हिन्दू धर्म में मां काली की पूजा को अमावस्या के दिन करने के धार्मिक और आध्यात्मिक दोनों ही महत्व है। ऐसा माना जाता है कि मां काली की पूजा तांत्रिक साधना के लिए मुख्य रूप से की जाती है। अमावस्या का दिन इस पूजा के लिए बहुत ही खास माना जाता है। मां काली का स्वरूप भयंकर और उग्र होता है और वह अध्यात्मिक लड़ाई और दुर्गति का नाश करने की शक्ति का प्रतीक है। इसलिए, अमावस्या का समय इस उग्र रूप की पूजा के लिए शास्त्रों में सबसे उपयुक्त बताया गया है। दर्श अमावस्या की आधी रात पर मां महाकाली की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन से अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं। 
मान्यता है कि देवी काली की पूजा नकारात्मक ऊर्जाओं को नष्ट करने और आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए बेहद कारगर है। कहते हैं सृष्टि की रचना से पहले देवी महाकाली अंधकार के रूप में सब तरफ विद्यमान थीं। सृष्टि को प्रारंभ करने के लिए देवी ने ज्योति स्वरुप में माँ तारा को प्रकट किया और प्रकृति की रचना शुरू की। इसी कारण पश्चिम बंगाल के श्री तारापीठ मंदिर में देवी महाकाली की पूजा का विशेष महत्त्व है। इसलिए अमावस्या की रात्रि इस शक्तिपीठ में पूजा-अर्चना कर देवी काली से साहस एवं शक्ति का परम आशीर्वाद पाया जा सकता है। इसलिए दर्श अमावस्या की रात्रि पर इस दिव्य शक्तिपीठ में दिव्य महाकाली तंत्र युक्त हवन का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें श्री मंदिर के माध्यम से भाग लें और साहस प्राप्ति के साथ बाधाओं से सुरक्षा का आशीष पाएं।