वैकुण्ठ चतुर्दशी 2024 | Vaikuntha Chaturdashi
वैकुण्ठ चतुर्दशी भगवान विष्णु और देवों के देव महादेव को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु सृष्टि का भार भगवान शंकर को सौंप देते हैं। इन चार मासों में सृष्टि का संचालन शिव ही करते हैं। चार मास शयन करने के पश्चात् देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं और बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शंकर सृष्टि का भार पुन: भगवान विष्णु को सौंपते हैं।
वैकुंठ चतुर्दशी शुभ मुहूर्त व तिथि
- वैकुण्ठ चतुर्दशी 14 नवंबर, गुरुवार को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर मनाई जाएगी।
- चतुर्दशी तिथि 14 नवंबर, गुरुवार को सुबह 09 बजकर 43 मिनट पर प्रारंभ होगी।
- चतुर्दशी तिथि 15 नवंबर, शुक्रवार को सुबह 06 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी।
- वैकुण्ठ चतुर्दशी निशिताकाल मुहूर्त 14 नवंबर की रात 11 बजकर 16 मिनट से 12 बजकर 09 मिनट पर होगा।
क्यों मनाई जाती है वैकुंठ चतुर्दशी
हिंदू पंचांग के अनुसार 'वैकुंठ चतुर्दशी' विशेष महत्वपूर्ण मानी गयी है। मान्यता है कि इस दिन श्रीहरि विष्णु की पूजा करने पर साधक को वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है, और भगवान शिव की उपासना करने से जातक के समस्त पाप नष्ट होते हैं, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कैसे मनाते हैं वैकुंठ चतुर्दशी
वाराणसी के अधिकांश मंदिरों में वैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाती है और यह देव दिवाली के एक और महत्वपूर्ण अनुष्ठान से एक दिन पहले आता है। वाराणसी के अलावा, वैकुंठ चतुर्दशी ऋषिकेश, गया और महाराष्ट्र के कई शहरों में भी मनाई जाती है।
वैकुंठ चतुर्दशी के दिन निशिता काल के दौरान भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन भक्त भगवान विष्णु के हजार नामों, जिसे विष्णु सहस्रनाम कहा जाता है, का पाठ करते हुए भगवान विष्णु को एक हजार कमल चढ़ाते हैं।
वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा की जाती है। भक्त दिन के दो अलग-अलग समय पर पूजा करते हैं। भगवान विष्णु की पूजा निशिता काल में की जाती है, जबकि भगवान शिव के भक्त भोर के समय के समय पूजा करते हैं।
वैकुंठ चतुर्दशी का महत्व
- वैकुंठ चतुर्दशी पर उज्जैन में भव्य यात्राएं निकाली जाती हैं जिसमें ढोल बजाए जाते हैं, लोग आतिशबाजी के साथ नृत्य करते हैं और बाबा के दर्शन के लिए महाकाल मंदिर जाते हैं। शिव भक्तों के लिए यह दिन बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।
- इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ किया जाता है, विष्णु मंदिर में कई तरह के आयोजन होते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना का खास महत्व है।
- वैकुंठ चतुर्दशी के दिन पवित्र नदियों में स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है, जिससे भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
- वाराणसी के विष्णु मंदिर में भव्य उत्सव होता है, इस दिन मंदिर को वैकुंठ धाम की तरह सजाया जाता है। इस दिन व्रत रखा जाता है। भक्तों के लिए यह व्रत अनंत फल दायक माना जाता है।
- इस दिन गंगा नदी के घाट पर दीप दान किया जाता है। गंगा तट पर दीपदान का बड़ा उत्सव मनाया जाता है। जो इस बात का प्रतीक है कि विष्णु अपनी गहरी नींद से जाग गए हैं और इस खुशी में हर जगह दीपों का दान किया जाता है।
- वाराणसी शहर में हर वर्ष इस विशेष दिन पर काशी विश्वनाथ मंदिर में एक विशेष आयोजन होता है, कहा जाता है कि वैकुंठ चतुर्दशी के दिन यह मंदिर वैकुंठ धाम बन जाता है। इस दिन व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति प्राप्त होती है।
वैकुंठ चतुर्दशी पर किसकी पूजा करें
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को वैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है। यह दिन इन दोनों देवताओं को समर्पित है। इस तरह आप आसानी से दोनों देवताओं की साथ में पूजा कर सकते हैं। यदि आप इनकी अलग-अलग पूजा करना चाहते हैं, तो निशितकाल में भगवान विष्णु की पूजा करें और प्रातःकाल में भगवान शिव की पूजा करें।
वैकुंठ चतुर्दशी की पूजा विधि
- वैकुण्ठ चतुर्दशी का व्रत करने के लिए त्रयोदशी की संध्या में या चतुर्दशी पर प्रातः कल में व्रत और पूजा का संकल्प लिया जाता है।
- वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल उठें, और नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें।
- स्नान के बाद पीले या सफ़ेद रंग के स्वच्छ वस्त्र धारण करें, क्योंकि भगवान विष्णु को पीला रंग और भगवान शिव को सफ़ेद रंग बहुत प्रिय है।
- स्वयं को चन्दन का तिलक अवश्य करें। अब भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य दें और नमस्कार करते हुए, आपके व्रत और पूजा को सफल बनाने की प्रार्थना करें।
- अब पूजा करने के लिए सभी सामग्री इकट्ठा करें और पूजा शुरू करें।
- सबसे पहले पूजा स्थल पर एक चौकी स्थापित करें, और इसे गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें।
- इसके बाद चौकी पर एक साफ वस्त्र बिछाकर इस पर भगवान विष्णु और भगवान शिव की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें।
- चंदन का इत्र, गाय का दूध, मिश्री एवं दही से भगवान का अभिषेक करें।
- इसके बाद गंगाजल से स्नान करवाने के बाद श्री हरि और भोलेनाथ को रोली-चन्दन का तिलक करें। कुमकुम हल्दी और अक्षत भी चढ़ाएं।
- अब ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जप करते हुए श्रीहरि को पीले पुष्प, जनेऊ और माला अर्पित करें।
- अब ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करते हुए शिव जी को सफ़ेद पुष्प, और माला अर्पित करें।
- भगवान विष्णु को पंचामृत में तुलसीदल डालकर अर्पित करें, भगवान विष्णु को तुलसी अतिप्रिय है इसीलिए भगवान के भोग में तुलसी को अवश्य शामिल करें।
- संभव हो पाए तो इस दिन मखाने की खीर बनाकर भगवान को भोग लगाएं।
- वैकुण्ठ चतुर्दशी पर विष्णु जी को क्षमतानुसार कमल के पुष्प अर्पित करें।
- भगवान को पीले और सफ़ेद रंग का मिष्ठान्न या पीला ऋतुफल अर्पित करें।
- विष्णु सहस्त्रनाम या श्री हरि स्त्रोतम का पाठ करें, इसे आप श्री मंदिर के माध्यम से सुन भी सकते हैं।
- अंत में भगवान विष्णु और भगवान शिवजी की आरती करें।
- अब सभी लोगों में भगवान को चढ़ाया गया भोग प्रसाद के रूप में वितरित करें।
वैकुंठ चतुर्दशी पौराणिक मान्यताएं
पौराणिक मान्यताओं की मानें तो एक बार नारद ऋषि ने स्वयं श्री हरि से पूछा था कि साधु-संतों को तो आपका ध्यान करने से मृत्यु के बाद वैकुण्ठ की प्राप्ति होती है, लेकिन सामान्य मनुष्य को यदि मरणोपरांत मोक्ष चाहिए तो वे क्या करें?
तब भगवान विष्णु ने उन्हें वैकुण्ठ चतुर्दशी की महिमा को कहकर सुनाया था। इस तिथि पर भगवान विष्णु के साथ भगवान शिव की आराधना करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। इसीलिए इस विशेष पर्व पर तीर्थ यात्रा करने और शिव मंदिर और विष्णु मंदिर में जाने से व्यक्ति को परम पुण्य की प्राप्ति होती है।
इसी क्रम में श्रीनगर स्थित कमलेश्वर मन्दिर पौराणिक मन्दिरों में से है। इसकी धार्मिक महत्ता है। एक किवदंती के अनुसार यह स्थान एक समय में देवताओं की नगरी माना जाता था। इस स्थान पर स्थित शिव मंदिर में भगवान विष्णु ने तपस्या की थी, जिसके फलस्वरूप उन्हें सुदर्शन चक्र प्राप्त हुआ था।
एक अन्य मान्यता है कि इसी स्थान पर श्री राम ने रावण का वध करने के उपरान्त ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए, एक माह तक प्रतिदिन 108 कमल भगवान शिव को अर्पित किये थे और शिव जी की पूजा करके उन्हें प्रसन्न किया था, इसके बाद वे ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हुए थे।
चूँकि वैकुण्ठ चतुर्दशी पर निशिताकाल में भगवान विष्णु की पूजा करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसीलिए इस आयोजित मेले में भक्त गण मध्यरात्रि में पूजा-उपासना करते हैं। इसके साथ ही प्रतिवर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा अर्थात चतुर्दशी के अगले दिन भी यह मेला अपनी भव्यता के साथ चलता रहता है। इस मेले में आए भक्त संतान प्राप्ति की कामना से वैकुण्ठ चतुर्दशी पर रात्रि के समय हाथ में दीपक लेकर भगवान शंकर को अर्पित करते हैं।
वैकुंठ चतुर्दशी पर पूजा के लाभ
बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान शिव व विष्णु जी की उपासना से भक्तों को कई लाभ प्राप्त होते हैं:-
मोक्ष की प्राप्ति:
माना जाता है कि बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करने से बैकुंठ लोक का द्वार खुलता है, और भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पापों से मुक्ति:
बैकुंठ चतुर्दशी पर शिव और विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को पिछले जन्मों और वर्तमान जीवन में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
सुख और समृद्धि:
भगवान विष्णु की पूजा करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है और धन-धान्य की वृद्धि होती है। इससे आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, और दुख दरिद्रता समाप्त होती है।
रोगों से मुक्ति:
इस दिन भगवान शिव और विष्णु का आशीर्वाद मिलने से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। विशेषकर गंभीर रोगों से छुटकारा पाने के लिए यह दिन बहुत ही लाभकारी माना गया है।
कल्याण और दीर्घायु:
शिव और विष्णु की संयुक्त पूजा से व्यक्ति की आयु में वृद्धि होती है, सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और परिवार का कल्याण होता है।
गृहस्थ जीवन में सुख-शांति:
बैकुंठ चतुर्दशी पर शिव और विष्णु की पूजा करने से गृहस्थ जीवन में सुख-शांति बनी रहती है, और उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।