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विजया एकादशी कब है?

विजया एकादशी: कब है विजया एकादशी? जानें तिथि, पूजा विधि और इस दिन के विशेष लाभ से पाएं सफलता और आशीर्वाद

विजया एकादशी के बारे में

विजया एकादशी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह एकादशी विशेष रूप से सभी पापों का नाश करने वाली और विजय प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करने वाली मानी जाती है। इसे करने से व्यक्ति को जीवन में सफलता, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

विजया एकादशी 2025

भक्तों, हिंदू शास्त्रों में एकादशी व्रत की अद्भुत महिमा का उल्लेख मिलता है। जिसके अनुसार यह व्रत मनुष्य के समस्त पापों का नाश करता है और मृत्यु के उपरांत मोक्ष भी प्रदान करता है। आगामी विजया एकादशी का दिन भी समस्त एकादशियों की तरह भगवान विष्णु को समर्पित है, आप भी इस दिन पूजा-अर्चना एवं व्रत करें एवं भगवान विष्णु की अपार कृपा के अधिकारी बनें।

इसी क्रम में, आज हम आपके लिए लेकर आए हैं इस एकादशी की तिथि एवं शुभ मुहूर्त की महत्वपूर्ण जानकारी।

विजया एकादशी शुभ मुहूर्त

  • हिन्दू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में विजया एकादशी मनाई जाती है।
  • विजया एकादशी 24 फरवरी, सोमवार को मनाई जायेगी।
  • 25 फरवरी को पारण (व्रत तोड़ने का) समय 06:50 AM से 09:08 AM तक रहेगा।
  • पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय 12:47 PM रहेगा
  • एकादशी तिथि 23 फरवरी, रविवार को 01:55 PM पर प्रारंभ होगी।
  • एकादशी तिथि का समापन 24 फरवरी, सोमवार को 01:44 PM पर होगा।

किसी भी व्रत में उचित अवधि में पारण करना अनिवार्य होता है, क्योंकि इसके बिना आपको व्रत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। अतः हम आपको यह सुझाव देते हैं कि एकादशी की तिथि समाप्त होने के बाद द्वादशी तिथि में हरिवासर की अवधि में पारण बिल्कुल न करें।

आप श्री मंदिर पर प्रत्येक द्वादशी के दिन पारण का शुभ मुहूर्त जानने के बाद ही अपना व्रत खोलें, जिससे आपका यह महत्वपूर्ण व्रत सफल बनें।
भक्तों, इसके अतिरिक्त विजया एकादशी व्रत की अन्य जानकारी भी श्री मंदिर पर उपलब्ध है, आप इसका लाभ अवश्य उठाएं, और भक्तिरस का आनंद लें।

विजया एकादशी क्या है?

हिन्दू पंचांग में एकादशी के व्रत को अत्यंत महत्वपूर्ण एवं फलदायी माना जाता है।

क्या है विजया एकादशी ?

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है। सभी एकादशियों की तरह ही इस एकादशी पर भी व्रत और भगवान विष्णु की भक्ति करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी का व्रत मनुष्य को मृत्यु के उपरांत वैकुण्ठ धाम में स्थान प्रदान करता है।

विजया एकादशी क्यों मनाई जाती है?

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, वनवास के समय, रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया। माता को रावण के चंगुल से मुक्त कराने के लिए भगवान राम को वानर सेना सहित लंका पहुंचने के लिए समुद्र पार करने की आवश्यकता थी। उस समय वाकदलभ्य संत ने भगवान राम को विजया एकादशी का व्रत रखने का सुझाव देते हुए कहा कि विजया एकादशी का व्रत सभी बाधाओं से छुटकारा पाने और अपने लक्ष्य में विजय प्राप्त करने का सर्वोत्तम उपाय है।

इसके बाद वाकदलभ्य संत की आज्ञा से भगवान राम ने विजया एकादशी के व्रत का विधि विधान से पालन किया और इस व्रत के प्रभाव से ही भगवान श्री राम के हाथों अहंकारी रावण का अंत हुआ और धर्म की विजय हुई। उस समय से ही भक्तजन अत्यंत समर्पण के साथ विजया एकादशी का व्रत रखते हैं और इसके सफल समापन के लिए विजया एकादशी की कथा सुनते हैं।

विजया एकादशी का महत्व क्या है ?

हिन्दू माह फाल्गुन में आने वाली इस एकादशी के नाम के शाब्दिक अर्थ में ही 'विजया' शब्द स्वयं में विजय का प्रतीक है। यह व्रत जीवन की समस्त कठिन परिस्थितियों में विजय और कार्यों में सफलता प्रदान करता है।

मान्यताओं के अनुसार जाने-अनजाने में किये गए पापकर्मों का पश्चाताप करने के लिए विजया एकादशी का व्रत विशेष प्रभावशाली होता है। भक्तजन, भगवान विष्णु की विशेष कृपा और स्नेह प्राप्त करने के लिए भी यह व्रत करते हैं। साथ ही पृथ्वी लोक पर सभी सुखों का भोग करने के बाद अंत में भगवान विष्णु की शरण में जाने के लिए विजया एकादशी के व्रत का पालन किया जाता है।

जो जातक इस दिन व्रत नहीं रख पाते हैं, वे भी इस दिन अपनी क्षमता के अनुसार कपड़े, धन, भोजन और कई अन्य आवश्यक वस्तुएं दान कर महापुण्य के भागीदार बनते हैं।

विजया एकादशी की पूजा सामग्री

सनातन व्रतों में एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस दिन संपूर्ण विधि और उचित सामग्री के साथ पूजा करना अत्यंत फलदायक होता है। एकादशी पर की जाने वाली पूजा की सामग्री कुछ इस प्रकार है -

  • चौकी
  • पीला वस्त्र
  • गंगाजल
  • भगवान विष्णु की प्रतिमा
  • गणेश जी की प्रतिमा
  • अक्षत
  • जल का पात्र
  • पुष्प
  • माला
  • मौली या कलावा
  • जनेऊ
  • धूप
  • दीप
  • हल्दी
  • कुमकुम
  • चन्दन
  • अगरबत्ती
  • तुलसीदल
  • पञ्चामृत का सामान (दूध, घी, दही, शहद और मिश्री)
  • मिष्ठान्न
  • ऋतुफल
  • घर में बनाया गया नैवेद्य

नोट - गणेश जी की प्रतिमा के स्थान पर आप एक सुपारी पर मौली लपेटकर इसे गणेशजी के रूप में पूजा में विराजित कर सकते हैं।

विजया एकादशी की पूजा कैसे करें?

हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस लेख में आप एकादशी की पूजा की तैयारी एवं विधि जानेंगे।

पूजा की तैयारी

  • एकादशी के दिन व्रत करने वाले जातक दशमी तिथि की शाम में व्रत और पूजन का संकल्प लें।
  • दशमी में रात्रि के भोजन के बाद से कुछ भी अन्न या एकादशी व्रत में निषेध चीजों का सेवन न करें।
  • एकादशी के दिन प्रातःकाल उठें, और किसी पेड़ की टहनी से दातुन करें।
  • इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें। स्नान करते समय पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
  • स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। स्वयं को चन्दन का तिलक करें।
  • अब भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य दें और नमस्कार करते हुए, आपके व्रत और पूजा को सफल बनाने की प्रार्थना करें।
  • अब पूजा करने के लिए सभी सामग्री इकट्ठा करें और पूजा शुरू करें।

एकादशी की पूजा विधि

  • सबसे पहले पूजा स्थल को साफ करके इस स्थान पर एक चौकी स्थापित करें, और इसे गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें।
  • इसके बाद चौकी पर एक पीला वस्त्र बिछाएं। इस चौकी के दायीं ओर एक दीप प्रज्वलित करें।

(सबसे पहले दीप प्रज्वलित इसीलिए किया जाता है, ताकि अग्निदेव आपकी पूजा के साक्षी बनें)

  • चौकी के सामने एक साफ आसन बिछाकर बैठ जाएं। जलपात्र से अपने बाएं हाथ से दाएं हाथ में जल लेकर दोनों हाथों को शुद्ध करें। अब स्वयं को तिलक करें।
  • अब चौकी पर अक्षत के कुछ दानें आसन के रूप में डालें और इस पर गणेश जी को विराजित करें।
  • इसके बाद चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें।
  • अब स्नान के रूप में एक जलपात्र से पुष्प की सहायता से जल लेकर भगवान गणेश और विष्णु जी पर छिड़कें।
  • भगवान गणेश को हल्दी-कुमकुम-अक्षत और चन्दन से तिलक करें।
  • इसके बाद वस्त्र के रूप में उन्हें जनेऊ अर्पित करें। इसके बाद पुष्प अर्पित करके गणपति जी को नमस्कार करें।
  • भगवान विष्णु को रोली-चन्दन का तिलक करें। कुमकुम, हल्दी और अक्षत भी चढ़ाएं।
  • अब ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जप करते हुए श्रीहरि को पुष्प, जनेऊ और माला अर्पित करें।
  • भगवान विष्णु को पंचामृत में तुलसीदल डालकर अर्पित करें। चूँकि भगवान विष्णु को तुलसी अतिप्रिय है इसीलिए भगवान के भोग में तुलसी को अवश्य शामिल करें।

(ध्यान दें गणेश जी को तुलसी अर्पित न करें)

  • इसके बाद भोग में मिष्ठान्न और ऋतुफल अर्पित करें।
  • विष्णु सहस्त्रनाम या श्री हरि स्त्रोतम का पाठ करें, इसे आप श्री मंदिर के माध्यम से सुन भी सकते हैं।
  • अंत में भगवान विष्णु की आरती करें। अब सभी लोगों में भगवान को चढ़ाया गया भोग प्रसाद के रूप में वितरित करें।

इस तरह आपकी एकादशी की पूजा संपन्न होगी। इस पूजा को करने से आपको भगवान विष्णु की कृपा निश्चित रूप से प्राप्त होगी।

एकादशी व्रत से मिलने वाले 5 लाभ

भक्तों, भगवान विष्णु के एकादशी व्रत की महिमा इतनी दिव्य है, कि इसके प्रभाव से मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्त हो जाता है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का भी विशेष महत्व है। हमारी पौराणिक मान्यताएं भी कहती हैं कि एकादशी व्रत से अद्भुत पुण्यफल प्राप्त होता है।

एकादशी का यह पावन व्रत आपके जीवन को और अधिक सार्थक बनाने में सहयोगी सिद्ध होगा। इसी विश्वास के साथ हम आपके लिए इस व्रत और पूजन से मिलने वाले 5 लाभों की जानकारी लेकर आए हैं। आइये, शुरू करते हैं-

पहला लाभ - कठिन लक्ष्य एवं कार्यों की सिद्धि

ये एकादशी व्रत एवं पूजन आपके सभी शुभ कार्यों एवं लक्ष्य की सिद्धि करेगा। इस व्रत के प्रभाव से आपके जीवन में सकारात्मकता का संचार होगा, जो आपके विचारों के साथ आपके कर्म को भी प्रभावित करेगा।

दूसरा लाभ - आर्थिक प्रगति एवं कर्ज से मुक्ति

इस एकादशी का व्रत और पूजन आर्थिक समृद्धि में भी सहायक है। यह आपके आय के साधन को स्थायी बनाने के साथ उसमें बढ़ोत्तरी देगा। अतः इस दिन विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी का पूजन अवश्य करें।

तीसरा लाभ - मानसिक शांति की प्राप्ति

इस एकादशी पर नारायण की भक्ति करने से आपको मानसिक सुख शांति के साथ ही परिवार में होने वाले वाद-विवादों से भी मुक्ति मिलेगी।

चौथा लाभ - पापकर्मों से मुक्ति

एकादशी तिथि के अधिदेवता भगवान विष्णु हैं। एकादशी पर उनकी पूजा अर्चना करने से आपको भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलेगा तथा उनकी कृपा से भूलवश किये गए पापों से भी मुक्ति मिलेगी।

पांचवा लाभ - मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्ति

श्री हरि को समर्पित इस तिथि पर व्रत अनुष्ठान करने से आपको मृत्यु के बाद वैकुण्ठ धाम में स्थान प्राप्त होगा। इस व्रत का प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है, इसीलिए जब आप यह व्रत करेंगे, तो इसके फलस्वरूप आपको आपके कर्मों का पुण्य फल अवश्य प्राप्त होगा, जो आपको मोक्ष की ओर ले जाएगा।

तो यह थे एकादशी के व्रत से होने वाले लाभ, आशा है आपका एकादशी का यह व्रत अवश्य सफल होगा और आपको इस व्रत के सम्पूर्ण फल की प्राप्ति होगी।

इस एकादशी पर की जाने वाली पूजा विधि और अन्य महत्वपूर्ण बातें जानने के लिए जुड़े रहिये श्री मंदिर के साथ।

जया एकादशी की व्रत कथा

आज हम आपके लिए लेकर आए हैं माघ मास में आने वाली जया एकादशी की पावन व्रत कथा। इस कथा का पाठन करने मात्र से आपको जया एकादशी व्रत का फल प्राप्त हो जाएगा। अतः इस लेख को अंत तक अवश्य देखें और भगवान विष्णु की कृपा के पात्र बनें।

दोस्तों। एक समय की बात है, स्वर्ग के राजा देवराज इंद्र अपने सभापतियों के साथ नंदनवन में भोग-विलास के साथ सोमरस का आनंद ले रहे थे। इस सभा में कई अप्सराएं सुन्दर नृत्य कर रही थीं। पुष्पदन्त के नेतृत्व में श्रेष्ठ गायकों और वादकों की टोली वहां उपस्थित थी। उस वन में खिले पारिजात के सुगन्धित फूलों की खुशबू से सभा में मौजूद सभी व्यक्ति सुख की अनुभूति कर रहे थे।

इस सभा में अन्य अप्सराओं के बीच पुष्पवती नाम की एक सुन्दर अप्सरा भी नृत्य कर रही थी। वहीं प्रसिद्ध संगीतज्ञ चित्रसेन अपनी पत्नी मालिनी और पुत्र माल्यवान के साथ उस सभा में अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे थे। इस आनंद सभा में माल्यवान और पुष्पवती ने एक दूसरे को देखा और वे दोनों एक दूसरे के रूप और कला पर मोहित हो गए।

इस आकर्षण में बंधकर वे दोनों भूल गए कि वे देवराज इंद्र के सामने प्रदर्शन कर रहे हैं और इसी के चलते दोनों ही अपने सुर और ताल से भटक गए।

देवराज इंद्र ने जब माल्यवान का कर्कश गीत सुना और उसी गीत पर पुष्पवती को गलत ढंग से नृत्य करते देखा तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्हें यह समझने में देर न लगी कि यह दोनों कलाकार एक दूसरे के आकर्षण में लिप्त होकर अपनी कला का और मेरा अपमान कर रहे हैं। इस बात से क्रुद्ध इंद्र ने माल्यवान और पुष्पवती को श्राप देते हुए कहा कि-

तुम दोनों इस आनंद सभा में मुझे प्रसन्न करने का दिखावा कर रहे हो। मूर्खों! मुझे तुम दोनों के बीच का यह मोह साफ दिखाई दे रहा है। ऐसा करके तुमने अपनी कला के साथ ही मुझे भी अपमानित किया है। जाओ! मैं तुम दोनों को श्राप देता हूँ कि तुम इसी क्षण से पिशाच योनि को धारण करके मृत्यु लोक में विचरण करोगे और पति - पत्नी के रूप में अपने पापों का फल भुगतोगे।

इंद्र देव के इस कठोर श्राप से दुखी और अपने कृत्य पर लज्जित होकर माल्यवान और पुष्पवती उसी क्षण अनुपम नंदनवन से सीधे मृत्युलोक में हिमालय के निर्जन शिखर पर आ पहुंचें। इस स्थान पर माल्यवान और पुष्पवती के खाने पीने के लिए कुछ नहीं था, इस कारण से वे दोनों भूखे-प्यासे इस बर्फीले स्थान पर रहने लगे।

पिशाच के रूप में वे दोनों हिमालय की भीषण ठण्ड से पीड़ित होने लगे, क्योंकि उनके पास इस ठंड से बचने के लिए भी कोई साधन नहीं था।

एक दिन विचलित होकर ये दोनों पति-पत्नी आपस में कहने लगे कि- हमें अपने पापकर्मों का यह घोर दंड कब तक झेलना होगा और आखिर कब हमें इस पिशाच योनि से मुक्ति मिलेगी। इस तरह शोक करते हुए भूखे प्यासे उन दोनों ने पूरा दिन एक गुफा में व्यतीत कर दिया। बहुत ज्यादा ठंड होने की वजह से वे उस रात सो भी न सके और उन दोनों ने रात भर जागकर दुखी मन से नारायण का नाम लेते हुए पूरी रात बिताई।

संयोगवश इस दिन जया एकादशी की पावन तिथि थी। माल्यवान और पुष्पवती ने इस दिन निराहार रहकर प्रभु का ध्यान किया, साथ ही जया एकादशी की रात्रि में जागरण भी किया। जिसके फलस्वरूप उन्हें जया एकादशी व्रत का सम्पूर्ण फल प्राप्त हुआ और पिशाच योनि से मुक्ति मिली।

अगले दिन एक दिव्य विमान उन्हें लेने के लिए हिमालय के उस निर्जन शिखर पर आ पहुंचा। माल्यवान और पुष्पवती ने पुनः देव रूप धारण किया और वे स्वर्ग की ओर चल पड़े।

जब वे दोनों स्वर्ग पहुंचें, तब देवराज इंद्र उन्हें पुनः देव रूप में देखकर अचरज में पड़ गए। उन्होंने उन दोनों से पूछा कि - आप दोनों ने ऐसा कौन सा पुण्य किया है कि आपको मेरे दिए गए कठोर श्राप से इतनी जल्दी मुक्ति मिल गई और अब आपको पुनः स्वर्ग की प्राप्ति हुई है। तब माल्यवान ने इंद्र को बीती रात का पूरा वर्णन सुनाया और कहा कि यह सब श्री हरि की कृपा है, हमने अनजाने में विष्णु जी की प्रिय जया एकादशी का व्रत किया, जिसके फलस्वरूप हमें पिशाच योनि से मुक्ति मिली है।

यह सुनकर देवराज इंद्र प्रसन्न हुए और माल्यवान और पुष्पवती को पुनः स्वर्ग में सम्मानपूर्वक उनका स्थान प्रदान किया।

तो भक्तों। यह थी जया एकादशी की पुण्यदायिनी व्रत कथा। जिस तरह माल्यवान और पुष्पवती को इस व्रत का सम्पूर्ण फल प्राप्त हुआ, उसी तरह आपको भी जया एकादशी का पुण्य मिले।

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Published by Sri Mandir·February 3, 2025

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