नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियों और भय से सुरक्षा के लिए कालाष्टमी रात्रि विशेष मां काली तंत्र युक्त हवन
नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियों और भय से सुरक्षा के लिए कालाष्टमी रात्रि विशेष मां काली तंत्र युक्त हवन
नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियों और भय से सुरक्षा के लिए कालाष्टमी रात्रि विशेष मां काली तंत्र युक्त हवन
नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियों और भय से सुरक्षा के लिए कालाष्टमी रात्रि विशेष मां काली तंत्र युक्त हवन
नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियों और भय से सुरक्षा के लिए कालाष्टमी रात्रि विशेष मां काली तंत्र युक्त हवन
नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियों और भय से सुरक्षा के लिए कालाष्टमी रात्रि विशेष मां काली तंत्र युक्त हवन
नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियों और भय से सुरक्षा के लिए कालाष्टमी रात्रि विशेष मां काली तंत्र युक्त हवन
नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियों और भय से सुरक्षा के लिए कालाष्टमी रात्रि विशेष मां काली तंत्र युक्त हवन
कालाष्टमी रात्रि विशेष

मां काली तंत्र युक्त हवन

नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियों और भय से सुरक्षा के लिए
temple venue
शक्तिपीठ मां तारापीठ मंदिर, पश्चिम बंगाल
pooja date
Warning Infoइस पूजा की बुकिंग बंद हो गई है
srimandir devotees
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अब तक2,00,000+भक्तोंश्री मंदिर द्वारा आयोजित पूजाओ में भाग ले चुके हैं

नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियों और भय से सुरक्षा के लिए कालाष्टमी रात्रि विशेष मां काली तंत्र युक्त हवन

कालाष्टमी, जिसे काला अष्टमी भी कहा जाता है। ये विशेष दिन भगवान शिव के उग्र रूप, भैरव को समर्पित होता है। कालाष्टमी के दिन काल भैरव के साथ-साथ देवी काली की पूजा-अर्चना का भी विधान है, क्योंकि माँ काली भी शक्ति का उग्र रूप हैं जो नकारात्मकता का नाश करने के लिए प्रकट हुई थीं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि की रचना से पहले देवी महाकाली अंधकार के रूप में सब तरफ विद्यमान थीं। सृष्टि को प्रारंभ करने के लिए देवी ने एक ज्योति प्रकट की थी जिसके बाद सब कुछ प्रकाशमय हो गया। जिसके बाद देवी ने सृष्टि और प्रकृति की रचना शुरू की।

जिस तरह नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव रात्रि में सबसे अधिक होता है, ठीक उसी प्रकार देवी काली की शक्तियां भी रात्रि में अपने चरम पर होती हैं। इस दौरान देवी माँ की विशेष पूजा से उन्हें प्रसन्न करके नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियों और भय से सुरक्षा का आशीष प्राप्त कर सकते हैं। यही कारण है कि कालाष्टमी की रात को देवी काली की उपासना करने का महत्व अधिक है। इसलिए श्री मंदिर पूजा सेवा कालाष्टमी की रात्रि पर पश्चिम बंगाल में स्थित शक्तिपीठ माँ तारापीठ मंदिर में मां काली तंत्र युक्त हवन आयोजित कर रहा है। ये शक्तिपीठ देवी महाकाली के 3 प्रमुख स्थलों में से एक है जहाँ देवी, तारा माँ के रूप में विराजमान हैं। इस पूजा में भाग लेकर मां काली की से नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियों और भय से सुरक्षा पा सकते हैं।

पूजा लाभ

puja benefits
नकारात्मक ऊर्जाओं एवं बुरी शक्तियों का विनाश
मान्यता है कि तारापीठ में देवी काली के रूप में विराजित मां तारा की इस विशेष पूजा से भक्तों को नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा का आशीष प्राप्त होता है। मां तारा सभी बुरी एवं नकारात्मक शक्तियों के विनाश के लिए जानी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी काली की जो भक्त सच्चे दिल से आराधना करते हैं उनके जीवन में किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाएं एवं बुरी शक्तियां टिक नहीं पाती हैं।
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भय से सुरक्षा का आशीष
मान्यता है कि मां काली की विशेष पूजा से भक्तों साहस के साथ आत्मविश्वास की वृद्धि होती है जिससे उन्हें किसी भी तरह के अनजाने भय से मुक्ति मिलती है और देवी मां के आशीष से व्यक्ति भय मुक्त होकर जीवन में आगे बढता है। भले ही मां काली का रूप उग्र हो लेकिन उनकी आराधना करने वाले भक्तों को जीवन में सभी तरह के भय से मुक्‍ति मिल सकती है।
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ग्रहों के अशुभ प्रभावों से मुक्ति
पुराणों में मां काली को देवी आदिशक्ति का अवतार बताया गया है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड और सभी ग्रहों पर शासन करती है। इसलिए उनकी पूजा करने से कुंडली के ग्रहों के अशुभ प्रभाव से मुक्ति मिल सकती है। माना जाता है कि तारापीठ में मां काली की इस पूजा को करने से भक्तों को ग्रहों के अशुभ प्रभाव से सुरक्षा का आशीष प्राप्त होता है।

पूजा प्रक्रिया

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शक्तिपीठ मां तारापीठ मंदिर, पश्चिम बंगाल

शक्तिपीठ मां तारापीठ मंदिर, पश्चिम बंगाल
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां तारा की उत्पत्ति उस समय हुई थी जब समुद्र मंथन के समय विष निकला था, उस दौरान भगवान शिव ने यह विष ग्रहण कर लिया था, जिसके कारण शिवजी के शरीर में अत्याधिक जलन और पीड़ा होने लगी थी। भगवान शिव को पीड़ा से मुक्त करने के लिए मां काली ने दूसरा स्वरूप धारण किया और शिव जी को स्तनपान कराया, जिसके बाद उनके शरीर की जलन शांत हुई थी। इसलिए कहते हैं कि तारा देवी मां काली का ही दूसरा स्वरूप है।

पुराणों के अनुसार पश्चिम बंगाल में स्थित श्री तारापीठ मंदिर तंत्र साधना का जागृत स्थल माना जाता है। 10 महाविद्या में दूसरा स्थान रखने वाली मां तारा यहां अपने सौम्य रूप में विराजित हैं। मान्यता है कि सुदर्शन चक्र से भगवान विष्णु ने मां सती के शरीर के टुकड़े किए थें। उस दौरान माता सती के अंगों में से आंख की पुतली यहां गिरी थी। बांग्ला में आंख की पुतली को तारा कहते हैं और इसलिए इस जगह का नाम तारापीठ पड़ा। यहां पूजा करने से भक्तों के जीवन से सभी तरह की आपदाएं दूर हो जाती हैं।

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