दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम्
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दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम्

दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम्, में देवी दुर्गा के 1000 दिव्य नामों का वर्णन है, जो शक्ति, समृद्धि और विजय का प्रतीक हैं। इस स्तोत्र का पाठ जीवन में सफलता और मां दुर्गा की कृपा प्राप्त करने का मार्ग है।

दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम् के बारे में

दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम् देवी दुर्गा के हजार नामों का पवित्र ग्रंथ है, जो उनकी महिमा, शक्ति, और गुणों का वर्णन करता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से मन को शांति मिलती है, भय दूर होता है और सफलता प्राप्त होती है। यह नकारात्मक ऊर्जा को खत्म कर सकारात्मकता लाने में सहायक है। देवी की कृपा से सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य का वरदान मिलता है।

दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम् का महत्व

अपार धन-सम्पत्ति की प्राप्ति:

दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम् का नित्य पाठ करने से व्यक्ति को आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है। माँ दुर्गा की कृपा से धन के नए स्रोत खुलते हैं, कारोबार में वृद्धि होती है, और आर्थिक स्थिरता आती है। जिनके जीवन में आर्थिक तंगी चल रही हो, उनके लिए यह स्तोत्र विशेष रूप से फलदायी है।

भूत-पिशाच की पीड़ा से मुक्ति:

दुर्गा सहस्रनाम का पाठ नकारात्मक ऊर्जा, भूत-प्रेत और पिशाचों से रक्षा करता है। यह स्तोत्र व्यक्ति के चारों ओर एक दिव्य सुरक्षा कवच बनाता है, जिससे हर प्रकार की बुरी शक्तियाँ दूर रहती हैं। घर और परिवार में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

घर-परिवार में शांति:

इस स्तोत्र के नियमित पाठ से परिवार में सद्भाव, प्रेम, और शांति का वातावरण बनता है। पारिवारिक कलह और मनमुटाव दूर होते हैं। यह स्तोत्र गृहस्थ जीवन को शांतिपूर्ण और आनंदमय बनाता है।

शत्रु का नाश:

शत्रुओं से परेशान व्यक्ति के लिए यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावी है। इसका पाठ करने से शत्रुओं का नाश होता है, और वे अपनी बुरी योजनाओं में सफल नहीं हो पाते। माँ दुर्गा की कृपा से व्यक्ति निर्भय और सुरक्षित महसूस करता है।

सौभाग्य में वृद्धि:

दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम् का पाठ सौभाग्य बढ़ाने वाला माना गया है। यह स्तोत्र व्यक्ति के भाग्य में छिपे अवरोधों को दूर करता है और उसे जीवन में नई सफलताएँ प्राप्त करने में मदद करता है।

दाम्पत्य जीवन में मधुरता:

जिन दंपत्तियों के बीच मतभेद और तनाव रहता है, उनके लिए यह स्तोत्र अत्यंत लाभकारी है। इसका पाठ पति-पत्नी के बीच प्रेम और समझ को बढ़ाता है और उनके रिश्ते को मजबूत बनाता है।

गृह क्लेश से मुक्ति:

यदि किसी परिवार में बार-बार झगड़े और विवाद हो रहे हों, तो यह स्तोत्र गृह क्लेश को दूर करता है। माँ दुर्गा की कृपा से घर का वातावरण शुद्ध और शांत हो जाता है।

आरोग्य की प्राप्ति:

दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम् का पाठ करने से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। यह स्तोत्र रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करता है और गंभीर बीमारियों से भी रक्षा करता है।

विद्यार्थियों को विद्या की प्राप्ति:

विद्यार्थियों के लिए यह स्तोत्र अत्यंत लाभकारी है। इसका पाठ करने से उनकी एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ती है। माँ दुर्गा की कृपा से विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में सफलता प्राप्त करते हैं और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करते हैं।

सभी शुभ कार्यों में सफलता:

दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम् का पाठ किसी भी शुभ कार्य में सफलता दिलाने वाला माना गया है। विवाह, नौकरी, कारोबार, या अन्य कोई बड़ा निर्णय लेने से पहले इस स्तोत्र का पाठ करने से माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है, और सभी कार्य सफल होते हैं।

माँ दुर्गा की कृपा

दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम् के पाठ से व्यक्ति को माँ दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है। माँ दुर्गा अपने भक्त की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं और जीवन के हर क्षेत्र में सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं।

दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम् पाठ की संपूर्ण विधि

  • दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम् पाठ करने वाली जातक सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस दिन लाल या सफेद वस्त्र पहनना शुभ होता है।

  • पूजा के लिए एक शांत, स्वच्छ और पवित्र स्थान का चयन करें।

  • इसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर माँ दुर्गा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें और उनके चारों ओर स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें।

  • पूजा स्थान पर स्वयं बैठने के लिए एक कुशा का आसन बिछाएं।

  • पूजा सामग्री जैसे धूप, दीपक, लाल फूल, अक्षत (चावल), कुमकुम, चंदन, नैवेद्य (मिठाई, फल या खीर), और गंगाजल तैयार रखें।

  • अब माँ दुर्गा के स्वरूप का स्मरण करते हुए उनका आह्वान करें।

  • इसके बाद माता दुर्गा के सम्मुख घी या तेल का दीपक रखें और ध्यान रहे कि उसकी लौ पूर्व दिशा की ओर हो।

  • अब माँ को अक्षत, फूल, व नैवेद्य (मिठाई, फल, या अन्य प्रसाद) अर्पित करें।

  • अपने उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम् पाठ का संकल्प लें। संकल्प लेने के लिए निम्न मंत्र बोलें: “मम समस्त दोष-निवारणार्थं, आरोग्य-सिद्ध्यर्थं, श्री दुर्गा सहस्रनाम पाठं करिष्ये।”

  • अब एकाग्रचित्त होकर दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम् का पाठ आरंभ करें। पाठ करते समय ध्यान रखें कि उच्चारण स्पष्ट और सही हो।

  • यदि पूरे स्तोत्र का पाठ एक दिन में न कर सकें, तो इसे तीन, पाँच या नौ दिनों में विभाजित कर सकते हैं।

  • पाठ समाप्त होने के बाद माँ दुर्गा की आरती करें। यदि पाठ के दौरान किसी भी प्रकार की त्रुटि हो गई हो, तो माँ दुर्गा से क्षमा प्रार्थना करें।

  • पाठ और आरती के बाद माँ से अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करें।

  • अब माता को चढ़ाए गए नैवेद्य को प्रसाद के रूप में परिवार के सदस्यों और जरूरतमंदों में वितरित करें।

विशेष सावधानियां

  • पाठ करते समय मन को शांत रखें और ध्यान माँ दुर्गा पर केंद्रित रखें।

  • यदि स्वयं पढ़ने में कठिनाई हो, तो दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम् का पाठ किसी विद्वान पंडित से करवाएं।

  • नवरात्रि के दौरान इसका पाठ विशेष फलदायी माना गया है।

दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम्

S No.

दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम्

1

ॐ महाविद्या जगन्माता महालक्ष्मीः शिवप्रिया।

विष्णुमाया शुभा शान्ता सिद्धासिद्धसरस्वती॥1॥

2

क्षमा कान्तिः प्रभा ज्योत्स्ना पार्वती सर्वमङ्गला।

हिङ्गुला चण्डिका दान्ता पद्मा लक्ष्मीर्हरिप्रिया॥2॥

3

त्रिपुरा नन्दिनी नन्दा सुनन्दा सुरवन्दिता।

यज्ञविद्या महामाया वेदमाता सुधाधृतिः॥3॥

4

प्रीतिप्रदा प्रसिद्धा च मृडानी विन्ध्यवासिनी।

सिद्धविद्या महाशक्तिः पृथिवी नारदसेविता॥4॥

5

पुरुहूतप्रिया कान्ता कामिनी पद्मलोचना।

प्रह्लादिनी महामाता दुर्गा दुर्गतिनाशिनी॥5॥

6

ज्वालामुखी सुगोत्रा च ज्योतिः कुमुदवासिनी।

दुर्गमा दुर्लभा विद्या स्वर्गतिः पुरवासिनी॥6॥

7

अपर्णा शाम्बरी माया मदिरामृदुहासिनी।

कुलवागीश्वरी नित्या नित्यक्लिन्ना कृशोदरी॥7॥

8

कामेश्वरी च नीला च भिरुण्डा वह्रिवासिनी।

लम्बोदरी महाकाली विद्याविद्येश्वरी तथा॥8॥

9

नरेश्वरी च सत्या च सर्वसौभाग्यवर्धिनी।

सङ्कर्षिणी नारसिंही वैष्णवी च महोदरी॥9॥

10

कात्यायनी च चम्पा च सर्वसम्पत्तिकारिणी।

नारायणी महानिद्रा योगनिद्रा प्रभावती॥10॥

11

प्रज्ञा पारमिताप्राज्ञा तारा मधुमती मधुः।

क्षीरार्णवसुधाहारा कालिका सिंहवाहना॥11॥

12

ॐकारा च सुधाकारा चेतना कोपनाकृतिः।

अर्धबिन्दुधराधारा विश्वमाता कलावती॥12॥

13

पद्मावती सुवस्त्रा च प्रबुद्धा च सरस्वती।

कुण्डासना जगद्वात्री बुद्धमाता जिनेश्वरी॥13॥

14

जिनमाता जिनेन्द्रा च शारदा हंसवाहना।

राजलक्ष्मीर्वषट्कारा सुधाकारा सुधोत्सुका॥14॥

15

राजनीतिस्त्रयी वार्ता दण्डनीतिः क्रियावती।

सद्भूतिस्तारिणी श्रद्धा सद्गतिः सत्यपरायणा॥15॥

16

सिन्धुर्मन्दाकिनी गङ्गा यमुना च सरस्वती।

गोदावरी विपाशा च कावेरी च शतह्रदा॥16॥

17

सरयूश्चन्द्रभागा च कौशिकी गण्डकी शुचिः।

नर्मदा कर्मनाशा च चर्मण्वती च वेदिका॥17॥

18

वेत्रवती वितस्ता च वरदा नरवाहना।

सती पतिव्रता साध्वी सुचक्षुः कुण्डवासिनी॥18॥

19

एकचक्षुः सहस्राक्षी सुश्रोणिर्भगमालिनी।

सेनाश्रोणिः पताका च सुव्यूहा युद्धकांक्षिणी॥19॥

20

पताकिनी दयारम्भा विपञ्ची पञ्चमप्रिया।

परा परकलाकान्ता त्रिशक्तिर्मोक्षदायिनी॥20॥

21

ऐन्द्री माहेश्वरी ब्राह्मी कौमारी कमलासना।

इच्छा भगवती शक्तिः कामधेनुः कृपावती॥21॥

22

वज्रायुधा वज्रहस्ता चण्डी चण्डपराक्रमा।

गौरी सुवर्णवर्णा च स्थितिसंहारकारिणी॥22॥

23

भुजङ्गभूषणा भूषा षट्चक्राक्रमवासिनी॥23॥

षट्चक्रभेदिनी श्यामा कायस्था कायवर्जिता।

24

सुस्मिता सुमुखी क्षामा मूलप्रकृतिरीश्वरी॥24॥

अजा च बहुवर्णा च पुरुषार्थप्रर्वतिनी।

25

रक्ता नीला सिता श्यामा कृष्णा पीता च कर्बुरा॥25॥

क्षुधा तृष्णा जरा वृद्धा तरुणी करुणालया।

26

कला काष्ठा मुहूर्ता च निमिषा कालरूपिणी॥26॥

सुवर्णरसना नासाचक्षुः स्पर्शवती रसा।

27

गन्धप्रिया सुगन्धा च सुस्पर्शा च मनोगतिः॥27॥

मृगनाभिर्मृगाक्षी च कर्पूरामोदधारिणी।

28

पद्मयोनिः सुकेशी च सुलिङ्गा भगरूपिणी॥28॥

योनिमुद्रा महामुद्रा खेचरी खगगामिनी।

29

मधुश्रीर्माधवी वल्ली मधुमत्ता मदोद्धता॥29॥

मातङ्गी शुकहस्ता च पुष्पबाणेक्षुचापिनी।

30

रक्ताम्बरधराक्षीबा रक्तपुष्पावतंसिनी॥30॥

शुभ्राम्बरधरा धीरा महाश्वेता वसुप्रिया।

31

सुवेणी पद्महस्ता च मुक्ताहारविभूषणा॥31॥

कर्पूरामोदनिःश्वासा पद्मिनी पद्ममन्दिरा।

32

खड्गिनी चक्रहस्ता च भुशुण्डी परिघायुधा॥32॥

चापिनी पाशहस्ता च त्रिशूलवरधारिणी।

33

सुबाणा शक्तिहस्ता च मयूरवरवाहना॥33॥

वरायुधधरा वीरा वीरपानमदोत्कटा।

34

वसुधा वसुधारा च जया शाकम्भरी शिवा॥34॥

विजया च जयन्ती च सुस्तनी शत्रुनाशिनी।

35

अन्तर्वती वेदशक्तिर्वरदा वरधारिणी॥35॥

शीतला च सुशीला च बालग्रहविनाशिनी।

36

कौमारी च सुपर्णा च कामाख्या कामवन्दिता॥36॥

जालन्धरधरानन्ता कामरूपनिवासिनी।

37

कामबीजवती सत्या सत्यमार्गपरायणा॥37॥

स्थूलमार्गस्थिता सूक्ष्मा सूक्ष्मबुद्धिप्रबोधिनी।

38

षट्कोणा च त्रिकोणा च त्रिनेत्रा त्रिपुरसुन्दरी॥38॥

वृषप्रिया वृषारूढा महिषासुरघातिनी।

39

शुम्भदर्पहरा दीप्ता दीप्तपावकसन्निभा॥39॥

कपालभूषणा काली कपालामाल्यधारिणी।

40

कपालकुण्डला दीर्घा शिवदूती घनध्वनिः॥40॥

सिद्धिदा बुद्धिदा नित्या सत्यमार्गप्रबोधिनी।

41

कम्बुग्रीवावसुमती छत्रच्छाया कृतालया॥41॥

जगद्गर्भा कुण्डलिनी भुजगाकारशायिनी।

42

प्रोल्लसत्सप्तपद्मा च नाभिनालमृणालिनी॥42॥

मूलाधारा निराकारा वह्रिकुण्डकृतालया।

43

वायुकुण्डसुखासीना निराधारा निराश्रया॥43॥

श्वासोच्छवासगतिर्जीवा ग्राहिणी वह्निसंस्थिता।

44

वल्लीतन्तुसमुत्थाना षड्रसा स्वादलोलुपा॥44॥

तपस्विनी तपःसिद्धि तपसः सिद्धिदायिनी।

45

तपोनिष्ठा तपोयुक्ताः तापसी च तपःप्रिया॥45॥

सप्तधातुर्मयीर्मूतिः सप्तधात्वन्तराश्रया।

46

देहपुष्टिर्मनःपुष्टिरन्नपुष्टिर्बलोद्धता॥46॥

औषधी वैद्यमाता च द्रव्यशक्तिप्रभाविनी।

47

वैद्या वैद्यचिकित्सा च सुपथ्या रोगनाशिनी॥47॥

मृगया मृगमांसादा मृगत्वङ्गलोचना।

48

वागुराबन्धरूपा च बन्धरूपावधोद्धता॥48॥

बन्दी बन्दिस्तुता कारागारबन्धविमोचिनी।

49

शृङ्खला कलहा बद्धा दृढबन्धविमोक्षिणी॥49॥

अम्बिकाम्बालिका चाम्बा स्वच्छा साधुजर्नाचिता।

50

कौलिकी कुलविद्या च सुकुला कुलपूजिता॥50॥

कालचक्रभ्रमा भ्रान्ता विभ्रमाभ्रमनाशिनी।

51

वात्याली मेघमाला च सुवृष्टिः सस्यर्वधिनी॥51॥

अकारा च इकारा च उकारौकाररूपिणी।

52

ह्रीङ्कार बीजरूपा च क्लीङ्काराम्बरवासिनी॥52॥

सर्वाक्षरमयीशक्तिरक्षरा वर्णमालिनी।

53

सिन्दूरारुणवर्णा च सिन्दूरतिलकप्रिया॥53॥

वश्या च वश्यबीजा च लोकवश्यविभाविनी।

54

नृपवश्या नृपैः सेव्या नृपवश्यकरप्रिया॥54॥

महिषा नृपमान्या च नृपान्या नृपनन्दिनी।

55

नृपधर्ममयी धन्या धनधान्यविवर्धिनी॥55॥

चतुर्वर्णमयीमूर्तिश्चतुर्वणैंश्च पूजिता।

56

सर्वधर्ममयीसिद्धि श्चतुराश्रमवासिनी॥56॥

ब्राह्मणी क्षत्रिया वैश्या शूद्रा चावरवर्णजा।

57

वेदमार्गरता यज्ञा वेदिर्विश्वविभाविनी॥57॥

अनुशस्त्रमयी विद्या वरशस्त्रास्त्रधारिणी।

58

सुमेधा सत्यमेधा च भद्रकाल्यपराजिता॥58॥

गायत्री सत्कृतिः सन्ध्या सावित्री त्रिपदाश्रया।

59

त्रिसन्ध्या त्रिपदी धात्री सुपर्वा सामगायिनी॥59॥

पाञ्चाली बालिका बाला बालक्रीडा सनातनी।

60

गर्भाधारधराशून्या गर्भाशयनिवासिनी॥60॥

सुरारिघातिनी कृत्या पूतना च तिलोत्तमा।

61

लज्जा रसवती नन्दा भवानी पापनाशिनी॥61॥

पट्टाम्बरधरा गीतिः सुगीतिर्ज्ञानगोचरा।

62

सप्तस्वरमयी तन्त्री षड्जमध्यमधैवता॥62॥

मूर्छना ग्रामसंस्थाना मूर्छा सुस्थानवासिनी।

63

अट्टाट्टहासिनी प्रेता प्रेतासननिवासिनी॥63॥

गीतनृत्यप्रिया कामा तुष्टिदा पुष्टिदा क्षमा।

64

निष्ठा सत्यप्रिया प्राज्ञा लोलाक्षी च सुरोत्तमा॥64॥

सविषा ज्वालिनी ज्वाला विश्वमोहार्तिनाशिनी।

65

शतमारी महादेवी वैष्णवी शतपत्रिका॥65॥

विषारिर्नागदमनी कुरुकुल्याऽमृतोद्भवा।

66

भूतभीतिहरारक्षा भूतावेशविनाशिनी॥66॥

रक्षोघ्नी राक्षसी रात्रिर्दीर्घनिद्रा निवारिणी।

67

चन्द्रिका चन्द्रकान्तिश्च सूर्यकान्तिर्निशाचरी॥67॥

डाकिनी शाकिनी शिष्या हाकिनी चक्रवाकिनी।

68

शीता शीतप्रिया स्वङ्गा सकला वनदेवता॥68॥

गुरुरूपधरा गुर्वी मृत्युर्मारी विशारदा।

69

महामारी विनिद्रा च तन्द्रा मृत्युविनाशिनी॥69॥

चन्द्रमण्डलसङ्काशा चन्द्रमण्डलवासिनी।

70

अणिमादिगुणोपेता सुस्पृअहा कामरूपिणी॥70॥

अष्टसिद्धिप्रदा प्रौढा दुष्टदानवघातिनी।

71

अनादिनिधना पुष्टिश्चतुर्बाहुश्चतुर्मुखी॥71॥

चतुस्समुद्रशयना चतुर्वर्गफलप्रदा।

72

काशपुष्पप्रतीकाशा शरत्कुमुदलोचना॥72॥

सोमसूर्याग्निनयना ब्रह्मविष्णुशिर्वार्चिता।

73

कल्याणीकमला कन्या शुभा मङ्गलचण्डिका॥73॥

भूता भव्या भविष्या च शैलजा शैलवासिनी।

74

वाममार्गरता वामा शिववामाङ्गवासिनी॥74॥

वामाचारप्रिया तुष्टिर्लोंपामुद्रा प्रबोधिनी।

75

भूतात्मा परमात्मा भूतभावविभाविनी॥75॥

मङ्गला च सुशीला च परमार्थप्रबोधिनी।

76

दक्षिईणा दक्षिणामूर्तिः सुदीक्षा च हरिप्रसूः॥76॥

योगिनी योगयुक्ता च योगाङ्ग ध्यानशालिनी।

77

योगपट्टधरा मुक्ता मुक्तानां परमा गतिः॥77॥

नारस्ंइही सुजन्मा च त्रिवर्गफलदायिनी।

78

धर्मदा धनदा चैव कामदा मोक्षदाद्युतिः॥78॥

साक्षिणी क्षणदा कांक्षा दक्षजा कूटरूपिणी।

79

ऋअतुः कात्यायनी स्वच्छा सुच्छन्दा कविप्रिया॥79॥

सत्यागमा बहिःस्था च काव्यशक्तिः कवित्वदा।

80

मीनपुत्री सती साध्वी मैनाकभगिनी तडित्॥80॥

सौदामिनी सुदामा च सुधामा धामशालिनी।

81

सौभाग्यदायिनी द्यौश्च सुभगा द्युतिवर्धिनी॥81॥

श्रीकृत्तिवसना चैव कङ्काली कलिनाशिनी।

82

रक्तबीजवधोद्युक्ता सुतन्तुर्बीजसन्ततिः॥82॥

जगज्जीवा जगद्बीजा जगत्रयहितैषिणी।

83

चामीकररुचिश्चन्द्री साक्षाद्या षोडशी कला॥83॥

यत्तत्पदानुबन्धा च यक्षिणी धनदार्चिता।

84

चित्रिणी चित्रमाया च विचित्रा भुवनेश्वरी॥84॥

चामुण्डा मुण्डहस्ता च चण्डमुण्डवधोद्यता।

85

अष्टम्येकादशी पूर्णा नवमी च चतुर्दशी॥85॥

उमा कलशहस्ता च पूर्णकुम्भपयोधरा।

86

अभीरूर्भैरवी भीरू भीमा त्रिपुरभैरवी॥86॥

महाचण्डी च रौद्री च महाभैरवपूजिता।

87

निर्मुण्डा हस्तिनीचण्डा करालदशनानना॥87॥

कराला विकराला च घोरा घुर्घुरनादिनी।

88

रक्तदन्तोर्ध्वकेशी च बन्धूककुसुमारुणा॥88॥

कादम्बिनी विपाशा च काश्मीरी कुङ्कुमप्रिया।

89

क्षान्तिर्बहुसुवर्णा च रतिर्बहुसुवर्णदा॥89॥

मातङ्गिनी वरारोहा मत्तमातङ्गगामिनी।

90

हंसा हंसगतिर्हंसी हंसोज्वलशिरोरुहा॥90॥

पूर्णचन्द्रमुखी श्यामा स्मितास्या च सुकुण्डला।

91

महिषी च लेखनी लेखा सुलेखा लेखकप्रिया॥91॥

शङ्खिनी शङ्खहस्ता च जलस्था जलदेवता।

92

कुरुक्षेत्राऽवनिः काशी मथुरा काञ्च्यवन्तिका॥92॥

अयोध्या द्वारिका माया तीर्था तीर्थकरप्रिया।

93

त्रिपुष्कराऽप्रमेया च कोशस्था कोशवासिनी॥93॥

कौशिकी च कुशावर्ता कौशाम्बी कोशवर्धिनी।

94

कोशदा पद्मकोशाक्षी कौसुम्भकुसुमप्रिया॥94॥

तोतला च तुलाकोटिः कूटस्था कोटराश्रया।

95

स्वयम्भूश्च सुरूपा च स्वरूपा पुण्यवर्धिनी॥95॥

तेजस्विनी सुभिक्षा च बलदा बलदायिनी।

96

महाकोशी महावार्ता बुद्धिः सदसदात्मिका॥96॥

महाग्रहहरा सौम्या विशोका शोकनाशिनी।

97

सात्विकी सत्वसंस्था च राजसी च रजोवृता॥97॥

तामसी च तमोयुक्ता गुणत्रयविभाविनी।

98

अव्यक्ता व्यक्तरूपा च वेदविद्या च शाम्भवी॥98॥

शङ्करा कल्पिनी कल्पा मनस्सङ्कल्पसन्ततिः।

99

सर्वलोकमयी शक्तिः सर्वश्रवणगोचरा॥99॥

सर्वज्ञानवती वाञ्छा सर्वतत्त्वावबोधिका।

100

जाग्रतिश्च सुषुप्तिश्च स्वप्नावस्था तुरीयका॥100॥

सत्वरा मन्दरा गतिर्मन्दा मन्दिरा मोददायिनी।

101

मानभूमिः पानपात्रा पानदानकरोद्यता॥101॥

आधूर्णारूणनेत्रा च किञ्चिदव्यक्तभाषिणी।

102

आशापुरा च दीक्षा च दक्षा दीक्षितपूजिता॥102॥

नागवल्ली नागकन्या भोगिनी भोगवल्लभा।

103

सर्वशास्त्रमयी विद्या सुस्मृतिर्धर्मवादिनी॥103॥

श्रुतिस्मृतिधरा ज्येष्ठा श्रेष्ठा पातालवासिनी।

104

मीमांसा तर्कविद्या च सुभक्तिर्भक्तवत्सला॥104॥

सुनाभिर्यातनाजातिर्गम्भीरा भाववर्जिता।

105

नागपाशधरामूर्तिरगाधा नागकुण्डला॥105॥

सुचक्रा चक्रमध्यस्था चक्रकोणनिवासिनी।

106

सर्वमन्त्रमयी विद्या सर्वमन्त्राक्षरावलिः॥106॥

मधुस्त्रवास्त्रवन्ती च भ्रामरी भ्रमरालिका।

107

मातृमण्डलमध्यस्था मातृमण्डलवासिनी॥107॥

कुमार जननी क्रूरा सुमुखी ज्वरनाशिनी।

108

निधाना पञ्चभूतानां भवसागरतारिणी॥108॥

अक्रूरा च ग्रहावती विग्रहा ग्रहवर्जिता।

109

रोहिणी भूमिगर्मा च कालभूः कालवर्तिनी॥109॥

कलङ्करहिता नारी चतुःषष्ठ्यभिधावती।

110

अतीता विद्यमाना च भाविनी प्रीतिमञ्जरी॥110॥

सर्वसौख्यवतीयुक्तिराहारपरिणामिनी।

111

जीर्णा च जीर्णवस्रा च नूतना नववल्लभा॥111॥

अजरा च रजःप्रीता रतिरागविवर्धिनी।

112

पञ्चवातगतिर्भिन्ना पञ्चश्लेष्माशयाधरा॥112॥

पञ्चपित्तवतीशक्तिः पञ्चस्थानविभाविनी।

113

उदक्या च वृषस्यन्ती बहिः प्रस्रविणी त्र्यहा॥113॥

रजःशुक्रधरा शक्तिर्जरायुर्गर्भधारिणी।

114

त्रिकालज्ञा त्रिलिङ्गा च त्रिमूर्तिस्त्रिपुरवासिनी॥114॥

अरागा शिवतत्त्वा च कामतत्वानुरागिणी।

115

प्राच्यवाची प्रतीची च दिगुदीची च दिग्विदिग्दिशा॥115॥

अहङ्कृतिरहङ्कारा बाला माया बलिप्रिया।

116

शुक्रश्रवा सामिधेनी सुश्रद्धा श्राद्धदेवता॥116॥

माता मातामही तृप्तिः पितुमाता पितामही।

117

स्नुषा दौहित्रिणी पुत्री पौत्री नप्त्री शिशुप्रिया॥117॥

स्तनदा स्तनधारा च विश्वयोनिः स्तनन्धयी।

118

शिशूत्सङ्गधरा दोला लोला क्रीडाभिनन्दिनी॥118॥

उर्वशी कदली केका विशिखा शिखिवर्तिनी।

119

खट्वाङ्गधारिणी खट्व बाणपुङ्खानुवर्तिनी॥119॥

लक्ष्यप्राप्तिकरा लक्ष्यालध्या च शुभलक्षणा।

120

वर्तिनी सुपथाचारा परिखा च खनिर्वुतिः॥120॥

प्राकारवलया वेला मर्यादा च महोदधिः।

121

पोषिणी शोषिणी शक्तिर्दीर्घकेशी सुलोमशा॥121॥

ललिता मांसला तन्वी वेदवेदाङ्गधारिणी।

122

नरासृक्पानमत्ता च नरमुण्डास्थिभूषणा॥122॥

अक्षक्रीडारतिः शारि शारिकाशुकभाषिणी।

123

शाम्भरी गारुडीविद्या वारुणी वरुणार्चिता॥123॥

वाराही तुण्डहस्ता च दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरा।

124

मीनमूर्तिर्धरामूर्तिः वदान्याऽप्रतिमाश्रया॥124॥

अमूर्ता निधिरूपा च शालिग्रामशिलाशुचिः।

125

स्मृतिसंस्काररूपा च सुसंस्कारा च संस्कृतिः॥125॥

प्राकृता देशभाषा च गाथा गीतिः प्रहेलिका।

126

इडा च पिङ्गला पिङ्गा सुषुम्ना सूर्यवाहिनी॥126॥

शशिस्रवा च तालुस्था काकिन्यमृतजीविनी।

127

अणुरूपा बृहद्रूपा लघुरूपा गुरुस्थिता॥127॥

स्थावरा जङ्गमाचैव कृतकर्मफलप्रदा।

128

विषयाक्रान्तदेहा च निर्विशेषा जितेन्द्रिया॥128॥

चित्स्वरूपा चिदानन्दा परब्रह्मप्रबोधिनी।

129

निर्विकारा च निर्वैरा विरतिः सत्यवर्द्धिनी॥129॥

पुरुषाज्ञा चा भिन्ना च क्षान्तिः कैवल्यदायिनी।

130

विविक्तसेविनी प्रज्ञा जनयित्री च बहुश्रुतिः॥130॥

निरीहा च समस्तैका सर्वलोकैकसेविता।

131

शिवा शिवप्रिया सेव्या सेवाफलविवर्द्धिनी॥131॥

कलौ कल्किप्रिया काली दुष्टम्लेच्छविनाशिनी।

132

प्रत्यञ्चा च धुनर्यष्टिः खड्गधारा दुरानतिः॥132॥

अश्वप्लुतिश्च वल्गा च सृणिः स्यन्मृत्युवारिणी।

133

वीरभूर्वीरमाता च वीरसूर्वीरनन्दिनी॥133॥

जयश्रीर्जयदीक्षा च जयदा जयवर्द्धिनी।

134

सौभाग्यसुभगाकारा सर्वसौभाग्यवर्द्धिनी॥134॥

क्षेमङ्करी क्षेमरूपा सर्त्कीत्तिः पथिदेवता।

135

सर्वतीर्थमयीमूर्तिः सर्वदेवमयीप्रभा॥135॥

सर्वसिद्धिप्रदा शक्तिः सर्वमङ्गलमङ्गला।

136

पुण्यं सहस्रनामेदं शिवायाः शिवभाषितम॥136॥

इति श्रीरुद्रयामलेतन्त्रे भवानीनामसहस्रस्तोत्रं सम्पूर्णम्।

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Published by Sri Mandir·January 2, 2025

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