हयग्रीव अवतार (Hayagriva Avatar)
हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के अवतारों में से एक है हयग्रीव अवतार। शास्त्रों के अनुसार, श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु हयग्रीव रूप में अवतरित हुए थे। इसलिए इस दिन को हयग्रीव जयंती के रूप में मनाया जाता है। विष्णु जी के इस अवतार में उनका सिर घोड़े का और बाकी शरीर मनुष्य का है। ये बुद्धि के देवता माने जाते हैं। इसलिए भक्त ज्ञान प्राप्ति के लिए हयग्रीव जयंती पर इनकी विशेष पूजा करते हैं।
हयग्रीव अवतार क्यों हुआ ? (Why did Hayagriva avatar)
कभी देवताओं को दैत्यों से बचाने के लिए तो कभी संसार के उद्धार के लिए भगवान विष्णु ने कई रूपों में अवतार लिए। कथाओं के अनुसार, मां भगवती के वरदान से हयग्रीव नाम का दैत्य अजेय हो गया था। त्रिलोक में ऐसा कोई भी नहीं था, जो उसे हरा सके। देवताओं के साथ उसने ऋषि मुनियों पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। इसी दैत्य से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने हयग्रीव अवतार लिया था।
हयग्रीव अवतार की कथा (Story of Hayagriva Avatar)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी ने विष्णु जी को श्राप दिया कि आपका शीश आपके धड़ से अलग होकर अदृश्य हो जाएगा। उसी समय प्रजापति कश्यप व उनकी पत्नी दनु का पुत्र व असुरों का राजा हयग्रीव माता भगवती को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या कर रहा था। दैत्य हयग्रीव का सिर अश्व का व बाकी शरीर मनुष्य का था। वह सभी भोगों का त्याग कर सरस्वती नदी के किनारे बिना कुछ खाए कई दिनों तक मां भगवती के मायाबीज एकाक्षर महामंत्र का जाप करता रहा, जिससे उसकी इंद्रियां भी उसके वश में आ चुकी थीं।
दैत्य हयग्रीव की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर मां भगवती ने उसे तामसी शक्ति के रूप में दर्शन दिया और उससे वरदान मांगने के लिए कहा। दैत्य ने मां भगवती की स्तुति करते हुए कहा, हे कल्याणमयी देवि! आपको नमस्कार। आप महामाया हैं। सृष्टि, स्थिति व संहार करना आपका स्वाभाविक गुण है। आपकी कृपा से कुछ भी असंभव नहीं हो सकता। अगर आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे अमर होने का वरदान देने की कृपा करें। मां भगवती ने दैत्य की बात सुनकर कहा, दैत्य राज, इस संसार में जिसका भी जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है। प्रकृति के इस विधान से कोई नहीं बदल सकता। किसी का भी सदा के लिए अमर होना असंभव है। यहां तक कि अमृत का पान करने वाले देवताओं को भी पुण्य समाप्त होने पर मृत्यु लोक में जाना पड़ता है। इसके अतिरिक्त कोई और वरदान मांग सकते हो।
मां भगवाती की बात सुनकर दैत्य हयग्रीव ने कहा, मां मुझे ऐसा वरदान दें कि हयग्रीव के हाथों ही मेरी मृत्यु हो, कोई दूसरा मुझे न मार सके। इसपर माता तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गई। अजेय का वरदान पाकर हयग्रीव प्रसन्न हो गया। त्रिलोकी में कोई भी ऐसा नहीं था, जो उसे मार सके। उसने ब्रह्मा जी से वेदों को छीन लिया, देवताओं व मुनियों पर अत्याचार करने लगा। यज्ञादि कर्म बंद हो गए, सृष्टि अंधकार में जाने लगी। हयग्रीव यहीं नहीं रुका उसने भगवान श्री हरि विष्णु को युद्ध के लिए ललकार दिया। दोनों के बीच काफी दिनों तक युद्ध चला। युद्ध के आठवें दिन दोनों थककर विश्राम करने लगे। विष्णु जी ने धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाकर उसे धरती पर टिका दिया और बाण की नोक पर अपना सिर रखकर योग निंद्रा में चले गए।
विष्णु जी को योग निंद्रा में देख ब्रह्मा जी उनके पास गए और उन्हें जगाने का काफी प्रयास किया, लेकिन असफल रहे। विष्णु जी को जगाने के लिए ब्रह्मा जी ने वम्री नामक एक कीड़ा उत्पन्न किया। ब्रह्मा जी की प्रेरणा से कीड़े ने धनुष की प्रत्यंचा काट दी, जिससे बहुत तेज टंकार हुआ और भगवान विष्णु का मस्तक कटकर अदृश्य हो गया। सिर रहित भगवान को देखकर देवताओं दुखी हो गए। सभी ने मिलकर मां भगवती की स्तुति की। मां भगवती प्रकट हुईं और उन्होंने कहा, देवताओ चिंता मत करो। मेरी कृपा से तुम्हारा मंगल ही होगा। उन्होंने ब्रह्मा जी से कहा कि एक घोड़े का मस्तक काटकर भगवान के धड़ से जोड़ दें।
ब्रह्मा जी माता की बात मानकर एक नील वर्ण के अश्व का मस्तक ले आए भगवान के धड़ से उसे जोड़ दिया। जिससे भगवान विष्णु जी का हयग्रीव अवतार हुआ। सिर घोड़े और बाकी शरीर मनुष्य का था। एक बार फिर से विष्णु जी का हयग्रीव दैत्य से युद्ध शुरू हुआ और भगवान के हाथों दैत्य हयग्रीव की मृत्यु हुई। हयग्रीव के अंत के बाद भगवान ने वेदों को ब्रह्मा जी को दोबारा से समर्पित कर दिया।
हयग्रीव अवतार का महत्व (Importance of Hayagriva Avatar)
भगवान विष्णु का हयग्रीव अवतार का स्वरूप अद्वितीय है। उनका सिर घोड़े या हया का है, इसलिए उन्हें हयग्रीव के नाम से जानते हैं। भगवान के इस अवतार में घोड़े का सिर उच्च शिक्षा व ज्ञान का प्रतीक है। कई क्षेत्रों में भगवान हयग्रीव को संरक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है, जो बुराई को दूर करने के लिए पहरा देते हैं। भगवान हयग्रीव के आशीर्वाद से हमें सफलता की अधिक ऊंचाई हासिल करने में मदद मिलती है।
हयग्रीव अवतार से जुड़े रहस्य (mystery of hayagriva avatar)
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माता लक्ष्मी के श्राप के कारण भगवान विष्णु जी का सिर धड़ से अलग हो गया था।
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भगवान का सिर धड़ से अलग होने के बाद अदृश्य हो गया था।
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भगवान विष्णु जी को घोड़े का सिर लगाया गया था, जिससे उनका हयग्रीव अवतार हुआ।
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विष्णु जी का सिर धड़ से अलग का कारण एक कीड़ा था, जिसकी लीला ब्रह्मा जी ने रची थी।