दीपावली की सबसे प्रचलित कथा

दीपावली की सबसे प्रचलित कथा

माता लक्ष्मी की कृपा पानी का पर्व


दीपावली की सबसे प्रचलित कथा (Deepawali Ki Katha)

दीपावली के पर्व से जुड़ी अनेकों पौराणिक कथायें हैं जिनमे से एक कथा सबसे सबसे लोकप्रिय एवं प्रचलित कथा है। जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं। आज हम पढेंगे आस्था और भक्ति से परिपूर्ण माता लक्ष्मी की दीपावली से सम्बंधित अद्भुत चमत्कारिक कथा -

किसी गांव में एक साहूकार रहता था। उसकी बेटी हर दिन पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने के लिए जाती थी। जिस पीपल के पेड़ पर वह जल चढ़ाती थी, उस पेड़ पर मां लक्ष्मी जी वास करती थीं। एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से कहा कि, “क्या आप मेरी सहेली बनोगी”

लड़की ने उत्तर में कहा कि, “मैं आपको अपने पिता से पूछकर बताऊंगी।” घर आकर साहूकार की बेटी ने अपने पिता को पूरी बात बताई। बेटी की बात सुनकर साहूकार ने कहा, “ठीक है बेटी, तुम उनसे मित्रता कर लो।” दूसरे दिन साहूकार की बेटी ने लक्ष्मीजी को अपनी सहेली बना लिया।

इस प्रकार दोनों की बात शुरू हो गई और उनकी मित्रता गहरी होती चली गई। एक दिन लक्ष्मीजी अपनी सहेली को अपने घर ले आईं। लक्ष्मी जी ने अपने घर में अपनी सखी का खूब आदर किया।

उसे सोने की थाली में पकवान परोसे और सोने की चौकी पर ही भोजन कराया, साथ ही जाते समय लक्ष्मीजी ने उसे दुशाला भी भेंट की।

जब साहूकार की बेटी अपने घर लौटने लगी तो लक्ष्मीजी ने उससे पूछा, कि वह उन्हें कब अपने घर बुलाएगी। साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी को अपने घर बुला लिया, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह इस असमंजस में थी कि क्या वह अपनी सखी का स्वागत अच्छे से कर पाएगी?

साहूकार अपनी बेटी की मनोदशा को समझ गया। उसने बेटी को समझाते हुए कहा कि, “बेटी तुम परेशान मत हो और तुरंत घर की साफ-सफाई कर, चौका मिट्टी से लीप दो। साथ ही तुम लक्ष्मी जी के नाम पर, चार बत्ती वाला दीया भी जला दो”।

उसी समय संयोगवश, एक चील साहूकार के घर के ऊपर से गुज़री और एक नौलखा हार उनके घर में गिरा कर चली गई। जब साहूकार की बेटी को यह हार मिला तो उसने उसे बेच दिया और उससे मिलने वाले धन से भोजन की तैयारियों में लग गई।

थोड़ी ही देर बाद, जब मां लक्ष्मी भगवान गणेश के साथ साहूकार के घर आईं तो उसकी बेटी और अपनी सखी द्वारा किए गए प्रबंधों और निष्ठा से अत्यंत प्रसन्न हो गईं।

इसके बाद उन्होंने साहूकार और उसकी बेटी पर अपार कृपा बरसाई और फिर वहां से चली गई। लक्ष्मी जी के जाने के बाद भी उनके घर में फिर कभी भी किसी चीज़ की कमी नहीं हुई।

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