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गंगा नदी

क्यों कहा जाता है गंगा जल से पाप मिटते हैं? क्यों हर हिन्दू अंतिम यात्रा में गंगा को याद करता है? जानिए वो धार्मिक मान्यताएँ जो गंगा को माँ बनाती हैं, सिर्फ नदी नहीं।

गंगा नदी के बारे में

गंगा नदी भारत की जीवनरेखा मानी जाती है। हिमालय से निकलकर यह पवित्र नदी करोड़ों लोगों को जीवन देती है। गंगा केवल जलधारा नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और शुद्धता की प्रतीक है। इसकी हर लहर में इतिहास की गहराई और भक्ति की मिठास बहती है, जो दिलों को छू जाती है।

गंगा

गंगा नदी को मोक्ष देने वाली और जीवन देने वाली नदी माना जाता है। हिंदू धर्म में इसे मां गंगा के रूप में विशेष महत्व दिया गया है। यह भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक है और भारत, नेपाल और बांग्लादेश से होकर लगभग 2525 किलोमीटर बहती है। गंगा नदी सिर्फ अपने साफ और शुद्ध पानी के लिए ही नहीं, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के लिए भी जानी जाती है।

गंगा नदी की उत्पत्ति

गंगा नदी की शुरुआत हिमालय में गढ़वाल के गोमुख स्थान पर स्थित गंगोत्री ग्लेशियर से होती है। यहां मां गंगा को समर्पित एक मंदिर भी बना हुआ है, और यह स्थान एक पवित्र तीर्थ माना जाता है। यहां छह बड़ी और पांच छोटी धाराएं मिलकर गंगा का निर्माण करती हैं, जिनका भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत ज्यादा है। गंगा नदी यमुना, कोसी, गंडक और घाघरा जैसी कई नदियों से जुड़ती है। इसके अलावा, गंगा के उद्गम की कथा पुराणों में भी विस्तार से बताई गई है।

गंगा नदी: इतिहास एवं पौराणिक मान्यताएँ

राजा बलि और मां गंगा की पौराणिक कथा

प्राचीन कथाओं के अनुसार, राजा बलि एक शक्तिशाली शासक थे, जिन्होंने भगवान विष्णु को प्रसन्न कर पृथ्वी पर अपना अधिकार जमा लिया था। वह खुद को भगवान मानने लगे और अहंकार से भर गए। इसी घमंड में आकर उन्होंने देवराज इंद्र को युद्ध के लिए ललकारा। जब इंद्र को लगा कि उनका स्वर्गलोक खतरे में है, तो वे भगवान विष्णु से सहायता मांगने पहुंचे। राजा बलि के घमंड को समाप्त करने और उनका उद्धार करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया।

उसी समय राजा बलि अपने राज्य की समृद्धि के लिए अश्वमेध यज्ञ करवा रहे थे। उन्होंने यज्ञ के दौरान ब्राह्मणों को भोजन करवाया और दान-दक्षिणा दी। तभी भगवान विष्णु एक छोटे ब्राह्मण बालक वामन के रूप में वहां पहुंचे। राजा बलि ने समझ लिया कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं हैं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु हैं। लेकिन अपनी दानशीलता के कारण उन्होंने वामन से दान मांगने के लिए कहा।

भगवान वामन ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा बलि खुशी-खुशी राजी हो गए। तभी भगवान वामन ने अपना विशाल रूप धारण किया। उन्होंने पहले कदम से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे कदम से पूरे आकाश को। फिर उन्होंने राजा बलि से पूछा कि तीसरा पग कहां रखें? राजा बलि को अहसास हुआ कि अब उनके पास कुछ नहीं बचा। उन्होंने सिर झुका दिया और कहा, "प्रभु, तीसरा पग मेरे सिर पर रख दें।" भगवान वामन ने ऐसा ही किया और राजा बलि को पाताल लोक भेज दिया।

गंगा नदी से जुड़ी कहानी

इस कथा से मां गंगा के जन्म की भी एक दिलचस्प कहानी जुड़ी हुई है। जब भगवान विष्णु ने अपना दूसरा पैर आकाश की ओर उठाया, तो ब्रह्मा जी ने उनके चरण धोए और उस जल को अपने कमंडल में भर लिया। इसी पवित्र जल से मां गंगा का जन्म हुआ। बाद में, ब्रह्मा जी ने गंगा को पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में सौंप दिया।

एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान वामन ने आकाश में अपना पैर रखा, तो आकाश में छेद हो गया। इस छेद से तीन जलधाराएं फूट पड़ीं –

  • एक धारा स्वर्ग में चली गई।
  • दूसरी पृथ्वी पर गिरी।
  • तीसरी पाताल लोक में बहने लगी।

इसी कारण मां गंगा को "त्रिपथगा" कहा जाता है, जिसका अर्थ है तीनों लोकों में बहने वाली नदी।

गंगा नदी कहां से निकलती है

  • उद्गम (Origin): गंगोत्री ग्लेशियर, गोमुख (उत्तराखंड)
  • मुख्य मार्ग: उत्तराखंड → उत्तर प्रदेश → बिहार → पश्चिम बंगाल → बांग्लादेश
  • मुख्य शहर: वाराणसी, पटना, कोलकाता, ऋषिकेश, हरिद्वार, कानपुर, प्रयागराज,
  • संगम: प्रयागराज (यमुना)
  • मुख्य सहायक नदियां: यमुना, गंडक, कोसी, घाघरा, सोन
  • अंतिम गंतव्य: बंगाल की खाड़ी (बांग्लादेश में पद्मा नदी के रूप में)
  • कुल लंबाई: 2525 किमी

गंगा नदी: धार्मिक महत्व

मोक्षदायिनी नदी: हिंदू धर्म में गंगा को मोक्ष देने वाली नदी माना जाता है। माना जाता है कि इसमें स्नान करने से पापों का नाश होता है।

देव नदी: गंगा को देवी के रूप में पूजा जाता है। इसे भागीरथी प्रयास से पृथ्वी पर लाया गया था, जिससे पूर्वजों को मुक्ति मिली।

तीर्थस्थल: गंगा के किनारे हरिद्वार, प्रयागराज, वाराणसी और गंगासागर जैसे पवित्र स्थल हैं, जहां लाखों श्रद्धालु पूजा और स्नान करने आते हैं।

पवित्र जल: गंगाजल को शुद्ध और अमृत तुल्य माना जाता है। यह कभी खराब नहीं होता और पूजा-पाठ में प्रयोग किया जाता है।

अंतिम संस्कार: वाराणसी और हरिद्वार जैसे स्थानों पर गंगा किनारे दाह संस्कार करने से मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है।

गंगा नदी से जुड़े रोचक तथ्य

गंगा नदी का उद्गम और मार्ग

गंगा नदी का उद्गम उत्तराखंड के गंगोत्री ग्लेशियर में स्थित गोमुख नामक स्थान से होता है। यहां से निकलने वाली जलधारा को भागीरथी नदी कहा जाता है, जो देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलकर गंगा नाम से जानी जाती है। यह उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से होकर बांग्लादेश में प्रवेश करती है और अंत में बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। इसकी कुल लंबाई 2525 किलोमीटर है।

गंगाजल की अनोखी विशेषता

गंगा का पानी कभी खराब नहीं होता। इसमें प्राकृतिक रूप से मौजूद बैक्टीरियोफेज नामक वायरस हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट कर देते हैं, जिससे पानी शुद्ध बना रहता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इसमें ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो लंबे समय तक इसे स्वच्छ और ताजगी से भरा रखते हैं।

धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में गंगा को मोक्षदायिनी माना जाता है। इसमें स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। गंगा के किनारे बसे हरिद्वार, प्रयागराज, वाराणसी और गंगासागर जैसे तीर्थ स्थलों पर लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं। कुंभ मेला, जो दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है, हरिद्वार और प्रयागराज में गंगा किनारे आयोजित होता है। वाराणसी और हरिद्वार जैसे स्थानों पर गंगा किनारे अंतिम संस्कार करने से मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है।

गंगा की सहायक नदियां

गंगा नदी में कई अन्य नदियां आकर मिलती हैं। इनमें प्रमुख रूप से यमुना, घाघरा, गंडक, कोसी और सोन शामिल हैं। प्रयागराज में गंगा और यमुना का संगम होता है, जिसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है।

बंगाल की खाड़ी में विलय

गंगा पश्चिम बंगाल में प्रवेश करते ही दो धाराओं में बंट जाती है – हुगली और पद्मा। हुगली नदी भारत में रहती है और कोलकाता से होकर बहती है, जबकि पद्मा नदी बांग्लादेश में प्रवेश करती है और ब्रह्मपुत्र व मेघना नदी से मिलकर बंगाल की खाड़ी में समा जाती है।

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Published by Sri Mandir·April 14, 2025

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