सनातन धर्म में काली चौदस का विशेष महत्व है। हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन काली चौदस मनाई जाती है। इसे छोटी दिवाली और नरक चतुर्दशी भी कहते हैं। यह दिन मां काली को समर्पित है और इस दिन की उनकी पूजा शुभ मानी जाती है। कहा जाता है कि काली चौदस पर मां काली की उपासना करने से वह जल्दी प्रसन्न होती है। पौराणिक कथानुसार रक्तबीज नामक एक शक्तिशाली राक्षस था जिसे यह वरदान प्राप्त था कि उसके खून की हर बूंद से एक नया राक्षस पैदा हो सकता था। देवता उसे हराने में असमर्थ थे क्योंकि जब भी उसे घायल करते, उसका खून जमीन पर गिरते ही और राक्षस पैदा हो जाते। इससे रक्तबीज को हराना लगभग असंभव हो गया था। इस संकट को समाप्त करने के लिए, माँ काली प्रकट हुईं और उन्होंने अपनी जीभ फैलाकर युद्धभूमि पर फैला दी, जिससे रक्त की कोई भी बूंद जमीन पर नहीं गिरी। इस तरह, उन्होंने रक्तबीज को पुनर्जन्म से रोक दिया और उसे पराजित किया। मान्यता है कि मां काली वह देवी है जो बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश करती है। कहा जाता है कि मां काली की उपासना करने से देवी काली द्वारा दैवीय सुरक्षा प्राप्त होती है। इसलिए भक्त काली चौदस पर मां काली को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के अनुष्ठान करते हैं, जिनमें से मां काली तंत्र युक्त हवन और रुद्र काली तांडव स्तोत्र पाठ भी शामिल है।
काली तंत्र युक्त हवन एक अग्नि अनुष्ठान है, जिसमें मां काली को समर्पित मंत्र का उच्चारण करते हुए अग्नि में आहुतियां दी जाती है। वहीं रुद्र काली तांडव स्तोत्र पाठ मां काली के उग्र और शक्तिशाली रूप की स्तुति है। मान्यता है कि काली चौदस पर इस अनुष्ठान को करने से देवी काली का दिव्य आशीष प्राप्त होता है। वहीं यदि यह अनुष्ठान किसी शक्तिपीठ में किया जाए तो यह कई गुना अधिक फलदायी हो सकता है। इसलिए काली चौदस के शुभ अवसर पर पहली बार देश के तीन सबसे बड़े सिद्धपीठों में माँ काली तंत्र युक्त हवन एवं रुद्र काली तांडव स्तोत्र पाठ का आयोजन किया जा रहा है।
शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर : कोलकाता में स्थित यह शक्तिपीठ मां काली का सबसे बड़ा मंदिर है। मान्यता है कि देवी सती के दाहिने पैर का अंगूठा इस स्थान पर गिरा था। मां काली को प्रसन्न करने के लिए यह सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में एक है, क्योंकि इस मंदिर में देवी काली की प्रचंड रूप की प्रतिमा स्थापित है।
तंत्रपीठ कालीमठ मंदिर : मान्यताओं के अनुसार, रुद्रप्रयाग में स्थित तंत्रपीठ कालीमठ मंदिर में मां काली यंत्र जागृत रूप में विराजमान है। देवी भागवत और दुर्गा सप्तशती के अनुसार, रक्तबीज और शुंभ-निशुंभ जैसे राक्षसों का वध करने के बाद, देवी भगवती अपने महाकाली रूप में इसी स्थान पर पहुंची थीं। माना जाता है कि यहां पूजा करने से मां काली शीघ्र ही प्रसन्न होती है।
शक्तिपीठ मां तारापीठ मंदिर : पश्चिम बंगाल के वीरभूम में स्थित शक्तिपीठ मां तारापीठ मंदिर पवित्र 51 शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि माता सती के अंगों में से आंख की पुतली यहां गिरी थी। बांग्ला में आंख की पुतली को तारा कहते हैं और इसलिए इस जगह का नाम तारापीठ पड़ा। यहां देवी काली अपने दूसरे स्वरूप अर्थात तारा देवी के रूप में विराजित हैं।
इसलिए श्री मंदिर के माध्यम से काली चौदस के शुभ अवसर पर पहली बार इन तीन सिद्धपीठों में होने वाली माँ काली तंत्र युक्त हवन एवं रुद्र काली तांडव स्तोत्र पाठ में भाग लें और मां काली द्वारा दुर्भाग्य, बुरी शक्तियों और नकारात्मकता से सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त करें।