अन्नपूर्णा चालीसा के नियमित पाठ से सभी प्रकार की आर्थिक समस्याओं का नाश होता है और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
माँ अन्नपूर्णा हिंदू धर्म की एक मान्य देवी है, जो कि विशेष रूप से पूजनीय है। देवी अन्नपूर्णा माँ जगदम्बा का ही स्वरूप हैं। जिनसे संसार का संचालन होता है। माँ जगदम्बा के इस रूप से ही संसार का भरण पोषण होता है। अन्नपूर्णा शब्द का अर्थ है अन्न की अधिष्ठात्री देवी, अर्थात अन्न देनी वाली देवी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि माँ अन्नपूर्णा की पूजा व पाठ करने से क्या लाभ होते है? अगर नहीं तो आइए जानते हैं माँ अन्नपूर्णा की चालीसा के महत्व के बारे में।
जो व्यक्ति रोज माँ अन्नपूर्णा की चालीसा का पाठ करता है, उसे माँ अन्नपूर्णा का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। माँ अन्नपूर्णा की चालीसा पढ़ने से उसके घर में कभी भी धन और धान्य की कमी नहीं होती है। माँ अन्नपूर्णा का चालीसा पढ़ने से माँ अन्नपूर्णा की कृपा बनी रहती है उसे कभी भी दुःख और दरिद्रता छू भी नहीं सकती है और उनके घर हमेशा धन धान्य से भरे रहते है। तो आइए पढ़ते है माँ अन्नपूर्णा की चालीसा।
अन्नपूर्णा चालीसा एक ऐसा स्तोत्र है जिसमें देवी की महिमा और उनके अनंत आशीर्वादों का गुणगान किया गया है। यह चालीसा विशेष रूप से उन लोगों के लिए शुभ मानी जाती है जो आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं और समृद्धि की कामना रखते हैं। देवी अन्नपूर्णा को अन्न और समृद्धि की देवी माना जाता है। अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करने से जीवन में धन, अन्न, और समृद्धि की प्राप्ति होती है और भक्तों के घर में कभी अन्न का अभाव नहीं होता।
विश्वेश्वर पदपदम की रज निज शीश लगाय ।
अन्नपूर्णे, तव सुयश बरनौं कवि मतिलाय ।
नित्य आनंद करिणी माता, वर अरु अभय भाव प्रख्याता ।
जय ! सौंदर्य सिंधु जग जननी, अखिल पाप हर भव-भय-हरनी ।
श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि, संतन तुव पद सेवत ऋषिमुनि ।
काशी पुराधीश्वरी माता, माहेश्वरी सकल जग त्राता ।
वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी, विश्व विहारिणि जय ! कल्याणी ।
पतिदेवता सुतीत शिरोमणि, पदवी प्राप्त कीन्ह गिरी नंदिनि ।
पति विछोह दुःख सहि नहिं पावा, योग अग्नि तब बदन जरावा ।
देह तजत शिव चरण सनेहू, राखेहु जात हिमगिरि गेहू ।
प्रकटी गिरिजा नाम धरायो, अति आनंद भवन मँह छायो ।
नारद ने तब तोहिं भरमायहु, ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु ।
ब्रहमा वरुण कुबेर गनाये, देवराज आदिक कहि गाये ।
सब देवन को सुजस बखानी, मति पलटन की मन मँह ठानी ।
अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या, कीहनी सिद्ध हिमाचल कन्या ।
निज कौ तब नारद घबराये, तब प्रण पूरण मंत्र पढ़ाये ।
करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ, संत बचन तुम सत्य परेखेहु ।
गगनगिरा सुनि टरी न टारे, ब्रहां तब तुव पास पधारे ।
कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा, देहुँ आज तुव मति अनुरुपा ।
तुम तप कीन्ह अलौकिक भारी, कष्ट उठायहु अति सुकुमारी ।
अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों, है सौगंध नहीं छल तोसों ।
करत वेद विद ब्रहमा जानहु, वचन मोर यह सांचा मानहु ।
तजि संकोच कहहु निज इच्छा, देहौं मैं मनमानी भिक्षा ।
सुनि ब्रहमा की मधुरी बानी, मुख सों कछु मुसुकाय भवानी ।
बोली तुम का कहहु विधाता, तुम तो जगके स्रष्टाधाता ।
मम कामना गुप्त नहिं तोंसों, कहवावा चाहहु का मोंसों ।
दक्ष यज्ञ महँ मरती बारा, शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा ।
सो अब मिलहिं मोहिं मनभाये, कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये ।
तब गिरिजा शंकर तव भयऊ, फल कामना संशयो गयऊ ।
चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा, तब आनन महँ करत निवासा ।
माला पुस्तक अंकुश सोहै, कर मँह अपर पाश मन मोहै ।
अन्न्पूर्णे ! सदापूर्णे, अज अनवघ अनंत पूर्णे ।
कृपा सागरी क्षेमंकरि माँ, भव विभूति आनंद भरी माँ ।
कमल विलोचन विलसित भाले, देवि कालिके चण्डि कराले ।
तुम कैलास मांहि है गिरिजा, विलसी आनंद साथ सिंधुजा ।
स्वर्ग महालक्ष्मी कहलायी, मर्त्य लोक लक्ष्मी पदपायी ।
विलसी सब मँह सर्व सरुपा, सेवत तोहिं अमर पुर भूपा ।
जो पढ़िहहिं यह तव चालीसा फल पाइंहहि शुभ साखी ईसा ।
प्रात समय जो जन मन लायो, पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अघिकायो ।
स्त्री कलत्र पति मित्र पुत्र युत, परमैश्रवर्य लाभ लहि अद्भुत ।
राज विमुख को राज दिवावै, जस तेरो जन सुजस बढ़ावै ।
पाठ महा मुद मंगल दाता, भक्त मनोवांछित निधि पाता ।
जो यह चालीसा सुभग, पढ़ि नावैंगे माथ ।
तिनके कारज सिद्ध सब साखी काशी नाथ ॥
।। इति अन्नपूर्णा चालीसा समाप्त ।।
अन्नपूर्णा चालीसा के पाठ से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यह पाठ विशेष रूप से घर में अन्न, धन और समृद्धि को आकर्षित करने वाला माना जाता है। माता अन्नपूर्णा को अन्न, पोषण और समृद्धि की देवी कहा जाता है, अतः उनके चालीसा पाठ से भक्तों को भूख और निर्धनता से मुक्ति मिलती है। यह पाठ मानसिक शांति, आंतरिक संतोष और आध्यात्मिक उन्नति में भी सहायक होता है। जो व्यक्ति आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे होते हैं, उन्हें नियमित रूप से अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और धनागमन के नए स्रोत खुलते हैं। इसके अतिरिक्त, यह पाठ ग्रहदोष निवारण और पारिवारिक कलह को समाप्त करने में भी सहायक सिद्ध होता है।
अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करने के लिए सबसे शुभ दिन सोमवार माना जाता है, क्योंकि यह दिन माता लक्ष्मी और अन्नपूर्णा देवी को समर्पित है। इसके अलावा, पूर्णिमा तिथि और नवरात्रि के दौरान भी इस चालीसा का पाठ करना विशेष फलदायी होता है। ब्रह्ममुहूर्त, यानी प्रातःकाल 4 से 9 बजे के बीच इसका पाठ करने से अधिक लाभ प्राप्त होता है। यदि यह संभव न हो तो सूर्यास्त के समय या रात्रि में भी पाठ किया जा सकता है। विशेष रूप से दीप जलाकर, स्वच्छ वस्त्र धारण कर, शुद्ध मन से किया गया पाठ शीघ्र फल देता है।
अन्नपूर्णा चालीसा का नियमित पाठ करने से घर में अन्न-धन और समृद्धि की वृद्धि होती है। यह पाठ सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है, जिससे घर में बरकत बनी रहती है। माता अन्नपूर्णा को प्रसन्न करने से व्यक्ति को कभी भी अन्न की कमी नहीं होती, और उसका परिवार खुशहाल रहता है। जिन घरों में अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ किया जाता है, वहां दरिद्रता और आर्थिक तंगी दूर रहती है। साथ ही, इस पाठ से घर में सात्त्विकता और शुद्धता बनी रहती है, जिससे नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं।
अन्नपूर्णा चालीसा में माता के विभिन्न स्वरूपों और लीलाओं का वर्णन किया गया है। इसमें माता को अन्नपूर्णा के रूप में दर्शाया गया है, जो समस्त प्राणियों को अन्न प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त, उन्हें काशी की अधिष्ठात्री देवी और भगवान शिव की प्रिया के रूप में वर्णित किया गया है। माता के करुणामयी स्वरूप, दयालुता और भक्तों को तृप्त करने वाली उनकी दिव्य लीलाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। चालीसा में यह भी बताया गया है कि कैसे माता अन्नपूर्णा ने स्वयं भगवान शिव को अन्न का महत्व समझाया और उन्हें भिक्षा प्रदान की।
अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करते समय कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। पाठ करने से पूर्व स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। पाठ करने के स्थान को शुद्ध करना और दीपक जलाना शुभ माना जाता है। मन को एकाग्र कर श्रद्धा और भक्ति भाव से पाठ करना चाहिए। पाठ के दौरान सात्त्विकता बनाए रखना आवश्यक है, यानी मांसाहार और नकारात्मक विचारों से दूर रहना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति विशेष रूप से धन, अन्न या समृद्धि की प्राप्ति के लिए यह पाठ कर रहा है, तो उसे विधिपूर्वक माता अन्नपूर्णा का स्मरण करना चाहिए और अंत में आरती करके प्रसाद वितरण करना चाहिए।
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