जानिए वृषभ संक्रांति 2025 की तारीख, सूर्य के राशि परिवर्तन का महत्व, इस दिन के धार्मिक कार्य और पुण्य प्राप्ति के उपाय।
वृषभ संक्रांति हिंदू पंचांग के अनुसार एक महत्वपूर्ण संक्रांति है, जब सूर्य का गोचर मेष राशि से वृषभ राशि में होता है। यह घटना हर साल मई महीने में होती है और इसका धार्मिक व खगोलीय महत्व होता है। आइये इस लेख के माध्यम से इसके बारे में जानते हैं...
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वृषभ संक्रांति हिन्दू वर्ष की पहली संक्रांति होती है। पूरे वर्ष में 12 मास की तरह ही 12 संक्रांति होती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्यदेव के एक राशि से दूसरी राशि में गोचर अर्थात प्रवेश की तिथि को संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:03 ए एम से 04:45 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:24 ए एम से 05:27 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:46 ए एम से 12:41 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:29 पी एम से 03:23 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:59 पी एम से 07:20 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 07:00 पी एम से 08:03 पी एम तक |
निशिता मुहूर्त | 11:52 पी एम से 12:34 ए एम, तक (16 मई) |
साल के प्रत्येक महीने में आने वाली संक्रांति का अपना विशेष महत्व होता है। वृषभ संक्रांति भी उन्हीं में से एक है, जो हिन्दू धर्म की प्रमुख तिथि मानी जाती है।
चलिए जानते हैं,
हिन्दू कैलेंडर में वृषभ संक्रांति को वर्ष में आने वाली दूसरी संक्रांति माना जाता है। हर माह सूर्य देवता अपना स्थान परिवर्तन कर एक नई राशि में प्रवेश करते हैं। इसी तरह ज्येष्ठ माह में सूर्य वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे, जिसे वृषभ संक्रांति के नाम से मनाया जाएगा। वृषभ अर्थात बैल, और बैल (नंदी) भगवान शिव का वाहन होता है। इसलिए वृषभ संक्रांति पर नंदी महराज पर जल चढ़ाना बहुत फलदायी होता है।
हिंदू शास्त्रों में वृषभ संक्रांति बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है। इस दिन व्रत रखना, सूर्यदेव की पूजा अर्चना करना और दान करना अत्यंत फलदाई होता है। जो लोग अपनी कुंडली में सूर्य से उत्पन्न हो रहे दोषों से पीड़ित हैं। उन्हें वृषभ संक्रांति पर सूर्यदेव की सामान्य पूजा जरूर करनी चाहिए। इससे उनके जीवन में नौकरी, व्यवसाय और पिता से संबंधित बाधाएं कम होती है।
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष में 12 संक्रांति होती हैं, जिनमें वृषभ संक्रांति हिन्दू वर्ष की अंतिम संक्रांति होती है। इस दिन सूर्य वृषभ राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए इस संक्रांति पर पूरी सृष्टि में ऊर्जा के स्रोत माने जाने वाले भगवान सूर्य की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन दान-पुण्य करने से व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि का वास होता है।
आइए जानते हैं वृषभ संक्रांति पर कैसे करें सूर्यदेव की पूजा
तो यह थी वृषभ संक्रांति की पूजा विधि, आप भी इस दिन सूर्यदेव की भक्ति से अपने दिन को मंगलकारी बना सकते हैं
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार सूर्य का किसी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है। इस प्रकार सूर्य के वृषभ राशि में प्रवेश करने को वृषभ संक्रांति कहते हैं। इस संक्रांति से मलमास या खरमास का भी प्रारंभ होता है, इसलिए इस दिन जहां सूर्य देव की पूजा अर्चना करने से अनेकों फल प्राप्त होते हैं, वहीं कुछ ऐसे कार्य हैं, जिन्हें वृषभ संक्रांति में करना वर्जित माना जाता है।
चलिए जानते हैं,
ये थी वृषभ संक्रांति से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी। इसी ही धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' पर।
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