ब्रह्मपुत्र नदी
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ब्रह्मपुत्र नदी

तिब्बत से निकलकर भारत और बांग्लादेश तक बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी सिर्फ एक जलधारा नहीं—यह शक्ति, ज्ञान और जीवन का प्रतीक है। जानिए इससे जुड़ी रोचक और धार्मिक मान्यताएँ।

ब्रह्मपुत्र नदी के बारे में

ब्रह्मपुत्र नदी एशिया की प्रमुख नदियों में से एक है। यह तिब्बत में यारलुंग त्संगपो के नाम से शुरू होती है और अरुणाचल प्रदेश से भारत में प्रवेश करती है। असम और बांग्लादेश से गुजरते हुए यह गंगा से मिलती है। ब्रह्मपुत्र नदी कृषि, परिवहन और संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आइये इस लेख के माध्यम से जानते है इस नदी के बारे में...

ब्रह्मपुत्र नदी: उद्गम से लेकर संगम तक

भारत की प्रमुख नदियों में से एक, ब्रम्हपुत्र नदी असम, अरुणाचल प्रदेश, बांगलादेश और तिब्बत में जीवन की धारा के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसे ‘युगांतर’ (The Lifeline of Assam) भी कहा जाता है, क्योंकि यह नदी अपनी पूरी यात्रा में असम और अन्य क्षेत्रों के निवासियों के जीवन के हर पहलू से जुड़ी हुई है। यह नदी न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत पवित्र मानी जाती है।

आइए, ब्रम्हपुत्र नदी की उत्पत्ति, पौराणिक मान्यताएँ, मार्ग, धार्मिक महत्व, और इससे जुड़े रोचक तथ्य के बारे में विस्तार से जानते हैं।

ब्रम्हपुत्र नदी: उत्पत्ति इतिहास एवं पौराणिक मान्यताएं

ब्रम्हपुत्र नदी की उत्पत्ति तिब्बत के तोंगला पर्वत से होती है। यह नदी तिब्बत में ‘यारलुंग त्सांपो’ के नाम से जानी जाती है, और जब यह भारत में प्रवेश करती है, तो इसे ब्रम्हपुत्र कहा जाता है। भारत में यह नदी विशेष रूप से असम और अरुणाचल प्रदेश से गुजरती है और फिर बांगलादेश में प्रवेश करती है। यहाँ इसे बांग्ला में जमुना भी कहा जाता है, और यह अंत में बंगाल की खाड़ी में समाहित हो जाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रम्हपुत्र नदी भगवान ब्रह्मा से जुड़ी हुई है। ब्रम्हपुत्र का नाम ‘ब्रह्म’ (भगवान ब्रह्मा) और ‘पुत्र’ (पुत्र) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है भगवान ब्रह्मा का पुत्र। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने इस नदी का निर्माण किया था और इसे पृथ्वी पर जीवन के संचार के लिए भेजा। कुछ मान्यताएँ कहती हैं कि जब भगवान ब्रह्मा ने ब्रम्हा वायु का निर्माण किया, तब इस वायु से उत्पन्न जलधारा को ब्रह्मपुत्र के रूप में पृथ्वी पर प्रवाहित किया गया। इसके बाद, इस नदी का प्रवाह असम में प्रवेश कर गया और यहाँ की धरती उपजाऊ और समृद्ध बन गई।

ब्रम्हपुत्र नदी का मार्ग

ब्रम्हपुत्र नदी लगभग 2,900 किलोमीटर लंबी है और इसे एशिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक माना जाता है। यह नदी अपनी यात्रा में चार प्रमुख देशों से होकर गुजरती है:

तिब्बत (चीन): ब्रम्हपुत्र की यात्रा तिब्बत से शुरू होती है, जहाँ इसे यारलुंग त्सांपो के नाम से जाना जाता है। यहां से यह नदी एक विशाल घुमाव के साथ भारत की ओर प्रवाहित होती है।

भारत (असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय): ब्रम्हपुत्र तिब्बत से भारत के असम राज्य में प्रवेश करती है, जहां इसे ब्रम्हपुत्र कहा जाता है। यहाँ नदी की धाराएँ वृहद और विशाल रूप में दिखाई देती हैं। असम में यह नदी विभिन्न उपनदियों के साथ मिलकर कई जिलों में फैलती है।

बांग्लादेश: भारत में प्रवेश के बाद यह नदी बांगलादेश में प्रवेश करती है, जहाँ इसे जमुना के नाम से जाना जाता है। बांगलादेश में यह नदी बड़ी मात्रा में जल प्रवाह करती है और बांगलादेश की कृषि भूमि को उपजाऊ बनाती है।

अंत में, यह नदी बंगाल की खाड़ी में समाहित हो जाती है, जहाँ से इसका जल समुद्र में मिल जाता है।

ब्रम्हपुत्र नदी का धार्मिक महत्व

  • ब्रम्हपुत्र नदी का धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व है। यह नदी न केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि बौद्ध धर्म और अन्य धर्मों के लोगों के लिए भी पवित्र मानी जाती है।
  • ब्रम्हपुत्र नदी को भगवान ब्रह्मा का प्रतीक माना जाता है। हिंदू धर्म में यह विश्वास है कि इस नदी के जल में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं और जीवन की हर कठिनाई से मुक्ति मिलती है। असम राज्य में कई स्थानों पर इस नदी के किनारे मन्दिर और तीर्थ स्थल हैं, जो भक्तों के लिए पूजनीय हैं।
  • असम में कामाख्या मन्दिर जो गुवाहाटी के पास स्थित है। यह मंदिर शाक्ति पीठ के रूप में मान्यता प्राप्त है और यहाँ ब्रम्हपुत्र नदी के साथ श्रद्धालु इस मंदिर में आकर भी पूजा करते हैं।
  • ब्रम्हपुत्र के किनारे हर वर्ष माघ मेला और बैशाखी मेले जैसे उत्सवों का आयोजन होता है, जहां हजारों लोग पवित्र नदी में स्नान करने के लिए आते हैं।
  • बौद्ध धर्म के अनुयायी भी ब्रम्हपुत्र नदी की पवित्रता को मानते हैं। तिब्बत में यह नदी बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए धार्मिक रूप से विशेष महत्वपूर्ण है।

ब्रम्हपुत्र नदी से जुड़े रोचक तथ्य

  • ब्रम्हपुत्र नदी के रास्ते में माजुली नामक एक द्वीप है, जो विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप माना जाता है। यह द्वीप असम में स्थित है और यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर बहुत ही समृद्ध है।
  • ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे पर कई जातियाँ और आदिवासी समुदाय निवास करते हैं, जो इस नदी को अपनी जीवनरेखा मानते हैं। इन लोगों की खेती, मछली पकड़ना, और जल परिवहन पूरी तरह से इस नदी पर निर्भर है।
  • ब्रम्हपुत्र नदी अक्सर बाढ़ के कारण चर्चा में रहती है। मानसून के दौरान इसका जल स्तर बढ़ जाता है, और नदी के किनारे स्थित कई इलाके बाढ़ से प्रभावित होते हैं।
  • ब्रम्हपुत्र नदी पर कोहिमा और दिसपुर को जोड़ने वाला विशाल पुल 'ब्रह्मपुत्र नदी पुल' बनवाया गया है, जो नदी के पार जाने के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग है।
  • ब्रम्हपुत्र नदी का इतिहास हजारों साल पुराना है और यह कई ऐतिहासिक युद्धों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का गवाह रही है। इस नदी के किनारे कई प्राचीन सभ्यताएँ पनपी हैं।
  • ब्रम्हपुत्र का पानी क्षेत्रीय जलवायु को नियंत्रित करता है, जिससे असम और आसपास के राज्यों की कृषि में विशेष योगदान होता है।

ब्रम्हपुत्र नदी जीवनदायिनी है, जो हजारों वर्षों से इस क्षेत्र के लोगों के जीवन का आधार बनी हुई है। इस नदी के साथ जुड़ी धार्मिक आस्थाएँ, सांस्कृतिक धरोहरें और ऐतिहासिक महत्व इसे भारत और एशिया की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक बनाते हैं। मान्यता है कि ब्रम्हपुत्र नदी के जल में स्नान करने से भक्तों के जन्म जन्मांतर के पाप नष्ट होते हैं।

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Published by Sri Mandir·April 14, 2025

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