
दामोदर अष्टकम् के पाठ से भक्त को भगवान श्री कृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र पापों का नाश, मन की शांति, भक्ति भाव और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। जानिए इसका सम्पूर्ण पाठ और महत्व।
दामोदर अष्टकम् भगवान श्रीकृष्ण के दामोदर रूप को समर्पित एक अत्यंत पवित्र और भक्तिपूर्ण स्तोत्र है। इसमें बाल श्रीकृष्ण के कमर में माला बाँधकर बाँधने की लीला का वर्णन किया गया है। इसका पाठ करने से भक्ति, प्रेम, शांति और मानसिक सुख की प्राप्ति होती है। श्रद्धा और भक्ति से इसका जप करने पर श्रीकृष्ण कृपा सदा बनी रहती है।
दामोदर अष्टकम भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित एक प्रसिद्ध प्रार्थना है। इसे दामोदरस्ताकम नाम से भी जाना जाता है। 8 श्लोकों वाले इस स्तोत्र में श्रीकृष्ण जी की लीलाओं का वर्णन किया गया है। पुराणों के अनुसार, दामोदर अष्टकम को सत्यव्रत मुनि द्वारा कहा गया और श्री व्यासदेव जी द्वारा इसे लिखा गया है। दामोदर भगवान विष्णु के 12 महत्वपूर्ण नामों में से एक है। कहते हैं विष्णु जी के अवतार श्री कृष्ण जी को बचपन में उनकी मां यशोदा छाछ बिलौने वाली खंभी से बांध देती थी, जिससे उनका नाम दामोदर पड़ा। संस्कृत में दामोदर का शाब्दिक अर्थ पेट के चारों ओर बंधी रस्सी होता है।
कार्तिक का महीना भगवान श्री कृष्ण को अति प्रिय माना जाता है। कार्तिक माह में वैष्णव प्रतिदिन शाम के समय दामोदर अष्टकम का पाठ करते हैं और दीप दान करते हैं। कहते हैं कि इस माह के दौरान हर व्यक्ति को खूब भजन करना चाहिए, क्योंकि इस दौरान किया गया पूजा-पाठ दोगुना फल प्रदान करता है। कार्तिक मास के सभी दिनों में दामोदर अष्टकम के जाप के साथ भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित विशेष अवसरों पर भी इसका जाप किया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक मास में दामोदर अष्टक का पाठ करने से भगवान श्री कृष्ण जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
भगवान श्री कृष्ण जी को प्रसन्न करने के लिए भक्ति पूर्वक दामोदर अष्टक का जाप किया जाता है।
दामोदर अष्टक के जाप के साथ रोजाना तुलसी जी के समक्ष दीप दान करने से मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
दामोदर अष्टकम का जाप करने से जीवनसाथी के साथ प्रेम संबंधों में मधुरता आती है।
नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम्। यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या॥ 1
अर्थ: मैं सर्वेश्वर सच्चिदानंद स्वरूप को अपनी श्रद्धा अर्पित करता हूँ, जिनके गालों को छूते हुए कुंडल यानी बालियां हैं, जो गोकुल नाम के दिव्य धाम में परम शोभायमान हैं, जिसने गोपियों द्वारा छिपाए गए मक्खन के बर्तन को तोड़ दिया और मां यशोदा के डर से दूर भाग गया, लेकिन आखिर में पकड़ा गया, ऐसे भगवान दामोदर को मैं अपना विनम्र प्रणाम अर्पित करता हूं।
रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं कराम्भोज-युग्मेन सातङ्कनेत्रम्। मुहुःश्वास कम्प-त्रिरेखाङ्ककण्ठ स्थित ग्रैव-दामोदरं भक्तिबद्धम्॥ 2
अर्थ: मां के हाथ में लाठी देख जो रोते-रोते बार-बार अपने दोनों हाथों से आंखों को मसल रहे हैं, उनकी आंखों में डर है, वे तेज तेज सिसकियां ले रहे हैं, जिस कारण उनके त्रिरेखा युक्त गर्दन में पड़ी मोतियों की माला हिल रही है, जिनका पेट रस्सी से नहीं बल्कि मां यशोदा के वात्सल्य प्रेम से बंधा है, मैं उन परमेश्वर भगवान दामोदर को नमन करता हूं।
इतीद्दक्स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्। तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे॥ 3
अर्थ: जो ऐसी बाल्य-लीलाओं से गोकुल वासियों को आनंद व सरोवरों में डुबोते रहते हैं, जो अपने ऐश्वर्य-ज्ञान में मग्न अपने भावों के प्रति यह तथ्य प्रकाशित करते हैं कि उन्हें भय-आदर की धारणाओं से मुक्त अंतरंग प्रेमी भक्तों द्वारा ही जीता जा सकता है, मैं उन भगवान दामोदर को कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं।
वरं देव! मोक्षं न मोक्षावधिं वा न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह। इदं ते वपुर्नाथ गोपाल बालं सदा मे मनस्याविरस्तां किमन्यैः॥ 4
अर्थ: हे प्रभु, अगर आप सभी प्रकार के वरदान दे सकते हैं तो मैं आपसे न तो सांसारिक जीवन से मुक्ति की आशा करता हूं, न ही मुझे आपके स्वर्गीय बैकुंठ में कोई स्थान चाहिए और न ही भक्ति द्वारा कोई अन्य वरदान मांगता हूं। हे प्रभु, मेरी तो बस इतनी ही इच्छा है कि आपका यह बाल गोपाल रूप मेरे दिल में हमेशा प्रकाशित रहे, इसके अलावा मुझे किसी अन्य वरदान की इच्छा नहीं है।
इदं ते मुखाम्भोजमत्यन्तनीलै- र्वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश्च गौप्या। मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे मनस्याविरस्तामलं लक्षलाभैः॥ 5
अर्थ: हे प्रभु! आपका घुंघराले बालों से घिरा हुआ श्याम रंग का मुखकमल जो मां यशोदा द्वारा बार बार चुम्बन किया जा रहा है और आपके होंठ बिम्बफल की तरह लाल हैं, आपका ये अत्यंत सुंदर कमल रूपी मुख मेरे दिल में हमेशा विराजित रहे। इसके अतिरिक्त मुझे लाखों प्रकार के दूसरे लाभों (वरदानों) की कोई आवश्यकता नहीं।
नमो देव दामोदरानन्त विष्णो! प्रसीद प्रभो! दुःख जालाब्धिमग्नम्। कृपाद्दष्टि-वृष्टयातिदीनं बतानु गृहाणेश मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः॥ 6
अर्थ: हे भगवान, मैं आपको नमन करता हूं, हे दामोदर, हे अनंत, हे विष्णु, हे नाथ, मेरे प्रभु, मुझ पर प्रसन्न हो जाइए, मैं दुखों के सागर में डूबा जा रहा हूं। मेरे ऊपर अपनी कृपा दृष्टि बरसाकर मुझ दीन-हीन शरणागत का उद्धार कीजिए और अपनी अमृतमय दृष्टि से मेरी रक्षा कीजिए।
कुबेरात्मजौ बद्धमूर्त्यैव यद्वत् त्वया मोचितौ भक्तिभाजौकृतौ च। तथा प्रेमभक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ न मोक्षे गृहो मेऽस्ति दामोदरेह॥ 7
अर्थ: हे भगवान दामोदर, जिस प्रकार आपने माता यशोदा द्वारा ओखल में बंधने के बाद भी कुबेर के पुत्रों (मणिग्रीव तथा नलकुवर) को मोक्ष दिया, वे एक पेड़ होने के अभिशाप से मुक्त हो गए और आपकी प्रेमपूर्ण भक्ति के लिए आपकी शरण में आ गए, उसी प्रकार मुझे भी आप अपनी प्रेम भक्ति प्रदान कर दीजिए, यही मेरा एकमात्र आग्रह है, मुझे किसी भी प्रकार के मोक्ष की इच्छा नहीं है।
नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने। नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै नमोऽनन्त लीलाय देवाय तुभ्यम्॥ 8
अर्थ: हे भगवान दामोदर, मैं सबसे पहले उस दीप्तिमान रस्सी को प्रणाम करता हूं जिसने आपके पेट (उदर) को बांध दिया था, जहां से भगवान ब्रह्मा जी ने पूरे ब्रह्मांड का निर्माण किया था, आपकी प्रिय राधा रानी के चरण कमलों को मैं कई बार नमन करता हूं और अनंत लीलाएं करने वाले आप परमेश्वर को मेरा प्रणाम है।
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