पोंगल 2025 में खास क्या है? जानें तिथि, परंपराएँ और क्यों यह दिन तमिल संस्कृति का सबसे बड़ा उत्सव है।
पोंगल दक्षिण भारत का प्रमुख फसल उत्सव है, जो तमिलनाडु में धूमधाम से मनाया जाता है। यह चार दिन का त्योहार है, जिसमें प्रकृति, सूर्य देव, और खेती से जुड़ी समृद्धि का सम्मान किया जाता है। पहले दिन भोगी पोंगल, दूसरे दिन सूर्य पोंगल, तीसरे दिन मट्टू पोंगल और चौथे दिन कानुम पोंगल मनाया जाता है।
थाई पोंगल हर साल मकर संक्रांति के आस-पास मनाया जाता है। जनवरी महीने में मनाया जाने वाला यह त्यौहार आमतौर पर 14 और 15 जनवरी से शुरू होता है और इसे चार दिन तक अलग-अलग रीति-रिवाजों से मनाया जाता है। इस महीने को गुडलक वाला महीना भी माना जाता है।
इस साल यह त्योहार रविवार, 14 जनवरी 2025, मंगलवार को मनाया जाएगा जो प्रमुख रूप से दक्षिण भारत के तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भव्य तरीके से मनाया जाता है।
सबसे पहले दिन के थाई पोंगल को भोगी पोंगल के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग शाम के समय अपने-अपने घरों से कूड़ा और पुराने कपड़े एक जगह इकट्ठा कर के जलाते हैं। भोगी पोंगल. ईश्वर के प्रति सम्मान और बुराईयों के प्रति अंत की भावनाओं को दर्शाता है। इस दिन लोग आग के चारों और इकट्ठा होकर सारी रात भोगी कोट्टम बजाते हैं। भोगी कोट्टम भैस की सींग का बना एक प्रकार का ढोल होता है।
दूसरे दिन का थाई पोंगल पर्व सूर्य पोंगल कहलाता होता है और भगवान सूर्य को समर्पित होता है। इस दिन एक खास खीर बनाई जाती है जो नए धान से बने चावल, गुड़ और मूंगदाल से बनती है। इस खीर को विशेष रूप से मिट्टी के एक बर्तन में बनाते हैं। इसके बाद सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है और उन्हें प्रसाद के रूप में यह खीर यानी पोंगल और गन्ना अर्पण किया जाता है और साथ ही अच्छी फसल देने के लिए धन्यवाद कहा जाता है।
तीसरे दिन के पोंगल पर्व को मट्टू पोंगल या केनू पोंगल के नाम से मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार, भगवान शिव के बैल को ही मट्टू कहा जाता है। ऐसे में, इस मौके पर सभी किसान अपने बैलों को नहलाकर, उनके सींगो में तेल लगाकर सजाते हैं और फिर उनकी विधि-विधान से पूजा की जाती है।
थाई पोंगल के आखिरी दिन को कन्या पोंगल कहते हैं जिसे लोग तिरूवल्लूर के रुप में भी जानते हैं। आखिरी दिन घर को अच्छी तरीके से सजाया जाता है। लोग नारियल और आम के पत्तों से घर के मुख्य द्वार को सजाते हैं। घर के बाहर सुंदर रंगोली बनाई जाती है। पोंगल पर्व के आखिरी दिन लोग और बच्चे नए-नए कपड़े पहनते हैं और एक-दूसरे के घर मिठाइयां देने जाते हैं। इस अवसर पर बैलों की लड़ाई भी करवाई जाती है जिसे जलीकट्टू कहते हैं।
थाई पोंगल का त्योहार एक तरह से चार दिन का फसल की कटाई का उत्सव है जो कि धान की फसल पकने के उपलक्ष में मनाया जाता है। यह त्यौहार प्रमुख रूप से भगवान को धन्यवाद देने के अवसर के रुप में देखा जाता है।
इस दौरान, फसल की कटाई के माध्यम से भगवान को धन्यवाद देते हैं कि उन्होने हमें इस काबिल बनाया कि हम आपस में खुशियां बांट सके। इस मौके पर पूजा, सफाई, सजावट को जीवन की प्रेरणा के रुप में देखा जाता है।
भारत के तमिलनाडु राज्य के मदुरै नगर के पति-पत्नी कण्णगी और कोवलन से थाई पोंगल की कथा जुड़ी हुई है। कथानुसार, एक बार कण्णगी के कहने पर कोवलन एक पायल बेचने के लिए एक सुनार के पास जाता है।
ऐसे में सुनार ने राजा को खबर दी, कि कोवलन जो पायल बेचने आया है वह रानी की चोरी हुई पायल से मिलता-जुलता है। यह सुनकर राजा ने बिना किसी जांच के इस अपराध के लिए कोवलन को फांसी की सजा दे दी। राजा के इस फैसले से नाराज होकर पत्नी कण्णगी ने भगवान शंकर की कठोर तपस्या की और उनसे राजा तथा उसके साम्राज्य को नष्ट करने का वरदान मांगा। जब राज्य के लोगों को इस बात का पता चला, तो वहां मौजूद सभी महिलाओं ने मिलकर किलिल्यार नदी के किनारे माता काली की पूजा की।
उन्होंने कण्णगी में राजा के जीवन और राज्य के प्रति दया जगाने की प्रार्थना की। तब माता काली ने राज्य की महिलाओं के व्रत से प्रसन्न होकर कण्णगी में दयाभाव जागृत कर राजा और राज्य की रक्षा की थी। उस वक्त से काली मंदिर में थाई पोंगल बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसे ही भारत के विभिन्न उत्सवों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर के साथ।
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