पूरे नौ दिनों तक साधना करते हैं। आप अपने घर की परंपरा या अपनी इच्छा के अनुसार यह क्रिया कर सकते हैं।
- अब भोग के रूप में दूध से बनी मिठाई माता को अर्पित करें।
- इसके बाद माँ ब्रह्मचारिणी की आरती करें।
- इस तरह आपकी पूजा का समापन करें सबको प्रसाद वितरित करके स्वयं प्रसाद ग्रहण करें।
माँ ब्रह्मचारिणी को क्या भोग लगाएं और उनका बीज मंत्र (What should be offered to Mata Brahmacharini and her Beej Mantra)
- नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी को चीनी, सफेद मिठाई या मिश्री का भोग लगाया जाता है। इस दिन, आप घर पर काजू की बर्फी भी बना सकते हैं।
- काजू की बर्फी बनाने के लिए, सबसे पहले थोड़े से काजू लेकर, उसे पीस लें लें। फिर उसमें मिल्क पाउडर मिलाएं और चाशनी तैयार करें। इसके बाद, काजू पाउडर को चाशनी में डालें और फिर मिठाई को मनचाहे आकार में काट लें।
- इस दिन मां ब्रह्मचारिणी के बीज मंत्र- ह्रीं श्री अम्बिकायै नम: का जाप करना चाहिए ।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा से होने वाले लाभ (Benefits of Mata Brahmacharini Puja)
शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से साधकों को सभी तामसिक विचारों से मुक्ति मिलती है। इस दिन माता के इस स्वरूप की आराधना करने से मानव शरीर में कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है, जिससे उनका जीवन सफल होता है, और वे किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर पाते हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी को सफ़ेद रंग अतिप्रिय है, और इस बार शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए शुभ रंग लाल है।
माँ ब्रह्मचारिणी की कथा (Story of Mata Brahmacharini)
दुर्गा जी की नौ शक्तियों में दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। नवरात्रि में दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। ब्रह्मचारिणी नाम में ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ तपस्या है। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली। कहा भी है- वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म-वेद, तत्त्व और तप ‘ब्रा’ शब्द के अर्थ हैं। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप अत्यन्त भव्य एवं पूर्ण ज्योतिर्मय है। देवी ब्रह्मचारिणी के बायें हाथ में कमण्डल और दाहिने हाथ में तपस्या के लिए माला है। अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय राज के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थी तब नारद जी द्वारा दिये उपदेश से इन्होंने भगवान् शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिये अत्यन्त कठोर तपस्या की। इसी कठोर तपस्या के कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया।
मॉ एक हजार साल केवल फल-मूल खाकर तपस्या की थी। फिर सौ सालों तक केवल शाक खाकर जीवन यापन किया। बहुत दिनों तक कठोर उपवास करते हुए खुले आकाश के नीचे बारिस और धूप में भयंकर कष्ट सह किये इतनी कठोर तपस्या करने के बाद तीन हजार सालों तक मॉ ने केवल पेडो से धरती पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर वह भगवान् शंकर की पूजा अर्चना करती रहीं। फिर कुछ समय के पश्चात उन्होंने पेड से गिरे सूखे बेलपत्रों को भी खाना बन्द कर दिया। इस प्रकार हजारों सालो तक उन्होने बिना कुछ खाये और बिना कुछ पिये कठोर तपस्या करती रहीं। पत्तों को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम ‘अपर्णा’ भी पड़ गया।
इस प्रकार हजारो से कठोर तपस्या करने के कारण देवी ब्रह्मचारिणी के पूर्व जन्म का शरीर दूबला पतला और एकदम क्षीण हो गया। उनकी यह निर्बल दशा देखकर उनकी माता मैना को बहुत दुख हुआ। माता मैना ने उनकी इस कठोर तपस्या से बाहर निकालने के लिए उन्हे आवाज दी ‘उमा’, अरे! नहीं, ओ! नहीं!’ तभी से ब्रह्मचारिणी देवी को ‘उमा’ नाम से जाना गया।
देवी को इस तरह कठोर तपस्या करते देख तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवता, ऋषि, मुनि और पुण्य आत्माये सभी देवी ब्रह्मचारिणी की तपस्या की प्रशंसा करने लगे कि ऐसी तपस्या करना बहुत ही पुण्य कर्म है और आज से पहले किसी ने भी इतनी कठोर तपस्या नही की है। और अन्त में ब्रह्मा जी ने आकाश में प्रकट होकर देवी ब्रह्मचारिणी से बहुत प्रसन्न होकर कहा कि ‘हे देवि! आज तक किसी ने भी इतनी कठोर तपस्या नहीं की है। इतनी कठोर तपस्या करना तो केवल तुम्हीं से सम्भव है। देवी तुम्हारे इस परम पवित्र और अलौकिक कार्य की चर्चा चोरों दिशाओ मे हो रही है। तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। भगवान् शंकर से ही तुम्हारा विवाह होगा और वही तुम्हें पति रूप प्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या को खत्म कर अपने घर लौट जाओ। बहुत जल्द तुम्हारे पिता तुम्हें बापस घर ले जाने आ रहे हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी की आरती (Aarti of Mata Brahmacharini)
ॐ जय ब्रह्मचारिणी मां मैया जय ब्रह्मचारिणी मां जन-जन की उद्धारिणी जन-जन की उद्धारिणी चरणों में हमें रखना ॐ जय ब्रह्मचारिणी मां
माला धारणी मैया, जो जन तुम्हें ध्याता मैया जो जन तुम्हें ध्याता ज्ञान ध्यान बढ़ जावे ज्ञान ध्यान बढ़ जावे सिद्धि नर पाता ॐ जय ब्रह्मचारिणी मां
अष्ट कमण्डल सोहे भक्तों की प्यारी मैया भक्तों की प्यारी तपस्विनी है मैया तपस्विनी है मैया सेवक नर नारी ॐ जय ब्रह्मचारिणी मां
साधक सिद्धि पावे मां कल्याण करे मैया मां कल्याण करे निज भक्तों की मैया निज भक्तों की मैया नित उद्धार करे ॐ जय ब्रह्मचारिणी मां
श्वेत वस्त्र है न्यारा ऋषि मुनि हर्षावे मैया ऋषि मुनि हर्षावे त्याग और संयम बढ़ता त्याग और संयम बढ़ता जो मां को ध्यावे ॐ जय ब्रह्मचारिणी मां
पूजा जो नित करता ज्ञान सदा पावे मैया ज्ञान सदा पावे अज्ञान तिमिर को मिटावे अज्ञान तिमिर को मिटावे चरणों निज आवे ॐ जय ब्रह्मचारिणी मां
द्वितीय नवरात्रों में पूजा मां की करो पूजा मां की करो शक्ति स्वरूपा मां के शक्ति स्वरूपा मां के चरणों का ध्यान करो ॐ जय ब्रह्मचारिणी मां
योगियों के मन में मां सदा निवास करें मैया सदा निवास करें साधक कष्ट मिटावे साधक कष्ट मिटावे मां भव पार करे ॐ जय ब्रह्मचारिणी मां
ब्रह्मचारिणी मां की आरती जो भी करे मैया आरती जो भी करे ज्योतिर्मय जीवन हो ज्योतिर्मय जीवन हो मां से दुख टरे ॐ जय ब्रह्मचारिणी मां