तुलसी विवाह 2024 कब है | Tulsi Vivah
सनातन धर्म में तुलसी को देवी महालक्ष्मी का अवतार माना गया है। इन्हें 'विष्णुप्रिया' नाम से भी जाना जाता है। हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व से एक दिन पहले प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी का दिन होता है। कुछ क्षेत्रों में तुलसी विवाह का उत्सव पांच दिनों तक चलता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है।
चलिए जानते हैं साल 2024 में तुलसी विवाह कब है?
- तुलसी विवाह 13 नवंबर, बुधवार को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर मनाया जाएगा।
- द्वादशी तिथि 12 नवंबर, मंगलवार को शाम 04 बजकर 04 मिनट पर प्रारंभ होगी।
- द्वादशी तिथि का समापन 13 नवंबर, बुधवार को दोपहर 01 बजकर 01 मिनट पर होगा।
चलिए अब जानते हैं तुलसी विवाह के शुभ मुहूर्त
- इस दिन ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 04 बजकर 29 मिनट से प्रातः 05 बजकर 22 मिनट तक रहेगा।
- प्रातः सन्ध्या मुहूर्त प्रात: 04 बजकर 55 मिनट से सुबह 06 बजकर 14 मिनट तक होगा।
- इस दिन अभिजित मुहूर्त नहीं रहेगा।
- विजय मुहूर्त दिन में 01 बजकर 32 मिनट से 02 बजकर 15 मिनट तक रहेगा।
- इस दिन गोधूलि मुहूर्त शाम में 05 बजकर 11 मिनट से 05 बजकर 37 मिनट तक रहेगा।
- सायाह्न सन्ध्या काल शाम में 05 बजकर 11 मिनट से 06 बजकर 29 मिनट तक रहेगा।
- अमृत काल 13 नवम्बर की मध्यरात्रि 01 बजकर 02 मिनट से 02 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।
- निशिता मुहूर्त रात 11 बजकर 16 मिनट से 12 बजकर 09 मिनट तक रहेगा।
विशेष योग
- तुलसी विवाह के दिन विशेष रवि योग 13 नवंबर की मध्यरात्रि 03 बजकर 11 मिनट से 14 नवंबर की सुबह 06 बजकर 14 मिनट तक रहेगा।
तुलसी विवाह का महत्व
तुलसी विवाह के दिन सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि करके भगवान विष्णु को शंख और घंटों के साथ मंत्रों द्वारा जगाया जाता है, फिर उनकी पूजा की जाती है। शाम को घरों और मंदिरों में दीप जलाए जाते हैं और गोधूलि बेला में भगवान शालिग्राम और तुलसी माता का विवाह कराया जाता है।
तुलसी विवाह का अनुष्ठान विशेष रूप से विवाहित स्त्रियां अपने पति और परिवार की समृद्धि के लिए करती हैं। आपको बता दें कि देवउठनी एकादशी और तुलसी विवाह के बाद से कई जगहों पर विवाह आदि शुभ कार्य फिर से प्रारंभ हो जाते हैं।
तो भक्तों, ये थी तुलसी विवाह के शुभ मुहूर्त और महत्व से जुड़ी जानकारी। हमारी कामना है कि आपको इस दिन की गयी पूजा-अर्चना का संपूर्ण फल प्राप्त हो, और आप पर माता तुलसी की कृपा सदैव बनी रहे।
तुलसी विवाह पूजन सामग्री लिस्ट
कार्तिक मास की एकादशी पर तुलसी विवाह किया जाता है। कई लोग तुलसी विवाह के अनुष्ठान और पूजा को द्वादशी तिथि पर भी करते हैं।
जैसे हर पूजा और अनुष्ठान को करने के लिए उसकी उपयुक्त सामग्री जरूरी होती है, वैसे ही तुलसी विवाह के लिए भी कुछ सामग्री आवश्यक है। जो निम्नलिखित हैं।
- तुलसी का पौधा
- भगवान कृष्ण की प्रतिमा, यदि यह आपके पास उप्लब्ध नहीं है, तो आप एक साफ, चिकने गोल पत्थर को भी भगवान शालिग्राम के रूप में पूजा में रख सकते हैं।
- भगवान गणेश की प्रतिमा (आप गणेश जी को सुपारी के रूप में भी विवाह में सम्मिलित कर सकते हैं)
- दो चौकी
- मंडप बनाने के लिए तीन या चार गन्ने
- लाल और पीला वस्त्र
- जल कलश
- आम या अशोक के 5 पत्ते
- नारियल
- पांच बर्तन
- गंगा जल
- तुलसी माता के लिए लाल चुनरी
- कलावा अथवा मौली
- धूप - अगरबत्ती
- पुष्प और दो मालाएं
- मिट्टी के दीपक, घी या तेल, और बाती
- शालिग्राम जी के लिए वस्त्र, (यदि यह उपलब्ध न हो तो आप कलावा, मौली या जनेऊ को भी वस्त्र के रूप में अर्पित क्र सकते हैं।)
- सुहाग की सम्पूर्ण सामग्री (इसमें आप अपनी क्षमतानुसार आभूषण जैसे कि बिछिया, पायल और कंठहर आदि भी शामिल करें)
- मंगलसूत्र
- हल्दी-कुमकुम, अक्षत, चन्दन
- मौसमी फल (आंवला, बेर, अमरुद,शकरकंद, सिंघाड़ा, सीताफल आदि)
- सूखे मेवे
यह तुलसी विवाह की सम्पूर्ण सामग्री है। चूँकि किसी भी पूजा को अपने क्षेत्र की परम्परा के अनुसार भी किया जाता है, इसीलिए इस सूची में आप कुछ चीजें बढ़ा भी सकते हैं और कम भी कर सकते हैं।
तुलसी विवाह की सरल विधि
श्री मंदिर पर सभी भक्त जनों के लिए हम लोग घर पर आसानी से आज तुलसी विवाह कैसे करें, इसकी संपूर्ण विधि लेकर आए हैं। आप भी इस विधि का पालन करते हुए तुलसी और शालीग्राम जी का विवाह कर पाएंगे-
चलिए सबसे पहले सामग्री के बारे में जान लेतें हैं-
- 4 गन्ने
- तुलसी का पौध
- शालीग्राम या विष्णु जी का चित्र
- सफेद तिल
- पीतल या तांबे का कलश
- रोली, मौली
- आम के पत्ते, पान के पत्ते, सुपारी, दूर्वा, लौंग, इलायची
- सिक्के, दीप, धूप, लाल वस्त्र, दो पीले वस्त्र, एक चुनरी
- गणेश जी की प्रतिमा, जल का पात्र, जनैयू, पुष्प, पुष्प माला
- 16 श्रृंगार की सामग्री (बिंदी, सिंदूर, गजरा, चूड़ी, मेंहदी, काजल, नथ, पायल, बिछिया, मांगटीका, बाजूबंद कमरबंद, पायल, अंगूठी, मंगलसूत्र, झुमके आदि), दर्पण दक्षिणा, गंगाजल।
- भोग- आंवला या आंवले का मुरब्बा, सिंघाड़े, गुड़, बताशे, खजूर, तिल की रेवड़ी, मिठाई, केले, सेब आदि।
अब हम विस्तारपूर्वक विधि के बारे में जानेंगे
- सबसे पहले गन्नों का मंडप लगाएं। इसके लिए चार गमलों में गन्ने मिट्टी में गाड़ दें। उपर से साथ में बांधते हुए, मंडप बना लें।
- इस मंडप में तुलसी के पौधे को गमले सहित रख लें और तुलसी जी को चुनरी अवश्य चढ़ाएं।
- एक रंगोली बनाकर चौक भी स्थापित करें और इस चौक पर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं और इसपर सफेद तिल का आसन देते हुए, भगवान विष्णु का चित्र या फिर शालीग्राम जी को स्थापित कर दें।
- अब प्रथम पूजनीय गणेश जी को भी चौक पर तिल का आसन देते हुए स्थापित कर दें।
- इसके बाद कलश स्थापना की जाएगी तो आप चौकी पर दाएं तरफ सफेद तिल से अष्टदल कमल बना लें। अष्टदल कमल का अर्थ है 8 पंखुड़ियों वाला एक पुष्प।
- अब तांबे या पीतल का कलश लें, उसके अंदर गंगा जल, शुद्ध जल, हल्दी, सुपारी, सिक्का, तिल रोली डाल लें। कलश पर कुमकुम से स्वास्तिक बना लें, उसके मुख पर मौली बांधकर अष्टदल कमल पर रख दें।
- कलश के ऊपर आम या अशोक के 8 पत्ते रख लें। इन पत्तों पर भी हल्दी-कुमकुम का तिलक लगाएं और इसके ऊपर एक कटोरी में गेहूं भरकर रख दें। गेहूं के ऊपर एक दीप प्रज्वलित करके रख दें।
- अब दूर्वा से सभी प्रतिमाओं, कलश और तुलसी जी पर पुष्प से शुद्ध जल का छिड़काव करें। इसके बाद गणेश जी और - भगवान विष्णु को चंदन से तिलक करें और तुलसी माता को सिंदूर से तिलक करें।
- तिलक करने के बाद आप अपनी क्षमतानुसार 1 या 5 दीप प्रज्वलित कर लें।
- सबसे पहले गणेश जी को दूर्वा, पुष्प, तिल, जनेऊ और मौली अर्पित कर दें।
- इसके बाद भगवान विष्णु को भी जनेऊ, पीले पुष्प और मौली अर्पित करें।
- अब तुलसी माता को भी पुष्प और मैली अर्पित करें। तुलसी जी के विवाह में उनके श्रृंगार का विशेष महत्व होता है, तो अब उन्हें 16 श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें। जो चीज़ें उन्हें पहनाई जा सकती हैं वह ज़रूर पहनाएं, जैसे कि चूड़ी, बिंदी, सिंदूर आदि।
- श्रृंगार के बाद आप माता को दर्पण भी दिखाएं।
- अब वरमाला के लिए दो पुष्प की माला लें, पहले भगवान विष्णु को माला स्पर्श करवाएं और उसे तुलसी माता को पहना दें और फिर तुलसी माता पर माला को स्पर्श करवा कर भगवान विष्णु को पहना दें।
- इसके बाद गठबंधन किया जाएगा, गठबंधन के लिए आप जो चुनरी तुलसी माता को पहनाई थी उसके साथ एक एक पीले कपड़े को गांठ की मदद से जोड़ें, इस गठजोड़ में हल्दी, पुष्प, सिक्का, सफेद तिल और सुपारी डाल दें।
- इसके बाद गणेश जी, विष्णु जी, तुलसी माता और कलश को एक-एक करके धूप दिखाएं।
- अब बारी है भोग अर्पित करने की, भोग में आप अपनी श्रद्धानुसार खीर-पूड़ी, सिंघाड़े, आंवले या आंवल का मुरब्बा, सेब, केले, गन्ने, खजूर, रेवड़ी आदि अर्पित कर सकते हैं।
- भोग के बाद सभी प्रतिमाओं को जल भी अर्पित करें।
- मुख शुद्धि के लिए आप पान के पत्ते पर इलायची, लौंग का जोड़ा और सुपारी रख दें और भगवान गणेश, भगवान विष्णु और तुलसी माता को एक-एक करके चढ़ा दें।
- अब आप आरती की थाली में धूप, कपूर और दीपक रख कर श्रद्धापूर्वक सबसे पहले भगवान गणेश जी की आरती उतारें और फिर भगवान विष्णु और माता तुलसी की।
- अब पूजा में हुई किसी भी कमी के लिए दक्षिणा भगवान जी को अर्पित कर दें।
- इस पूजा में तुलसी माता की 7 बार परिक्रमा की जाती है, तो आप भी माता के चारों ओर परिक्रमा करें।
- पूजा के अंत में हाथ में पुष्प और तिल लें और भगवान से इस पूजा में हुई किसी भी त्रुटि के लिए क्षमायाचना करें। फिर पुष्प और तिल को पूजन स्थल पर छोड़ दें।
इस प्रकार तुलसी विवाह संपन्न हो जाएगा और आसानी से घर पर आप स्वयं ही यह पूजा कर पाएंगे।
तुलसी विवाह में लगाएं इन 6 चीज़ों का भोग
आज हम आपके लिए माता तुलसी और शालीग्राम जी के विवाह में किन चीज़ों का भोग लगा सकते हैं, इस बारे में विशेष जानकारी लेकर आए हैं। तो अगर आप भी तुलसी जी के विवाह की तैयारियां कर रहे हैं तो भोग में इन चीज़ों को अवश्य सम्मिलित करें। ऐसा करने से उनकी विशेष कृपा आपको प्राप्त होगी और आपकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।
चलिए जानते हैं इस पूजा में आपको किन चीज़ों का भोग लगाना चाहिए-
आंवला:
आंवले का इस पूजा में विशेष महत्व है। आप या तो कच्चा आंवला अर्पित कर सकते हैं या फिर आंवले का मुरब्बा भी भोग में चढ़ा सकते हैं। ध्यान रहे कि आपको आंवले का अचार नहीं अर्पित करना है।
सिंघाड़ा:
इस समय सिंघाड़े भी उपलब्ध होते हैं, यह एक मौसमी फल है और किसी भी पूजा में मौसमी फलों को चढ़ाने का विशेष महत्व होता है।
मिठाई:
आप अपनी क्षमता के अनुसार विभिन्न मिठाइयों को भी तुलसी विवाह में अर्पित कर सकते हैं। मीठे में आप गुड़, रेवड़ी, बताशे और खजूर भी अर्पित कर सकते हैं।
खीर-पूड़ी:
कई जगहों पर इस दिन घी में तली गई पूड़ी और खीर चढ़ाने की भी परंपरा है, तो आप भी अपनी श्रद्धानुसार खीर और पूड़ी का भोग लगा सकते हैं।
फल:
भोग में यथासंभव विभिन्न फलों को अवश्य अर्पित करें। अगर अधिक फल नहीं मिल रहे हैं तो सेब और केले को भोग के रूप में अर्पित करें।
गन्ने:
गन्ने को भी इस पूजा में विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है। इस समय गन्ने की फसल होती है, इसलिए माता तुलसी का मंडप गन्ने से बनाया जाता है और साथ ही भोग में गन्ना चढ़ाया जाता है।
माता तुलसी और भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए तुलसी विवाह में भोग में इन चीज़ों को अवश्य सम्मिलित करें। अगर आप इतनी सारी चीज़ें नहीं अर्पित कर सकते हैं तो अपनी क्षमता और श्रद्धा के अनुसार भोग अर्पित करें। बस ध्यान रहे जो भी भोग आप लगा रहे हैं, उसे प्रेम पूर्वक पूरे भक्तिभाव के साथ अर्पित करें।
तुलसी विवाह से सम्बंधित मंत्र
तुलसी माता का स्तुति मंत्र
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः, नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
मां तुलसी का पूजन मंत्र
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी। धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।। लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्। तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
तुलसी माता का ध्यान मंत्र
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी। धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।। लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्। तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
तुलसी विवाह का क्या है महत्व?
आज हम और आप मिलकर तुलसी विवाह से जुड़े कुछ प्रश्नों के उत्तर जानेंगे, जैसे कि
- क्यों किया जाता है तुलसी विवाह
- कैसे मनाया जाता है तुलसी विवाह
- तुलसी विवाह एवं पूजा का महत्व क्या है
- तुलसी विवाह में गन्ने का क्या उपयोग है
तो चलिए शुरू करते हैं। सबसे पहले जानते हैं कि -
क्यों किया जाता है तुलसी विवाह?
सनातन संस्कृति में तुलसी के पौधे को पूजनीय स्थान प्राप्त है। पुराणों के अनुसार तुलसी अपने पूर्व जन्म में एक धर्मपरायण पतिव्रता स्त्री थीं, जिसने जालंधर नामक एक असुर से विवाह किया था। जब देवों ने जालंधर का वध कर दिया तो भगवान विष्णु ने वृंदा को स्वयं के शालिग्राम अवतार से विवाह करने का वरदान दिया। इसलिए हर वर्ष प्रबोधिनी एकादशी के अवसर पर तुलसी माता और शालिग्राम जी का विवाह कराया जाता है। हर वर्ष यही वह विशेष तिथि होती है, जब भगवान विष्णु के शयन की अवधि अर्थात चातुर्मास का समापन होता है, और तुलसी विवाह के साथ ही सामान्यतः विवाह, गृहप्रवेश तथा अन्य शुभ संस्कार और मांगलिक कार्य शुरू किये जाते हैं।
कैसे मनाया जाता है तुलसी विवाह?
देवोत्थान या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जानी जाने वाली एकादशी तिथि पर तुलसी-शालिग्राम विवाह करवाया जाता है। इस दिन प्रदोष काल में यह विवाह और पूजन करना सबसे शुभ माना जाता है। इस दिन अपने घर के आंगन में तीन या चार गन्नों की मदद से एक मंडप सजाएं। इसमें दो चौकी स्थापित करके, एक पर वधू अर्थात तुलसी का पौधा और दूसरे पर शालिग्राम जी को बिठायें, अब विधिपूर्वक पूजा करके इनका विवाह संपन्न करवाएं। तुलसी विवाह की विधि आपके लिए श्री मंदिर पर उपलब्ध है। कई स्थानों पर तुलसी विवाह का दिन देव दिवाली के नाम से भी मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन विष्णु देव अपनी गहन निद्रा से जागते हैं, और संसार में हर शुभ कार्य को गति मिलती है।
तुलसी विवाह एवं पूजा का महत्व
जब वृंदा ने दुखी होकर स्वयं को सती कर लिया तब उसकी भस्म से एक पौधा उत्पन्न हुआ। यही पौधा तुलसी के नाम से जाना जाता है। वृंदा भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी, इसलिए वृंदा अर्थात तुलसी भगवान विष्णु को अतिप्रिय है और शालिग्राम जी भगवान विष्णु का ही पाषाण स्वरूप है। सनातन धर्म में मान्यता है कि घर के आंगन में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए। साथ ही एक गोल चिकने पत्थर को शालिग्राम के रूप में तुलसी के गमले में रखा जाता है। तुलसी विवाह के दिन पहले तुलसी और शालिग्राम जी की पूजा की जाती है, उसके बाद इनका गंधर्व विवाह करवाया जाता है। जिन लोगों के भाग्य में कन्यादान का पुण्यफल प्राप्त करना नहीं लिखा होता है, उन्हें तुलसी विवाह अवश्य करवाना चाहिये, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि तुलसी विवाह का अनुष्ठान करने से कन्यादान के समान ही पुण्यफल अर्जित होता है।
हमारी संस्कृति में हर घर में तुलसी की पूजा करना आम दिनचर्या का एक हिस्सा है। हमने अक्सर अपने बड़े- बुजुर्गों से तुलसी के पौधे से होने वाले फायदों के बारे में सुना है। घर के आंगन में बोया गया तुलसी का पौधा, घर में आने वाली हर नकारात्मक ऊर्जा को रोकता है। साथ ही पुराणों में तुलसी को देवी लक्ष्मी के समतुल्य माना गया है, इसीलिए जिस घर में तुलसी की नियमानुसार पूजा की जाती है, उस घर में हमेशा सुख-समृद्धि का वास होता है।
तुलसी विवाह में गन्ने का क्या महत्व है?
जब किसी घर में माता तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह करवाया जाता है, तो उनके विवाह का मंडप गन्ने की मदद से बनाया जाता है। तुलसी विवाह की तिथि अर्थात प्रबोधिनी एकादशी के दिन की जाने वाली पूजा में भी भगवान को विशेष रूप से गन्ना अर्पित किया जाता है।
दरअसल इस एकादशी पर भगवान को गन्ने की पहली फसल प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है, और इसके बाद ही गन्ने की फसल की कटाई की जाती है।
गन्ना एक मीठी फसल है, और इसी से मीठा गुड़ बनाया जाता है, जो सेहत के लिए बहुत लाभदायक माना जाता है। हमारी परम्पराओं के अनुसार किसी भी शुभ कार्य में मीठे का सेवन जरूर किया जाता है। चूँकि प्रबोधिनी एकादशी से ही सभी मांगलिक कार्यों का आरम्भ होता है, इसीलिए भगवान को मीठे गन्ने का भोग लगाया जाता है।
क्यों करते हैं तुलसी विवाह? जानें पूरी कहानी
हमारे देश में हर वर्ष देवउठनी एकादशी पर कई लोग अपने घर में तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं। चलिए आज हम जानते हैं कि तुलसी विवाह के पीछे की पौराणिक कथा क्या है? साथ ही हम जानेंगे कि आखिरकार तुलसी क्यों पूजनीय है, और तुलसी के बिना भगवान विष्णु का प्रसाद अधूरा क्यों माना जाता है?
स्कंद पुराण, पद्म पुराण, और साथ ही शिव पुराण में जो कथा वर्णित है, वह कुछ इस प्रकार है-
‘प्राचीन समय में कालनेमि नाम का एक असुर था। उस असुर की एक अतिसुन्दर और तेजोमय कन्या थी, जिसका नाम था वृंदा।
एक असुरकन्या होने के बाद भी वृंदा तन-मन से पवित्र और भगवान विष्णु की परम भक्त थी। वृंदा के युवा होने पर पिता कलानेमी ने गुरु शुक्राचार्य से परामर्श किया और उनके कहे अनुसार वृंदा का विवाह शिवजी के क्रोध और तम से उत्पन्न हुए, जालंधर नामक एक असुर से करवा दिया।
जालंधर बहुत शक्तिशाली असुर था, क्योंकि वह भगवान शिव का ही अंश था, और अपनी पत्नी वृंदा के पतिव्रत धर्म के कारण अजेय था। जब समुद्र मंथन हुआ तो जालंधर उसके परिणाम से संतुष्ट नहीं था। क्रुद्ध होकर उसने देवों पर आक्रमण कर दिया, और देवराज इंद्र से स्वर्ग को छीन कर उसपर अपना अधिकार जमा लिया।
कुछ समय बाद एक बार नारद मुनि, जालंधर से मिलने स्वर्ग गए और उसके समक्ष देवी पार्वती के रूप और गुणों की व्याख्या करने लगे। देवी पार्वती के बारे में सुनकर, जालंधर ने उन्हें अपनी संगिनी बनाने का विचार किया और इस विचार से भगवान शिव को आक्रमण के लिए चुनौती दे दी। शिव जी जानते थे कि इस समय वृंदा का पतिव्रत धर्म जालंधर की रक्षा कर रहा है, इसलिए उसे हरा पाना बहुत कठिन होगा।
उधर वृंदा को एक अशुभ दुःस्वप्न दिखाई देता है, जिसमें वह अपने पति को भैंस पर विराजमान, काले घने आकाश के नीचे विचरण करते हुए देखती है। उस काले आकाश में उपस्थित सूर्य पर ग्रहण लगा हुआ था। इस स्वप्न से भयभीत होकर, वह अपने पति की प्राणरक्षा के लिए अखंड अनुष्ठान करने बैठ जाती है।
जब भगवान शिव को वृंदा के इस तप के बारे में पता चलता है तो वे श्री हरि विष्णु से जालंधर का वध करने में उनकी सहायता करने का निवेदन करते हैं।
जबतक वृंदा अनुष्ठान करती, तबतक जालंधर को कोई हानि नहीं हो सकती थी, इसीलिए भगवान विष्णु जालंधर का रूप लेकर वृंदा के पास जाते हैं और उससे युद्ध में विजय होने की बात करते हैं। वृंदा इस छल को नहीं समझ पाती और अपने पति की विजय से प्रसन्न होकर उस अनुष्ठान को वहीं समाप्त कर देती है।
जालंधर के रूप में भगवान विष्णु को अपना पति मानने से वृंदा का पतिव्रत धर्म खंडित हो जाता है, और इस व्रत के टूटने से जालंधर को मिल रही सुरक्षा भी क्षीण हो जाती है।
भगवान शिव इस क्षण के लिए तैयार थे, और ऐसा होते ही उन्होंने जालंधर का वध कर दिया और सभी देवों को उसके अत्याचार से मुक्त करवा दिया।
परन्तु वृंदा! उसका क्या? उसने तो अपने हर धर्म का पालन बिल्कुल निष्ठा से किया था। अपने पति की मृत्यु का समाचार सुनकर, और जालंधर बने भगवान विष्णु को अपने यथार्थ रूप में देखकर वृंदा बहुत विचलित हो जाती है। उस समय उसके क्रोध की कोई सीमा नहीं थी, और इसी पति-वियोग में वह भगवान विष्णु को श्राप देती है कि, “जिस तरह मैं अपने पति से विरह की वेदना सह रही हूँ, उसी प्रकार आप भी अपनी पत्नी माँ लक्ष्मी से अलग हो जाएंगे, और आपको भी इस वेदना को सहना होगा।
आपके पाषाण हृदय ने मेरे दुःख के बारे में नहीं सोचा, इसलिए आप सच में पाषाण बन जाएंगे।
भगवान विष्णु ने क्रोधाग्नि में जल रही एक स्त्री की वेदना को समझते हैं और वृंदा को वरदान देते हैं, कि “मेरा जो रूप तुम्हारे श्राप से पाषाण हो जाएगा, उसी पाषाण से अगले जन्म में तुम्हारा विवाह होगा। तुमने अपने धर्म का भलीभांति निर्वाह किया है, इसलिए हर धर्म निष्ठ मनुष्य के घर में तुम्हारा वास होगा, और वहां तुम्हारी पूजा की जाएगी। तुम्हारी पवित्रता हर जन्म में अखंड होगी, और मेरे हृदय में हमेशा तुम्हारा विशेष स्थान रहेगा। तुम्हारी उपस्थिति के बिना मेरे लिए किया गया कोई भी पूजा और अनुष्ठान पूर्ण नहीं माना जाएगा।”
भगवान विष्णु से ऐसे वचन सुनकर वृंदा के क्रोध की ज्वाला शांत तो हुई, लेकिन उसने अपने पति से बिछोह के दुःख में स्वयं को भस्म कर लिया।
वृंदा के शरीर की उस भस्म से एक पौधे का जन्म हुआ, जिसे तुलसी के नाम से जाना गया। तब से तुलसी अर्थात वृंदा हर जन्म में भगवान विष्णु की प्रिय है।
जिस तिथि पर तुलसी का जन्म हुआ था, वह प्रबोधिनी एकादशी थी, इसलिए हर वर्ष इस तिथि पर तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह करवाया जाता है।
आशा है आपको यह कथा पसंद आई होगी। ऐसी ही अन्य पौराणिक कथाओं के लिए श्री मंदिर से जुड़े रहिये।