राम सहस्रनाम स्तोत्रम्
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राम सहस्रनाम स्तोत्रम्

अनुभव करें राम सहस्रनाम स्तोत्रम् की अद्भुत महिमा, जहां भगवान राम के दिव्य नाम आपके जीवन को भक्ति, शांति और सकारात्मक ऊर्जा से भर देंगे। हर नाम में छुपा है ईश्वर की कृपा का अनमोल खजाना

राम सहस्रनाम स्तोत्रम् के बारे में

राम सहस्रनाम स्तोत्रम् भगवान राम के दिव्य नामों का एक अद्भुत संग्रह है, जो उनकी महिमा और गुणों का गुणगान करता है। इसका नियमित पाठ भक्तों के जीवन में शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करता है। यह सभी बाधाओं को दूर करने, मन को स्थिरता देने और भक्ति को गहराई तक पहुंचाने में सहायक है।

राम सहस्रनाम स्तोत्रम् का महत्व

सनातन धर्म में श्री राम सहस्रनाम स्तोत्रम् एक अत्यंत विशेष स्तोत्र है और इसका उल्लेख रामायण में भी मिलता है। यह भगवान राम के एक हजार नामों का संग्रह है। इन नामों का जाप करने से भक्तों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। इसके जाप से भगवान राम के प्रति समर्पण को बढ़ता है और व्यक्ति को मोक्ष की ओर अग्रसित होता है। व्यक्ति को अपने पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति पाने के लिए इस स्तोत्रम् का जाप जरूर करना चाहिए। सबसे विशेष- भगवान राम हनुमान जी के आराध्य हैं, इसलिए श्री राम सहस्रनाम स्तोत्रम् का जाप करने से हनुमान जी की भी कृपा प्राप्त होती है। यदि कोई व्यक्ति किसी मानसिक असुरक्षा से गुजर रहा है तो उसे इस स्तोत्र का काम अवश्य करना चाहिए।

राम सहस्रनाम स्तोत्रम् का पाठ और विधि

  • पाठ से पहले स्नान करके शरीर को शुद्ध करें और फिर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजा स्थल को भी साफ करें। और यहां एक चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान राम की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करें।
  • दीपक, धूप, नैवेद्य आदि से श्री राम का पूजन करें। अब एक आसन पर बैठकर ध्यान की मुद्रा में आ जाएं।
  • श्री गणेश जी का आह्वान करें और फिर राम सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करें। स्तोत्र पाठ के बाद भगवान राम की आरती करें।
  • अब प्रसाद चढ़ाएं और इसे औरों में बांटकर स्वयं भी ग्रहण करें।

यदि आप किसी कारण से चौकी की स्थापना नहीं कर पा रहे हैं, तो किसी शांत स्थान चुनें और एकाग्र मन से ध्यान लगाएं। यहां राम सहस्रनाम स्तोत्रम् का पाठ शुरू करने से पहले एक गिलास पानी अपने आसन के पास रखें और जाप के तुरंत बाद उसे ग्रहण करें। ऐसी मान्यता है कि पानी किसी भी तरह की ऊर्जा को अपने अंदर समाहित कर लेता हैं। राम सहस्रनाम स्तोत्रम् के जाप से उत्पन्न हुई ऊर्जा पानी के माध्यम से आप तक अवश्य पहुंचेगी।

राम सहस्रनाम स्तोत्रम् की सूची

S No.

राम सहस्रनाम स्तोत्रम्

1

राजीवलोचनः श्रीमान् श्रीरामो रघुपुङ्गवः।

रामभद्रः सदाचारो राजेन्द्रो जानकीपतिः॥1॥

2

अग्रगण्यो वरेण्यश्च वरदः परमेश्वरः।

जनार्दनो जितामित्रः परार्थैकप्रयोजनः॥2॥

3

विश्वामित्रप्रियो दान्तः शत्रुजिच्छत्रुतापनः।

सर्वज्ञः सर्वदेवादिः शरण्यो वालिमर्दनः॥3॥

4

ज्ञानभाव्योऽपरिच्छेद्यो वाग्मी सत्यव्रतः शुचिः।

ज्ञानगम्यो दृढप्रज्ञः खरध्वंसी प्रतापवान्॥4॥

5

द्युतिमानात्मवान् वीरो जितक्रोधोऽरिमर्दनः।

विश्वरूपो विशालाक्षः प्रभुः परिवृढो दृढः॥5॥

6

ईशः खड्गधरः श्रीमान् कौसलेयोऽनसूयकः।

विपुलांसो महोरस्कः परमेष्ठी परायणः॥6॥

7

सत्यव्रतः सत्यसन्धो गुरुः परमधार्मिकः।

लोकज्ञो लोकवन्द्यश्च लोकात्मा लोककृत्परः॥7॥

8

अनादिर्भगवान् सेव्यो जितमायो रघूद्वहः।

रामो दयाकरो दक्षः सर्वज्ञः सर्वपावनः॥8॥

9

ब्रह्मण्यो नीतिमान् गोप्ता सर्वदेवमयो हरिः।

सुन्दरः पीतवासाश्च सूत्रकारः पुरातनः॥9॥

10

सौम्यो महर्षिः कोदण्डी सर्वज्ञः सर्वकोविदः।

कविः सुग्रीववरदः सर्वपुण्याधिकप्रदः॥10॥

11

भव्यो जितारिषड्वर्गो महोदारोऽघनाशनः।

सुकीर्तिरादिपुरुषः कान्तः पुण्यकृतागमः॥11॥

12

अकल्मषश्चतुर्बाहुः सर्वावासो दुरासदः।

स्मितभाषी निवृत्तात्मा स्मृतिमान् वीर्यवान् प्रभुः॥12॥

13

धीरो दान्तो घनश्यामः सर्वायुधविशारदः।

अध्यात्मयोगनिलयः सुमना लक्ष्मणाग्रजः॥13॥

14

सर्वतीर्थमयः शूरः सर्वयज्ञफलप्रदः।

यज्ञस्वरूपी यज्ञेशो जरामरणवर्जितः॥14॥

15

वर्णाश्रमकरो वर्णी शत्रुजित् पुरुषोत्तमः।

विभीषणप्रतिष्ठाता परमात्मा परात्परः॥15॥

16

प्रमाणभूतो दुर्ज्ञेयः पूर्णः परपुरञ्जयः।

अनन्तदृष्टिरानन्दो धनुर्वेदो धनुर्धरः॥16॥

17

गुणाकरो गुणश्रेष्ठः सच्चिदानन्दविग्रहः।

अभिवन्द्यो महाकायो विश्वकर्मा विशारदः॥17॥

18

विनीतात्मा वीतरागस्तपस्वीशो जनेश्वरः।

कल्याणप्रकृतिः कल्पः सर्वेशः सर्वकामदः॥18॥

19

अक्षयः पुरुषः साक्षी केशवः पुरुषोत्तमः।

लोकाध्यक्षो महामायो विभीषणवरप्रदः॥19॥

20

आनन्दविग्रहो ज्योतिर्हनुमत्प्रभुरव्ययः।

भ्राजिष्णुः सहनो भोक्ता सत्यवादी बहुश्रुतः॥20॥

21

सुखदः कारणं कर्ता भवबन्धविमोचनः।

देवचूडामणिर्नेता ब्रह्मण्यो ब्रह्मवर्धनः॥21॥

22

 

 

संसारोत्तारको रामः सर्वदुःखविमोक्षकृत्।

विद्वत्तमो विश्वकर्ता विश्वहर्ता च विश्वकृत्॥22॥

23

 

नित्यो नियतकल्याणः सीताशोकविनाशकृत्।

काकुत्स्थः पुण्डरीकाक्षो विश्वामित्रभयापहः॥23॥

24

मारीचमथनो रामो विराधवधपण्डितः।

दुःस्वप्ननाशनो रम्यः किरीटी त्रिदशाधिपः॥24॥

25

महाधनुर्महाकायो भीमो भीमपराक्रमः।

तत्त्वस्वरूपी तत्त्वज्ञस्तत्त्ववादी सुविक्रमः॥25॥

26

भूतात्मा भूतकृत्स्वामी कालज्ञानी महापटुः।

अनिर्विण्णो गुणग्राही निष्कलङ्कः कलङ्कहा॥26॥

27

स्वभावभद्रः शत्रुघ्नः केशवः स्थाणुरीश्वरः।

भूतादिः शम्भुरादित्यः स्थविष्ठः शाश्वतो ध्रुवः॥27॥

28

कवची कुण्डली चक्री खड्गी भक्तजनप्रियः।

अमृत्युर्जन्मरहितः सर्वजित्सर्वगोचरः॥28॥

29

अनुत्तमोऽप्रमेयात्मा सर्वादिर्गुणसागरः।

समः समात्मा समगो जटामुकुटमण्डितः॥29॥

30

अजेयः सर्वभूतात्मा विष्वक्सेनो महातपाः।

लोकाध्यक्षो महाबाहुरमृतो वेदवित्तमः॥30॥

31

सहिष्णुः सद्गतिः शास्ता विश्वयोनिर्महाद्युतिः।

अतीन्द्र ऊर्जितः प्रांशुरुपेन्द्रो वामनो बली॥31॥

32

धनुर्वेदो विधाता च ब्रह्मा विष्णुश्च शङ्करः।

हंसो मरीचिर्गोविन्दो रत्नगर्भो महामतिः॥32॥

33

व्यासो वाचस्पतिः सर्वदर्पितासुरमर्दनः।

जानकीवल्लभः पूज्यः प्रकटः प्रीतिवर्धनः॥33॥

34

सम्भवोऽतीन्द्रियो वेद्योऽनिर्देशो जाम्बवत्प्रभुः।

मदनो मथनो व्यापी विश्वरूपो निरञ्जनः॥34॥

35

नारायणोऽग्रणीः साधुर्जटायुप्रीतिवर्धनः।

नैकरूपो जगन्नाथः सुरकार्यहितः स्वभूः॥35॥

36

जितक्रोधो जितारातिः प्लवगाधिपराज्यदः।

वसुदः सुभुजो नैकमायो भव्यप्रमोदनः॥36॥

37

चण्डांशुः सिद्धिदः कल्पः शरणागतवत्सलः।

अगदो रोगहर्ता च मन्त्रज्ञो मन्त्रभावनः॥37॥

38

सौमित्रिवत्सलो धुर्यो व्यक्ताव्यक्तस्वरूपधृक्।

वसिष्ठो ग्रामणीः श्रीमाननुकूलः प्रियंवदः॥38॥

39

अतुलः सात्त्विको धीरः शरासनविशारदः।

ज्येष्ठः सर्वगुणोपेतः शक्तिमांस्ताटकान्तकः॥39॥

40

वैकुण्ठः प्राणिनां प्राणः कमठः कमलापतिः।

गोवर्धनधरो मत्स्यरूपः कारुण्यसागरः॥40॥

41

कुम्भकर्णप्रभेत्ता च गोपीगोपालसंवृतः।

मायावी व्यापको व्यापी रैणुकेयबलापहः॥41॥

42

पिनाकमथनो वन्द्यः समर्थो गरुडध्वजः।

लोकत्रयाश्रयो लोकचरितो भरताग्रजः॥42॥

43

श्रीधरः सद्गतिर्लोकसाक्षी नारायणो बुधः।

मनोवेगी मनोरूपी पूर्णः पुरुषपुङ्गवः॥43॥

44

यदुश्रेष्ठो यदुपतिर्भूतावासः सुविक्रमः।

तेजोधरो धराधारश्चतुर्मूर्तिर्महानिधिः॥44॥

45

चाणूरमर्दनो दिव्यः शान्तो भरतवन्दितः।

शब्दातिगो गभीरात्मा कोमलाङ्गः प्रजागरः॥45॥

46

लोकगर्भः शेषशायी क्षीराब्धिनिलयोऽमलः।

आत्मयोनिरदीनात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात्॥46॥

47

अमृतांशुर्महागर्भो निवृत्तविषयस्पृहः।

त्रिकालज्ञो मुनिः साक्षी विहायसगतिः कृती॥47॥

48

पर्जन्यः कुमुदो भूतावासः कमललोचनः।

श्रीवत्सवक्षाः श्रीवासो वीरहा लक्ष्मणाग्रजः॥48॥

49

लोकाभिरामो लोकारिमर्दनः सेवकप्रियः।

सनातनतमो मेघश्यामलो राक्षसान्तकृत्॥49॥

50

दिव्यायुधधरः श्रीमानप्रमेयो जितेन्द्रियः।

भूदेववन्द्यो जनकप्रियकृत्प्रपितामहः॥50॥

51

उत्तमः सात्त्विकः सत्यः सत्यसन्धस्त्रिविक्रमः।

सुव्रतः सुलभः सूक्ष्मः सुघोषः सुखदः सुधीः॥51॥

52

दामोदरोऽच्युतः शार्ङ्गी वामनो मधुराधिपः।

देवकीनन्दनः शौरिः शूरः कैटभमर्दनः॥52॥

53

सप्ततालप्रभेत्ता च मित्रवंशप्रवर्धनः।

कालस्वरूपी कालात्माकालः कल्याणदःकविः।

संवत्सर ऋतुः पक्षो ह्ययनं दिवसो युगः॥53॥

54

स्तव्यो विविक्तो निर्लेपः सर्वव्यापी निराकुलः।

अनादिनिधनः सर्वलोकपूज्यो निरामयः॥54॥

55

रसो रसज्ञः सारज्ञो लोकसारो रसात्मकः।

सर्वदुःखातिगो विद्याराशिः परमगोचरः॥55॥

56

शेषो विशेषो विगतकल्मषो रघुनायकः।

वर्णश्रेष्ठो वर्णवाह्यो वर्ण्यो वर्ण्यगुणोज्ज्वलः॥56॥

57

कर्मसाक्ष्यमरश्रेष्ठो देवदेवः सुखप्रदः।

देवाधिदेवो देवर्षिर्देवासुरनमस्कृतः॥57॥

58

सर्वदेवमयश्चक्री शार्ङ्गपाणी रघूत्तमः।

मनो बुद्धिरहङ्कारः प्रकृतिः पुरुषोऽव्ययः॥58॥

59

अहल्यापावनः स्वामी पितृभक्तो वरप्रदः।

न्यायो न्यायी नयी श्रीमान्नयो नगधरो ध्रुवः॥59॥

60

लक्ष्मीविश्वम्भराभर्ता देवेन्द्रो बलिमर्दनः।

वाणारिमर्दनो यज्वानुत्तमो मुनिसेवितः॥60॥

61

देवाग्रणीः शिवध्यानतत्परः परमः परः।

सामगेयः प्रियोऽक्रूरः पुण्यकीर्तिः सुलोचनः॥61॥

62

पुण्यः पुण्याधिकः पूर्वः पूर्णः पूरयिता रविः।

जटिलः कल्मषध्वान्तप्रभञ्जनविभावसुः॥62॥

63

अव्यक्तलक्षणोऽव्यक्तो दशास्यद्विपकेसरी।

कलानिधिः कलानाथो कमलानन्दवर्धनः॥63॥

64

जयी जितारिः सर्वादिः शमनो भवभञ्जनः।

अलङ्करिष्णुरचलो रोचिष्णुर्विक्रमोत्तमः॥64॥

65

आशुः शब्दपतिः शब्दागोचरो रञ्जनो रघुः।

निःशब्दः प्रणवो माली स्थूलः सूक्ष्मो विलक्षणः॥65॥

66

आत्मयोनिरयोनिश्च सप्तजिह्वः सहस्रपात्।

सनातनतमः स्रग्वी पेशलो जविनां वरः॥66॥

67

शक्तिमाञ्शङ्खभृन्नाथः गदापद्मरथाङ्गभृत्।

निरीहो निर्विकल्पश्च चिद्रूपो वीतसाध्वसः॥67॥

68

शताननः सहस्राक्षः शतमूर्तिर्धनप्रभः।

हृत्पुण्डरीकशयनः कठिनो द्रव एव च॥68॥

69

उग्रो ग्रहपतिः श्रीमान् समर्थोऽनर्थनाशनः।

अधर्मशत्रू रक्षोघ्नः पुरुहूतः पुरुष्टुतः॥69॥

70

ब्रह्मगर्भो बृहद्गर्भो धर्मधेनुर्धनागमः।

हिरण्यगर्भो ज्योतिष्मान् सुललाटः सुविक्रमः॥70॥

71

शिवपूजारतः श्रीमान् भवानीप्रियकृद्वशी।

नरो नारायणः श्यामः कपर्दी नीललोहितः॥71॥

72

रुद्रः पशुपतिः स्थाणुर्विश्वामित्रो द्विजेश्वरः।

मातामहो मातरिश्वा विरिञ्चो विष्टरश्रवाः॥72॥

73

अक्षोभ्यः सर्वभूतानां चण्डः सत्यपराक्रमः।

वालखिल्यो महाकल्पः कल्पवृक्षः कलाधरः॥73॥

74

निदाघस्तपनोऽमोघः श्लक्ष्णः परबलापहृत्।

कबन्धमथनो दिव्यः कम्बुग्रीवशिवप्रियः॥74॥

75

शङ्खोऽनिलः सुनिष्पन्नः सुलभः शिशिरात्मकः।

असंसृष्टोऽतिथिः शूरः प्रमाथी पापनाशकृत्॥75॥

76

वसुश्रवाः कव्यवाहः प्रतप्तो विश्वभोजनः।

रामो नीलोत्पलश्यामो ज्ञानस्कन्धो महाद्युतिः॥76॥

77

पवित्रपादः पापारिर्मणिपूरो नभोगतिः।

उत्तारणो दुष्कृतिहा दुर्धर्षो दुःसहोऽभयः॥77॥

78

अमृतेशोऽमृतवपुर्धर्मी धर्मः कृपाकरः।

भर्गो विवस्वानादित्यो योगाचार्यो दिवस्पतिः॥78॥

79

उदारकीर्तिरुद्योगी वाङ्मयः सदसन्मयः।

नक्षत्रमाली नाकेशः स्वाधिष्ठानः षडाश्रयः॥79॥

80

चतुर्वर्गफलो वर्णी शक्तित्रयफलं निधिः।

निधानगर्भो निर्व्याजो गिरीशो व्यालमर्दनः॥80॥

81

श्रीवल्लभः शिवारम्भः शान्तिर्भद्रः समञ्जसः।

भूशयो भूतिकृद्भूतिर्भूषणो भूतवाहनः॥81॥

82

अकायो भक्तकायस्थः कालज्ञानी महावटुः।

परार्थवृत्तिरचलो विविक्तः श्रुतिसागरः॥82॥

83

स्वभावभद्रो मध्यस्थः संसारभयनाशनः।

वेद्यो वैद्यो वियद्गोप्ता सर्वामरमुनीश्वरः॥83॥

84

सुरेन्द्रः करणं कर्म कर्मकृत्कर्म्यधोक्षजः।

ध्येयो धुर्यो धराधीशः संकल्पः शर्वरीपतिः॥84॥

85

परमार्थगुरुर्वृद्धः शुचिराश्रितवत्सलः।

विष्णुर्जिष्णुर्विभुर्वन्द्यो यज्ञेशो यज्ञपालकः॥85॥

86

प्रभविष्णुर्ग्रसिष्णुश्च लोकात्मा लोकभावनः।

केशवः केशिहा काव्यः कविः कारणकारणम्॥86॥

87

कालकर्ता कालशेषो वासुदेवः पुरुष्टुतः।

आदिकर्ता वराहश्च माधवो मधुसूदनः॥87॥

88

नारायणो नरो हंसो विष्वक्सेनो जनार्दनः।

विश्वकर्ता महायज्ञो ज्योतिष्मान् पुरुषोत्तमः॥88॥

89

वैकुण्ठः पुण्डरीकाक्षः कृष्णः सूर्यः सुरार्चितः।

नारसिंहो महाभीमो वक्रदंष्ट्रो नखायुधः॥89॥

90

आदिदेवो जगत्कर्ता योगीशो गरुडध्वजः।

गोविन्दो गोपतिर्गोप्ता भूपतिर्भुवनेश्वरः॥90॥

91

पद्मनाभो हृषीकेशो धाता दामोदरः प्रभुः।

त्रिविक्रमस्त्रिलोकेशो ब्रह्मेशः प्रीतिवर्धनः॥91॥

92

वामनो दुष्टदमनो गोविन्दो गोपवल्लभः।

भक्तप्रियोऽच्युतः सत्यः सत्यकीर्तिर्धृतिः स्मृतिः॥92॥

93

कारुण्यं करुणो व्यासः पापहा शान्तिवर्धनः।

संन्यासी शास्त्रतत्त्वज्ञो मन्दराद्रिनिकेतनः॥93॥

94

बदरीनिलयः शान्तस्तपस्वी वैद्युतप्रभः।

भूतावासो गुहावासः श्रीनिवासः श्रियः पतिः॥94॥

95

तपोवासो मुदावासः सत्यवासः सनातनः।

पुरुषः पुष्करः पुण्यः पुष्कराक्षो महेश्वरः॥95॥

96

पूर्णमूर्तिः पुराणज्ञः पुण्यदः प्रीतिवर्धनः।

शङ्खी चक्री गदी शार्ङ्गी लाङ्गली मुसली हली॥96॥

97

किरीटी कुण्डली हारी मेखली कवची ध्वजी।

योद्धा जेता महावीर्यः शत्रुजिच्छत्रुतापनः॥97॥

98

शास्ता शास्त्रकरः शास्त्रं शङ्करः शङ्करस्तुतः।

सारथिः सात्त्विकः स्वामी सामवेदप्रियः समः॥98॥

99

पवनः संहतः शक्तिः सम्पूर्णाङ्गः समृद्धिमान्।

स्वर्गदः कामदः श्रीदः कीर्तिदोऽकीर्तिनाशनः॥99॥

100

मोक्षदः पुण्डरीकाक्षः क्षीराब्धिकृतकेतनः।

सर्वात्मा सर्वलोकेशः प्रेरकः पापनाशनः॥100॥

101

सर्वव्यापी जगन्नाथः सर्वलोकमहेश्वरः।

सर्गस्थित्यन्तकृद्देवः सर्वलोकसुखावहः॥101॥

102

अक्षय्यः शाश्वतोऽनन्तः क्षयवृद्धिविवर्जितः।

निर्लेपो निर्गुणः सूक्ष्मो निर्विकारो निरञ्जनः॥102॥

103

सर्वोपाधिविनिर्मुक्तः सत्तामात्रव्यवस्थितः।

अधिकारी विभुर्नित्यः परमात्मा सनातनः॥103॥

104

अचलो निर्मलो व्यापी नित्यतृप्तो निराश्रयः।

श्यामो युवा लोहिताक्षो दीप्तास्यो मितभाषणः॥104॥

105

आजानुबाहुः सुमुखः सिंहस्कन्धो महाभुजः।

सत्यवान् गुणसम्पन्नः स्वयन्तेजाः सुदीप्तिमान्॥105॥

106

कालात्मा भगवान् कालः कालचक्रप्रवर्तकः।

नारायणः परञ्ज्योतिः परमात्मा सनातनः॥106॥

107

विश्वसृड् विश्वगोप्ता च विश्वभोक्ता च शाश्वतः।

विश्वेश्वरो विश्वमूर्तिर्विश्वात्मा विश्वभावनः॥107॥

108

सर्वभूतसुहृच्छान्तः सर्वभूतानुकम्पनः।

सर्वेश्वरेश्वरः सर्वः श्रीमानाश्रितवत्सलः॥108॥

109

सर्वगः सर्वभूतेशः सर्वभूताशयस्थितः।

अभ्यन्तरस्थस्तमसश्छेत्ता नारायणः परः॥109॥

110

अनादिनिधनः स्रष्टा प्रजापतिपतिर्हरिः।

नरसिंहो हृषीकेशः सर्वात्मा सर्वदृग्वशी॥110॥

111

जगतस्तस्थुषश्चैव प्रभुर्नेता सनातनः।

कर्ता धाता विधाता च सर्वेषां प्रभुरीश्वरः॥111॥

112

सहस्रमूर्तिर्विश्वात्मा विष्णुर्विश्वदृगव्ययः।

पुराणपुरुषः स्रष्टा सहस्राक्षः सहस्रपात्॥112॥

113

तत्त्वं नारायणो विष्णुर्वासुदेवः सनातनः।

परमात्मा परं ब्रह्म सच्चिदानन्दविग्रहः॥113॥

114

परञ्ज्योतिः परन्धामः पराकाशः परात्परः।

अच्युतः पुरुषः कृष्णः शाश्वतः शिव ईश्वरः॥114॥

115

नित्यः सर्वगतः स्थाणुरुग्रः साक्षी प्रजापतिः।

हिरण्यगर्भः सविता लोककृल्लोकभृद्विभुः॥115॥

116

रामः श्रीमान् महाविष्णुर्जिष्णुर्देवहितावहः।

तत्त्वात्मा तारकं ब्रह्म शाश्वतः सर्वसिद्धिदः॥116॥

117

अकारवाच्यो भगवान् श्रीर्भू लीलापतिः पुमान्।

सर्वलोकेश्वरः श्रीमान् सर्वज्ञः सर्वतोमुखः॥117॥

118

स्वामी सुशीलः सुलभः सर्वज्ञः सर्वशक्तिमान्।

नित्यः सम्पूर्णकामश्च नैसर्गिकसुहृत्सुखी॥118॥

119

कृपापीयूषजलधिः शरण्यः सर्वदेहिनाम्।

श्रीमान्नारायणः स्वामी जगतां पतिरीश्वरः॥119॥

120

श्रीशः शरण्यो भूतानां संश्रिताभीष्टदायक।

अनन्तः श्रीपती रामो गुणभृन्निर्गुणो महान॥120॥

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Published by Sri Mandir·December 26, 2024

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