वृश्चिक संक्रांति  | Vrishchik Sankranti 2024 Kab Hai, Shubh Muhurat, Puja Vidhi

वृश्चिक संक्रांति 2024

वृश्चिक संक्रांति 2024: जानें कब है, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि। इस पवित्र दिन के विशेष लाभ पाएं!


वृश्चिक संक्रांति कब है? | Vrishchik Sankranti 2024

कार्तिक मास में जब भगवान सूर्य 'तुला राशि' से 'वृश्चिक राशि' में गोचर करते हैं, तो उस संक्रांति को वृश्चिक संक्रांति कहा जाता है। इस संक्रांति के अवसर पर सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद सूर्य देव की पूजा करें। तांबे के लोटे में पानी डालकर उसमें लाल चंदन, रोली, हल्दी और सिंदूर मिलाकर भगवान सूर्य को अर्पित करें।

वृश्चिक संक्रांति कब है?

  • वृश्चिक संक्रांति कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर 16 नवंबर, शनिवार को मनाई जाएगी।
  • वृश्चिक संक्रांति पुण्य काल सुबह 06 बजकर 16 मिनट से सुबह 07 बजकर 41 मिनट तक रहेगा।
  • वृश्चिक संक्रांति महा पुण्य काल सुबह 06 बजकर 16 मिनट से सुबह 07 बजकर 41 मिनट तक रहेगा।
  • वृश्चिक संक्रांति का क्षण सुबह 07 बजकर 41 मिनट पर रहेगा।
  • जिसकी अवधि 01 घण्टा 25 मिनट रहेगी।
  • संक्रांति करण: बालव
  • संक्रांति चन्द्रराशि: वृषभ
  • संक्रांति नक्षत्र: कृत्तिका (मिश्र संज्ञक)

वृश्चिक संक्रांति के शुभ मुहूर्त

  • इस दिन ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 04 बजकर 31 मिनट से प्रातः 05 बजकर 23 मिनट तक रहेगा।
  • प्रातः सन्ध्या मुहूर्त प्रात: 04 बजकर 57 मिनट से सुबह 06 बजकर 16 मिनट तक होगा।
  • अभिजित मुहूर्त दिन में 11 बजकर 21 मिनट से 12 बजकर 04 मिनट तक रहेगा।
  • विजय मुहूर्त दिन में 01 बजकर 32 मिनट से 02 बजकर 15 मिनट तक रहेगा।
  • इस दिन गोधूलि मुहूर्त शाम में 05 बजकर 09 मिनट से 05 बजकर 36 मिनट तक रहेगा।
  • सायाह्न सन्ध्या काल शाम में 05 बजकर 09 मिनट से 06 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।
  • अमृत काल शाम में 05 बजकर 19 मिनट से 06 बजकर 45 मिनट तक रहेगा।
  • निशिता काल मुहूर्त रात 11 बजकर 17 मिनट से 17 नवम्बर को मध्यरात्रि 06 बजकर 45 मिनट तक रहेगा।

इस दिन विशेष योग भी बन रहे हैं-

  • सर्वार्थ सिद्धि योग शाम 07 बजकर 28 मिनट से प्रारंभ होकर 17 नवंबर की सुबह 06 बजकर 17 मिनट तक रहेगा।
  • अमृत सिद्धि योग शाम 07 बजकर 28 मिनट से प्रारंभ होकर 17 नवंबर की सुबह 06 बजकर 17 मिनट तक रहेगा।

हमारी कामना है कि आपको इस पर्व का संपूर्ण फल प्राप्त हो, और भगवान सूर्य व भगवान विश्वकर्मा की कृपा से जीवन में सुख सम्पन्नता बनी रहे।

चलिए अब जानते हैं,

  • वृश्चिक संक्रांति का महत्व क्या है?
  • इस दिन विश्वकर्मा पूजा करने का विधान क्यों है?
  • वृश्चिक संक्रांति के अनुष्ठान एवं लाभ क्या हैं?

वृश्चिक संक्रांति का महत्व क्या है?

सभी संक्रांतियों की तरह वृश्चिक संक्रांति का भी विशेष महत्व है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करके धर्म-कर्म दान-पुण्य आदि करते हैं। इसके अलावा, वृश्चिक संक्रांति पर जातक अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए भी कई अनुष्ठान करते हैं। वृश्चिक संक्रांति पर सूर्यदेव की पूजा करने और श्रद्धापूर्वक सूर्य मंत्रों का जप करने से असंख्य पुण्यफल प्राप्त होते हैं।

इस दिन विश्वकर्मा पूजा करने का विधान क्यों है?

वृश्चिक सक्रांति के अवसर पर भगवान विश्वकर्मा की उपासना करने का भी विधान है। विश्वकर्मा पूजा का ये पर्व देश के कई क्षेत्रों में मनाया जाता है। कहा जाता है कि देवों के महल और शस्त्र आदि का निर्माण विश्वकर्मा द्वारा ही किया गया था। पौराणिक मान्यता ये है कि ब्रह्मा जी के आदेश पर ही भगवान विश्वकर्मा ने इस दुनिया की रचना की थी।

इस दिन कारखानों और कार्यालयों में भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापना करके विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन लोग अपने घरों में लोहे की चीज़ों, जैसे तराजू, गाड़ी, साइकिल आदि को साफ करके, उसे गंगा जल से स्नान कराकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं, और भगवान विश्वकर्मा से सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

कहते हैं कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा से कार्यक्षेत्र में तरक्की मिलती है।

वृश्चिक संक्रांति के अनुष्ठान एवं लाभ क्या हैं?

  • इस दिन गंगा जी व अन्य पवित्र नदियों में स्नान करके भगवान सूर्य को अर्घ्य देने से महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।
  • इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से नौकरी व व्यवसाय में और सफलता मिलती है।
  • वृश्चिक संक्रांति पर 'ॐ आदित्याय नमः' का जाप करने से भगवान सूर्य की विशेष कृपा मिलती है, और नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है।
  • सूर्य भगवान की कृपा पाने के लिए वृश्चिक संक्रांति के दिन दान करना भी असंख्य फल देने वाला माना गया है।
  • इस दिन प्रातः के समय तांबे की कोई वस्तु, गुड़, जौ और लाल फूल का दान करने का विशेष महत्व है।
  • भक्तों, सूर्य के कुंडली में मजबूत होने से जीवन में आरोग्य, यश, प्रसिद्धि और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है, ऐसे में वृश्चिक संक्रांति पर आप सच्चे मन से पूजा अर्चना करके सूर्य देव को प्रसन्न कर सकते हैं।

वृश्चिक संक्रांति की पूजा विधि

ज्योतिष शास्त्र में, सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति के नाम से जाना जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पूरे साल में बारह संक्रान्तियां होती हैं। हर राशि में सूर्य के प्रवेश करने पर उस राशि का संक्रांति पर्व मनाया जाता है। संक्रांति पर सूर्य देव की पूजा का विधान है।

इस माह 16 नवंबर, शनिवार को सूर्यदेव वृश्चिक राशि में गोचर कर रहें हैं, और इस दिन को वृश्चिक संक्रांति के नाम से मनाया जाएगा।

वृश्चिक संक्राति पर सूर्यदेव की पूजा विधि

  • इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं, और पास के किसी जलाशय या नदी में स्नान करें।
  • अगर ऐसा संभव न हों तो आप घर पर ही पानी में तिल और गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं।
  • स्नान करते समय मन ही मन भगवान सूर्य का स्मरण करें, स्नान के बाद साफ वस्त्र पहनें।
  • यदि आप इस दिन व्रत रखना चाहते हैं, तो सूर्यदेव को नमन करके व्रत का संकल्प लें, और तांबे के कलश में तिल, जल और फूल मिलाकर सूर्य भगवान को अर्घ्य दें।
  • अर्घ्य देते समय ‘ॐ सूर्याय नमः’ मंत्र का जाप करते रहें।
  • इसके बाद पूजा स्थल को साफ करके, यहां नियमित रूप से की जाने वाली पूजा करें और सभी देवों को धुप-दीप, पुष्प, अक्षत, भोग समेत संपूर्ण पूजा सामग्री अर्पित करें।
  • अब सर्वदेवों को नमन करके अपने घर परिवार के लिए सुख- समृद्धि और शांति की कामना करें।
  • इसके बाद आप अपनी क्षमता के अनुसार तिल-गुड़ के लड्डू, अन्न (धान और गेहूं) और वस्त्र का दान करके अपने व्रत को पूरा करें।
  • वृश्चिक संक्रांति को कर्नाटक और उड़िसा में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां पर इस दिन मां लक्ष्मी का आभार जताने के लिए उनकी पूजा की जाती है, और ताजे धान और गेहूं की बालियां चढ़ाई जाती हैं।
  • चूँकि शास्त्रों में हर संक्रांति की तिथि एवं समय को बहुत महत्व दिया गया है, इस दिन पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नानादि करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है, इसीलिए यह कुछ पण्य कार्य इस दिन अवश्य करें।

वृश्चिक संक्रांति: सावधानियाँ

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य का किसी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है। इस प्रकार सूर्य के वृश्चिक राशि में प्रवेश करने को वृश्चिक संक्रांति कहते हैं। इस दिन जहां सूर्य देव की पूजा अर्चना करने से अनेकों फल प्राप्त होते हैं, वहीं कुछ ऐसे कार्य हैं, जिन्हें संक्रांति में करना वर्जित माना जाता है।

वृश्चिक संक्रांति पर क्या करें?

  • वृश्चिक संक्रांति के दिन सूर्य देव को अर्घ्य अवश्य दें और साथ में ‘ऊँ सूर्याय नमः’ मंत्र का जाप करें।
  • वृश्चिक संक्रांति के दिन भगवान शिव की पूजा करें, इससे आपको उनकी कृपा प्राप्त होगी।
  • वृश्चिक संक्रांति के दिन पीपल के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाएं।
  • इस दिन किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति को दान-दक्षिणा देने से भी आपका भाग्योदय होगा।
  • इस दिन जिन लोगों का जन्म हुआ है वह अपने माता-पिता का आशीर्वाद ज़रूर लें।
  • पितृ तर्पण और श्राद्ध करने के लिए भी यह दिन खास है।

वृश्चिक संक्रांति पर क्या न करें?

  • वृश्चिक संक्रांति पर शुभ-अशुभ मुहूर्त और पंचांग देखे बिना किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत न करें।
  • हिन्दू धर्म में अपने पिता का सम्मान करना श्रेष्ठकर माना जाता है, खासकर वृश्चिक संक्रांति के दिन इस बात का ध्यान जरूर रखें। पिता का अपमान करने वालों का सूर्य ग्रह कमजोर होता है।
  • इस दिन भूल से भी किसी जरूरतमंद को ठेस न पहुंचाएं और अपनी क्षमता के अनुसार दान करना न भूलें।
  • वृश्चिक संक्रांति के दिन सूर्योदय के बाद देर तक सोना अशुभ फलों की प्राप्ति और बाधा का कारक बनता है। इस शुभ दिन पर देर तक न सोने से बचें।

भक्तों यह थी वृश्चिक संक्रांति पर ध्यान रखें जाने वाली सावधानियों की जानकारी। हम आशा करते हैं कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी।

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