कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे भजन | Kabhi Fursat Ho To Jagdambe Lyrics

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे भजन

यह भजन एक आह्वान है कि कभी फुर्सत मिले तो माँ की पूजा और भक्ति में समय बिताएं, ताकि उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आए।


कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे भजन | Kabhi Fursat Ho To Jagdambe Bhajan

ये भजन माता दुर्गा की महिमा को बताता है, जो आपकी पूजा और अर्चना से प्रसन्न होती हैं। इस भजन में एक गहरी भावनात्मक अपील है, आप भजन के माध्यम से माता से ये विनती करते है कि जब वह अपने घर में विश्राम करें, तो गरीब और निर्धन के घर भी अपनी कृपा से आएं।

ये भजन यह संदेश देता है कि माता के दरबार में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होता—वह सभी की सहायता करती हैं, चाहे वह कोई भी हो, गरीब हो या अमीर।

जब आप इस भजन को सुनते हैं, तो यह एक गहरी आस्था और विश्वास को जगाता है कि माता जगदम्बा सच्चे श्रद्धालुओं के दुखों का निवारण करने के लिए हर समय तत्पर रहती हैं। ये भजन उन लोगों के लिए एक उम्मीद और सांत्वना का स्रोत है, जो जीवन में कठिनाइयों और अभावों से जूझ रहे हैं, क्योंकि इसमें यह विश्वास है कि माता के आशीर्वाद से हर कठिनाई दूर हो सकती है।

यह भजन उन लोगों के दिलों में आशा और श्रद्धा को मजबूत करता है जो मुश्किल समय से गुजर रहे होते हैं।

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे लिरिक्स | Kabhi Fursat Ho To Jagdambe Lyrics

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे,

निर्धन के घर भी आ जाना ।

जो रूखा सूखा दिया हमें,

कभी उस का भोग लगा जाना ॥

ना छत्र बना सका सोने का,

ना चुनरी घर मेरे टारों जड़ी ।

ना पेडे बर्फी मेवा है माँ,

बस श्रद्धा है नैन बिछाए खड़े ॥

इस श्रद्धा की रख लो लाज हे माँ,

इस विनती को ना ठुकरा जाना ।

जो रूखा सूखा दिया हमें,

कभी उस का भोग लगा जाना ॥

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे,

निर्धन के घर भी आ जाना ।

जिस घर के दिए मे तेल नहीं,

वहां जोत जगाओं कैसे ।

मेरा खुद ही बिछौना डरती माँ,

तेरी चोंकी लगाऊं मै कैसे ॥

जहाँ मै बैठा वही बैठ के माँ,

बच्चों का दिल बहला जाना ।

जो रूखा सूखा दिया हमें,

कभी उस का भोग लगा जाना ॥

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे,

निर्धन के घर भी आ जाना ।

तू भाग्य बनाने वाली है,

माँ मै तकदीर का मारा हूँ ।

हे दाती संभाल भिकारी को,

आखिर तेरी आँख का तारा हूँ ॥

मै दोषी तू निर्दोष है माँ,

मेरे दोषों को तूं भुला जाना ।

जो रूखा सूखा दिया हमें,

कभी उस का भोग लगा जाना ॥

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे,

निर्धन के घर भी आ जाना ।

जो रूखा सूखा दिया हमें,

कभी उस का भोग लगा जाना ॥

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