उपांग ललिता व्रत
ललिता पंचमी पर देवी ललिता की उपासना की जाती है, जिसे ‘उपांग ललिता व्रत’ भी कहा जाता है। उपांग ललिता व्रत शरद नवरात्रि के पांचवें दिन पड़ता है। 10 महाविद्याओं में से एक देवी ललिता को ‘त्रिपुर सुंदरी’ और ‘षोडशी’ के नाम से भी जाना जाता है। आपको बता दें कि ललिता पंचमी का व्रत गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में विशेष रूप से मनाया है।
- उपांग ललिता व्रत 2024 कब है? व्रत का शुभ मुहूर्त व तिथि?**
- उपांग ललिता व्रत का महत्व क्या है? क्यों रखते हैं यह उपांग ललिता व्रत?
- उपांग ललिता व्रत की पूजा विधि क्या है? उपांग ललिता व्रत में पूजा कैसे करें?
- ललिता माँ के प्रादुर्भाव से जुड़ी कथाएं
उपांग ललिता व्रत कब है?
- उपांग ललिता व्रत/ ललिता पंचमी 07 अक्टूबर, सोमवार को मनाई जायेगी।
- पंचमी तिथि 07 अक्टूबर, सोमवार को 09:47 AM पर प्रारंभ होगी।
- पंचमी तिथि का समापन 08 अक्टूबर, मंगलवार को 11:17 AM पर होगा।
उपांग ललिता व्रत के शुभ मुहूर्त
- ब्रह्म मुहूर्त - 04:15 AM से 05:04 AM
- प्रातः सन्ध्या - 04:39 AM से 05:53 AM
- अभिजित मुहूर्त - 11:22 AM से 12:09 PM
- विजय मुहूर्त - 01:43 PM से 02:30 PM
- गोधूलि मुहूर्त - 05:38 PM से 06:03 PM
- सायाह्न सन्ध्या - 05:38 PM से 06:52 PM
- अमृत काल - 03:03 PM से 04:48 PM
- निशिता मुहूर्त - 11:21 PM से 12:10 AM, अक्टूबर 08
- सर्वार्थ सिद्धि योग - 05:53 AM से 02:25 AM, अक्टूबर 08
- रवि योग - 02:25 AM, अक्टूबर 08 से 05:53 AM, अक्टूबर 08
उपांग ललिता व्रत का महत्व
माता ललिता की कृपा पाने के लिये उपांग ललिता व्रत का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस व्रत का पालन करने से जीवन में सदैव सुख-समृद्धि बनी रहती है। पुराणों में कहा गया है कि माता ललिता के दर्शन करने से जातक के समस्त कष्टों का निवारण होता है।
पुराणों में माता ललिता के स्वरूप का वर्णन कुछ इस प्रकार किया गया है कि देवी की दो भुजाएं हैं, ये गौर वर्ण की हैं, और कमल पर विराजमान हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार माता ललिता को चण्डी का स्थान दिया गया है। इस दिन भक्तगण षोडषोपचार विधि से देवी की पूजा-आराधना करते है। इस दिन मां ललिता के साथ साथ स्कंदमाता और भगवान शंकर की भी पूजा का विधान है।
आश्विन शुक्ल पंचमी के दिन मां ललिता का पूजन करना अत्यंत मंगलकारी माना जाता है। उपांग ललिता व्रत के दिन ललितासहस्रनाम, ललितात्रिशती का पाठ करने का बहुत महत्व है। यह व्रत विशेष तौर पर गुजरात व महाराष्ट्र में किया जाता है।
उपांग ललिता व्रत की पूजा विधि
- उपांग ललिता व्रत के दिन प्रातः काल उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर श्वेत वस्त्र धारण करें।
- पूजा के लिए एक स्वच्छ चौकी पर गंगाजल छिड़कें और उस पर सफेद वस्त्र बिछाकर माँ ललिता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- यदि माँ ललिता का चित्र उपलब्ध न हो, तो श्री यंत्र स्थापित करके उसकी पूजा कर सकते हैं।
- पूजा में कुमकुम, अक्षत, पुष्प, दूध से बनी मिठाई या खीर अवश्य अर्पित करें।
- अब पूरी श्रद्धा से पूजा करने के बाद इस मंत्र का जाप करें: "ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुरसुंदरीयै नमः"।
- पूजन के बाद ललिता माँ की कथा का पाठ करें और आरती करें।
- पूजा के अंत में देवी से अनजाने में हुई किसी त्रुटि के लिए क्षमा याचना करें।
- इसके बाद नौ वर्ष से छोटी कन्याओं को पूजा का प्रसाद वितरित करें। यदि कन्याएं उपलब्ध न हों, तो यह प्रसाद गाय को भी खिलाया जा सकता है।
ललिता माँ के प्रादुर्भाव से जुड़ी कथाएँ
देवी ललिता माँ के प्रकट होने की कई पौराणिक मान्यताएँ हैं। एक प्रचलित कथा के अनुसार, नैमिषारण्य में एक महायज्ञ हो रहा था, जिसमें सभी देवताओं ने दक्ष प्रजापति के आगमन पर सम्मानपूर्वक उठकर उनका स्वागत किया, लेकिन भगवान शिव अपने स्थान से नहीं उठे। इस घटना से क्रोधित होकर दक्ष ने भगवान शिव को अपने यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। माता सती इस बात से अनजान थीं और बिना शिव जी की अनुमति लिए अपने पिता के यज्ञ में चली गईं। वहाँ उन्होंने अपने पति शिव के अपमान को देखकर आहत होकर यज्ञ कुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी।
इस घटना से व्याकुल होकर भगवान शिव माता सती के शव को लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूमने लगे। भगवान शिव की इस स्थिति से सभी लोक प्रभावित हुए। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े कर दिए, जो जहां-जहां गिरे, वहां शक्तिपीठ बने। कहा जाता है कि नैमिषारण्य में सती का हृदय गिरा था, इसलिए यह स्थान एक शक्तिपीठ है और यहाँ देवी ललिता का मंदिर भी स्थित है।
एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु द्वारा छोड़े गए सुदर्शन चक्र ने पाताल लोक को नष्ट करना शुरू किया, तब पृथ्वी भी धीरे-धीरे जलमग्न होने लगी। ऋषि-मुनियों ने इस संकट से मुक्ति पाने के लिए माता ललिता की आराधना की। उनकी प्रार्थना सुनकर देवी ललिता प्रकट हुईं और उन्होंने सुदर्शन चक्र को रोककर सृष्टि को विनाश से बचाया।
एक अन्य मान्यता में, देवी ललिता का प्रकट होना 'भांडा' नामक दानव के विनाश से जुड़ा है, जो कामदेव की भस्म से उत्पन्न हुआ था। देवी ललिता ने इस दानव का संहार करके सभी लोकों को भयमुक्त किया।
इस प्रकार, उपांग ललिता व्रत को विधिपूर्वक संपन्न करें। हमारी कामना है कि आप पर माता ललिता का आशीष सदैव बना रहे। व्रत त्यौहारों से जुड़ी धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिये 'श्री मंदिर' पर।