षटतिला एकादशी 2025: जानें कब है, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि! इस खास दिन को सही तरीके से मनाकर पाएं अपार आशीर्वाद और पुण्य।
षटतिला एकादशी हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है, जो माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और तिल का विशेष महत्व होता है। "षटतिला" का अर्थ है छह प्रकार से तिल का उपयोग करना। यह तिल का दान, स्नान, उबटन, भोजन, हवन, और जल में मिलाने का प्रतीक है।
शास्त्रों में एकादशी के व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है। षटतिला एकादशी, जिसे तिल्दा या षटिला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, यह माघ मास में कृष्ण पक्ष के दौरान 11वें दिन आती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, यह त्योहार जनवरी या फरवरी के महीने में आता है। यहां हम आपके लिए लेकर आए हैं षटतिला एकादशी से जुड़ी विशेष तिथियों की जानकारी। जिसमें हम आपको व्रत के पारण का समय भी बताएँगे।
सनातन धर्म में माघ मास में आने वाली षटतिला एकादशी को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। आज हम इस लेख में इस एकादशी से जुड़ें कुछ प्रश्नों के उत्तर जानेंगे, जैसे कि -
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। षटतिला एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। हमारी मान्यताएं कहती हैं कि यह तिथि मनुष्य को मृत्यु के बाद वैकुण्ठ धाम में स्थान दिलाने में सहायक होती है। इसलिए षटतिला एकादशी पर व्रत करने और भगवान विष्णु का ध्यान करने का बहुत महात्म्य माना गया है।
हिन्दू माह माघ में आने वाली षटतिला एकादशी को धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार भूलवश किये गए पापकर्मों का पश्चाताप करने के लिए षटतिला एकादशी का व्रत और पूजन करना चाहिए।
इसके साथ ही वे लोग जो वर्ष भर किसी भी तरह का दान - पुण्य और पूजन करने में असमर्थ होते हैं, वे षटतिला एकादशी की पूजा करते हैं।
आजीवन भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए और मृत्यु के बाद विष्णु जी की शरण में जाने के लिए और षटतिला एकादशी की विधिवत पूजा की जाती है।
षटतिला एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा में नारद मुनि भगवान विष्णु से पूछते हैं कि पृथ्वीलोक पर रहने वाले मनुष्यों को नरक की यातना भोगने से बचाने का क्या उपाय है। तब भगवान विष्णु ने नारद जी को षटतिला एकादशी की महिमा कहकर सुनाई कि जो मनुष्य सदा के लिए मेरी शरण में रहना चाहते हैं, उनके लिए षटतिला एकादशी एक शुभ अवसर होता है।
पद्म पुराण में भी वर्णन मिलता है कि षटतिला एकादशी पर किया गया दान, पूजा और व्रत का लाभ कन्यादान और स्वर्णदान के बराबर पुण्य फलदायी होता है। हजारों वर्षों की तपस्या से जो फल प्राप्त होता है, वही फल एक मात्र षटतिला एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है।
साथ ही अगर आप षटतिला एकादशी के दिन व्रत नहीं भी रख पा रहें हैं तब भी आप अपनी पूजा और दान में तिल का प्रयोग कर सकते हैं। मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी पर भक्तों द्वारा किया गया तिल का दान और विभिन्न तरह से किया गया तिल का उपयोग बेहद महत्वपूर्ण होता है।
इसी के साथ हम आशा करते हैं कि आपको इस शुभ तिथि का लाभ अवश्य मिलें और आप पर श्री हरि की कृपा सदा के लिए बनी रहें।
सनातन व्रतों में एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस दिन संपूर्ण विधि और उचित सामग्री के साथ पूजा करना अत्यंत फलदायक होता है। एकादशी पर की जाने वाली पूजा की सामग्री कुछ इस प्रकार है -
नोट - गणेश जी की प्रतिमा के स्थान पर आप एक सुपारी पर मौली लपेटकर इसे गणेशजी के रूप में पूजा में विराजित कर सकते हैं।
इस सामग्री के द्वारा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है, जो आपके लिए श्री मंदिर पर उपलब्ध है। आप इसका लाभ अवश्य उठायें।
एकादशी पर ऐसे करें भगवान विष्णु की पूजा
हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस लेख में आप एकादशी की पूजा की तैयारी एवं विधि जानेंगे।
(सबसे पहले दीप प्रज्वलित इसीलिए किया जाता है, ताकि अग्निदेव आपकी पूजा के साक्षी बनें)
(ध्यान दें गणेश जी को तुलसी अर्पित न करें)
तो यह थी, एकादशी से जुड़ी संपूर्ण जानकारी। हमारी कामना है कि आपको षटतिला एकादशी व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त हो, और आप पर भगवान विष्णु की कृपा सदैव बनी रहे। ऐसी और भी धर्म सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए बने रहिए श्री मंदिर के साथ।
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