राधा कुण्ड स्नान 2024 का शुभ मुहूर्त और कथा क्या है? जानें इस पावन अवसर पर स्नान और पूजा की सम्पूर्ण जानकारी।
भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में गोवर्धन गिरिधारी की परिक्रमा मार्ग में एक चमत्कारी कुंड पड़ता है, जिसे 'राधाकुंड' के नाम से जाना जाता है। इस कुंड से जुड़ी एक पौराणिक मान्यता है कि यदि कोई नि:संतान दंपति अहोई अष्टमी यानि कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्य रात्रि को यहां एक साथ स्नान करें, तो राधे-मोहन की कृपा से उन्हें शीघ्र ही उत्तम संतान प्राप्ति होती है।
राधा कुंड स्नान कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर किया जाता है। राधा कुंड में डुबकी लगाने के लिए एक विशेष समय निर्धारित है। मध्य रात्रि के समय को निशिता काल कहा जाता है, और इसी समय को यहां पवित्र डुबकी लगाने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
हिंदू धर्म के अनुसार कार्तिक मास की अष्टमी, जिसे अहोई अष्टमी भी कहते हैं, इस दिन राधा कुंड में डुबकी लगाने की विशेष मान्यता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन नि:संतान दंपत्ति को एक साथ राधा कुंड में स्नान करने से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। इस समय सुहागिनें अपने केश खोलकर राधाजी उपासना करती हैं, और पुत्र रत्न प्राप्ति की प्रार्थना करती हैं। कार्तिक मास की अष्टमी को संतान प्राप्ति के लिए निर्जला व्रत रखने का भी विधान है।
इसी अटूट विश्वास के साथ हर साल हजारों की संख्या में दंपत्ति उत्तर प्रदेश के मथुरा में गोवर्धन स्थान पर पहुंचते हैं, और यहां राधा कुंड में डुबकी लगाकर राधा रानी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि आज भी कार्तिक मास के पुष्य नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण रात्रि बारह बजे तक राधाजी के साथ राधाकुंड में अष्ट सखियों संग महारास करते हैं। इसलिए अहोई अष्टमी के दिन यहां अष्टमी मेला लगाया जाता है। अहोई अष्टमी का ये पर्व यहां प्राचीन काल से मनाया जाता है। संतान प्राप्ति की कामना रखने वाली महिलाओं के लिए यह स्नान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वहीं जिन दंपतियों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है, वे राधा कुण्ड की पुनः यात्रा करते हैं, और डुबकी लगाकर राधा रानी को आभार प्रकट करते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि राधा कुंड का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण ने अरिष्टासुर को मारने के बाद किया था, जो एक बैल रूपी राक्षस था। चूँकि हिंदू मान्यताओं के अनुसार बैल एक धार्मिक प्रतीक है, इसीलिए श्री कृष्ण ने अरिष्टासुर को मारकर अपराध किया था। इस अपराध के बाद राधा जी ने कृष्ण से सभी पवित्र नदियों में स्नान करके स्वयं को शुद्ध करने का सुझाव दिया। राधा जी की बात मान कर श्री कृष्ण ने सभी पवित्र स्थलों का जल एक ही स्थान पर लाने का संकल्प लिया। इसके बाद उन्होंने अपने पैर को धरती पर जोर से मारा, जिससे उस स्थान पर सभी अलौकिक नदियों का जल एकत्रित होने लगा। यह स्थान श्याम कुंड के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
मान्यतायों के अनुसार श्याम कुंड के पास में ही राधारानी ने अपनी चूड़ियों से जमीन को खोदकर एक और कुंड का निर्माण किया, जिसे राधा कुंड के नाम से जाना जाता है। कृष्ण कुंड और राधाकुंड की अपनी एक विशेषता है कि दूर से देखने पर कृष्ण कुंड का जल काला और राधाकुंड का जल सफेद दिखाई देता है, जो कि श्रीकृष्ण के काले वर्ण के होने का और देवी राधा के सफेद वर्ण के होने का प्रतीक है। माना जाता है कि अहोई अष्टमी तिथि को इन कुंडों का निर्माण हुआ था, जिसके कारण अहोई अष्टमी को यहां स्नान करने का विशेष महत्त्व है। यहां आने वाले श्रद्धालु पहले श्याम कुंड और उसके बाद राधा कुंड में स्नान करते हैं।
तो यह थी राधा कुंड स्नान की संपूर्ण जानकारी। हमारी कामना है कि आपका ये व्रत व स्नान सफल हो, और राधा-मोहन की कृपा से आपको उत्तम संतान का सुख मिले। व्रत, त्यौहारों व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' के इस धार्मिक मंच पर।
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