श्री हनुमान अवतार

श्री हनुमान अवतार

जानें भगवान शिव के हनुमान अवतार की कथा


हनुमान जी का नाम, सदैव प्रभु श्री राम के साथ लिया जाता है, क्योंकि वह उनके परम भक्त हैं। मगर शायद ही कोई इस बात से परिचित हो, कि हनुमान जी, शिव जी का ही एक अवतार हैं। शिव जी का हनुमान अवतार, उनका ग्यारहवां अवतार माना जाता है, जो उनके सबसे रौद्र रूपों में से एक है।

शिव पुराण के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु के मोहिनी रूप से आकर्षित होकर और कामदेव की माया में आकर, भगवान शिव ने अपना वीर्यपात कर दिया। इस वीर्य को नग नामक मुनि ने शिवजी के संकेत से इस इच्छा से रख लिया कि उसके द्वारा रामचंद्र जी का कार्य सिद्ध होगा। इस वीर्यपात को एक पत्ते पर रखकर, सप्त ऋषियों द्वारा माता अंजनी के कान के जरिए, उनके गर्भ तक पहुंचाया गया। इसके बाद, माता अंजनी गर्भवती हुईं और उन्होंने हनुमान जी को जन्म दिया, जो बचपन से ही बहुत बलवान और ताकतवर थे।

भगवान शिव द्वारा हनुमान का वानर रूप में जन्म लेने का मुख्य कारण था, रावण द्वारा भगवान शिव के परम भक्त नंदी का अपमान। ऐसी मान्यता है कि लंकापति रावण, भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था और रावण को उनसे अमर होने का वरदान भी प्राप्त था, लेकिन कहते हैं न कि हर वरदान का एक तोड़ होता है, वैसे ही रावण के अमर होने के वरदान का तोड़ भगवान शिव को पहले से ही पता था।

एक समय की बात है जब रावण ने भगवान शिव की पूर्ण रूप से भक्ति करने के बाद सोचा कि महादेव को उसके साथ लंका में ही रहना चाहिए। महादेव की सेवा का भाव मन में लेकर वह महादेव से मिलने गया। कैलाश के द्वार पर नंदी को देख रावण ने महादेव के साथ नंदी को भी लंका ले जाने का सोचा। उसी समय नंदी ने रावण से पूछा कि रावण इतना स्वार्थी कैसे हो सकता है? यदि रावण भगवान शिव को अपने साथ ले जाएगा, तो माता पार्वती और भगवान शिव के भक्त उनके बिना कैसे रहेंगे? नंदी की बातें सुनकर, रावण को उस पर अत्यधिक क्रोध आ गया।

क्रोध में आकर रावण ने नंदी के बैल रूप को अपमानित किया और उन्हें बंदर जैसा दिखने वाला कहा। बस फिर क्या था, रावण द्वारा अपना अपमान सुन, नंदी अपने आपे से बाहर हो गए और उन्होंने रावण को श्राप दे दिया कि रावण का साम्राज्य जल्द ही अस्त-व्यस्त हो जाएगा और ऐसा करने वाला और कोई नहीं, बल्कि एक वानर यानी एक बंदर होगा। इतना ही नहीं, नंदी के श्राप के अनुसार रावण की मृत्यु का कारण भी, एक वानर ही था।

ऐसी मान्यता है कि नंदी के इसी श्राप के कारण, शिव जी ने हनुमान रूप में जन्म लिया और अपनी पूंछ से रावण की लंका जला दी। इसी के साथ, नंदी का श्राप भी पूरा हुआ और शिव जी के हनुमान रूप द्वारा, राम जी के दास होने का कार्य भी पूर्ण हो गया।

भगवान शिव के हनुमान अवतार से हमें यह देखने को मिलता है कि परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, इंसान को अपने बल का सही इस्तेमाल करना चाहिए। जिस तरह हनुमान जी ने ईश्वर का अवतार होते हुए भी एक सेवक बनकर अपनी प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने दी। उसी तरह, इंसान को सदैव बड़े पद का लालच त्याग कर सादगी के साथ जीवन जीना चाहिए और हमेशा अपनी प्रतिष्ठा बनाई रखनी चाहिए।

हनुमान जी, एक दास होने के साथ-साथ एक बहुत अच्छे सखा भी थे, जो सदैव अपने मित्र की रक्षा के लिए खड़े रहे। इसी तरह, इंसान को भी अपने रिश्तों की सीमाओं को पार किए बिना ही, लोगों के साथ अच्छे संबंध बनाकर रखने चाहिए। हनुमान जी और शिव जी के इस संबंध को भले ही बहुत कम लोग जानते हों, लेकिन इसका महत्व अपने आप में श्रेष्ठ है।

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