गायत्री जयन्ती 2025 पर मां गायत्री की आराधना करें। जानें पूजा विधि, व्रत नियम, शुभ मुहूर्त और इस दिन के धार्मिक महत्व की संपूर्ण जानकारी।
गायत्री जयंती देवी गायत्री के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाई जाती है। यह ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को होती है। इस दिन गायत्री मंत्र का जप, हवन और पूजा करने से ज्ञान, शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
भक्तों नमस्कार! श्री मंदिर पर आपका स्वागत है। धर्म ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादधी तिथि को देवी गायत्री प्रकट हुई थीं। इसी उपलक्ष्य में गायत्री जयंती का पर्व मनाया जाता है। मां गायत्री को वेदमाता कहा जाता है, यानि सभी वेदों की उत्पत्ति इन्हीं से हुई है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:44 AM से 04:26 AM तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:05 AM से 05:07 AM तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:29 AM से 12:24 PM तक |
विजय मुहूर्त | 02:13 PM से 03:08 PM तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:45 PM से 07:06 PM तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:47 PM से 07:49 PM तक |
अमृत काल | 02:26 AM, 07 जून से 04:14 AM, 07 जून तक |
निशिता मुहूर्त | 11:36 PM से 12:17 AM, 07 जून तक |
रवि योग | 05:07 AM से 06:34 AM |
आज हम इस लेख में गायत्री माता को समर्पित गायत्री जयंती के महत्व के बारे में बताएंगे, साथ ही हम उन कार्यों के बारे में भी बात करेंगे जिनको करने से आपको गायत्री माँ का आशीर्वाद प्राप्त होगा। तो चलिए इस दिन के महत्व को विस्तारपूर्वक जानते हैं।
सनातन धर्म में माँ गायत्री जयंती का विशेष महत्व है, मान्यताओं के अनुसार, गायत्री जयंती के दिन ही माता गायत्री का जन्म हुआ था। माता गायत्री को सभी वेदों की जननी माना गया है। मान्यताओं के अनुसार, माता गायत्री के पांच मुख हैं, जो कि पृथ्वी के पांच तत्वों यानी जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश के सूचक हैं। शास्त्रों के अनुसार, इस संसार के हर जीव में प्राण शक्ति के रूप में मां गायत्री विद्यमान हैं। माँ गायत्री को विश्व माता और देव माता का भी स्थान दिया गया है।
वेदों में बताया गया है कि स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि यदि कोई ईश्वर को प्राप्त करना चाहता हो तो उसे गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। मन की शांति एवं तनाव से मुक्ति के लिए गायत्री मंत्र के जाप को अत्यंत ही लाभकारी माना गया है। इस मंत्र के उच्चारण से दुख, शारीरिक कष्ट, दरिद्रता, पाप आदि दूर होते हैं।
इस दिन आप गायत्री माता की पूजा करते समय गायत्री मंत्र का उच्चारण अवश्य करें। इस दिन किसी गरीब व्यक्ति की सहायता करें। आप इस दिन गायत्री माता के मंदिर में दर्शन करने भी जा सकते हैं। इस दिन अपने गुरुजनों का अपमान कदापि न करें और मांस-मदिरा का सेवन न करें।
वेदों में माँ गायत्री की पूजा को अत्यंत फलदायी माना गया है। गायत्री जयंती पर गायत्री माता की पूजा-पाठ करने का भी विशेष महत्व है। आज हम आपके लिए गायत्री जयंती की संपूर्ण पूजा विधि लेकर आए हैं। तो चलिए जानते हैं कि इस पर्व पर गायत्री माता का आशीष प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा विधि से जुड़ी संपूर्ण जानकारी।
गायत्री जयंती के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर लें। संभव हो तो गंगा नदी में स्नान करें वरना घर के ही पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें मिला लें। इसके बाद साफ वस्त्र धारण कर सूर्यदेव को तांबे के पात्र से अर्घ्य दें। अब आप किसी गायत्री मंदिर या घर के किसी भी शुद्ध पवित्र स्थान पर पीले कुशा के आसन पर सुखासन की मुद्रा में बैठ जाएं।
इसके बाद माँ गायत्री का आह्वान करते हुए मां गायत्री का प्रतीक चित्र या मूर्ति सुसज्जित पूजा वेदी पर स्थापित करें। इसके बाद मूर्ति के सामने कलश, घी का दीपक स्थापित करें। तत्पश्चात् गायत्री माता को पुष्प, धूप, नवैद्य, अक्षत, चन्दन आदि अर्पित करें और उन्हें सात्विक चीजों का भोग लगाएं। इसके बाद आप व्रत कथा पढ़ें और सभी देवी-देवताओं की आरती करें। इसके साथ ही आपकी पूजा समाप्त होती है, इसके बाद व्रत रखने वाले भक्त फलाहार ग्रहण कर सकते हैं। आप अगले दिन भगवान जी की पूजा पाठ के बाद व्रत का पारण करें।
गायत्री जयंती के दिन विधिपूर्वक पूजा और मंत्र जाप करने से साधक को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
गायत्री मंत्र का जाप करें – ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् कम से कम 108 बार जाप करें।
पुराणों के अनुसार, सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने माता गायत्री की उपासना की और उनकी सहायता से सृष्टि का निर्माण किया। यह कथा स्वयं भगवान विष्णु ने नारद जी को सुनाई थी। तो चलिए आज हम सभी लोग इस कथा को विस्तार पूर्वक सुनते हैं, और जानते हैं कि किस प्रकार गायत्री माँ ने ब्रह्म देव को उनकी उत्पत्ति का उद्देश्य बताया-
एक दिन देवर्षि नारद ने भगवान विष्णु से पूछा कि- हे प्रभु! आप तो अंतर्यामी हैं, सर्वव्यापी हैं, आपको तो पूरी सृष्टि का ज्ञान है, मुझे कृपा करके ये बताइए गायत्री मंत्र क्या है, इस मंत्र की उत्पत्ति किस प्रकार हुई?
इस प्रश्न को सुनकर भगवान विष्णु बोले, माँ गायत्री की उपासना सर्वप्रथम ब्रह्मदेव ने की। सृष्टि निर्माण से पूर्व चारों ओर केवल अंधकार और पानी ही पानी था। तभी मेरी नाभि से कमल-नाल प्रकट हुई और ऊपर की ओर उठते-उठते जल-स्तर तक पहुंच गई। तत्पश्चात् उस कमल पर ब्रह्म देव प्रकट हुए, उनके मन में कई प्रश्न उठने लगे जैसे कि, वह कौन हैं और यह कमल तथा यह जल कैसा है?
तत्पश्चात् कमलनाथ का ओर-छोर जानने के लिए ब्रह्मा जी कमल नाल में उतरे। अत्यधिक गहराई तक जाने पर भी जब उन्हें उस कमल नाल का कोई छोर न मिला तब वह पुनः कमल पर आकर बैठ गए।
तब गायत्री माँ एक दिव्य शक्ति के रूप में उनके समक्ष प्रकट हुईं और उन्होंने ब्रह्मा जी को बताया कि, तुम ब्रह्म हो। तुम्हारी उत्पत्ति जल में सोने वाले भगवान विष्णु जी की नाभि कमल से हुई है।
ब्रह्मा जी ने उस दिव्य शक्ति से पूछा कि आप कौन हैं? और आप मेरे सम्मुख प्रकट क्यों नहीं होती? इसे सुनकर गायत्री माता ने उत्तर दिया कि, मैं तो तुम्हारे सम्मुख ही हूँ। मैं अरूप तथा सर्वव्यापी हूँ। तुम्हारी उत्पत्ति सृष्टि के सृजन के लिए हुई है। तुम गायत्री की कृपा से यह कार्य करोगे, वही तुम्हें इस कार्य के लिए शक्ति तथा युक्ति देगी।
ब्रह्मा जी ने उस दिव्य शक्ति से पूछा कि ये गायत्री कौन हैं? उस दिव्य शक्ति ने ब्रह्म देव को बताया कि जो परब्रह्म है, वही गायत्री है, अर्थात् मैं। गायत्री महामंत्र का जाप करो, इसी से सृष्टि की रचना होगी। इसके बाद ब्रह्म देव ने गायत्री मंत्र का जाप करके सृष्टि की रचना की। माँ गायत्री की उत्पत्ति ब्रह्मा जी का मार्गदर्शन करने के लिए हुई थी। पुराणों के अनुसार, गायत्री मंत्र ही सृष्टि के सृजन का आधार है।
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