जानिए वट सावित्री व्रत 2025 की तारीख, व्रत की पूजा विधि, पौराणिक कथा और सुहागिनों के लिए इस व्रत का विशेष महत्व।
वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। यह व्रत वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करके सावित्री-सत्यवान की कथा सुनकर पूर्ण किया जाता है। आइये जानते हैं इसके बार में...
वट सावित्री व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण पर्व है। ये व्रत ज्येष्ठ अमावस्या तिथि पर किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन पूरी आस्था से अपने पति के दीर्घायु होने के लिए इस व्रत का पालन करने वाली स्त्रियां सदा सुहागन रहती हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वट सावित्री व्रत का पालन करने वाली स्त्री का पति दीर्घायु होता है, और उसका सुहाग सदैव अचल रहता है। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाली स्त्रियों को इस व्रत के फलस्वरूप उत्तम संतान की प्राप्ति होती है, और परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है।
वट सावित्री व्रत प्रत्येक सुहागन स्त्री के सुहाग को अखंड रखने वाला पर्व है। सदियों पहले सावित्री ने भी इसी व्रत का पालन कर अपने मृत पति सत्यवान को यमराज द्वारा जीवनदान देने के लिए विवश किया था, तभी से सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी आयु के इस व्रत का पालन करने की परंपरा है। वट सावित्री व्रत में सत्यवान सावित्री व मृत्यु के देवता यमराज की पूजा होती है, साथ ही इस दिन सभी सुहागन स्त्रियां 16 श्रृंगार कर वट वृक्ष की भी पूजा करती है।
ज्येष्ठ अमावस्या के दिन सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही अपने मृत पति सत्यवान को पुन: जीवित किया था, इसीलिए इस दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है, और ये पर्व वट-सावित्री के नाम से जाना जाता है।
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार वट वृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और आगे के भाग में भगवान शंकर का वास होता है। इसके अलावा महात्मा बुद्ध को भी बरगद के वृक्ष के नीचे ही ज्ञान प्राप्त हुआ था।
एक मान्यता ये भी है कि वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा करने और व्रत कथा आदि सुनने से जातक की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
वैज्ञानिक कारणों की बात करें तो वट वृक्ष पर्यावरण में मौजूद हानिकारक गैसों को नष्ट कर वातावरण को शुद्ध करता है।
वट वृक्ष बहुत ही विशाल और सैकड़ों वर्षों तक हरा भरा रहने वाला वृक्ष होता है। इस प्रकार यह वृक्ष दीर्घायु, सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
तो यह थी वट सावित्री व्रत के महत्व से जुड़ी जानकारी। हमारी कामना है कि आपका ये व्रत सफल हो, और आपको अखंड सौभाग्य मिले।
नमस्कार, श्रीमंदिर की इस भक्ति धारा में आपका स्वागत है।
दोस्तों! वट सावित्री व्रत का फल वट यानी कि बरगद की पूजा पर भी निर्भर करता है। चूँकि हमारे कई यूज़र्स महानगरों में रहते हैं, जहाँ बरगद के पेड़ आसानी से नहीं मिल पाते हैं, ऐसे में कई लोगों ने हमसे इस समस्या का हल माँगा। जिसे लेकर हम आज आपके सामने प्रस्तुत हैं
तो सबसे आसान उपायों में से एक है कि
बरगद का पेड़ न सही लेकिन बरगद की कुछ टहनियां और पत्ते भी अगर आप वट सावित्री व्रत के 2-3दिन पहले कहीं से जुटा लें तो आपकी वट सावित्री व्रत की पूजा घर में ही सम्पन्न हो जाएगी। इन टहनियों और पत्तों को एक गमले में काली या पीली मिट्टी के साथ बो दें और थोड़ा-थोड़ा पानी देते रहे तो यह आपकी पूजा में बरगद का पेड़ के रूप में उपयोग हो सकेगा।
पेड़ भी नहीं है, और टहनी भी नहीं मिल रही तो एक चौकी पर जल से भरा कलश स्थापित करें, और इस कलश में ब्रह्मा देव, राजा सत्यवान और सावित्री का आह्वान करें। कहें कि “कि हे ब्रह्मदेव, हे सावित्री माता, हे राजा सत्यवान, मैंने अपने पति की लम्बी उम्र के लिए पूरी श्रद्धा से आपका व्रत किया है, इस जल कलश में आकर मेरी पूजा को सफल बनाएँ, मैं आपका आह्वान करती हुं।” इसके बाद पूर्ण विधि से इसकी पूजा करें। आपकी पूजा जरूर सफल होगी।
जिस तरह करवा चौथ माता की तस्वीर बाजार में मिल जाती है, उसी तरह आजकल वट सावित्री व्रत की तस्वीर भी बाजार में ढूंढने से मिल जाएगी। यदि आपको यह नहीं मिल पाएं तो श्रीमंदिर पर एप्प के माध्यम से पूजा सम्पन्न करें।
आटे का इस्तेमाल करके आप बरगद का पेड़ बना सकती हैं। इसमें थोड़ी ही हल्दी मिलाएं, जो सुहाग की निशानी भी होती है। इस आटे से बने बरगद की विधि पूर्वक पूजा करें और अगले दिन इसके विसर्जन के लिए इसकी रोटियां बनाकर गाय व् अन्य पशुओं को खिला दें।
इसके साथ ही आप हरतालिका तीज की तरह ही मिट्टी और रेत का इस्तेमाल भी कर सकती है। इन दो चीजों से वट वृक्ष बनाकर इसकी पूजा और अगले दिन पानी में इसे विसर्जित कर दें।
हमारे देश के कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहाँ बरगद बिल्कुल भी नहीं पाया जाता हैं। ऐसे में वे लोग वट सावित्री व्रत के दिन तुलसी जी और शालिग्राम के पास एक जल कलश रखकर इसकी पूजा कर सकते हैं।
हम यहां वहीं विकल्प लाएं हैं जिनसे आपकी वट सावित्री व्रत की पूजा बिना किसी अड़चन के सफल हो और आपको पूजा में किसी तरह की कमी भी महसूस न हों। हम आशा करते हैं आपको हमारा यह प्रयास पसंद आएगा...
वट सावित्री व्रत के दिन पूरे विधि-विधान से पूजा करने से इसका विशेष फल मिलता है इसलिए हम आज इस वीडियो में आपको इस व्रत की संपूर्ण पूजा विधि बताने जा रहे हैं।
इस दिन प्रातःकाल उठकर घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद गंगा जल से पूरे घर में छिड़काव करें। इस दिन सुहागनों को पूजा के लिए 16 शृंगार करके तैयार होना चाहिए। पूजा के दिन बिंदी और महावर ज़रूर लगाएं, अगर संभव हो तो आपको नई चूड़ियां भी पहननी चाहिए। इस दिन वट वृक्ष के पत्तों को भी गहनों के रूप में धारण किया जाता है, इसलिए वट वृक्ष को अपनी चोटी या जूड़े में लगा लें। सिंदूर को सुहाग की निशानी माना जाता है, इसलिए इस दिन पीला या नारंगी सिंदूर लगाने का भी विधान है। अगर आप चाहें तो आप एक दिन पहले हाथों में मेहंदी भी लगा सकते हैं। इस प्रकार तैयार होने के पश्चात घर के बड़े लोगों के पांव छुएं और उनका आशीर्वाद लें।
वट वृक्ष की पूजा से पहले अपने घर के मंदिर में सभी देवी-देवताओं की पूरे विधि-विधान से पूजा करें। आप पूजा के समय व्रत का संकल्प लें और सौभाग्यवती होने की कामना करें।
पूजा के बाद आप वट वृक्ष की पूजा की तैयारियां शुरू करें। सबसे पहले आप चावल का ऐपण तैयार कर लें। ऐपण बनाने के लिए आप चावल को भिगो कर पीस लें और हल्दी मिला लें। आप इसके लिए चावल के आटे का उपयोग भी कर सकते हैं। इसके बाद आप बांस का पंखा, धूप, दीप, पुष्प, रोली, चंदन, सिंदूर, सुहाग की सामग्री आदि पूजा सामग्री में एकत्रित कर लें।
अब आप आटे का एक बड़ा चौमुखी दीपक बना लें और इसमें घी डाल दें। धूप और दिया जलाने के लिए माचिस रखना न भूलें। साथ में एक लोटे में गंगा जल भर कर रख लें। अब आपको कच्चे सूत की माला बनानी है, इसके लिए सूत को 12 बार लपेटें और 2 मालाएं बना लें।
चलिए अब आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि इस दिन प्रसाद में क्या-क्या चढ़ाया जाता है। प्रसाद में एक दिन पहले भिगोए गए काले चनों को रखना ज़रूरी होता है। इसके अलावा प्रसाद के लिए पूड़ी, पुए और बरगद फल बनाए जाते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि यह बरगद फल क्या होता है?
तो हम आपको बता दें, यह एक प्रकार का पकवान होता है जिसे बनाने के लिए आटे में चीनी और घी डालकर गूंथ लिया जाता है और इसकी छोटी-छोटी गोलियां बनाकर उन्हें तल लिया जाता है। प्रसाद में खरबूजे और आम जैसे फल भी चढ़ाए जाते हैं और मिठाई भी चढ़ाई जाती है।
अब आपको प्रसाद से जुड़ी हुई एक और महत्वपूर्ण बात बता देते हैं। प्रसाद में चढ़ाए जाने वाले सभी पूड़ी पकवानों की संख्या 24-24 होती है। जिसमें 12 पूड़ी-पकवान वट वृक्ष को अर्पित कर दिए जाते हैं और बचे हुए भोग का प्रयोग वितरित करने के लिए और व्रत का पारणा करने के लिए किया जाता है।व्रत के पारणा के लिए अपने घर से पूजा स्थल पर जल भी लेकर जाएं।
हिंदू धर्म में किसी भी पूजा में सर्वप्रथम श्रीगणेश जी की पूजा-अर्चना करने का विधान है। इसलिए आप गौरी-गणेश जी की मूर्ति या प्रतिमा ले जाएं। साथ ही आप सावित्री जी और सत्यवान जी की मूर्ति या प्रतिमा भी पूजा स्थल पर ले जाएं। सभी तैयारियां होने के पश्चात आप पूजा करने के लिए किसी भी वट वृक्ष की ओर प्रस्थान करें। बता दें हिंदू धर्म में वट वृक्ष को त्रिमूर्ति यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक माना गया है। आइए, अब जानते हैं इस पूजा विधि के बारे में।
सबसे पहले ऐपण से रंगोली बनाएं, उस पर सभी प्रतिमाएं स्थापित करें, प्रतिमाओं को चंदन व सिंदूर लगाएं, पुष्प चढ़ाएं और उनकी पूजा करें। अब आप वट वृक्ष की जड़ों को गंगा जल से सींचे, धूप जलाएं, आटे का चौमुखी दीपक जलाएं और पूजा सामग्री अर्पित करें। इसके बाद आप वहां बांस के पंखे से हवा करें। सुहाग की सामग्री आप माता सावित्री और गौरी जी को अर्पित करें। अब सफेद रंग के कच्चे सूत को वृक्ष के चारों ओर लपेटते हुए 5, 11, 21, 51 या 108 बार परिक्रमा करें। परिक्रमा करते समय ईश्वर का ध्यान करें और अपने पति की दीर्घायु के साथ अपने परिवार के कल्याण की कामना करें।
इसके बाद आप वट सावित्री की व्रत कथा पढ़ें। जो दो मालाएं आपने कच्चे सूत से बनाई थीं, उसे 6 बार बरगद के वृक्ष से बदलने के बाद, एक वृक्ष को अर्पित कर दें और एक स्वयं पहन लें। इसके बाद आप व्रत के पारणा के लिए वृक्ष के नीचे पानी के साथ 11 काले चने ग्रहण कर लें। फिर आप पूरा दिन सात्विक चीज़ों को ही ग्रहण करें। कई लोग इस दिन फलाहार खाकर पूरा दिन भी व्रत करते हैं, आप चाहें तो आप भी पूरे दिन फलाहार खा सकते हैं।
तो यह थी वट सावित्री की पूजा विधि। वट सावित्री की व्रत कथा सुनने के लिए श्रीमंदिर के ऐप पर अवश्य जाएं।
Did you like this article?
अपरा एकादशी 2025 कब है? जानें अपरा एकादशी व्रत की तिथि, पारंपरिक व्रत कथा, इस दिन का धार्मिक महत्व और व्रत के नियम।
वृषभ संक्रांति 2025 कब है? जानें सूर्य के वृषभ राशि में प्रवेश की तिथि, इसका धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व, और इस दिन किए जाने वाले दान-पुण्य के कार्य।
ज्येष्ठ मास 2025 कब से शुरू हो रहा है? जानें इस महीने की तिथि, धार्मिक महत्त्व और व्रत-त्योहारों की पूरी सूची। यह मास तप, व्रत और पवित्र स्नान के लिए विशेष माना जाता है।