श्री राम अवतार

श्री राम अवतार

जानें श्री राम के अवतार की कथा


विभिन्न युगों में विभिन्न अवतारों में आविर्भूत होने वाले भगवान श्री विष्णु का एकमात्र उद्देश्य संसार का कल्याण और धर्म की रक्षा रहा है। अपने भक्तों को दिए हुए वरदान की पूर्ति, असुरों का नाश एवं धर्म की स्थापना के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही प्रभु श्री हरि ने दशावतार धारण किए थे।

सुंदर मनोहारी कांति एवं उससे भी मनोरम स्वभाव वाले प्रभु रघुवर वास्तव में ही सभी पुरुषों में उत्तम थे, तभी तो उनकी महिमा का वास उनके भक्तों के रोम-रोम में होता है। जैसा कि हमने आपको पहले भी बताया कि भगवान श्री विष्णु के हर अवतार के पीछे कुछ निर्दिष्ट उद्देश्य थे और धर्म की स्थापना के लिए जिनकी पूर्ति आवश्यक थी। ठीक इसी प्रकार श्री राम के रूप में प्रभु के सप्तम अवतार भी ऐसे ही कुछ उद्देश्यों के पालन हेतु इस धरती पर अवतरित हुए थे।

इस लेख में हम आपको उन्हीं उद्देश्यों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं। श्री राम जन्म के उद्देश्य से जुड़ी कई किवंदन्तियां प्रचलित हैं। इनमें से एक उस समय की बात है, जब सनकादिक मुनि, श्री नारायण से मिलने के लिए बैकुंठ गए थे। तब वहां जय और विजय नाम के दो द्वारपाल पहरा दे रहे थे, जैसे ही उन्होंने सनकादिक मुनि को देखा, तो उनका मजाक उड़ाते हुए उन्हें रोक लिया। इस पर मुनि अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने जय और विजय को यह अभिशाप दे दिया कि वह दोनों आने वाले तीन जन्मों तक राक्षस कुल में जन्म लेंगे।

अभिशाप की बात सुनते ही जय और विजय रोने लगे और उन्हें अपनी भूल का पछतावा होने लगा। तब उन दोनों ने सनकादिक मुनि से प्रार्थना की कि वह अपना अभिशाप वापस ले लें। उस वक्त मुनि ने उनसे कहा, “मैं अपना दिया हुआ अभिशाप तो वापस नहीं ले सकता, लेकिन जब तुम दोनों इतनी क्षमा याचना कर रहे हो, तो मैं तुम्हें यह आशीर्वाद देता हूं कि इन तीनों जन्म में तुम्हें मोक्ष दिलाने स्वयं प्रभु श्री विष्णु ही आएंगे।”

कहा जाता है इसी अभिशाप के कारण जय और विजय ने अपना पहला जन्म हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप के रूप में लिया। जिनका वध प्रभु श्री विष्णु ने अपने वराह और नरसिंह अवतार में किया। इसके बाद उनका जन्म, रावण और कुंभकर्ण के रूप में हुआ और उनके संहार के लिए श्री विष्णु राम अवतार में आये। इसके बाद, तीसरे एवं अंतिम जन्म में जय और विजय शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्मे थे, जिनका संहार मधुसूदन ने किया था।

प्रभु श्री राम के अवतरित होने की एक कथा मनु और शतरूपा से भी जुड़ी हुई है। मान्यता है कि मनु और शतरुपा ने अपने कठोर तप से भगवान विष्णु को प्रसन्न किया था। इसके बाद जब प्रभु उनके समक्ष प्रकट हुए और उन दोनों से वरदान मांगने को कहा, तब उन्होंने प्रभु से यह वरदान मांगा कि शतरुपा के गर्भ से प्रभु के समान तेजमय एक संतान पैदा हो।

इस पर प्रभु ने उनसे कहा, “इस पृथ्वी पर मेरे समान कोई और नहीं है, लेकिन तुम दोनों की इच्छा का मान रखने के लिए मैं स्वयं ही आपकी गर्भ से जन्म लूंगा।” यहीं मनु और शतरूपा अपने अगले जन्म में राजा दशरथ और माता कौशल्या के रूप में पैदा हुए और उनके पुत्र के रूप में श्री हरि ने प्रभु राम का अवतार लिया था। प्रभु इस अवतार में वचन को निभाने के लिए किसी भी हद तक जाने की प्रेरणा देते हैं। उनका 14 साल का वनवास भी इसी से जुड़ा है। धर्म की स्थापना और पिता को दिए वचन के लिए उन्होंने 14 साल तक राज पाठ का त्याग कर वनवास में रहे।

कहते हैं, प्रभु के श्री राम अवतार में आने का एक और देवर्षि नारद का दिया हुआ श्राप है। देवर्षि नारद को कामदेव को युद्ध में पराजित करने के बहुत अहंकार हो गया था। ऐसे में प्रभु श्री विष्णु भला अपने किसी भी भक्त के हृदय में अहंकार जैसे अवगुण का वास कैसे होने देते? इसलिए प्रभु ने नारद मुनि को अहंकार मुक्त करने की एक योजना बनाई।

जब नारद मुनि बैकुंठ से लौट रहे थे, तब उन्हें एक बड़ा सा सुंदर महल दिखाई पड़ा, जो बहुत सुसज्जित था। महल को देखते हुए नारद मुनि ने सोचा, “पहले तो कभी यह महल मैंने यहां नहीं देखा? एक बार चल कर देख ही लेता हूं कि क्या चल रहा है?” जैसे ही नारद वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा, वहां एक अत्यंत सुंदर राजकुमारी के स्वयंवर की तैयारियां चल रही थी। उस सुंदर राजकुमारी पर जैसे ही नारद जी की नजर पड़ी, वह अपना सारा वैराग्य भूल गए और विवाह की इच्छा लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे।

तब विष्णु जी ने उनसे कहा, “देवर्षि, मैंने आपके रूप को निखार दिया है, अब वह कन्या अवश्य ही आपको ही चुनेगी।” प्रभु के इस आश्वासन से प्रसन्नचित्त होकर जब नारद मुनि वहां पहुंचे, तो कुछ अलग ही दृश्य देखने को मिला। उस कन्या ने नारद मुनि की ओर मुड़कर देखा भी नहीं और इस बात से देवर्षि अत्यंत ही दुखी हुए। जब उन्होंने पानी पीने के लिए जलाशय में अपना चेहरा देखा, तो उनकी शक्ल एक वानर जैसी थी। अब तो नारद जी अत्यंत क्रोधित हो गए और जैसे ही विष्णु भगवान के पास पहुंचे, तो उस कन्या को वहां देख पूरा माजरा ही समझ गए।

कहते हैं, यहीं वह समय था जब नारद मुनि ने भगवान विष्णु को अभिशाप दिया था कि एक युग में उनका ऐसा अवतार होगा, जिसे स्त्री वियोग सहन करना पड़ेगा और वानरों से सहायता लेनी पड़ेगी। सीत हरण, सीता त्याग और रावण वध प्रभु को दिए नारद मुनि के इसी अभिशाप का परिणाम माना गया है।

श्री मंदिर द्वारा आयोजित आने वाली पूजाएँ

देखें आज का पंचांग

slide
कैसा रहेगा आपका आज का दिन?
कैसा रहेगा आपका आज का दिन?
srimandir-logo

Sri Mandir has brought religious services to the masses in India by connecting devotees, pundits, and temples. Partnering with over 50 renowned temples, we provide exclusive pujas and offerings services performed by expert pandits and share videos of the completed puja rituals.

Play StoreApp Store

Follow us on

facebookinstagramtwitterwhatsapp

© 2024 SriMandir, Inc. All rights reserved.