शीतला अष्टमी कब है? जानें पूजा विधि, तिथि और व्रत के लाभ। शीतला माता की पूजा से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि पाएं।
शीतला अष्टमी हिंदू धर्म में माता शीतला की पूजा का पावन पर्व है, जो होली के आठवें दिन चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। परंपरा के अनुसार, इस दिन बासी भोजन ग्रहण किया जाता है। माता शीतला को ठंडा भोजन चढ़ाकर स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना की जाती है।
शीतला अष्टमी हर वर्ष चैत्र मास की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इसे बसोड़ा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, पूर्ण आस्था से शीतला मां की उपासना करने से संतान को उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घायु प्राप्त होती है, और उनके सारे कष्ट दूर होते हैं। आपको बता दें कि शीतला अष्टमी पर शीतला माता को बासी भोजन का भोग लगाने की भी परंपरा है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त प्रातः | 04 बजकर 26 मिनट से 05 बजकर 13 मिनट तक होगा। |
प्रातः सन्ध्या प्रातः | 04 बजकर 50 मिनट से 06 बजकर 00 मिनट तक होगा। |
अभिजित मुहूर्त | 11 बजकर 41 मिनट से 12 बजकर 29 मिनट तक होगा। |
विजय मुहूर्त दोपहर | 02 बजकर 07 मिनट से 02 बजकर 55 मिनट तक होगा। |
गोधूलि मुहूर्त शाम | 06 बजकर 09 मिनट से 06 बजकर 32 मिनट तक होगा। |
सायाह्न सन्ध्या शाम | 06 बजकर 10 मिनट से 07 बजकर 21 मिनट तक होगा। |
अमृत काल रात | 08 बजकर 33 मिनट से 10 बजकर 16 मिनट तक होगा। |
निशिता मुहूर्त रात | 11 बजकर 41 मिनट से 23 मार्च की रात 12 बजकर 28 मिनट तक होगा। |
हमारी कामना है कि ये शीतला अष्टमी व्रत सभी जातकों को शुभ फल प्रदान करने वाला हो, और सभी पर माता शीतला की कृपा सदैव बनी रहे।
शीतला अष्टमी के दिन बासोड़ा पर शीतला माँ को बासी भोजन का भोग लगता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि क्यों है ऐसा और क्या है इसका रहस्य ?
शीतला अष्टमी को बासोड़ा पूजा भी कहा जाता है। यह माता शीतला को समर्पित एक महत्वपूर्ण तिथि है। होली के बाद कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाई जाती है। गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में इस दिन का अत्यंत महत्व है। इसे कई स्थानों पर बसियौरा नाम से भी जाना जाता है।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता के आशीर्वाद से चेचक, खसरा और आंखों से जुड़ी समस्या ठीक होने का आर्शीवाद प्राप्त होता है। इस दिन व्रत एवं पूजन किये जाने का विधान है।
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में शीतला अष्टमी या बसोड़ा के दिन भक्तजन मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाते हैं। बासोड़ा प्रथा के अनुसार इस दिन खाना पकाने के लिए आग नहीं जलाई जाती। बासी भोजन की वजह से ही इस व्रत का नाम बसोड़ा पड़ा जिसका अर्थ होता है बासी भोजन। इस दिन का भोजन एक दिन पूर्व ही तैयार कर लिया जाता है और शीतला अष्टमी के दिन माता को इसका भोग लगाया जाता है।
कहा जाता है इस दिन के बाद से बासी भोजन खाने से परहेज करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि देवी शीतला चेचक और खसरा आदि को नियंत्रित करती हैं। इन बीमारियों के प्रकोप को दूर करने के लिए भक्त जन उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।
इस दिन बासी भोग चढ़ाने की परंपरा का वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों दृष्टिकोण से महत्त्व है:
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: बासी भोजन ठंडा होता है और गर्मी के मौसम में यह शरीर को ठंडक प्रदान करता है। बासी भोजन को शीतला माता को चढ़ाने से यह संदेश मिलता है कि हम ठंडक के प्रतीक के रूप में इस दिन को मनाएं।
धार्मिक दृष्टिकोण: बासी भोजन चढ़ाने का उद्देश्य यह होता है कि हम ताजे और अधिक वस्त्रों की बजाय सादगी से पूजा करें। यह परंपरा दर्शाती है कि हमें हर स्थिति में संतुष्ट रहना चाहिए और जीवन में भौतिक वस्तुओं के पीछे न भागते हुए आत्मिक संतोष प्राप्त करना चाहिए। शीतला माँ की कृपा से आप परिवार सहित स्वस्थ रहें।
स्वास्थ्य की रक्षा: इस दिन की पूजा से घर में बीमारियों का नाश होता है और परिवार के सभी सदस्य स्वस्थ रहते हैं। शीतला माता की पूजा से संक्रामक रोगों, बुखार और अन्य बीमारियों से बचाव होता है।
समृद्धि और शांति: शीतला अष्टमी का पर्व परिवार में सुख और समृद्धि का प्रतीक है। इस दिन माता की पूजा से घर में शांति बनी रहती है और आर्थिक समृद्धि भी आती है।
आध्यात्मिक लाभ: शीतला अष्टमी पर पूजा करने से आंतरिक शुद्धता और मानसिक शांति प्राप्त होती है। यह दिन आत्मविश्वास और संयम की भावना को बढ़ावा देता है, जिससे जीवन में संतुलन बना रहता है।
इस प्रकार, शीतला अष्टमी का पर्व न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जीवन में शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति का माध्यम भी है।
शीतला माता का पूजन चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। आदिशक्ति की स्वरूप माँ शीतला की अद्भुत लीला के समान ही उनकी पूजा-अर्चना का विधान अत्यंत विशिष्ट है।
आज के इस लेख में हम आपके लिए शीतला अष्टमी की पूजा विधि लेकर आये हैं।
तो इस प्रकार बासोड़ा के दिन शीतला माता की पूजा संपन्न होती है। कहते हैं कि जैसे आदिशक्ति मां काली ने राक्षसों का अंत किया था, ठीक वैसे ही माता शीतला मनुष्य के भीतर छिपे रोग रूपी राक्षस का संहार करती हैं। शीतला अष्टमी के दिन मां शीतला की पूजा करने से जातक को सुखी जीवन की प्राप्ति होती है, साथ ही वह सदैव निरोगी रहता है।
हम आशा करते हैं आप सभी पर शीतला माता का आर्शीवाद बना रहे। आप परिवार सहित निरोगी रहें एवं इस पावन पर्व का आनंद उठाएं।
कहा जाता है कि शीतला माता की कृपा से सभी भक्तों को स्वस्थ एवं निरोगी जीवन का वरदान प्राप्त होता है। शीतला अष्टमी या बसोड़ा पर्व एकमात्र ऐसा व्रत है जिसमें एक दिन पूर्व बनाएं हुए भोजन को अगले दिन भोग के रूप में माँ शीतला को चढ़ाया जाता है। एवं बासे भोजन को प्रसाद के रूप में खाया भी जाता है। इस अनोखी प्रथा के साथ ही इस व्रत से जुड़ी कुछ अन्य सावधानियां भी हैं। जिनका ध्यान रखते हुए आप अपने व्रत-पूजन को पूर्ण रूप से फलदायी बना सकते हैं।
तो भक्तों ये थीं शीतला अष्टमी से जुड़ी कुछ बेहद आसान सावधानियां। इस पर्व की अन्य महत्वपूर्ण जानकारी के लिए श्री मंदिर के अन्य लेख एवं वीडियो अवश्य देखें।
पौराणिक मान्यतों के अनुसार शीतला अष्टमी पर माताएं अपनी संतान की समृद्धि एवं दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। कहा जाता है कि शीतला माँ को समर्पित यह व्रत बच्चों को चेचक, खसरा एवं आंखों की बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करता है। इस व्रत के दिन कुछ बेहद ही सरल बातों को ध्यान में रखकर आप अपने व्रत को अधिक फलदायी बना सकते हैं।
नकारात्मकता से मुक्ति हेतु - शीतला अष्टमी के दिन नीम के पेड़ की पूजा करना ना भूलें। ऐसा करने से आपके मन से नकारात्मक विचार नष्ट होते हैं और आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
सुखी जीवन के लिए - इसके अतिरिक्त इस दिन नीम के पेड़ पर जल चढ़ाएं और पेड़ की सात बार परिक्रमा करें। माना जाता है कि ऐसा करने से आपके जीवन में खुशहाली आती है।
रोगों से सुरक्षा हेतु - शीतला अष्टमी के दिन मां शीतला को हल्दी अवश्य चढ़ाएं। यह हल्दी अपने परिवार के अन्य सभी लोगों को भी लगाएं। ऐसा करने से आपके परिवार को रोगों से सुरक्षा मिलेगी।
संकटों के नाश हेतु - इसके अलावा इस दिन की पूजा के बाद इस दिन का प्रसाद किसी कुम्हारिन को अवश्य दें। कहा जाता है ऐसा करने से आपके सभी संकट कट जायेंगे।
सुख समृद्धि के लिए - शीतला अष्टमी की पूजा के बाद गाय की पूजा अवश्य करें। यह आपके जीवन में सुख, समृद्धि और संपन्नता की बढ़ोत्तरी करेगा।
हम आशा करते हैं कि शीतला अष्टमी से संबंधित ये खास उपाय आपके लिए लाभदायक रहेंगे। इस दिन के व्रत-पूजन से जुड़े हमारे अन्य लेख एवं वीडियों अवश्य देखें।
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