वाराणसी में घूमने की जगह ढूंढ रहे हैं? जानिए उन आध्यात्मिक और ऐतिहासिक स्थलों के बारे में, जो काशी की सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रखते हैं और हर श्रद्धालु को एक बार जरूर देखना चाहिए।
कभी सोचा है कि एक शहर जहाँ हर गली में घंटियों की गूंज हो, जहाँ हर मोड़ पर कोई दीपक जल रहा हो, और जहाँ हर सांस में कोई मंत्र बसा हो, वो कैसा होगा? ऐसा ही एक शहर है वाराणसी, जो दुनिया का सबसे पुराना जीवित शहर और भारत की आध्यात्मिक राजधानी माना जाता है। आज इस आर्टिकल में हम वाराणसी में मौजूद प्रमुख धार्मिक स्थलों के बारे में जानेंगे।
घूमने की जगहों की बात करें तो वाराणसी सिर्फ घाटों तक सीमित नहीं है। यहाँ के मंदिर इस शहर की आत्मा हैं। इन मंदिरों में इतिहास भी है, भक्ति भी, और ऐसी शांति भी जो सीधे दिल को छू जाए। इस आर्टिकल में हम जानेंगे वाराणसी के उन प्रमुख मंदिरों के बारे में, जहां हर श्रद्धालु को ज़रूर जाना चाहिए।
स्थान: विश्वनाथ गली, गंगा घाट के पास
प्रमुख देवता: भगवान शिव (ज्योतिर्लिंग के रूप में)
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक
वर्तमान मंदिर का निर्माण: 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा
कई बार मुगलों द्वारा ध्वस्त किया गया, लेकिन हर बार पुनः स्थापित हुआ
"काशी विश्वनाथ कॉरिडोर" हालिया आकर्षण
सावन, महाशिवरात्रि पर विशेष भीड़
मंदिर परिसर में अब गंगा से सीधे पहुँच की सुविधा
काशी विश्वनाथ मंदिर केवल वाराणसी ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारत में भगवान शिव के सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। यह मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख है, जिसे देखने मात्र से मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है। कई बार आक्रांताओं ने इस मंदिर को नष्ट किया, लेकिन हर बार यह फिर से खड़ा हुआ। 1780 में मराठा महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने इसका पुनर्निर्माण कराया। हाल ही में बना काशी विश्वनाथ कॉरिडोर गंगा घाट से मंदिर तक एक सीधा और सुंदर रास्ता बनाता है। यहाँ की आरती शिव लिंग पर जलाभिषेक और भक्ति भाव में डूबे भक्तों का दृश्य किसी भी श्रद्धालु को अभिभूत कर देता है।
स्थान: दुर्गाकुंड के पास
स्थापना: संत तुलसीदास द्वारा 16वीं शताब्दी में
प्रमुख देवता: हनुमान जी (संकट मोचन स्वरूप में)
मंगलवार और शनिवार को विशेष भीड़
मंदिर परिसर में भव्य हनुमान चालीसा पाठ और कीर्तन
भक्तों की मान्यता: यहाँ आने से मानसिक भय और बाधाएँ दूर होती हैं
संकट मोचन मंदिर की स्थापना स्वयं गोस्वामी तुलसीदास ने की थी, जिसका संकेत उन्हें एक स्वप्न में मिला था। कहा जाता है कि स्वयं भगवान हनुमान ने उन्हें यहाँ दर्शन दिए थे। मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति को संकटों का नाश करने वाला स्वरूप माना जाता है। विशेषकर मंगलवार और शनिवार को यहाँ भारी भीड़ रहती है। मंदिर परिसर में नियमित रूप से हनुमान चालीसा का सामूहिक पाठ होता है, जिसमें भाग लेने से भक्तों को बल, ऊर्जा और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। आपको बता दें कि 2006 में हुए आतंकी हमले के बावजूद श्रद्धालुओं की आस्था अडिग रही, और अगले ही दिन मंदिर पुनः खुल गया। यह स्थान आज भी साहस और श्रद्धा का प्रतीक बना हुआ है।
स्थान: दुर्गा कुंड क्षेत्र
प्रमुख देवी: माँ दुर्गा (शक्ति रूप में)
निर्माण: 18वीं शताब्दी में बंगाली महारानी द्वारा
सरोवर: मंदिर के पास स्थित "दुर्गा कुंड"
मंदिर की वास्तुकला: नागर शैली, लाल रंग में निर्मित
नवरात्र में विशेष पूजन व भीड़
मंदिर में शेर पर सवार माँ दुर्गा की भव्य प्रतिमा विराजमान
दुर्गा मंदिर को 'लाल मंदिर' भी कहा जाता है क्योंकि इसका पूरा ढांचा लाल रंग के पत्थरों से बना है। बंगाल की महारानी ने इसे 18वीं शताब्दी में बनवाया था। मंदिर के सामने स्थित दुर्गा कुंड, जहाँ अब हर वर्ष नौका प्रतियोगिता भी होती है, कभी धार्मिक अनुष्ठानों का मुख्य केंद्र हुआ करता था। माँ दुर्गा की मूर्ति शेर पर सवार होकर युद्ध मुद्रा में दिखाई देती है, जो शक्ति और विजय का प्रतीक है। नवरात्र के समय यहाँ हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और नौ दिनों तक विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
स्थान: कोतवाली क्षेत्र
प्रमुख देवता: काल भैरव (भगवान शिव का रौद्र रूप)
मान्यता: काशी के "कोतवाल" कहे जाते हैं
काल भैरव के दर्शन के बिना काशी की यात्रा अधूरी होती है।
काल भैरव को काशी का रक्षक और न्यायाधीश माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जब तक कोई भक्त काल भैरव के दर्शन नहीं करता, उसकी काशी यात्रा अधूरी मानी जाती है। यहाँ भगवान को भोग में शराब चढ़ाई जाती है, जो अन्यत्र दुर्लभ परंपरा है। मंदिर में प्रवेश करते ही एक रहस्यमयी ऊर्जा का अनुभव होता है जो साधकों को तांत्रिक साधनाओं की ओर आकर्षित करता है। मंदिर के बाहर छोटी दुकानों में काल भैरव की तस्वीरें, काले धागे और रक्षा कवच मिलते हैं जिन्हें पहनना शुभ माना जाता है। यह स्थान डर, भ्रम और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।
स्थान: दुर्गाकुंड के पास
समर्पण: संत तुलसीदास को
विशेषता: यहीं उन्होंने रामचरितमानस की रचना की थी
निर्माण: 1964 में, श्वेत संगमरमर से
दीवारों पर उकेरे गए हैं रामचरितमानस के दोहे
मंदिर का वातावरण अत्यंत शांत, स्वच्छ और साहित्यिक
तुलसी मानस मंदिर का ऐतिहासिक और साहित्यिक महत्व अपार है। कहा जाता है कि यहीं पर संत तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की थी, जो आज भी भारत के कोने-कोने में पढ़ी जाती है। मंदिर श्वेत संगमरमर से निर्मित है और इसकी दीवारों पर रामायण के दोहे और चौपाइयाँ अंकित की गई हैं। मंदिर के भीतर भगवान राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान की सुंदर मूर्तियाँ स्थित हैं। यह स्थान उन भक्तों के लिए विशेष है जो रामभक्ति और साहित्य में रुचि रखते हैं। मंदिर परिसर में तुलसीदास जी की एक मूर्ति भी स्थापित है जो भक्ति साहित्य की गरिमा को दर्शाती है।
स्थान: काशी विश्वनाथ मंदिर के पास
प्रमुख देवी: माँ अन्नपूर्णा (अन्न की देवी)
मान्यता: शिव को अन्न का दान देने वाली देवी
मंदिर दर्शन के बाद प्रसाद स्वरूप अन्न वितरण
धनतेरस पर विशेष पूजन होता है
श्रद्धालु यहाँ "अन्नदान" करने की परंपरा निभाते हैं
माँ अन्नपूर्णा को काशी की माता माना जाता है जो हर प्राणी को भोजन और पोषण प्रदान करती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने स्वयं माँ अन्नपूर्णा से अन्न माँगा था। इस मंदिर में दर्शन के पश्चात श्रद्धालुओं को प्रसाद स्वरूप अन्न प्रदान किया जाता है। यहाँ प्रतिदिन सैकड़ों भूखे लोगों को भोजन कराया जाता है और अन्नदान को सबसे बड़ा पुण्य माना जाता है। धनतेरस पर विशेष रूप से इस मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ती है, जहाँ माँ के हाथों में सोने की थाली में अन्न लिए हुए मूर्ति की पूजा होती है। यह मंदिर दया, सेवा और मातृत्व का प्रतीक है।
स्थान: महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ परिसर में स्थित
विशेषता: इसमें देवी की मूर्ति नहीं, बल्कि अखंड भारत का संगमरमर से बना भौगोलिक नक्शा स्थापित है
निर्माण: बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने करवाया था
इस मंदिर का उद्धाटन महात्मा गांधी ने साल 1936 में किया था
यह मंदिर भारत राष्ट्र की एकता और अखंडता का प्रतीक माना जाता है
भारत माता मंदिर वाराणसी का एक अनोखा मंदिर है, जहां देवी की मूर्ति नहीं बल्कि भारतवर्ष का विशाल भौगोलिक नक्शा पूजा का केंदहै। यह नक्शा संगमरमर पर उकेरा गया है और पूरे भारतवर्ष के पर्वत, नदियाँ और सीमाएँ उसमें उभरी हुई हैं। यह मंदिर राष्ट्रीय एकता, अखंडता और देशभक्ति का प्रतीक है। मंदिर का उद्घाटन स्वयं महात्मा गांधी ने 1936 में किया था और उन्होंने इसे राष्ट्र की आत्मा कहा था। धार्मिक आस्था से अलग यह मंदिर भावनात्मक और सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है।
स्थान: वाराणसी के भेलूपुर क्षेत्र में स्थित
प्रमुख देवता: भगवान विष्णु
निर्माण: हाल ही में भक्तों के सहयोग से हुआ
मंदिर की संरचना आधुनिक और भव्य है, लेकिन धार्मिक भावना से परिपूर्ण
यहाँ नियमित रूप से वैदिक मंत्रोच्चार और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ होता है
न्यू विष्णुपद मंदिर वाराणसी का एक नव-निर्मित लेकिन अत्यंत भव्य मंदिर है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और इसकी संरचना पारंपरिक और आधुनिक वास्तुकला का सुंदर संगम है। यहाँ आने वाले भक्त विष्णु सहस्त्रनाम और अन्य वैदिक स्तुतियों का पाठ करके प्रभु की आराधना करते हैं। इस मंदिर का वातावरण अत्यंत शांत और दिव्य होता है। यह उन श्रद्धालुओं के लिए विशेष है जो वाराणसी में शांति और सादगी के साथ भक्ति का अनुभव करना चाहते हैं।
वाराणसी शहर सिर्फ मोक्ष नहीं देता, बल्कि ज़िंदगी को देखने का नया दृष्टिकोण भी देता है। इन मंदिरों के दर्शन आपको विरासत, संस्कृति और आस्था से जोड़ते हैं। तो अगली बार जब भी आप बनारस की यात्रा पर जाएं, तो इन मंदिरों को अपनी लिस्ट में ज़रूर शामिल करें।
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