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संस्कृत दिवस 2025

संस्कृत सिर्फ भाषा नहीं, भारतीय संस्कृति की आत्मा है। जानिए संस्कृत दिवस 2025 की तिथि, इसका ऐतिहासिक महत्व और आज के युग में इसकी प्रासंगिकता।

संस्कृत दिवस के बारे में

संस्कृत दिवस भारत में प्रतिवर्ष श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य संस्कृत भाषा के संरक्षण, प्रचार और संवर्धन को बढ़ावा देना है। इस दिन शैक्षणिक संस्थानों में संस्कृत पाठ, प्रतियोगिताएं और संगोष्ठियाँ आयोजित की जाती हैं।

संस्कृत दिवस 2025

हर वर्ष सावन पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला ‘संस्कृत दिवस', अपने आप में ही अनूठा है। इस वर्ष, यह 09 अगस्त, 2025 को मनाया जाएगा। सौंदर्य, रस और देव भाषा का दर्जा प्राप्त इस भाषा को सम्मान देने के लिए, यह दिवस मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है, कि इस दिन समस्त ऋषि-मुनियों को याद किया जाता है। साथ ही, उनका पूजन भी किया जाता है।

2025 में कब है संस्कृत दिवस

संस्कृत दिवस शनिवार, अगस्त 9, 2025 को मनाया जाएगा

  • पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - अगस्त 08, 2025 को 02:12 पी एम बजे से
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त - अगस्त 09, 2025 को 01:24 पी एम बजे तक

संस्कृत दिवस के शुभ मुहूर्त

मुहूर्त 

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:22 ए एम से 05:04 ए एम तक

प्रातः सन्ध्या

04:43 ए एम से 05:47 ए एम तक

अभिजित मुहूर्त

12:00 पी एम से 12:53 पी एम तक

विजय मुहूर्त

02:40 पी एम से 03:33 पी एम तक

गोधूलि मुहूर्त

07:06 पी एम से 07:27 पी एम तक

सायाह्न सन्ध्या

07:06 पी एम से 08:10 पी एम तक

अमृत काल

03:42 ए एम, अगस्त 10 से 05:16 ए एम, अगस्त 10 तक

निशिता मुहूर्त

12:05 ए एम, अगस्त 10 से 12:48 ए एम, अगस्त 10 तक

क्या है संस्कृत दिवस?

संस्कृत दिवस, जिसे ‘विश्व संस्कृत दिवस’ के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति की आत्मा — संस्कृत भाषा के सम्मान और प्रचार-प्रसार के लिए मनाया जाता है। यह दिवस शुद्धता, प्राचीनता और वैदिक ज्ञान के प्रतीक इस दिव्य भाषा को जनमानस से जोड़ने का एक सामूहिक प्रयास है।

क्यों मनाया जाता है संस्कृत दिवस?

संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारतीय ज्ञान, वेदों, शास्त्रों, पुराणों और आचार संहिता की वाहक है। आज की युवा पीढ़ी को संस्कृत के महत्व से परिचित कराने और इसे पुनः जन-जीवन का हिस्सा बनाने के उद्देश्य से यह दिन मनाया जाता है।

भारत सरकार द्वारा श्रावण पूर्णिमा (रक्षाबंधन के दिन) को संस्कृत दिवस के रूप में चुना गया, क्योंकि यह दिन स्वयं वेदों और गुरुओं की पूजा का दिन माना जाता है।

संस्कृत दिवस का महत्व

  • वेदों की भाषा: संस्कृत वह भाषा है जिसमें चारों वेद — ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद — रचे गए हैं।
  • संस्कृति की आत्मा: यह भाषा न केवल धार्मिक, बल्कि विज्ञान, चिकित्सा, गणित, खगोलशास्त्र जैसे क्षेत्रों की भी प्राचीन नींव है।
  • मानसिक शुद्धता: संस्कृत मंत्रों का उच्चारण मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करता है।
  • संस्कार और शिक्षा का मूल: गुरुकुल परंपरा, शास्त्र-ज्ञान और योग विद्या सभी संस्कृत भाषा पर आधारित हैं।

कैसे मनाएं संस्कृत दिवस?

  • संस्कृत श्लोकों और मंत्रों का पाठ करें: इस दिन विशेष रूप से गायत्री मंत्र, श्रीसूक्त, शांतिपाठ, गुरु स्तुति जैसे संस्कृत पाठ करें।
  • संस्कृत भाषा में संवाद का प्रयास करें: परिवार और मित्रों के साथ छोटे-छोटे वाक्य संस्कृत में बोलें, जैसे — "कथम् अस्ति?", "भोजनं कुत्र अस्ति?" आदि।
  • संस्कृत पुस्तकों या ग्रंथों का पठन करें: भगवद्गीता, उपनिषद, वेदांत जैसे ग्रंथों का अध्ययन आरंभ करें।
  • बच्चों को संस्कृत से जोड़ें: उन्हें संस्कृत में प्रार्थनाएं या श्लोक सिखाएं। संस्कृत की लघु कहानियां पढ़ाएं।
  • गुरुजनों का सम्मान करें: चूंकि यह दिन श्रावण पूर्णिमा को आता है, इसलिए गुरु पूजन करना विशेष पुण्यदायक माना गया है।

संस्कृत दिवस पर पूजा कैसे करें?

  • प्रातः स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • घर के पूजा स्थान को शुद्ध करें और दीप प्रज्वलित करें।
  • भगवान विष्णु, सरस्वती और गुरु की विशेष पूजा करें।
  • "ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सरस्वत्यै नमः" मंत्र का जाप करें।
  • गायत्री मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें।

संस्कृत दिवस मनाने के लाभ

  • मानसिक स्पष्टता और एकाग्रता में वृद्धि होती है।
  • संस्कृति से जुड़ाव बढ़ता है और आध्यात्मिक दृष्टिकोण विकसित होता है।
  • बुद्धि, स्मरण शक्ति और वाणी की शुद्धता में लाभ मिलता है।
  • संतान, शिक्षा और विद्या में प्रगति का योग बनता है।

संस्कृत दिवस के दिन क्या करना चाहिए?

  • स्नान करके पूजा करें और गुरुओं को नमन करें।
  • कम से कम एक संस्कृत मंत्र या श्लोक का पाठ करें।
  • बच्चों को संस्कृत से जोड़ने का प्रयास करें।
  • कोई आध्यात्मिक ग्रंथ पढ़ें या उसके कुछ श्लोक याद करें।

संस्कृत दिवस के दिन क्या नहीं करना चाहिए?

  • अपवित्र वाणी या अपशब्दों का प्रयोग न करें।
  • इस दिन मांसाहार, मद्यपान और तमसिक भोजन से बचें।
  • आलस्य न करें — यह विद्या, ऊर्जा और ज्ञान का दिन है।
  • संस्कृत भाषा का उपहास या अनादर न करें।

संस्कृत दिवस के धार्मिक उपाय

  • विद्या वृद्धि के लिए: "ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः" का जाप करें।
  • ग्रहों की शांति हेतु: नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें।
  • संतान सुख के लिए: "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का जप करें।
  • धन-संपत्ति हेतु: श्रीसूक्त का पाठ करें।

धर्म शास्त्रों के अनुसार, संस्कृत देव वाणी की भाषा है और संसार की समस्त भाषाओं की जननी भी। भारत में भी प्राचीन ग्रंथ, वेद, आदि की रचना संस्कृत में ही हुई थी। इस वजह से संस्कृत दिवस, प्राचीन भारतीय भाषा की याद में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य इसके पुनरुद्धार और रख रखाव को बढ़ावा देना है। इन्हीं विचारों को बढ़ावा देने के लिए, सालों से भारत के कर्नाटक में एक ऐसा गांव है, जहां हर कोई संस्कृत में बात करता है। यह गांव शिमोगा ज़िले में पड़ता है जिसका नाम कामत्तूर है। इसके अलावा, हमें कुछ और बातें भी जाननी चाहिए, जो कि इस प्रकार हैं -

1. शुरुआत: ‘संस्कृत दिवस' मनाने की शुरुआत, वर्ष 1969 में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के आदेश से, केन्द्रीय तथा राज्य स्तर से की गई थी। उस वक़्त से संपूर्ण भारत में संस्कृत दिवस, श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। कहा जाता है, इसके लिए इस दिन को इसलिए चुना गया था, क्योंकि इसी दिन से प्राचीन भारत में शिक्षण सत्र शुरू हुआ करता था।

2. उद्देश्य: देव भाषा का दर्जा प्राप्त संस्कृत, काफ़ी समय से अपना वजूद खो रही है। भारत में भी अब इसको पढ़ने, लिखने और समझने वालों की संख्या पहले के मुक़ाबले काफ़ी कम है। इस कारणवश, आज के समय में समाज को संस्कृत की महत्ता और आवश्यकता याद दिलाने के लिए, संस्कृत दिवस मनाया जाता है, जिससे हम समय के साथ आगे बढ़ने की चाह में यह न भूल जाएं, कि संस्कृत भी एक भाषा है।

3. महत्व: संस्कृत केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि एक ऐसी संस्कृति है, जिसे फिर से एक बार संजोने की आवश्यकता है। यह बहुत ज़रुरी है, कि साल में एक दिन हर भारतीय को यह याद दिलाया जाए, कि उसके अपने देश की भाषा, इस दौड़-भाग में कहीं पीछे छूटती जा रही है। आज के समय में जहां संस्कृत को लोग इसलिए भी कम आंकते हैं, क्योंकि इसे देश-विदेश में लोगों के बीच अंग्रेज़ी जैसा स्थान प्राप्त नहीं है। इस कारणवश भी यह ज़रूरी है, कि संस्कृत दिवस को महत्व दिया जाए, जिससे इसे इसकी पहचान वापस मिले।

4. इतिहास: भारत में संस्कृत भाषा की उत्पत्ति, करीब 4 हज़ार साल पहले हुई थी और हिंदू धर्मग्रंथों में संस्कृत के मंत्रों का उपयोग, हज़ारों वर्षों से किया जा रहा है। भारत में सर्वप्रथम वेदों की रचना, 1000 से 500 ईसा पूर्व में हुई थी। ज्ञानियों के अनुसार, वैदिक संस्कृति में ऋग्वेद, पुराणों और उपनिषदों का काफ़ी महत्व है।

5. उत्पत्ति: यह सबसे पुरानी भारतीय-यूरोपीय भाषाओं में से एक है। बहुत कम लोगों को पता होगा, कि संस्कृत भाषा में करीब 102 अरब, 78 करोड़, 50 लाख शब्दों की विश्व में सबसे बड़ी शब्दावली है।

संस्कृत को प्राचीनतम भाषा की संज्ञा प्राप्त है और यह, समस्त पुराणों की भी भाषा है, इस वजह से इसके प्रति लोग श्रद्धा की भावना रखते हैं। ऐसा कहते हैं, कि संस्कृत साहित्य के मुख्य स्रोत, ऋषि ही हैं और इसी मूल भाषा से, कई अन्य भाषाओं का भी जन्म हुआ है। तथ्य यह भी है, कि हर वर्ष रक्षाबंधन के दिन ही संस्कृत दिवस भी मनाया जाता है। अगर आपको हमारी यह जानकारी अच्छी लगी, तो ऐसी ही और भी नई-नई और रोमांचक जानकारियों को जानने के लिए, जुड़े रहिये श्री मंदिर के साथ।

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Published by Sri Mandir·July 29, 2025

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