शबरी जयंती 2025: माता शबरी की भक्ति और त्याग की अद्भुत कथा! जानें इस पवित्र दिन की पूजा विधि और इसका जीवन पर प्रभाव
शबरी जयंती माता शबरी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने और उनके भक्ति मार्ग को अपनाने का पर्व है। यह पर्व फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। माता शबरी भगवान श्रीराम की परम भक्त थीं, जिन्होंने अपनी संपूर्ण जीवन तपस्या और भक्ति में अर्पित कर दिया था
रामायण में हनुमान जी, जामवंत, केवट आदि कई ऐसे पात्र हैं, जो भगवान श्री राम के प्रति अपनी प्रगाढ़ भक्ति के लिए सदैव स्मरण किए जाते हैं। ऐसी ही एक पात्र हैं माता शबरी। दोस्तों, जब तक शबरी के जूठे बेर की चर्चा न हो, तब तक रामायण अधूरी है। श्री राम के प्रति उनकी भक्ति को याद करते हुए फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है।
अधिकतर मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर श्री राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे। तभी से इस दिन राम भक्त शबरी की स्मृति यात्रा निकालते हैं। शबरी श्री राम की अनन्य भक्त थीं। भगवान राम ने उनके जूठे बेर खाकर जनमानस को यही संदेश दिया कि भगवान केवल भाव के भूखे हैं।
शबरी जयंती का पर्व मुख्यतः गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में मनाया जाता है। शबरी जयंती के दिन अलग-अलग जगहों पर कई धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। दक्षिण भारत के भद्रचल्लम के सीतारामचन्द्रम स्वामी मंदिर में इस जयंती को एक बड़े उत्सव के रूप में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाने की परंपरा है।
इस दिन सबरीमाला में भव्य मेले का आयोजन होता है, इस अवसर पर विधि-विधान से शबरी के साथ भगवान श्री राम की भी पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन श्रीराम चरित मानस का पाठ भी किया जाता है।
शबरी का संबंध एक भील समुदाय से था, उनका वास्तविक नाम श्रमणा था। शबरी के पिता भील सरदार हुआ करते थे। भीलनी शबरी जब विवाह करने योग्य हुईं, तो पिता ने एक भील युवक के साथ उनका लग्न तय कर दिया। जब शबरी के विवाह का समय समीप आया, तो सैकड़ों बकरे-भैंसे बलि देने के लिए लाए गए।
ये देखकर शबरी ने जब अपने पिता से पूछा- हे पिता श्री, यहां इतने जानवर क्यों एकत्र किए गए हैं? पिता ने उत्तर दिया- बेटी! कल तुम्हारा विवाह है! इसी उपलक्ष्य में इन सभी जानवरों की बलि दी जाएगी। ये सुनकर शबरी का मन दुख और पीड़ा से विचलित हो उठा। अतः उन्होंने निश्चय किया कि वो ये विवाह कदापि नहीं करेंगी, ऐसा निश्चय कर शबरी ने रात्रि में ही वन प्रस्थान कर लिया।
वनवास के दौरान शबरी ने निश्चय किया कि वो किसी श्रेष्ठ ऋषि से शिक्षा प्राप्त करेंगी। लेकिन भील समुदाय से संबंध होने के कारण शबरी को किसी ने अपना शिष्य नहीं बनाया। अंततः मतंग ऋषि ने उनपर कृपा की। उन्होंने अपने आश्रम में न सिर्फ़ निवास करने के लिए स्थान दिया, बल्कि उनका गुरु बनकर उन्हें शिक्षा देना भी स्वीकार किया।
एक दिन जब महर्षि मतंग का अंत समय निकट आया, तो उनकी मृत्यु की कल्पनामात्र से ही शबरी विकल हो गईं। ये देखकर महर्षि ने उसे निकट बुलाकर कहा- बेटी! ये कष्ट धैर्यपूर्वक सहन करना, एवं निरंतर श्री राम की साधना करती रहना। एक दिन प्रभु तेरी कुटिया में अवश्य आयेंगे, और तेरा उद्धार करेंगे। उधर महर्षि ने अपना शरीर त्याग दिया
महर्षि मतंग के ये कथन, कि 'एक दिन भगवान राम तेरी कुटिया में अवश्य पधारेंगे!' बार-बार शबरी के कर्णपटल पर गूंजते थे। समय बीतता गया और ऐसा करते-करते शबरी वृद्ध हो गईं, परंतु वो अब भी भगवान की निरंतर प्रतीक्षा करती रहीं।
अंततः वो शुभ दिन आ ही गया जब सीता जी की खोज करते हुए स्वयं श्री राम शबरी को कृतार्थ करने उनकी कुटिया में पधारे। राम के दर्शन पाते ही शबरी की सारी तपस्या फलीभूत हो उठी। वो प्रभु के लिए बेर तोड़ कर लाईं। शबरी को चिंता थी वो भगवान को कहीं कोई खट्टा बेर न खिला दें। ये विचार कर शबरी पहले वो बेर स्वयं चखतीं, उसके पश्चात् जो बेर मीठे होते, वो प्रभु को खाने को देतीं। ये देखकर लक्षण क्रोध और अचरज से बोले- भ्राता श्री! ये बेर तो इस वृद्ध भीलनी के जूठे हैं! अनुज लक्ष्मण की बात सुनकर श्री राम ने कहा- प्रिय लक्ष्मण! क्रोध त्याग दो! शबरी के ये बेर जूठे नहीं, बल्कि अत्यंत मीठे और स्वादिष्ट हैं, क्योंकि इनमें शबरी माता का अटूट प्रेम है!
शबरी धाम गुजरात के डांग जनपद में सापुतारा से कुछ दूर पर स्थित है। ये वही जगह है, जहां शबरी ने वर्षो तक प्रतीक्षा की, और अंततः भगवान श्री राम के दर्शन पाकर मोक्ष को प्राप्त हुईं।
शबरी धाम आज एक धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यहां एक छोटी सी पहाड़ी है, जिसपर एक मंदिर बना हुआ है, इस मंदिर में रामायण से संबंधित कई तस्वीरें बनाई गई है, विशेषकर शबरी प्रसंग से जुड़ी हुई अनेक तस्वीरें आज भी माता शबरी की श्री राम के प्रति अटूट आस्था का बखान कर रही हैं। मंदिर के आस-पास आज भी बेर के पेड़ पाए जाते हैं। शबरी जयंती के अवसर पर यहां 'शबरी कुंभ' का आयोजन होता है।
आशा है कि इस लेख से आपको शबरी जयंती की संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। ऐसी ही उपयोगी और धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर पर।
Did you like this article?
जीवित्पुत्रिका व्रत 2024 की तिथि, समय, पूजा विधि, और कथा के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करें। यह व्रत माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है।
इन्दिरा एकादशी व्रत 2024 की तारीख, विधि और महत्व जानें। इस पवित्र व्रत से पितरों की शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जानें दशहरा क्यों मनाया जाता है, इस पर्व का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व क्या है और यह कैसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।