हिंदु धर्म में श्रावण मास को भगवान शिव का महीना माना जाता है। मान्यता है कि इस महीने में भगवान शिव की आराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। भगवान काल भैरव को भगवान शिव का उग्र रूप माना जाता है और उन्हें समय का देवता भी कहा जाता है। काल भैरव को काल के देवता भी कहा गया है। भैरव का अर्थ है ‘भय को हरने वाला’। धर्म शास्त्रों के अनुसार, जिस तरह भगवान काल भैरव भगवान शिव के रौद्र अवतार हैं, उसी तरह देवी काली माता दुर्गा का उग्र रूप हैं। अमावस्या का दिन देवी देवताओं के उग्र रूप की पूजा की जाती है, इसे तंत्र साधना का दिन भी माना गया है। इसलिए शिव जी के प्रिय माह श्रावण में अमावस्या तिथि पर भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव के साथ देवी काली की उपासना अत्यंत शुभ मानी गई है। मान्यता है कि इस शुभ दिन पर महा काल भैरव के साथ देवी काली की पूजा करने से भक्त के सारे भय खत्म हो जाते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने सभी शक्तिपीठों की रक्षा की जिम्मेदारी भगवान भैरव को दी थी। इसलिए सभी शक्तिपीठ मंदिरों में काल भैरव का भी विशेष पूजन किया जाता है। काल भैरव के दर्शन के बिना देवी मंदिरों के दर्शन का पुण्य अधूरा माना जाता है। इसलिए इस शुभ दिन पर देवी काली का आशीष पाने के लिए उनके साथ काल भैरव की पूजा करना भी आवश्यक माना गया है। महा काल भैरव और मां काली सभी नकारात्मक ऊर्जाओं को नष्ट कर भक्तों को निर्भयता का आशीष देते हैं। इसलिए श्री मंदिर द्वारा श्रावण माह के अमावस्या तिथि पर पश्चिम बंगाल में स्थित शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर में महा काल भैरव पूजन और हवन एवं कालिका पूजन का आयोजन किया जा रहा है। यह मंदिर तांत्रिक पूजा के लिए सबसे शुभ शक्तिपीठ माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां देवी सती का दाहिने पैर की उंगली गिरी थी, जब भगवान शिव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे। इस कारण, यह स्थल अत्यंत पवित्र 51 शक्तिपीठों में शामिल है। श्री मंदिर के माध्यम से जीवन में निर्भयता प्राप्ति एवं नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा के लिए इस पूजा में भाग लें और काल भैरव संग देवी काली का दिव्य आशीष पाएं।