वैकुण्ठ चतुर्दशी 2024: जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि व लाभ, पाएं विष्णु कृपा और जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद।
वैकुण्ठ चतुर्दशी भगवान विष्णु और देवों के देव महादेव को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु सृष्टि का भार भगवान शंकर को सौंप देते हैं। इन चार मासों में सृष्टि का संचालन शिव ही करते हैं। चार मास शयन करने के पश्चात् देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं और बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शंकर सृष्टि का भार पुन: भगवान विष्णु को सौंपते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार 'वैकुंठ चतुर्दशी' विशेष महत्वपूर्ण मानी गयी है। मान्यता है कि इस दिन श्रीहरि विष्णु की पूजा करने पर साधक को वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है, और भगवान शिव की उपासना करने से जातक के समस्त पाप नष्ट होते हैं, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वाराणसी के अधिकांश मंदिरों में वैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाती है और यह देव दिवाली के एक और महत्वपूर्ण अनुष्ठान से एक दिन पहले आता है। वाराणसी के अलावा, वैकुंठ चतुर्दशी ऋषिकेश, गया और महाराष्ट्र के कई शहरों में भी मनाई जाती है।
वैकुंठ चतुर्दशी के दिन निशिता काल के दौरान भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन भक्त भगवान विष्णु के हजार नामों, जिसे विष्णु सहस्रनाम कहा जाता है, का पाठ करते हुए भगवान विष्णु को एक हजार कमल चढ़ाते हैं।
वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा की जाती है। भक्त दिन के दो अलग-अलग समय पर पूजा करते हैं। भगवान विष्णु की पूजा निशिता काल में की जाती है, जबकि भगवान शिव के भक्त भोर के समय के समय पूजा करते हैं।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को वैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है। यह दिन इन दोनों देवताओं को समर्पित है। इस तरह आप आसानी से दोनों देवताओं की साथ में पूजा कर सकते हैं। यदि आप इनकी अलग-अलग पूजा करना चाहते हैं, तो निशितकाल में भगवान विष्णु की पूजा करें और प्रातःकाल में भगवान शिव की पूजा करें।
पौराणिक मान्यताओं की मानें तो एक बार नारद ऋषि ने स्वयं श्री हरि से पूछा था कि साधु-संतों को तो आपका ध्यान करने से मृत्यु के बाद वैकुण्ठ की प्राप्ति होती है, लेकिन सामान्य मनुष्य को यदि मरणोपरांत मोक्ष चाहिए तो वे क्या करें?
तब भगवान विष्णु ने उन्हें वैकुण्ठ चतुर्दशी की महिमा को कहकर सुनाया था। इस तिथि पर भगवान विष्णु के साथ भगवान शिव की आराधना करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। इसीलिए इस विशेष पर्व पर तीर्थ यात्रा करने और शिव मंदिर और विष्णु मंदिर में जाने से व्यक्ति को परम पुण्य की प्राप्ति होती है।
इसी क्रम में श्रीनगर स्थित कमलेश्वर मन्दिर पौराणिक मन्दिरों में से है। इसकी धार्मिक महत्ता है। एक किवदंती के अनुसार यह स्थान एक समय में देवताओं की नगरी माना जाता था। इस स्थान पर स्थित शिव मंदिर में भगवान विष्णु ने तपस्या की थी, जिसके फलस्वरूप उन्हें सुदर्शन चक्र प्राप्त हुआ था।
एक अन्य मान्यता है कि इसी स्थान पर श्री राम ने रावण का वध करने के उपरान्त ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए, एक माह तक प्रतिदिन 108 कमल भगवान शिव को अर्पित किये थे और शिव जी की पूजा करके उन्हें प्रसन्न किया था, इसके बाद वे ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हुए थे।
चूँकि वैकुण्ठ चतुर्दशी पर निशिताकाल में भगवान विष्णु की पूजा करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसीलिए इस आयोजित मेले में भक्त गण मध्यरात्रि में पूजा-उपासना करते हैं। इसके साथ ही प्रतिवर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा अर्थात चतुर्दशी के अगले दिन भी यह मेला अपनी भव्यता के साथ चलता रहता है। इस मेले में आए भक्त संतान प्राप्ति की कामना से वैकुण्ठ चतुर्दशी पर रात्रि के समय हाथ में दीपक लेकर भगवान शंकर को अर्पित करते हैं।
बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान शिव व विष्णु जी की उपासना से भक्तों को कई लाभ प्राप्त होते हैं:-
माना जाता है कि बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करने से बैकुंठ लोक का द्वार खुलता है, और भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
बैकुंठ चतुर्दशी पर शिव और विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को पिछले जन्मों और वर्तमान जीवन में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
भगवान विष्णु की पूजा करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है और धन-धान्य की वृद्धि होती है। इससे आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, और दुख दरिद्रता समाप्त होती है।
इस दिन भगवान शिव और विष्णु का आशीर्वाद मिलने से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। विशेषकर गंभीर रोगों से छुटकारा पाने के लिए यह दिन बहुत ही लाभकारी माना गया है।
शिव और विष्णु की संयुक्त पूजा से व्यक्ति की आयु में वृद्धि होती है, सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और परिवार का कल्याण होता है।
बैकुंठ चतुर्दशी पर शिव और विष्णु की पूजा करने से गृहस्थ जीवन में सुख-शांति बनी रहती है, और उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।
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