हिंदु धर्म में एकादशी तिथि को सबसे शुभ तिथियों में से एक माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पार्श्व एकादशी कहते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी शयन मुद्रा बदलते हैं, यानि वे बाईं से दाईं ओर करवट बदलते हैं। इसलिए इस एकादशी को पार्श्व परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन को भगवान विष्णु के इस दिव्य परिवर्तन का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन श्री हरि विष्णु की विधिवत पूजा करने से सभी कष्टों का निवारण होता है, वहीं जो लोग इस दिन पितृ दोष पूजा, पितृ तर्पण और पिंड दान करते हैं, उनके पूर्वजों को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है और भगवान विष्णु उन्हें अपने शरण में स्थान देते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मोक्ष नगरी काशी में पितृ पूजा का अपना विशिष्ट महत्व है, कहते हैं कि यहां पितृ पूजा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख एवं समृद्धि का आशीष प्राप्त होता है। माना जाता है कि काशी में पितृ पूजा करने से पितृओं की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है और जीवित व्यक्तियों को उनके पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
वहीं गंगोत्री धाम में गंगा अभिषेक पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि यहां इस पवित्र स्थान पर अभिषेक करने से व्यक्ति के समस्त पाप धुल जाते हैं और उसे आध्यात्मिक शांति कि प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, गंगोत्री धाम में ही देवी गंगा का अवतरण हुआ था। इस क्षेत्र में भगवान श्री रामचन्द्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तप किया था, जिनकी तपस्या से शिवजी प्रसन्न होकर यहां प्रकट हुए एवं उन्होंने मां गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर उनका वेग शांत किया था। इन दोनों धार्मिक स्थलों पर पितृ पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है। इसलिए पार्श्व एकादशी के शुभ दिन पर पितृ दोष निवारण पूजा और गंगोत्री धाम गंगा अभिषेक पूजा का आयोजन किया जाएगा। वहीं इस पूजा के साथ-साथ गौ पूजन करने से भी भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा और गंगा आरती में भाग लें और अपने पूर्वजों का आशीष पाएं।