वासुदेव द्वादशी 2025 में श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने का पावन अवसर है! जानिए कब है ये शुभ तिथि, कैसे करें पूजा और कौन-सा है सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त—एक आस्था से भरी शुरुआत के लिए पढ़ें पूरी जानकारी।
वासुदेव द्वादशी एक महत्वपूर्ण वैष्णव पर्व है, जो आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व देवशयनी एकादशी के अगले दिन आता है और विशेष रूप से भगवान वासुदेव (श्रीकृष्ण) को समर्पित होता है।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वासुदेव द्वादशी मनाई जाती है। इस पर विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार माता देवकी ने भगवान कृष्ण को पुत्र रूप में पाने के लिए इस व्रत का पालन किया था। कहा जाता है संतान प्राप्ति और उनके उत्तम जीवन इच्छा से ये व्रत रखने रखने वाली स्त्रियां संतान का सुख पाती हैं।
चलिए इस लेख में जानते हैं,
भगवान कृष्ण को समर्पित वासुदेव द्वादशी व्रत देवशयनी एकादशी के एक दिन बाद किया जाता है। ये पर्व आषाढ़ मास एवं चातुर्मास के प्रारंभ में ही पड़ता है।
इस वर्ष वासुदेव द्वादशी 07 जुलाई 2025, सोमवार को मनाई जाएगी
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:51 ए एम से 04:32 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 04:11 ए एम से 05:13 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | 11:36 ए एम से 12:30 पी एम |
विजय मुहूर्त | 02:19 पी एम से 03:14 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 06:51 पी एम से 07:12 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 06:52 पी एम से 07:54 पी एम |
अमृत काल | 01:43 पी एम से 03:29 पी एम |
निशिता मुहूर्त | 11:42 पी एम से 12:24 ए एम, जुलाई 08 |
सर्वार्थ सिद्धि योग | 05:13 ए एम से 01:12 ए एम, जुलाई 08 |
वासुदेव द्वादशी एक वैष्णव पर्व है, जो भगवान वासुदेव (श्रीकृष्ण) के पूजन और उपासना का दिन है। यह व्रत देवशयनी एकादशी के अगले दिन आता है और चातुर्मास की शुरुआत के साथ ही इसका गहरा आध्यात्मिक महत्व होता है।
वासुदेव, भगवान श्रीकृष्ण के पिता थे और मथुरा के यदुवंशी वंश के महान राजा। उनका विवाह देवकी से हुआ था। जब कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार में बंद किया, तब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में आठवें पुत्र के रूप में जन्म लिया। वासुदेव का नाम श्रीकृष्ण के एक नाम “वासुदेव” के रूप में भी प्रसिद्ध है, जिसका अर्थ होता है — “वासुदेव का पुत्र”।
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब देवकी एवं वसुदेव को कंस ने जेल में बंदी बना लिया था, तब एक बार नारद मुनि इनसे मिलने आए। नारद मुनि ने देवकी और वसुदेव के अपनी सभी संतानों को कंस द्वारा मारे जाने पर दुखी देखकर महर्षि नारद ने उन्हें वासुदेव द्वादशी व्रत रखने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि इस व्रत से तुम्हें दिव्य बालक की प्राप्ति होगी। नारद जी के सुझाव को मानते हुए देवकी और वसुदेव ने इस व्रत का पालन किया, और इसके कुछ ही समय बात भगवान विष्णु स्वयं कृष्ण के अवतार में जन्में।
वासुदेव द्वादशी के दिन भगवान कृष्ण की सोने की प्रतिमा का दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस सोने की प्रतिमा को पहले किसी जल से भरे पात्र में रखकर उसकी पूजा करें, उसके बाद उसे दान करें। ऐसा करने से असंख्य पुण्य प्राप्त होते हैं।
भक्तों, ये थी वासुदेव द्वादशी से जुड़ी विशेष जानकारी। हमारी कामना है कि भगवान कृष्ण आपकी उपासना से प्रसन्न हों, और आपका जीवन सुख समृद्धि से परिपूर्ण करें। ऐसे ही व्रत, त्यौहार व देश की महान विभूतियों से जुड़ी जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' के इस धार्मिक मंच पर।
भक्तों, ये थी वासुदेव द्वादशी से जुड़ी विशेष जानकारी। हमारी कामना है कि भगवान कृष्ण आपकी उपासना से प्रसन्न हों, और आपका जीवन सुख समृद्धि से परिपूर्ण करें। ऐसे ही व्रत, त्यौहार व देश की महान विभूतियों से जुड़ी जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' के इस धार्मिक मंच पर।
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