गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से बहती ताप्ति नदी सिर्फ एक जलधारा नहीं, बल्कि सूर्य की शक्ति और तप का प्रतीक है। जानिए इससे जुड़ी धार्मिक मान्यताएँ और ऐतिहासिक गाथाएँ
ताप्ति नदी भारत की एक प्रमुख और पवित्र नदी है, जो मध्य भारत में बहती है। इसका उद्गम मध्य प्रदेश के सतपुड़ा पर्वत से होता है। यह महाराष्ट्र और गुजरात से होकर अरब सागर में मिलती है। ताप्ति नदी पश्चिम दिशा में बहने वाली कुछ चुनिंदा नदियों में से एक है।
ताप्ति नदी, भारत के पश्चिमी भाग में बहने वाली एक प्रमुख और पवित्र नदी है। ताप्ति नदी को भगवान सूर्य की पुत्री माना जाता है, और धार्मिक रूप से यह गंगा, यमुना, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों के समान पूजनीय है। इसका जल दैनिक जीवन, और कृषि के लिए अत्यंत उपयोगी है। ताप्ति पर बने उकाई और हथनूर बाँध क्षेत्रीय जल प्रबंधन और बिजली उत्पादन में अहम भूमिका निभाते हैं। ताप्ति एक भौगोलिक धरोहर है, जो भारत में आस्था, सभ्यता और जीवनशैली का प्रतीक है।
ताप्ती नदी की उत्पत्ति और इतिहास के साथ कई पौराणिक मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं।
ताप्ती नदी का उद्गम मध्यप्रदेश में बैतूल ज़िले के मुलताई कस्बे में स्थित सतपुड़ा पर्वतमाला (अमरकंटक) से होता है। लगभग 724 किलोमीटर लंबी यह नदी मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात से होकर बहती है और अंत में सूरत के पास अरब सागर में खंभात की खाड़ी में जाकर मिल जाती है।
हिंदू धर्म में ताप्ती नदी को बहुत पवित्र माना जाता है और इसे सूर्यदेव और माता छाया की पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इस तरह यह शनिदेव, भद्रा, यमुना और यम की बहन हैं। हमारे पुराणों में इसकी उत्पत्ति से जुड़ी कई कथाएं मिलती है। एक कथा के अनुसार, ताप्ती का जन्म सूर्य के तेज से हुआ था। एक अन्य मान्यता यह भी है कि शिवजी ने अपनी अर्धांगिनी माता सती के निर्जीव शरीर को ताप्ती नदी के जल से शुद्ध किया था।
कुछ कथाओं में ताप्ती को ऋषि वशिष्ठ की पत्नी अरुंधती की बहन बताया गया है। इस नदी का नाम संस्कृत शब्द "तप्त" से लिया गया है जिसका अर्थ है गर्म। मान्यता है कि इसका जल सूर्य के ताप से उत्पन्न हुआ था।
प्राचीन काल में ताप्ती नदी के तट पर कई सभ्यताएँ फली-फूलीं। यह नदी व्यापार और कृषि के लिए महत्वपूर्ण स्थान रही है। सूरत जैसे प्रमुख बंदरगाह शहर इसी नदी के किनारे विकसित हुए। आज भी ताप्ती नदी को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है और इसके तट पर कई मेले और त्योहार आयोजित किए जाते हैं।
ताप्ती नदी का मार्ग मुख्यतः पूर्व से पश्चिम की ओर है। यह नदी मध्य प्रदेश से निकलकर महाराष्ट्र और फिर गुजरात से होते हुए अरब सागर में गिरती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में महाराष्ट्र की पूर्णा नदी, गिरना नदी, पंजरा नदी और बोरी नदी शामिल है। गुजरात का महत्वपूर्ण शहर सूरत ताप्ती नदी के किनारे बसा यह प्रमुख व्यापारिक शहर है। ताप्ती नदी आर्थिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।
यह नदी कृषि, उद्योग और पेयजल का प्रमुख स्रोत है। इसके मार्ग में गुजरात की उकाई बाँध जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाएँ भी स्थित हैं। यह नदी अपने मार्ग में कई घाटियों और मैदानों से गुजरती है, जो कृषि और जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।
ताप्ति नदी का धार्मिक दृष्टि से भी इसका गहरा महत्व है। इसे भारत की सात पवित्र नदियों में से एक माना जाता है, जिनमें गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और ताप्ति शामिल हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, सूर्यदेव ने अपने अत्यधिक ताप से लोगों को बचाने के लिए अपनी पुत्री को पृथ्वी पर नदी के रूप में प्रवाहित होने के लिए भेजा, ताकि वह उनके ताप को शीतल कर सके और पृथ्वी की रक्षा कर सकें। इसी कारण इसे ‘तप्त’ यानी गर्मी से उत्पन्न होने वाली नदी कहा जाता है।
ताप्ती अमावस्या, जो विशेष रूप से गुजरात और महाराष्ट्र में मनाई जाती है, एक धार्मिक पर्व है जिसमें श्रद्धालु इस नदी के किनारे पूजा और स्नान करते हैं। माना जाता है कि इस दिन ताप्ति नदी में डुबकी लगाने से पितरों को शांति मिलती है।
इसके अतिरिक्त, सूरत और बुरहानपुर जैसे शहरों में ताप्ति नदी के किनारे कई प्राचीन मंदिर स्थित हैं, जो धार्मिक पर्यटन के केंद्र हैं। इन मंदिरों में देवी ताप्ती को समर्पित पूजा-अर्चना होती है। इस प्रकार, ताप्ति नदी एक जलस्रोत के साथ ही श्रद्धा, आस्था और भारतीय संस्कृति का प्रतीक है
ताप्ती नदी के जल में खनिज और अम्लीयता जैसे प्राकृतिक गुण है, जो इसे और भी विशेष बनाते हैं, लेकिन बढ़ते प्रदूषण के चलते, ताप्ती को संरक्षण की आवश्यकता है।
ऐसी ही अन्य रोचक व धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिये श्री मंदिर के साथ!
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