फुलेरा दूज 2025: भाई-बहन के रिश्ते में प्यार और सुरक्षा का तिलक! तारीख और समय जानें
फुलेरा दूज हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम के प्रतीक रूप में विशेष माना जाता है। इस दिन शुभ कार्यों के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती, इसे अबूझ मुहूर्त माना जाता है।
फाल्गुन मास में कई ऐसे त्यौहार आते हैं जो हमारी धार्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहर को एक बार फिर से ताज़ा करते हैं। उन्हीं में से एक पावन पर्व है 'फुलेरा दूज'। ये त्यौहार वसंत पंचमी और होली के बीच आता है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने राधा के साथ फूलों की होली खेली थी, यही कारण है कि इस पर्व का नाम 'फुलेरा दूज' पड़ा।
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर 'फुलेरा दूज' मनाई जाती है। इस साल ये तिथि 1 मार्च 2025 शनिवार को पड़ रही है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:42 ए एम से 05:32 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 05:07 ए एम से 06:21 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:47 ए एम से 12:34 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:07 पी एम से 02:53 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 05:57 पी एम से 06:22 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:00 पी एम से 07:14 पी एम तक |
अमृत काल | 04:40 ए एम, मार्च 02 से 06:06 ए एम, (02 मार्च) तक |
निशिता मुहूर्त | 11:45 पी एम से 12:35 ए एम, (02 मार्च) तक |
त्रिपुष्कर योग | 06:21 ए एम से 11:22 ए एम तक |
फुलेरा दूज पर राधा कृष्ण की पूजा करने, उन्हें फूलों से सजाने, व उनके साथ फूलों वाली होली खेलने का बहुत महत्व है। कहा जाता है कि ऐसा करने से जातक की सभी मनोकामनाएं अति शीघ्र पूरी होती हैं। इस दिन भगवान कृष्ण व राधा रानी की पूजा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं, और भविष्य में आने वाली हर अड़चन से छुटकारा मिलता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फुलेरा दूज के दिन अबूझ मुहूर्त होता है। ऐसे में इस दिन विवाह या कोई अन्य मांगलिक कार्य करने के लिए शुभ मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती है। ऐसी मान्यता है कि इस तिथि पर विवाह करने से जोड़े पर राधे कृष्ण की कृपा आजीवन बनी रहती है, और उनका प्रेम प्रगाढ़ होता जाता है।
फुलेरा दूज के दिन से ब्रज क्षेत्र में होली का आगमन माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन स्वयं भगवान श्री कृष्ण अपनी प्रेयसी राधा रानी के साथ फूलों की होली खेलते हैं।
फुलेरा दूज पर होली खेलने के लिए भगवान श्री कृष्ण को विशेष रूप से तैयार करने की परंपरा है। इस दिन कान्हा की कमर पर एक रंगीन कपड़ा बांधा जाता है, जिसके बाद माना जाता है कि अब श्री कृष्ण राधा के संग होली खेलने के लिए तैयार हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार- एक बार कुछ ऐसा हुआ कि भगवान श्री कृष्ण बहुत दिनों तक राधा से मिलने वृन्दावन नहीं जा पाए थे। ऐसे में राधा रानी अत्यंत दुखी हो गईं। राधा का ये अथाह दुख देखकर सिर्फ़ ग्वाल व गोपियां ही नहीं, बल्कि मथुरा के सभी पेड़-पौधे व फूल मुरझाने लगे।
ये बात जब श्री कृष्ण को पता चली तो वो शीघ्र ही राधा रानी से मिलने के लिए वृंदावन आ पहुंचे। कान्हा के आगमन का समाचार सुनकर वियोग में जलविहीन मछली की तरह छटपटाती राधा का मुखमंडल खिल उठा। गोपियां भी बहुत प्रसन्न हुईं। सूखते हुए पेड़ पौधे व फूलों में एक बार फिर से जान आ गई और वो फिर से पहले की भांति हरे-भरे हो गए। उस समय कन्हैया ने इन फूलों को तोड़कर राधा पर फेंकना शुरू कर दिया। इसके बाद राधा भी प्रसन्न होकर उनपर फूल फेकने लगीं। ये देखकर गोपियां और ग्वाल सब एक-दूसरे पर फूल बरसाने लगे।
कहा जाता है कि तभी से 'फुलेरा दूज' का यह पर्व बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाने लगा, और हर वर्ष मथुरा में इस दिन फूलों की होली खेलने की परंपरा शुरू हुई।
इसके साथ ही यह दिन भगवान कृष्ण की कृपा पाने के लिए भी विशेष है। भक्तों, हम आशा करते हैं कि आपको फुलेरा दूज की संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। व्रत, पूजा व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर पर
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