यह देश का दूसरा सबसे बड़ा सूर्य मंदिर है
.मानसखण्ड, उत्तराखंड, भारत
धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से उत्तराखंड बहुत समृद्ध है। हिमालय की गोद में बसे इस राज्य में पहाड़ों पर कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जो कि श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। आज हम आपको अल्मोड़ा शहर से करीब 18 किलोमीटर दूर अधेली सुनार क्षेत्र में स्थित कटारमल सूर्य मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। आज हम आपको बताएंगे कि कटारमल सूर्य मंदिर का प्राचीन इतिहास क्या है, कटारमल सूर्य मंदिर किसने बनाया था और कआरमल सूर्य मंदिर कैसे पहुंचे? तो आइए जानते है कटारमल सूर्य मंदिर के बारे में संपूर्ण जानकारी। बड़ादित्य के नाम से प्रसिद्ध यह पूर्वाभिमुख सूर्य मंदिर कुमाऊं के विशालतम ऊंचे मन्दिरों में से एक है। यह देश का दूसरा सबसे बड़ा सूर्य मंदिर है, जबकि पहला सबसे बड़ा ओडिशा के कोणार्क का सूर्य मंदिर हैं। कटारमल सूर्य मंदिर के आसपास का वातावरण बहुत ही मनमोहक और शांत है। इसे देखने के लिए दूर दूर से पर्यटक आते हैं।
मंदिर का इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कटारमल सूर्य मंदिर की स्थापना कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल ने की थी। मंदिर का निर्माण 6वीं से 9वीं शताब्दी के बीच माना जाता है। कहते हैं कि एक समय द्रोणगिरी पर्वत की कन्दराओं में तपस्या कर रहे ऋषि-मुनियों पर अधर्मियों ने अत्याचार करना शुरू कर दिया, जिसके बाद सभी ऋषि-मुनियों ने एकजुट होकर कौशिकी (जिसे अब कोसी नदी के नाम से जानते हैं) के तट पर सूर्य देव की स्तुति की। ऋषि-मुनियों की प्रार्थना से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने अपने दिव्य तेज को एक वटशिला में समाहित कर नदी के तट पर ही स्थापित कर दिया, जिसके बाद ऋषि-मुनि उसी वटशिला पर बैठ कर तपस्या करने लगे। कथाओं के अनुसार, उसी वटशिला पर कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल ने बड़ादित्य तीर्थ स्थान के रूप में इस सूर्य मन्दिर का निर्माण करवाया, जो कि कटारमल सूर्य मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। कत्यूरी राजवंश के बारे में कहा जाता है कि यह एक मध्ययुगीन राजवंश था, जो कि अयोध्या के शालिवाहन शासक के वंशज थे। इसीलिए इन्हें सूर्यवंशी कहा गया। माना जाता है कि इसी कारण उन्होंने सूर्य मंदिर का निर्माण भी करवाया था। कटारमल मंदिर के मुख्य भवन का शिखर भाग आज भी खंडित है। कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण रातों रात करने का निर्णय लिया गया, सुबह सूर्य निकलने तक मुख्य मंदिर के शिखर का भाग छूट गया। वह आज भी वैसे ही है। जानकारी के अनुसार, मंदिर से 10वीं शताब्दी की एक प्रतिमा चोरी हो गई थी। जिसके बाद मंदिर के गर्भगृह के प्राचीन व महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार को निकलवाकर दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में रखवा दिया गया। लकड़ी का बना यह प्रवेश द्वार ऊच्चकोटि की नक्काशी की कला को दर्शाता है।
मंदिर का महत्व
1. कहा जाता है कि इस मंदिर में देवी-देवता भगवान सूर्य की आराधना करते थे। 2. श्रद्धा व भक्ति से मांगी गई हर मुराद यहां पूरी होती है। 3. उज्ज्वल भविष्य की कामना लेकर यहां दूर दूर से भक्त आते हैं। 4. कटारमल सूर्य मंदिर को कोणार्क के सूर्य मंदिर से 200 साल पुराना बताया जाता है।
मंदिर की वास्तुकला
कटारमल सूर्य मंदिर की वास्तुकला की बात करें तो मंदिर एक सुंदर चट्टान के ढाल पर बना है। सामने कोसी घाटी का सुंदर नजारा देखने को मिलता है। भगवान सूर्य देव के दर्शन के साथ भक्त यहां प्राकृतिक सौंदर्य का अनुभव भी ले सकते हैं। यहां मुख्य रूप से भगवान सूर्य देव की पूजा की जाती है। इसके अतिरिक्त यहां भगवान शिव, गणेश जी, विष्णु जी सहित अन्य देवी-देवताओं की भी पूजा अर्चना होती है। मंदिर के आसपास 45 छोटे-छोटे मंदिरों का समूह है। नागर शैली में बने इस मंदिर में सूर्य देव पद्मासन मुद्रा में विराजमान हैं। मंदिर की संरचना त्रिरथ है, जो वर्गाकार गर्भगृह के साथ शिखर वक्र रेखी है। मंदिर की संरचना को आधार दिए खम्भों पर खूबसूरत रूप से नक्काशी की गई है। मंदिर के पूर्वामुखी होने की वजह से सूर्य की किरणें सबसे पहले मुख्य भवन पर पड़ती हैं। मंदिर में स्थापित भगवान आदित्य की मूर्ति बड़ के पेड़ की लकड़ी से बनी है। इस वजह से मंदिर को बड़ादित्य के नाम से भी जाना जाता है।
मंदिर का समय
कटारमल सूर्य मंदिर के सुबह खुलने का समय
06:00 AM - 12:00 PMशाम को कटारमल सूर्य मंदिर खुलने का समय
03:00 PM - 07:00 PMमंदिर का प्रसाद
कटारमल सूर्य मंदिर में किसी भी प्रकार का प्रसाद नहीं चढ़ाया जाता है। इसके अतिरिक्त भक्त अपनी श्रद्धा से फूल अर्पित करते हैं।
यात्रा विवरण
मंदिर के लिए यात्रा विवरण नीचे दिया गया है