थाई पूसम 2025: कब है और कैसे करें पूजा? जानिए इस पवित्र दिन का महत्व और भगवान मुरुगन की कृपा पाने का तरीका
थाई पूसम एक प्रमुख हिंदू त्योहार है, जो खासकर तमिल समुदाय द्वारा मनाया जाता है। यह त्योहार माघ माह के पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है और विशेष रूप से भगवान मुरुगन (कार्तिकेय) की पूजा होती है। इस दिन भक्त तीर्थ स्थलों पर जाते हैं, व्रत रखते हैं और भगवान मुरुगन की आराधना करते हैं।
हर धर्म, हर समुदाय के अपने कई ऐसे विशेष पर्व होते हैं, जिनसे लोगों की अटूट आस्था जुड़ी होती है। भारत एक ऐसा ही देश है, जहां अलग-अलग धर्म के लोग अलग-अलग तरह से ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं, और भगवान द्वारा मानवकल्याण के लिए उठाए गए कदमों को याद करते हुए उस दिन को त्यौहार के रूप में बड़े धूमधाम से मनाते हैं। ऐसा ही एक पर्व है 'थाईपूसम', है, जो तमिलनाडु में रहने वाले हिंदुओं का प्रमुख त्योहार माना जाता है।
थाईपूसम तमिल कैलेंडर के अनुसार थाई माह के पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। ये त्यौहार हर साल जनवरी या फरवरी में पड़ता है। इस बार ये पर्व 11 फरवरी 2025, मंगलवार को मनाया जाएगा।
इस दिन शंकर भगवान के बड़े पुत्र भगवान मुरुगन यानि कार्तिकेय की पूजा की जाती है। बता दें कि भगवान मुरुगन को सुब्रमण्यम, सन्मुख्य, साधना, स्कंद और गुहा आदि नामों से भी जाना जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार 'सोरापदमन' नाम के एक दानव को वरदान मिला कि भगवान शिव की स्वयं की संतानों के अलावा उसे और कोई नहीं हरा सकेगा, न ही मार सकेगा। इसमें एक और शर्त थी कि शिव की संतान का जन्म किसी महिला से नहीं होना चाहिए। इस वरदान से सोरापदमन बहुत अहंकारी हो गया। वो स्वयं को अजेय मानकर सबपर अत्याचार करने लगा और तीनों लोकों को जीतना शुरू कर दिया।
उसकी प्रताड़ना से बचने के लिए सभी देवों ने भगवान शिव को प्रसन्न किया, और उनसे ऐसी संतान की मांग की, जिससे 'सोरापदमन' को मारा जा सके। तब भगवान शिव ने पुत्र 'मुरुगन' जिनको कार्तिकेय या सुब्रमण्यम के रूप में भी जाना जाता है, उनको अपने माथे की लपटों से उत्पन्न किया। इसके बाद माता पार्वती ने मुरुगन को सोरापदमन को हराने के लिए एक वेल, यानि दिव्यास्त्र दिया। भगवान मुरुगन ने तुरंत सभी लोकों पर नियंत्रण कर लिया और सोरापदमन तथा उसकी सेना का वध कर दिया।
तभी से इस दिन थाईपूसम का विशेष उत्सव मनाया जाता है, और ये दिन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है।
थाईपूसम का पर्व मुख्यत: दक्षिण भारत में मनाया जाता है।
इस त्यौहार को तमिलनाडु व केरल के साथ-साथ श्रीलंका, अफ्रीका, अमेरिका, थाइलैंड जैसे दूसरे देशों में भी तमिल समुदाय के लोग बहुत ही उल्लास और उत्साह के साथ मनाते हैं।
थाईपूसम का त्यौहार थाई महीने की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर अगले दस दिन तक चलता है। इस पर्व पर भक्त मंदिरों में जाकर भगवान मुरुगन की पूजा करते हैं। थाइपूसम त्यौहार के 10 दिनों के दौरान भक्त बड़ी संख्या में एकत्र होते हैं, और कई विशेष विधियों से भगवान मुरुगन की पूजा करते हैं।
कांवड़ी अट्टम थाईपूसम पर्व का एक महत्वपूर्ण आयोजन है। इसमें लोग लकड़ी का एक वाहन बनाते हैं, जिसके ज़रिए भक्त भगवान मुरुगन को चढ़ाने के लिए प्रसाद लेकर जाते हैं। श्रद्धा और भक्ति के साथ कांवड़ ले जाते समय नृत्य की रस्म को ही 'कांवड़ी अट्टम' कहा जाता है।
थाइपूसम के इस पर्व में कावड़ी अट्टम की परम्परा से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है, जिसके अनुसार- एक बार शंकर भगवान ने अगस्त ऋषि से दक्षिण भारत में दो पर्वत स्थापित करने को कहा। शिव शम्भू की आज्ञा के अनुसार ऋषि ने शक्तिगिरी पर्वत व शिवगिरी पर्वत दोनो को एक जंगल में स्थापित कर दिया, और बाक़ी का कार्य उन्होंने अपने शिष्य इदुमंबन को सौंप दिया।
लेकिन जब इदुमंबन ने उन पर्वतों को हटाने की कोशिश की तो, वह उन्हें हिला तक नही पाया। फिर उसने भगवान से सहायता मांगी और पर्वतों को लेकर चल पड़ा। कुछ दूर चलने के बाद इदुमंबन विश्राम करने के लिए दक्षिण भारत के पलानी नाम की जगह पर रुका। थोड़ा आराम करने के बाद जब उसने पर्वतों को दोबारा उठाने की कोशिश की, तो वह उन्हें फिर से नहीं उठा पाया। तभी इंदुमबन ने वहां एक युवक को देखा और उससे अनुरोध किया कि वो पर्वतों को उठाने में उसकी मदद कर दे, लेकिन उस युवक ने इंदुमबन की सहायता नहीं की। जिसके बाद इंदुमबन और उस युवक में युद्ध शुरू हो गया।
कुछ समय पश्चात् इंदुमबन को इस बात का आभास हुआ कि वह युवक कोई और नहीं, बल्कि स्वयं शिवपुत्र भगवान कार्तिकेय हैं, जो उन दिनों अपने छोटे भाई भगवान गणेश से एक प्रतियोगिता में हारने के बाद कैलाश पर्वत छोड़कर जंगल में रह रहे थे। खैर, इस भयंकर युद्ध में कार्तिकेय के हाथों इंदुमबन मारा जाता है, लेकिन भगवान शिव उसे पुनः जीवित कर देते हैं। मान्यता है कि इसके बाद इंदुबमन ने कहा था कि जो भी व्यक्ति इन पर्वतों पर बने मंदिर में कांवड़ लेकर जायेगा, उसकी सारी इच्छा पूरी होगी।
इसके बाद से ही कांवड़ लेकर जाने की ये परंपरा शुरू हुई। जो व्यक्ति तमिलनाडु के पिलानी में स्थित मुरुगन भगवान के मंदिर में कांवड़ लेकर जाता है, वो मंदिर जाने से पहले इंदुमबन की समाधि पर अवश्य जाता है।
तो यह थी थाई पूसम से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी। हमें आशा है, कि इस पर्व को विधि-विधान से करने में इस लेख से आपको सहायता मिलेगी। अगर आप आगे भी ऐसी ही धर्म से जुड़ी जानकारियों और विशेष त्योहारों से अवगत होना चाहते हैं तो बने रहिए श्री मंदिर के साथ।
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