भैरव का अर्थ है 'रक्षा करने वाला।' भगवान भैरव की साधनाओं को कलियुग में सबसे सरल और सफल मानी गई है। शिव महापुराण के अनुसार भैरव, भगवान शिव का ही रूप हैं, जो अपने भक्तों को सभी खतरों से सुरक्षा का आशीष देते हैं। शास्त्रीय शक्ति समागम तंत्र में भैरव की अभिव्यक्ति का वर्णन किया गया है, जिसमें आपद नामक राक्षस ने प्राचीन काल में तपस्या कर अजेय होने का वरदान प्राप्त किया और यह वर भी हासिल किया कि उसकी मृत्यु पांच साल के बच्चे द्वारा ही हो सकती है। वरदान मिलने के बाद आपद ने हर जगह हाहाकार मचा दिया। जैसे-जैसे उसके अपराध असहनीय होने लगे, तब देवताओं ने मिलकर चिंतन किया और उसके जीवनकाल को समाप्त करने की योजना बनाई, जिसके बाद उन्होंने भगवान शिव से सहायता के लिए प्रार्थना की। भगवान के चिंतन-मंथन से एक शानदार प्रकाश चमक उठा, जिससे एक पांच साल के बच्चे बटुक भैरव की उत्पत्ति हुई।
बाल बटुक को सभी देवगण ने आशीर्वाद दिया, जिससे बटुक कभी नहीं रुके बल्कि अजेय हो गए। बटुक भैरव ने राक्षस आपद का वध किया, जिससे उन्हें आपदुद्धारक बटुक भैरव या उपनाम भैरव के नाम से जाना जाने लगा। भैरव वह देवत्व हैं, जो अपने भक्तों की समस्याओं का समाधान निकालने में मदद करते हैं। उसी समय से आपद शब्द समस्याओं का पर्याय बन गया है। बाबा बटुक भैरव के बारे में यह भी कहा जाता है कि इनमें सभी ग्रहों को शांत करने की क्षमता है, चाहे वह शनि ग्रह हो अथवा राहु या केतु ग्रह। क्योंकि बटुक भैरव के मस्तक पर स्वयं सूर्य विद्यमान हैं, जिन्हें नवग्रहों में अधिपति का दर्जा प्राप्त है। भगवान भैरव की आराधना से व्यक्ति को भय, आशंकाओं और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। रविवार का दिन भगवान भैरव को समर्पित है, वहीं श्रावण माह भगवान शिव को समर्पित है, इसलिए शिव जी के अंश होने के कारण श्रावण के पवित्र माह में भैरव की पूजा ज्योतिर्लिंग में करने से अत्यंत प्रभावशाली होता है। इसलिए श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में होने वाली श्री बटुक भैरव आपदा हरण यज्ञ और बटुक भैरव अष्टकम पाठ में श्री मंदिर द्वारा भाग लें और भगवान भैरव से भय एवं नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा का आशीष पाएं।