कच्छप (कूर्म) अवतार क्या है ? (what is kachhap avatar)
भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों में से एक है कूर्म यानी कछुआ अवतार। कूर्म कौन से नंबर का अवतार है, इस बारे में पुराणों में अलग-अलग बातें बताई गई हैं। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु को कच्छप अवतार लेना पड़ा था। माना जाता है कि कछुए से ही मनुष्य जीवन की शुरुआत हुई।
वैशाख महीने की पूर्णिमा को कच्छप यानी कूर्म जयंती मनाई जाती है। शास्त्रों में इस दिन की बहुत महत्ता है। माना जाता है कि इस दिन से निर्माण संबंधी कार्य शुरू करना बहुत शुभ होता है। कूर्म जयंती पर नए घर का भूमि पूजन से लेकर वास्तु दोष दूर किए जा सकते हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार, कूर्म जयंती के दिन घर में चांदी या धातु से बना कछुआ लाना बहुत शुभ होता है, इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा कम होती है। कहते हैं जिस घर में धातु से बना कछुआ रहता है, वहां लक्ष्मी जी निवास करती हैं, वहां कभी भी धन की कमी नहीं रहती।
भगवान ने कच्छप अवतार क्यों लिया? (Why did God take kachhap avatar)
कहा जाता है कि देवताओं व राक्षसों ने जब मंदराचल पर्वत को समुद्र में डालकर मंथन करना शुरू किया, तो आधार नहीं होने की वजह से पर्वत समुद्र में डुबने लगा। यह देख भगवान विष्णु ने विशालकाय कूर्म यानी कछुए का रूप धारण किया और समुद्र में मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर रख लिया। जिसके बाद पर्वत तेजी से घूमने लगा और समुद्र मंथन पूरा हुआ।
कच्छप अवतार की कथा (story of kachhap avatar)
पौराणिक कथा के अनुसार, देवराज इंद्र के शौर्य को देख ऋषि दुर्वासा ने उन्हें एक पारिजात पुष्प की माला भेंट की लेकिन अहंकार में इंद्र ने माला ग्रहण न करते हुए उसे अपने हाथी ऐरावत को पहना दी। जिसके बाद ऐरावत ने उस माला को भूमि पर फेंक दिया। यह सब देख ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो गए, उन्होंने देवताओं को श्रीहीन होने का श्राप दिया, जिससे देवताओं की सुख-समृद्धि खत्म हो गई। यही नहीं, श्राप के प्रभाव से मां लक्ष्मी सागर में समा गईं। सुर-असुर लोक का सारा वैभव नष्ट हो गया। श्राप से दुखी होकर देवराज इंद्र, भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। विष्णु जी ने उन्हें सलाह दी कि वे क्षीर समुद्र का मंथन करें, जिससे अमृत निकलेगा। उस अमृत को पीने से देवों की शक्ती वापस आ जाएगी और वे हमेशा के लिए अमर हो जाएंगे।
समुद्र मंथन का विशाल कार्य मंदराचल पर्वत व नागराजवासुकी (नागराज शेषनाग के छोटे भाई) के सहारे से पूर्ण हो सकता था। पर्वत को मथिनी का डंडा व वासुकी को रस्सी के समान प्रयोग किया गया। समुद्र मंथन में असुरों के मदद की भी जरूरत थी, इस वजह से विष्णु जी के कहने पर देवताओं ने असुरों से बात की। असुर अमृत के लालच में देवताओं की मदद के लिए तैयार हो गए।
देवता व असुर मिलकर समुद्र का मंथन करने लगे। एक तरफ असुर थे व दूसरी तरफ देव। मंथन करते ही समुद्र से घातक जहर यानी विष निकलने लगा, जिससे घुटन होने लगी व सारी दुनिया पर खतरा मंडराने लगा। यह देख भगवान शिव ने पूरे विष का सेवन कर लिया और उसे अपने कंठ में बरकरार रखा। इसी वजह से महादेव का नीलकंठ नाम पड़ा।
समुद्र मंथन जारी रहा, लेकिन आधार नहीं होने की वजह से धीरे-धीरे मंदराचल पर्वत समुद्र में डूबने लगा। तभी भगवान विष्णु ने विशालकाय कूर्म यानी कछुए का अवतार धारण किया और पर्वत को अपने पीठ पर उठा लिया और समुद्र मंथन जारी रहा। कछुए के पीठ का व्यास 100,000 योजन था। धीरे-धीरे समुद्र से कामधेनु जैसे अन्य पुरस्कार व अमृत कलश प्रकट हुआ। इस प्रकार से भगवान विष्णु का कूर्म (कच्छप) अवतार हुआ।
कच्छप अवतार से जुड़े रहस्य (mysteries related to kachhap avatar)
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नरसिंह पुराण व भागवत पुराण के अनुसार, कच्छप अवतार भगवान विष्णु का ग्यारहवां अवतार है।
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शतपथ ब्राह्मण, महाभारत व पद्म पुराण में बताया गया है कि संतति प्रजनन के लिए प्रजापति, कच्छप का रूप धारण कर पानी में संचरण करता है।
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लिंग पुराण में कहा गया है कि पृथ्वी रसातल को जा रही थी, तभी विष्णु ने कच्छप रूप में अवतार लिया।
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पद्म पुराण के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान मंदराचल पर्वत रसातल में जा रहा था, जिसे रोकने के लिए भगवान विष्णु ने कछुए का रूप लिया और पर्वत को अपनी पीठ पर संभाला।
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कूर्म पुराण में बताया गया है कि भगवान विष्णु ने अपने कच्छपावतार से ऋषियों को जीवन के 4 लक्ष्यों (धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष) का वर्णन किया था।