कौन थे श्री तैलंग स्वामी? उनकी जयंती पर जानें उनके जीवन की प्रेरक कथा और शिक्षाएँ।
श्री तैलंग स्वामी जयंती महान संत श्री तैलंग स्वामी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। यह दिन ध्यान, प्रार्थना, और उनके उपदेशों का अनुसरण करने के लिए समर्पित होता है। उनकी शिक्षाएं आत्मज्ञान, संयम, और साधना का मार्ग दिखाती हैं।
हमने कितनी बार यह सुना है, कि आयु सिर्फ एक संख्या मात्र है लेकिन क्या आपने कभी इसका कोई जीवंत उदाहरण देखा है? अगर नहीं, तो आज हम एक ऐसे ही महान योगी पुरुष से आपका परिचय कराते हैं जो पृथ्वी पर 300 साल की लंबी आयु तक जीवित रहे और ऐसे सिद्ध पुरुष को पोषित करने का सौभाग्य भारत की भूमि को प्राप्त हुआ।
हम बात कर रहे हैं तैलंग स्वामी जी की जो विलक्षण व्यक्तित्व के धनी थे और जिन्हें भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। उनकी जयंती के अवसर पर उनके जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलू आज हम आपके साथ साझा करने वाले हैं।
तैलंग स्वामी जयंती हर साल पौष मास के शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को मनाई जाती है।
इस साल श्री तैलंग स्वामी की 418वाँ जन्म वर्षगाँठ हैं।
साल 2025 में यह 10 जनवरी दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी।
इस दिन एकादशी तिथि 09 जनवरी 2025 को दोपहर 12 बजकर 22 मिनट पर शुरू होगी।
और एकादशी तिथि 10 जनवरी 2025 को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर समाप्त हो जाएगी।
महान संत तैलंग स्वामी का जन्म आंध्र प्रदेश के विजीयाना जिले के होलिया नामक गांव में हुआ था। इनके पिता नरसिंह राव जी गांव के जमींदार थे और माता का नाम विद्यावती था। इनके जन्म का समय स्पष्ट रूप से तो ज्ञात नहीं है, लेकिन कहीं पर 1529 ईसवी तो कहीं पर 1607 ईसवी इनका जन्म वर्ष माना जाता है। इनकी माताजी भगवान शिव की उपासक थीं और चाहती थीं, कि उनके पुत्र को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता रहे इसलिए उन्होंने अपने पुत्र का नाम शिवराम तैलंगधर रखा था।
बचपन से ही तैलंग स्वामी आम बालकों से अलग थे। उनका मन खेलकूद से अलग ध्यान और चिंतन में ज्यादा लगता था। अपनी माता के सानिध्य में बालक तैलंग भी शिव भक्त बन गए। आपको जानकर हैरानी होगी, कि जब वह एक पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान लगाने बैठते थे, तो एक भयंकर विषैला सांप भी उनके पास बैठ जाता था। यह देखकर सभी आश्चर्यचकित हो जाते थे और इस तरह धीरे-धीरे तैलंग स्वामी पूरे गांव में प्रसिद्ध हो गए।
तैलंग स्वामी जब बड़े हुए, तो उनके माता-पिता ने इनका विवाह कराने के बारे में सोचा। मगर वह इस बंधन में बंधना नहीं चाहते थे और इन्होंने विवाह करने से इंकार कर दिया। तब वह 40 साल के थे जब उनके पिता का स्वर्गवास हो गया और करीब 10 साल बाद, उनकी माताजी भी स्वर्ग लोक सिधार गई। अपनी माता की अंतिम क्रिया करने के बाद तैलंग स्वामी वहीं श्मशान घाट में ही ठहर गए और साधना में लीन हो गए थे। उन्होंने 20 सालों तक वहीं रहकर साधना में समय बिताया था। उस वक्त उनके खानपान की जिम्मेदारी उनके सौतेले भाई श्रीधर ने निभाई।
एक दिन महान तपस्वी भागीरथ स्वामी उनसे प्रभावित होकर उन्हें अपने साथ पुष्कर जी ले गए। उस समय तैलंग स्वामी की आयु 78 वर्ष थी और वहां पर ही उन्होंने भागीरथ स्वामी जी से दीक्षा प्राप्त की। इस तरह उनको उनके गुरु ने एक नया नाम दिया - गणपति स्वामी। यहां भी उनका समय ध्यान और साधना में ही बीतता था, जिस कारण उन्हें अनेक सिद्धियां प्राप्त हुई।
गुरु भागीरथ स्वामी के स्वर्गवास के बाद तैलंग स्वामी फिर से यात्रा पर निकल पड़े। ऐसे में रामेश्वरम, नेपाल तिब्बत, हिमालय आदि बहुत से तीर्थ स्थानों की यात्रा करते-करते वह साल 1737 में काशी पहुंचे और अंत तक वहीं रहे। इसके बाद जब वह काशी पहुंचे, तो उनकी आयु 122 साल थी लेकिन वह कद काठी से बलवान और देखने में युवा लगते थे। वह अपनी साधना के बल पर बिना कुछ खाए हफ्ते गुजार देते थे।
तैलंग स्वामी प्रेम से देने पर कुछ भी ग्रहण कर लेते थे, लेकिन कभी मांग कर नहीं खाते थे। समय के साथ उन्होंने वस्त्र भी त्याग दिए और दिव्य संत की तरह पूर्ण नग्न अवस्था में रहते थे। उन्होंने जीवनभर कठोर साधना की और इसी के फलस्वरूप, उनके अंदर दिव्य गुण आ गए थे। वह सहज में ही ऐसे कार्य करते थे, जो लोगों को चमत्कार लगते और किसी भी महान संत की तरह उन्होंने अपने किए कार्यों पर कभी अभिमान नहीं किया।
महान योगी तैलंग स्वामी लगभग 300 वर्ष तक की पूर्ण आयु भोगकर 11 जनवरी 1987 को एकादशी के दिन योगासन धारण कर ब्रह्मलीन हो गए थे। मान्यता है, कि उन्हें पहले से ही अपने स्वर्गगमन का समय ज्ञात था जिसकी सूचना उन्होंने अपने शिष्यों को एक दिन पहले दे दी थी।
आप भी यह जानते हैं, कि महान संत असंभव कार्य को संभव कर देते हैं। ऐसा ही अनेकों चमत्कारी कार्य से तैलंग स्वामी ने भी बहुत से लोगों की मदद की थी।
तैलंग स्वामी जी ने रामेश्वरम धाम में एक मृत व्यक्ति के ऊपर अपने कमंडल से जल छिड़ककर उसे जीवित कर दिया था, जिसकी चर्चा आज भी उनके अनुयायियों द्वारा की जाती है।
इस समय एकांत की तलाश में तैलंग स्वामी ने साधना करने के लिए नेपाल के पहाड़ी क्षेत्र में एक गुफा को अपना निवास स्थान बनाया था। उन्हीं दिनों नेपाल के राजा ने उसी क्षेत्र में एक शेर का शिकार किया और वह शेर घायल हो गया। हालांकि, वह वहां से भाग निकला लेकिन राजा के सैनिक शेर को खोजते-खोजते तैलंग स्वामी की गुफा में पहुंच गए।
गुफा में पहुंचकर उन्होंने जो देखा, उसे देखकर वह स्तब्ध रह गए। उन्होंने देखा कि शेर तैलंग स्वामी के चरणों में है। अब आमतौर पर तो घायल शेर अधिक खूंखार हो जाता है, लेकिन वह उसका सिर सहला रहे थे। यह देख सैनिकों ने स्वामी जी के सामने शीश झुकाया और तब उन्होंने उन्हें हिंसा ना करने की सलाह दी और कहा, कि यह प्रतिहिंसा को जन्म देती है। तब उन सैनिकों को समझ आया, कि स्वामी जी अहिंसक थे इसलिए घायल शेर का व्यवहार उनके साथ मित्रता का था।
वापस आकर जब सैनिकों ने सारी बात राजा को बताई, तब वह खुद सोने-चांदी और रथ आदि उपहार लेकर स्वामी जी से मिलने आया। तब वह राजा के उपहारों को देखकर थोड़ा हंसे और कहा, कि यह सभी कीमती रत्न उनके लिए पत्थर के समान हैं और वह इससे कई गुना अधिक बेशकीमती रत्न अभी उसे दे सकते हैं। यह सुनते ही वह राजा स्वामी जी के चरणों में नतमस्तक हुआ और उसने अपने भूल की क्षमा याचना की।
तैलंग स्वामी का कहना था, कि मनुष्य को जीवन संतोष और संयम से जीना चाहिए। उन्हें कम बोलना चाहिए, और अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना चाहिए। मनुष्य को सभी जीवों को समान दृष्टि से देखना चाहिए, गरीबों को उचित दान देना चाहिए, शास्त्रों का अध्ययन करना चाहिए, साधु-संतों का साथ और सत्संग करना चाहिए। उनका मानना था, कि मनुष्य को अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए और आत्मचिंतन करना चाहिए। इसके साथ ही, अपने मार्गदर्शन के लिए उचित गुरु का चयन करना और उनके आदेशों का पालन करना चाहिए। ऐसा करने से वह अध्यात्मिक बनता है और सहज ही साधना के मार्ग पर अग्रसर हो जाता है।
काशी में आज भी पंचगंगा घाट पर तैलंग स्वामी जी का मठ है। मठ के अंदर 20 फुट की गहराई पर एक गुफा है, जहां कभी स्वामी जी साधना किया करते थे। यहां भगवान श्री कृष्ण की एक मनोहर मूर्ति भी है, जिसके मस्तक पर शिवलिंग और ऊपर श्री यंत्र स्थापित है।
यह थी तैलंग स्वामी जी के जीवन पर आधारित संपूर्ण जानकारी। यदि यह जानकारी आपको पसंद आई हो, तो ऐसे ही महान संतों के विषय में अवगत होने के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर के साथ।
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