सरस्वती विसर्जन के शुभ मुहूर्त, मंत्र, और विधि की पूरी जानकारी प्राप्त करें।
भारत के दक्षिण में केरल और तमिलनाडु में नवरात्रि में दुर्गा पूजा के दौरान सप्तमी और कई स्थानों पर अष्टमी तिथि को सरस्वती स्थापना करके माता का आवाहन किया जाता है। वहीं विजयदशमी या नवरात्री के 9वें दिन सरस्वती का विसर्जन किया जाता है।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार सरस्वती विसर्जन आश्विन महीने की शुक्ल पक्ष के नवरात्रि के दौरान किया जाता है।
नवरात्रि के आखिरी तीन दिन सरस्वती पूजन के लिए बहुत अधिक खास माने जाते हैं। इस दिन ज्ञानवर्धक पुस्तकों को माता सरस्वती के साथ पूजन स्थान पर रखकर उनका पूजन किया जाता है और पूजन के बाद इन पुस्तकों को पढ़ने के लिए उठा लिया जाता है। दक्षिण भारत राज्य केरल और तमिलनाडु में इस पूजा को एदुप्पू कहते हैं।
हिंदू पौराणिक ग्रथों के अनुसार जब देवता और दानव मिलकर समुद्र मंथन का कार्य कर रहे थे। तब मंथन के दौरान कई रत्न और अमृत उन्हें प्राप्त हुए थे। लेकिन इस दौरान एक शक्तिशाली शक्ति उत्पन्न हुई। जिस से देखकर देवता और दानव बहुत ही विचलित हुए।
इसके बाद सभी भगवान विष्णु की शरण में गए। भगवान विष्णु ने उन्हें देवी सरस्वती की कृपा प्राप्त करने को कहा, क्योंकि मां सरस्वती ही उच्च बुद्धिमत्ता और ज्ञान का अद्भुत दान दें सकती हैं। देवता और दानव इस सुझाव को मानते हुए देवी सरस्वती की पूजा अर्चना करने लगे।
जिस के बाद देवी सरस्वती ने उन्हें अपना आशीर्वाद दिया और बुद्धि और ज्ञान का वरदान दिया। देवता और दानव ने उस बुद्धि और ज्ञान का सहारा लेकर समुद्र मंथन को समाप्त किया और अमृत प्राप्त किया। इसके बाद सभी ने अमृत को समुद्र में विसर्जित करने का निर्णय लिया। इस अवसर पर उन्होंने मां सरस्वती की पूजा की और देवी को समुद्र में विसर्जित कर दिया। जिससे इस दिन को सरस्वती विसर्जन कहा जाता है।
- हाथ में जल लेकर कहें: "ओम सांग स्वाहन सपरिवार भूर्भुवःस्वः श्रीसरस्वती पूजित हो, प्रसन्न हों और मेरे साथ रहें। - अगर देवी को जल में विसर्जित करना हो, तो "प्रसन्ना" के बाद कहें: "क्षमस्व, अपने स्थान पर वापस जाएं।" - फिर गणेश जी के लिए कहें: "ओम गं गणपति पूजित हो, प्रसन्न हों, मुझे क्षमा करें और अपने स्थान पर वापस जाएं।" - नवग्रहों के लिए कहें: "ओम सूर्यादि नवग्रह पूजित हो, प्रसन्न हों, मुझे क्षमा करें और अपने स्थान पर वापस जाएं।" - दशदिक्पालों के लिए कहें: "ओम इन्द्रादि दशदिक्पाल पूजित हो, प्रसन्न हों, मुझे क्षमा करें और अपने स्थान पर वापस जाएं।" - शांति कलश में स्थित देवताओं के लिए कहें: "ओम शांति कलशाधिष्ठित देवता, प्रसन्न हों, मुझे क्षमा करें और अपने स्थान पर वापस जाएं।" - अंत में कहें: "सभी देवगण मेरी पूजा से प्रसन्न होकर मेरे इच्छित कार्य पूरे करें और फिर से वापस आएं।" इसके बाद शाम को मूर्ति को जल में प्रवाहित कर दें। व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' पर।
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