क्या आप जानते हैं उत्तरायण 2025 कब मनाया जाएगा? जानें सही तिथि, समय और इस दिन के खास महत्व के बारे में।
उत्तरायण, जिसे मकर संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश और उत्तरायण मार्ग पर जाने का प्रतीक है। यह समय नई ऊर्जा, समृद्धि और शुभ कार्यों के लिए आदर्श माना जाता है। गुजरात और राजस्थान में इसे पतंग उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन तिल-गुड़ का दान और सेवन का विशेष महत्व है।
सूर्य की दिशा का प्रकृति पर गहरा प्रभाव है। इसकी दिशा और गति से ही वास्तु शास्त्र के साथ-साथ ज्योतिष शास्त्र भी चलता है इसलिए सूर्य की दिशा का अवलोकन महत्वपूर्ण है। आज हम बात करेंगे जब सूर्य उत्तर दिशा की ओर चलता है जिसे उत्तरायण कहा जाता है।
उत्तरायण की अवधि 6 महीने की होती है और इसका आरंभ 14 जनवरी से होता है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। ऐसे में, यह 14 जनवरी से 14 जुलाई तक मनाया जाता है। इस साल 2025 में उत्तरायण सक्रांति मुहूर्त 14 जनवरी को सुबह 09 बजकर 03 मिनट से है इसलिए उत्तरायण अर्थात मकर संक्रांति 14 जनवरी 2025, मंगलवार की होगी।
हिंदू धर्म में उत्तरायण का समय बहुत शुभ माना जाता है, जब सूर्य पूर्व दिशा से उत्तर दिशा की ओर चलता है। इस दौरान उसकी किरणों के प्रभाव से अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति और प्रकृति शुद्ध होती है। जब सूर्य उत्तरायण हो, तो यह समय ब्रह्म मुहूर्त में देवों की साधना करने के लिए पुण्य काल माना जाता है। इस अवधि में गृह निर्माण, गृह प्रवेश, विवाह आदि मांगलिक कार्य, यज्ञ अनुष्ठान, मुंडन आदि कार्य करना शुभ होता है।
मान्यतानुसार, उत्तरायण काल के प्रथम दिन अर्थात मकर सक्रांति पर अगर आप पवित्र नदी गंगा में स्नान करते हैं, तो आपके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। उत्तरायण अर्थात मकर सक्रांति एक महत्वपूर्ण पर्व है।
श्रीमद्भगवद्गीता में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरायण के विषय में कहा था, कि इस 6 महीने की अवधि में जो देह त्याग करता है, वह मनुष्य पुनर्जन्म नहीं लेता और उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मकर सक्रांति के विषय में यह मान्यता है, कि इस दिन महाराज भगीरथ कठोर तपस्या के बल पर गंगा जी को पृथ्वी लोक पर लाने में सफल हुए थे और वहीं अपने पूर्वजों का तर्पण किया था। अब आपको यह जानकर आश्चर्य होगा, कि उनके पीछे-पीछे चलती हुईं गंगा जी कुछ समय पश्चात कपिल मुनि के आश्रम से होती हुईं सागर में समा गई थीं। इस कारण, इस दिन गंगा जी में स्नान करना सामान्य नहीं बल्कि परम फलदाई होता है।
उत्तरायण के आगमन से मौसम में बदलाव आने लगता है। इस दिन से ठंड कम होने लगती है और दिन बड़े तथा रातें छोटी हो जाती हैं। इस समय तीन प्रमुख ऋतुएं बदलती हैं जिनमें शिशिर ऋतु, उसके बाद बसंत ऋतु और अंत में ग्रीष्म ऋतु शामिल है।
उत्तरायण का समय तीर्थ यात्रा और पूजा पाठ के लिए उत्तम माना गया है। यह समय किसी भी प्रकार का जप, तपस्या और सिद्धि प्राप्त करने के लिए उपयुक्त है। इस समय सूर्य देव, सभी देवताओं के अधिपति होते हैं इसलिए उत्तरायण को देवताओं का दिन भी माना जाता है जब स्नान, दान, पुण्य कर्म, धार्मिक कार्य और पूर्वजों को तर्पण करने का विशेष महत्व है। इस दौरान, सूर्य के मंत्र का जाप करना फलदायक होता है और इस दौरान काले तिल का दान भी दिया जाता है।
उत्तरायण का एक किस्सा महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है। कथानुसार, महाभारत युद्ध के दौरान एक समय ऐसा आया जब पांडव बहुत मुश्किल में आ गए थे। वह किसी भी तरह भीष्म पितामह को पराजित करने में सफल नहीं हो पा रहे थे और तब उन्होंने भीष्म पितामह से ही इस मुश्किल का हल पूछा।
भीष्म पितामह ने उन्हें बताया, कि उनकी सेना में शिखंडी है जो पहले एक स्त्री था और बाद में वह पुरुष हो गया। अब यदि अर्जुन शिखंडी की आड़ में पितामह पर बाणो का प्रहार करेगा, तो वह जवाब में बाण नहीं चला पाएंगे क्योंकि वह स्त्रियों पर प्रहार नहीं करते हैं। इसी सुझाव को अपनाकर अर्जुन ने पितामह भीष्म को बाणों से छलनी कर दिया और वह बाणों की शैय्या पर ही लेट गए।
आपको बता दें, कि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। ऐसे में, उन्होंने उत्तरायण होने तक इंतजार किया और इसके आने पर माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अपने शरीर का त्याग किया। उनका श्राद्ध संस्कार भी उत्तरायण के समय ही हुआ था और तभी से मकर सक्रांति के अवसर पर पितरों को तर्पण देने की प्रथा आरंभ हुई, जो आज तक चली आ रही है।
तो यह थी उत्तरायण पर्व की सम्पूर्ण जानकारी। हमें उम्मीद है, कि यह लेख आपको पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य पर्वों की जानकारी और उससे जुड़े तथ्यों को जानने के लिए बने रहिये श्रीमंदिर के साथ।
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