भाद्रपद पूर्णिमा (Bhadrapada Purnima) 2024 Kab Hai, Muhurat, Vidhi, Vrat, Katha

भाद्रपद पूर्णिमा

इस महत्वपूर्ण दिन पर कैसे करें व्रत और पूजा का पालन


भाद्रपद पूर्णिमा (Bhadrapada Purnima) 2024

  • कब है भाद्रपद पूर्णिमा, जानें यहाँ
  • भाद्रपद पूर्णिमा व्रत का शुभ मुहूर्त क्या है?
  • भाद्रपद पूर्णिमा का इतिहास
  • भाद्रपद पूर्णिमा का महत्व
  • भाद्रपद पूर्णिमा व्रत पूजन सामग्री
  • जानिए भाद्रपद पूर्णिमा की पूजा कैसे करें
  • भाद्रपद पूर्णिमा व्रत के लाभ
  • भाद्रपद पूर्णिमा पर स्नान एवं दान
  • भाद्रपद पूर्णिमा व्रत की पावन कथा

भाद्रपद पूर्णिमा 2024 कब है? (Bhadrapada Purnima Kab Hai)

भक्तों नमस्कर, श्री मंदिर के इस धार्मिक मंच पर आपका स्वागत है!

सनातन धर्म में हर पूर्णिमा तिथियों की तरह भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि भी व्रत-पूजन के लिए विशेष मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है, वहीं इस दिन उमा-महेश्वर व्रत करने का भी विधान है। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन से ही श्राद्ध, यानि पितृपक्ष का भी प्रारंभ होता है।

चलिए जानते हैं कि भाद्रपद पूर्णिमा व्रत कब है?

  • भाद्रपद पूर्णिमा व्रत 17 सितंबर, मंगलवार को शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर किया जाएगा।
  • पूर्णिमा तिथि 17 सितंबर, मंगलवार को दिन में 11 बजकर 44 मिनट से प्रारंभ होगी।
  • पूर्णिमा तिथि का समापन 18 सितंबर, बुधवार को सुबह 08 बजकर 04 मिनट पर होगा।
  • भाद्रपद पूर्णिमा उपवास के दिन चन्द्रोदय शाम 05 बजकर 37 मिनट पर होगा।
  • उदय व्यापिनी भाद्रपद पूर्णिमा 18 सितंबर, बुधवार को मनाई जाएगी।

भाद्रपद पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त (Bhadrapada Purnima Shubh Muhurat)

  • इस दिन ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 04 बजकर 11 मिनट से प्रातः 04 बजकर 58 मिनट तक रहेगा।
  • प्रातः सन्ध्या मुहूर्त प्रात: 04 बजकर 34 मिनट से सुबह 05 बजकर 45 मिनट तक होगा।
  • अभिजित मुहूर्त दोपहर 11 बजकर 28 मिनट से 12 बजकर 17 मिनट तक रहेगा।
  • विजय मुहूर्त दिन में 01 बजकर 55 मिनट से 02 बजकर 44 मिनट तक रहेगा
  • इस दिन गोधूलि मुहूर्त शाम में 06 बजे से 06 बजकर 23 मिनट तक रहेगा।
  • सायाह्न सन्ध्या काल शाम में 06 बजे से 07 बजकर 10 मिनट तक रहेगा।
  • अमृत काल सुबह 07 बजकर 29 मिनट से 08 बजकर 54 मिनट तक रहेगा।
  • निशिता मुहूर्त 17 सितंबर की रात 11 बजकर 29 मिनट से 12 बजकर 16 मिनट तक रहेगा।

भाद्रपद पूर्णिमा पर दो विशेष योग भी बन रहे हैं:

  • रवि योग 17 सितंबर की सुबह 05 बजकर 45 मिनट से 01 बजकर 53 मिनट तक रहेगा।

तो यह थी भाद्रपद पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त से जुड़ी जानकारी। आप पूरी श्रद्धा से भगवान विष्णु व उमा-महेश्वर की उपासना करें। हमारी कामना है कि आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों, और श्री हरि की कृपा सदैव बनी रहे।

भाद्रपद पूर्णिमा का इतिहास/महत्व (Bhadrapada Purnima History)

भाद्रपद मास में आने वाली पूर्णिमा तिथि को भाद्रपद पूर्णिमा कहते हैं। इस पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के सत्यनारायण स्वरूप की उपासना करने का विधान है। इसके अलावा, इस दिन उमा-महेश्वर व्रत भी किया जाता है। यह पूर्णिमा इसलिए भी महत्व रखती है क्योंकि इसी दिन से पितृ पक्ष यानि श्राद्ध प्रारंभ होते हैं, जो आश्विन अमावस्या पर समाप्त होते हैं।

भाद्रपद पूर्णिमा का महत्व क्या है?

भाद्रपद पूर्णिमा के दिन व्रत-पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करके किसी निर्धन ब्राह्मण को दान देने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा के साथ पूजा की जाती है। कहते हैं कि घर में पूर्णिमा तिथि के दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से धन की प्राप्ति होती है।

पूर्णिमा के दिन प्रातः स्नान के बाद भगवन सत्यनारायण जी की पूजा कर उन्हें नैवेद्य व फल-फूल अर्पित किए जाते हैं। पूजा में भगवान को पीले फलो का भोग लगाया जाता है, साथ ही पूजा के पश्चात् भगवान सत्यनारायण जी की कथा सुनने का भी विशेष महत्व है। इस पूर्णिमा पर पंचामृत और चूरमे का प्रसाद वितरित करना शुभ माना जाता है।

भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक पितृ पक्ष रहता है, इसलिए इस दिन स्नान, दान, पूजा-पाठ के अलावा पितरों का तर्पण और श्राद्ध कर्म आदि भी किए जाते हैं।

उमा-महेश्वर व्रत क्या है?

भविष्यपुराण के अनुसार उमा महेश्वर व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को रखा जाता है, जबकि नारदपुराण के अनुसार, ये व्रत भाद्रपद की पूर्णिमा पर करने का विधान है। उमा महेश्वर व्रत विशेष रूप से स्त्रियों के लिए है। इस दिन स्त्रियां व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करती हैं, और उन्हें धूप, दीप, गंध, फूल एवं नैवेद्य अर्पित करती हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस व्रत के प्रभाव से संतान सुख, सौभाग्य और सुखमय जीवन की प्राप्ति होती है।

भाद्रपद पूर्णिमा के अनुष्ठान क्या हैं?

  • पूर्णिमा के दिन गाय, कौवे और कुत्तों के लिए ग्रास निकालने, और ब्राह्मण को भोजन करवाने से पितृ प्रसन्न होते है।
  • भाद्रपद पूर्णिमा के दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करके पितरों को जल अर्पित करना चाहिए।
  • ऐसी मान्यता है कि पूर्णिंमा के दिन चन्द्रमा को दूध मिश्रित जल का अर्ध्य देने से सौभाग्य बढ़ता है।
  • भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पितरों के निमित्त खीर बनाकर उसे किसी ज़रूरतमंद को खिलाने का विधान है।
  • भाद्रपद पूर्णिमा से पितृपक्ष प्रारंभ होने के कारण इस दिन गोदान, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, गुड़, नमक और फल का दान करना चाहिए।

तो यह थी भाद्रपद पूर्णिमा के महत्व व अनुष्ठान से जुड़ी जानकारी। हमारी कामना है कि आपकी आस्थापूर्वक की गयी उपासना सफल हो, और भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी व शिव-पार्वती की कृपा सदा बनी रहे।

भाद्रपद पूर्णिमा व्रत पूजन की तैयारी कैसे करें? (Bhadrapada Purnima Vrat)

हम आपके लिए जिस पूजा की विधि लेकर आए हैं, उसे करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और परम सुख की प्राप्ति होती है। हम बात कर रहे हैं भाद्रपद पूर्णिमा की पूजन विधि की, इस दिन भगवान सत्यनारायण जी की पूजा की जाती है। चलिए हम आपको बताते हैं कि भगवान जी के आशीष के लिए आप किस प्रकार करें पूजा-

  • सबसे पहले पूजा के स्थान और पूजन सामग्री पर गंगाजल छिड़क दें,
  • अब जहां भगवान जी को स्थापित करेंगे, वहां चौक या रंगोली बनाएं।
  • उसके ऊपर चौकी को रखें और उस पर पीला कपड़ा बिछा दें।
  • अब चौकी के ऊपर केले के पत्तों का मंडप बनाएं और चौकी पर श्रीसत्यनारायण भगवान जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • अब कलश की स्थापना के लिए मूर्ति के समक्ष चावल रखें और उस पर कलश रखकर उस पर मौली बांध दें।
  • अब कलश में गंगा जल, शुद्ध जल, सुपारी, सिक्का, हल्दी, कुमकुम आदि डाल दें और इसके मुख पर आम के पत्ते रख दें।
  • आम के पत्तों और नारियल पर भी मौली बांध कर रखें। मूर्ति या चित्र के दाएं तरफ एक घी का दीपक रख दें।

इस प्रकार पूजा की तैयारियां पूरी हो जाएंगी, अब आप पूजा प्रांरभ कर सकते हैं।

भाद्रपद पूर्णिमा की पूजा विधि (Bhadrapada Purnima Puja Vidhi)

  • सबसे पहले आसन ग्रहण करें और “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जाप करते हुए आचमन करें।
  • अब आप घी के दीपक को प्रज्वलित करें और हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें और फिर वह पुष्प भगवान जी के चरणों में अर्पित कर दें।
  • इसके बाद आप तुलसी के पत्ते से भगवान सत्यनारायण जी को पंचामृत अर्पित करें, साथ ही भगवान श्री सत्यनारायण जी को तिलक लगाएं, जनेऊ चढ़ाएं, पीले फूलों की माला पहनाएं और धूप दिखाएं।
  • सत्यनारायण भगवान जी की पूजा में भोग का विशेष महत्व होता है, इसलिए उन्हें प्रेमपूवर्क भोग अवश्य लगाएं और भोग में तुलसी का पत्ता डालना ना भूलें।
  • भोग के साथ फल और दक्षिणा भी भगवान जी को अर्पित करें।
  • यह पूजा सत्यनारायण भगवान जी की कथा के बिना अधूरी है, इसलिए पूरी श्रद्धा से कथा ज़रूर पढ़ें।
  • कथा पढ़ने के पश्चात् भगवान जी की आरती उतारें और अंत में प्रार्थना करें कि अगर आपसे कोई भूल-चूक हो गई हो तो भगवान आपको क्षमा कर दें।
  • इस प्रकार आपकी पूजा संपन्न हो जाएगी, आप इसके बाद प्रसाद का वितरण कर सकते हैं।

तो इस प्रकार आप भाद्रपद पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा कर पुण्य के भागीदार बन सकते हैं।

पूर्णिमा में क्यों महत्वपूर्ण है स्नान - दान?

पूर्णिमा धार्मिक दृष्टि से बहुत ही विशेष तिथि मानी जाती है। इस दिन किया गया स्नान और दान बहुत ही फलदायक और मनुष्य को मोक्ष दिलाने वाला होता है।

तो चलिए आज पूर्णिमा पर स्नान और दान के महत्व और इसके लाभ के बारे में विस्तार से जानते हैं -

सबसे पहले बात करते हैं स्नान की

स्नान: हिन्दू धर्म में तीर्थ स्नान को बहुत ही शुभ माना जाता है। और पूर्णिमा तिथि पर किया गया गंगा स्नान तो जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति दिलाने वाला होता है। इस तिथि पर जो जातक गंगा स्नान करते हैं, उनपर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है।

स्नान से जुड़े सरल उपाय: अगर आप पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान नहीं कर सकते, तो किसी अन्य पवित्र नदी या घाट के किनारे जाकर स्नान करके पुण्यफल की प्राप्ति कर सकते हैं। और यदि ये भी संभव ना हो, तो अपने घर में ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद सूर्यदेव को अर्घ्य अवश्य दें, इससे आपको तीर्थ स्नान के बराबर का पुण्यफल प्राप्त होगा।

लाभ: पूर्णिमा पर पवित्र स्नान करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। आपको बुरे कर्मो से मुक्ति मिलती है, जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं, और मृत्यु के बाद वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।

दान:

अब बात करें पूर्णिमा पर दान के महत्व की, तो इस दिन किए गए दान से असंख्य पुण्य मिलते हैं। विशेषकर अगर ये दान आप दीन-दुखियों को देते हैं, तो दीनबंधु कहलाने वाले भगवान विष्णु अति प्रसन्न होते हैं, साथ ही आपको किसी ज़रूरतमंद का आशीर्वाद भी मिल जाता है। इसलिए पूर्णिमा तिथि पर वस्त्र, अन्न, घी, गुड़ और फल का दान अवश्य करें।

सरल उपाय:

पूर्णिमा तिथि पर आप किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति को उसकी आवश्यकता की कोई भी वस्तु दान में दे सकते हैं।

लाभ:

पूर्णिमा पर किये गए दान से जहां किसी ग़रीब का भला होगा, वहीं आपको मोह से मुक्ति मिलेगी। साथ ही भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विशेष आशीर्वाद से आपके घर में धन-धान्य और सुख-शांति बनी रहेगी।

पूर्णिमा की पूजा विधि, कथा, और लाभ से संबंधित जानकारियां भी 'श्री मंदिर' पर उपलब्ध हैं, आप उन्हें भी ज़रूर देखें। हम आशा करते हैं कि आपको इस पावन पूर्णिमा का सम्पूर्ण फल मिले।

पूर्णिमा के पांच विशेष लाभ (Bhadrapada Purnima Laabh)

पूर्णिमा एक ऐसी पावन तिथि है, जिस दिन जातक स्नान-दान, जप-तप आदि धार्मिक कार्य करके अपने पिछले सभी पापों के प्रभाव को नष्ट कर सकते हैं, साथ ही आने वाले जीवन को सुख-समृद्धि से भर सकते हैं। इसके अलावा भी कई ऐसे अद्भुत लाभ हैं, जो आपको पूर्णिमा तिथि पर मिलते हैं, चलिए उनके बारे में जानते हैं।

पहला लाभ- सुख-सौभाग्य व संतान का सुख

पूर्णिमा पर किसी ब्राह्मण या ज़रूरतमंद को दान देने से भगवान विष्णु अत्यधिक प्रसन्न होते हैं, और जातक को अपनी कृपा का पात्र बनाकर उन्हें सुख-सौभाग्य, धन-संतान आदि का सुख प्रदान करते हैं।

दूसरा लाभ - धन-धान्य से भर जाएगा भंडार

इस दिन गंगा नदी तट पर दीप दान करने से देवी लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होती हैं, और अपने आशीर्वाद स्वरूप, भक्तों का भंडार धन-धान्य से भर देती हैं।

तीसरा लाभ- असाध्य रोगों से मिलेगा छुटकारा

पूर्णिमा की रात में चंद्रमा की पूजा करने से चंद्र दोष नष्ट होता है, और चंद्र देव को खीर का भोग अर्पित करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे आर्थिक तंगी व असाध्य रोगों से छुटकारा मिलता है।

चौथा लाभ- दूर होगा बुरी आत्माओं का प्रभाव

माना जाता है कि पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ हनुमान जी की पूजा करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, और आस-पास की बुरी आत्माओं का प्रभाव दूर हो जाता है।

पांचवां लाभ- मिलेगा पितरों का आशीर्वाद

पूर्णिमा तिथि पर पितरों की शांति के लिए गंगा घाट पर तिल, कंबल, कपास, गुड़, घी और फल आदि का दान कर तर्पण करने से उनका आशीर्वाद मिलता है, और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।

तो दोस्तों, ये थे इस पूर्णिमा तिथि पर मिलने वाले कुछ विशेष लाभ।

पूर्णिमा व्रत की पावन कथा (Bhadrapada Purnima Katha)

सनातन धर्म में पूर्णिमा तिथि का अत्यंत महत्व है। इनमें से पूर्णिमा अत्यंत फलदाई मानी जाती है। इस दिन व्रत रखने व वैशाख पूर्णिमा की कथा सुनने का विशेष महत्व है।

तो चलिए, इस पावन कथा रसपान करते हैं। पौराणिक कथा में वर्णन मिलता है कि किसी नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी रूपवती, पतिव्रता और सर्वगुण संपन्न थी। बस दुख था तो सिर्फ़ इस बात का, कि उनकी कोई संतान नहीं थी। यही कारण था, कि वो दोनों बहुत चिंतित रहते थे। एक बार उस नगर में एक महात्मा आए। वो नगर के सभी लोगों से दान लेते थे, लेकिन धनेश्वर की पत्नी जब भी उन्हें दान देने जाती, तो वो उसे लेने से मना कर देते थे। एक दिन धनेश्वर ने उन महात्मा के पास जाकर पूछा- हे महात्मन्! आप नगर के सभी लोगों से दान लेते हैं, लेकिन मेरी पत्नी के हाथ का दान क्यों नहीं स्वीकार करते? हमसे अगर कोई भूल हुई हो तो हम ब्राह्मण दंपत्ति आपसे क्षमा याचना करते हैं।

महात्मा बोले- नहीं विप्र! तुम तो बहुत ही विनम्र और हमेशा आदर-सत्कार करने वाले ब्राह्मण हो! तुमसे भूल तो कदापि नहीं हो सकती। महात्मा की बात सुनकर, धनेश्वर हाथ जोड़कर बोला- हे मुनिवर! फिर आख़िर क्या कारण है? कृपया हमें उससे अवगत कराएं। इसपर महात्मा बोले- हे विप्र! तुम्हारे कोई संतान नहीं है। और जो दंपत्ति निःसंतान हो, उसके हाथ से भिक्षा लेना, अधम या पापी के हाथ से भिक्षा ग्रहण करने के समान है! तुम्हारे द्वारा दिया गया दान लेने के कारण मेरा पतन हो जायेगा! बस यही कारण है, कि मैं तुम दंपत्ति से दान स्वीकार नहीं करता।

महात्मा के ये वचन सुनकर, धनेश्वर उनके चरणों में गिर पड़ा, और विनती करते हुए बोला- हे महात्मन्! संतान ना होना ही तो हम पति-पत्नी के जीवन की सबसे बड़ी निराशा है। यदि संतान प्राप्ति का कोई उपाय हो, तो बताने की कृपा करें मुनिवर! ब्राह्मण का दुःख देखकर महात्मा बोले- हे विप्र! तुम्हारे इस कष्ट का एक निवारण अवश्य है! तुम 16 दिनों तक श्रद्धापूर्वक काली माता की पूजा करो! मां प्रसन्न होंगी, तो उनकी कृपा से अवश्य तुम्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी! इतना सुनकर धनेश्वर बहुत ख़ुश हुआ। उसने कृतज्ञतापूर्वक महात्मा का आभार प्रकट किया और घर आकर पत्नी को सारी बात बताई। पति-पत्नी को महात्मा के द्वारा बताए गए उपाय से आशा की एक किरण दिखाई दी, और धनेश्वर मां काली की उपासना के लिए वन चला गया।

ब्राह्मण ने पूरे 16 दिन तक काली माता की पूजा की और उपवास रखा। उसकी भक्ति देखकर और विनती सुनकर मां ब्राह्मण के सपने में आईं, और बोलीं- हे धनेश्वर! तू निराश मत हो! मैं तुझे संतान के रूप में पुत्ररत्न की प्राप्ति का वरदान देती हूं! लेकिन 16 साल की अल्पायु में ही तेरे पुत्र की मृत्यु हो जाएगी। काली माता ने कहा- यदि तुम पति-पत्नी विधिपूर्वक 32 पूर्णिमासी का व्रत करोगे, तो तुम्हारी संतान दीर्घायु हो जायेगी। प्रातःकाल जब तुम उठोगे, तो तुम्हें यहां आम का एक वृक्ष दिखाई देगा। उस पेड़ से एक फल तोड़ना, और ले जाकर अपनी पत्नी को खिला देना। शिव जी की कृपा से तुम्हारी पत्नी गर्भवती हो जाएगी। इतना कहकर माता अंतर्ध्यान हो गईं।

प्रातःकाल जब धनेश्वर उठा, तो उसे आम का वृक्ष दिखा, जिसपर बहुत ही सुंदर फल लगे थे। वो काली मां के कहे अनुसार फल तोड़ने के लिए वृक्ष पर चढ़ने लगा। उसने कई बार प्रयास किया लेकिन फिर भी फल तोड़ने में असफल रहा। तभी उसने विघ्नहर्ता गणेश भगवान का सुमिरन किया, और गणपति की कृपा से इस बार वो वृक्ष पर चढ़कर फल तोड़ लाया। धनेश्वर ने अपनी पत्नी को वो फल दिया, जिसे खाकर वो कुछ समय बाद गर्भवती हो गई।

दंपत्ति काली मां के निर्देश के अनुसार हर पूर्णिमा पर दीप जलाते रहे। कुछ दिन बाद भगवान शिव की कृपा हुई, और ब्राह्मण की पत्नी ने एक सुंदर बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम उन्होंने देवीदास रखा। जब पुत्र 16 वर्ष का होने को हुआ, तो माता-पिता को चिंता होने लगी कि इस वर्ष उसकी मृत्यु निश्चित है। दंपत्ति ने देवीदास के मामा को बुलाया, और कहा- तुम देवीदास को विद्या अध्ययन के लिए काशी ले जाओ, और एक वर्ष बाद वापस आना। दंपत्ति पूरी आस्था के साथ पूर्णिमासी का व्रत कर पुत्र के दीर्घायु होने की कामना करते रहे।

इधर काशी प्रस्थान के बाद मामा भांजे एक गांव से गुज़र रहे थे। वहां एक कन्या का विवाह हो रहा था, परंतु विवाह होने से पूर्व ही उसका वर अंधा हो गया। तभी वर के पिता ने देवीदास को देखा, और मामा से कहा- तुम अपना भांजा कुछ समय के लिए हमें दे दो। विवाह संपन्न हो जाए, उसके बाद ले जाना। ये सुनकर मामा ने कहा- यदि मेरा भांजा ये विवाह करेगा, तो कन्यादान में मिले धन आदि पर हमारा अधिकार होगा। वर के पिता ने मामा की बात स्वीकार कर ली और देवीदास के साथ कन्या का विवाह संपन्न हो गया।

इसके पश्चात् देवीदास पत्नी के साथ भोजन करने बैठा, लेकिन उसने उस थाल को हाथ नहीं लगाया। ये देखकर पत्नी बोली- स्वामी! आप भोजन क्यों नहीं कर रहे हैं? आपके चेहरे पर ये उदासी कैसी? तब देवीदास ने सारी बात बताई। यह सुनकर कन्या बोली- स्वामी मैंने अग्नि को साक्षी मानकर आपके साथ फेरे लिए हैं, अब मैं आपके अलावा किसी और को अपना पति स्वीकार नहीं करूंगी। पत्नी की बात सुनकर देवीदास ने कहा- ऐसा मत कहो! मैं अल्पायु हूं! कुछ ही दिन में 16 वर्ष की आयु होते ही मेरी मृत्यु निश्चित है। लेकिन पत्नी ने कहा, जो भी उसके भाग्य में लिखा होगा, वो उसे स्वीकार है।

देवीदास के बहुत कहने पर भी जब वो नहीं मानी, तो देवीदास ने उसे एक अंगूठी दी, और कहा- मैं विद्या अध्ययन के लिए काशी जा रहा हूं। लेकिन तुम मेरे जीवन-मरण के बारे में जानने के लिए एक पुष्प वाटिका तैयार करो! उसमें भांति-भांति के पुष्प लगाओ, और और उन्हें जल से सींचती रहो! यदि वाटिका हरी भरी रहे, पुष्प खिले रहें, तो समझना कि मैं जीवित हूं! और जब ये वाटिका सूख जाए, तो मान लेना कि मेरी मृत्यु हो चुकी है। इतना कहकर देवीदास काशी चला गया।

प्रातःकाल जब कन्या ने दूसरे वर को देखा, तो बोली- ये मेरा पति नहीं है! मेरा पति काशी पढ़ने गया है। यदि इसके साथ मेरा विवाह हुआ है, तो बताए कि रात्रि में मेरे और इसके बीच क्या बातें हुईं थी, और इसने मुझे क्या दिया था? ये सुनकर वर बोला मुझे कुछ नहीं पता, और पिता-पुत्र लज्जित होकर चले गए।

उधर एक दिन प्रातःकाल एक सर्प देवीदास को डसने के लिए आया, लेकिन उसके माता पिता द्वारा किए जाने वाले पूर्णिमा व्रत के प्रभाव के कारण वो उसे डस नहीं पाया। तत्पश्चात् काल स्वयं वहां आए और उसके शरीर से प्राण निकालने लगे। देवीदास मूर्छित होकर गिर पड़ा। तभी वहां माता पार्वती और शिव जी आए। देवीदास को मूर्छित देखकर देवी पार्वती बोलीं- हे स्वामी! देवीदास की माता ने 32 पूर्णिमा का व्रत रखा था! उसके फलस्वरूप कृपया आप इसे जीवनदान दें! माता पार्वती की बात सुनकर भगवान शिव ने देवीदास को पुनः जीवित कर दिया।

इधर देवीदास की पत्नी ने देखा कि पुष्प वाटिका में एक भी पुष्प नहीं रहा। वो जान गई की उसके पति की मृत्यु हो चुकी है, और रोने लगी। तभी उसने देखा कि वाटिका पुनः हरी-भरी हो गई है। ये देखकर वो बहुत प्रसन्न हुई। उसे पता चल गया कि देवीदास को प्राणदान मिल चुका है। जैसे ही देवीदास 16 वर्ष का हुआ, मामा भांजा काशी से वापस चल पड़े। रास्ते में जब वो कन्या के घर गए, तो उसने देवीदास को पहचान लिया और अत्यंत प्रसन्न हुई। धनेश्वर और उसकी पत्नी भी पुत्र को जीवित पाकर हर्ष से भर गए।

तभी से ऐसी मान्यता है, कि पूर्णिमा तिथि पर व्रत रखने एवं इस कथा का पाठ करने या श्रवण करने से सदैव भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है, समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, साथ ही संतानहीन दंपत्ति को ये व्रत रखने से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।

तो भक्तों, ये थी भाद्रपद पूर्णिमा से जुड़ी पूरी जानकारी। हमारी कामना है कि आपका ये व्रत सफल हो, और संपूर्ण फल मिले। अन्य जानकारियां भी आपके लिए श्री मंदिर पर उपलब्ध हैं, उन्हें भी अवश्य देखें, ताकि आप विधि-विधान से स्नान-दान और पूजा करके इस पावन तिथि का संपूर्ण पुण्यफल प्राप्त कर सकें।

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