गंगा माँ की कृपा से सभी कष्टों का निवारण होता है और घर में सुख-शांति का वास होता है।
भारत में गंगा माता की पूजा की जाती है। क्योंकि ऐसी मान्यता हैं कि गंगा माई की पूजा अर्चना और उनकी चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के सारे पापों का नाश होता है। साथ ही अगर कोई व्यक्ति नित्य गंगा माई की चालीसा (Ganga Maiya Ki Chalisa) का पाठ करता है तो वह सभी प्रकार की चिंताओं से मुक्त होकर मन की शांति को प्राप्त करता है। तो आइए पढ़ते है गंगा चालीसा हिंदी में
जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग ।
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग ॥
जय जय जननी हराना अघखानी ।
आनंद करनी गंगा महारानी ॥
जय भगीरथी सुरसरि माता ।
कलिमल मूल डालिनी विख्याता ॥
जय जय जहानु सुता अघ हनानी ।
भीष्म की माता जगा जननी ॥
धवल कमल दल मम तनु सजे ।
लखी शत शरद चंद्र छवि लजाई ॥ ४ ॥
वहां मकर विमल शुची सोहें ।
अमिया कलश कर लखी मन मोहें ॥
जदिता रत्ना कंचन आभूषण ।
हिय मणि हर, हरानितम दूषण ॥
जग पावनी त्रय ताप नासवनी ।
तरल तरंग तुंग मन भावनी ॥
जो गणपति अति पूज्य प्रधान ।
इहूं ते प्रथम गंगा अस्नाना ॥ ८ ॥
ब्रह्मा कमंडल वासिनी देवी ।
श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि ॥
साथी सहस्त्र सागर सुत तरयो ।
गंगा सागर तीरथ धरयो ॥
अगम तरंग उठ्यो मन भवन ।
लखी तीरथ हरिद्वार सुहावन ॥
तीरथ राज प्रयाग अक्षैवेता ।
धरयो मातु पुनि काशी करवत ॥ १२ ॥
धनी धनी सुरसरि स्वर्ग की सीधी ।
तरनी अमिता पितु पड़ पिरही ॥
भागीरथी ताप कियो उपारा ।
दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा ॥
जब जग जननी चल्यो हहराई ।
शम्भु जाता महं रह्यो समाई ॥
वर्षा पर्यंत गंगा महारानी ।
रहीं शम्भू के जाता भुलानी ॥ १६ ॥
पुनि भागीरथी शम्भुहीं ध्यायो ।
तब इक बूंद जटा से पायो ॥
ताते मातु भें त्रय धारा ।
मृत्यु लोक, नाभा, अरु पातारा ॥
गईं पाताल प्रभावती नामा ।
मन्दाकिनी गई गगन ललामा ॥
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनी ।
कलिमल हरनी अगम जग पावनि ॥ २० ॥
धनि मइया तब महिमा भारी ।
धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी ॥
मातु प्रभवति धनि मंदाकिनी ।
धनि सुर सरित सकल भयनासिनी ॥
पन करत निर्मल गंगा जल ।
पावत मन इच्छित अनंत फल ॥
पुरव जन्म पुण्य जब जागत ।
तबहीं ध्यान गंगा महं लागत ॥ २४ ॥
जई पगु सुरसरी हेतु उठावही ।
तई जगि अश्वमेघ फल पावहि ॥
महा पतित जिन कहू न तारे ।
तिन तारे इक नाम तिहारे ॥
शत योजन हूं से जो ध्यावहिं ।
निशचाई विष्णु लोक पद पावहीं ॥
नाम भजत अगणित अघ नाशै ।
विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशे ॥ २८ ॥
जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना ।
धर्मं मूल गंगाजल पाना ॥
तब गुन गुणन करत दुख भाजत ।
गृह गृह सम्पति सुमति विराजत ॥
गंगहि नेम सहित नित ध्यावत ।
दुर्जनहूं सज्जन पद पावत ॥
उद्दिहिन विद्या बल पावै ।
रोगी रोग मुक्त हवे जावै ॥ ३२ ॥
गंगा गंगा जो नर कहहीं ।
भूखा नंगा कभुहुह न रहहि ॥
निकसत ही मुख गंगा माई ।
श्रवण दाबी यम चलहिं पराई ॥
महं अघिन अधमन कहं तारे ।
भए नरका के बंद किवारें ॥
जो नर जपी गंग शत नामा ।
सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा ॥ ३६ ॥
सब सुख भोग परम पद पावहीं ।
आवागमन रहित ह्वै जावहीं ॥
धनि मइया सुरसरि सुख दैनि ।
धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी ॥
ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा ।
सुन्दरदास गंगा कर दासा ॥
जो यह पढ़े गंगा चालीसा ।
मिली भक्ति अविरल वागीसा ॥ ४० ॥
नित नए सुख सम्पति लहैं, धरें गंगा का ध्यान ।
अंत समाई सुर पुर बसल, सदर बैठी विमान ॥
संवत भुत नभ्दिशी, राम जन्म दिन चैत्र ।
पूरण चालीसा किया, हरी भक्तन हित नेत्र ॥
॥ इति श्री गंगा चालीसा ॥
गंगा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में शुद्धता, पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। गंगा माता को संसार की पावनतम नदी माना गया है, जिनके स्मरण मात्र से जीवन के पाप मिट जाते हैं और आत्मा शुद्ध हो जाती है। इस चालीसा के पाठ से मानसिक शांति मिलती है, जीवन में आने वाली परेशानियाँ दूर होती हैं और मन में भक्ति की भावना प्रबल होती है। गंगा मैया की कृपा से रोगों का नाश होता है और व्यक्ति को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
गंगा चालीसा का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन सोमवार, गुरुवार और गंगा दशहरा के दिन इसका विशेष महत्व होता है। इन दिनों में गंगा माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में शुभता बढ़ती है। पाठ करने का सबसे शुभ समय प्रातःकाल या संध्या समय माना जाता है। स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर शांत मन से पाठ करना उत्तम होता है। यदि संभव हो तो पाठ के समय गंगाजल पास रखें और दीप जलाकर गंगा माता का ध्यान करें। यह वातावरण को शुद्ध करता है और पाठ का प्रभाव बढ़ाता है।
हाँ, गंगा चालीसा का पाठ करने से पापों का नाश होता है। शास्त्रों में गंगा माता को "पापनाशिनी" कहा गया है, जो अपने जल से जन्म-जन्मांतर के पापों को हर लेती हैं। कहा जाता है कि गंगा जल में स्नान करने और सच्चे मन से गंगा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को अपने किए गए बुरे कर्मों से मुक्ति मिलती है। यह पाठ आत्मा की शुद्धि का मार्ग खोलता है और व्यक्ति को धर्म, भक्ति और सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
गंगा चालीसा का पाठ व्यक्ति के मन, शरीर और आत्मा की शुद्धता को बढ़ाता है। जब हम गंगा माता की स्तुति करते हैं, तो हमारे भीतर सात्त्विक गुणों की वृद्धि होती है और नकारात्मक विचारों का नाश होता है। यह पाठ व्यक्ति की आध्यात्मिक चेतना को जागृत करता है और जीवन में शांति व संतोष लाता है। गंगा माता केवल एक नदी नहीं, बल्कि स्वयं दिव्य शक्ति का स्वरूप हैं, जिनकी कृपा से व्यक्ति के भीतर पवित्रता और भक्ति का संचार होता है।
गंगा चालीसा का पाठ करने से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और शांत मन से पाठ करें। पाठ के दौरान गंगाजल पास रखें और यदि संभव हो तो दीप जलाकर गंगा माता का ध्यान करें। पाठ के समय स्थान को पवित्र रखें और श्रद्धा व भक्ति के साथ गंगा माता की स्तुति करें। पाठ के बाद गंगा माता की आरती करें और प्रसाद बांटें। साथ ही, इस दिन जरूरतमंदों को भोजन कराना और गंगा नदी की स्वच्छता का संकल्प लेना भी पुण्यदायी माना जाता है।
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