अंगारों की होली कैसे और क्यों मनाई जाती है?
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अंगारों की होली कैसे और क्यों मनाई जाती है?

अंगारों की होली आस्था या अग्नि परीक्षा? जानें 2025 में यह अनोखी होली कब मनाई जाएगी और इसके पीछे की पौराणिक कथा!

अंगारों की होली के बारे में

अंगारों की होली मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के कुछ हिस्सों, विशेष रूप से भदवामाता मंदिर में मनाई जाती है। इस अनोखी परंपरा में भक्त जलते हुए अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं, जिससे उनकी आस्था और साहस का परिचय मिलता है।

अंगारों की होली 2025

हर साल की तरह इस साल भी पूरे देश में होली का रंगारंग पर्व बड़े उत्साह और खुशी के साथ मनाया जायेगा। खास बात यह है कि होली हर जगह अलग-अलग परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार मनाई जाती है। कहीं यह फूलों से खेली जाती है, तो कहीं रंगों की बौछार से माहौल रंगीन हो जाता है।

लेकिन आज हम आपको होली की एक अनोखी और हैरान करने वाली परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे जानकर आप चौंक जाएंगे। मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के सिलवानी में 13 मार्च से 14 मार्च को इस खास होली को एक अनोखे अंदाज में मनाया जाएगा। होलिका दहन के बाद यहां के स्थानीय लोग जलते हुए अंगारों को जमीन पर बिछा देते हैं और फिर नंगे पैर उन पर चलते हैं। यह परंपरा साहस, आस्था और भक्ति का प्रतीक मानी जाती है।

अंगारों की होली का इतिहास – आस्था, शौर्य और परंपरा का संगम

अंगारों की होली, जिसे “अग्नि होली” भी कहा जाता है, वीरता और आस्था से जुड़ी एक अनोखी परंपरा है। यह परंपरा लगभग 500 साल पुरानी मानी जाती है और इसके पीछे कई पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।

अंगारों की होली की प्रचलित कहानियां

भगवान शिव की भक्ति से जुड़ी मान्यता

एक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने अपने भक्तों की रक्षा के लिए अंगारों से स्नान किया था। उनकी इसी अग्नि परीक्षा से प्रेरित होकर भक्तों ने अंगारों पर चलने की परंपरा शुरू की। यह परंपरा शिव भक्ति और तपस्या का प्रतीक मानी जाती है।

बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक

दूसरी मान्यता के अनुसार, अंगारों की होली का संबंध भगवान विष्णु और प्रह्लाद की कथा से है। कथा के अनुसार, राक्षस राजा हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की मदद से अपने पुत्र प्रह्लाद को जलाने की योजना बनाई थी। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित बच गए और होलिका जलकर राख हो गई। इसी दिन से होली को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। अंगारों पर चलना भी इसी विजय का प्रतीक माना जाता है।

सूर्य देव की पूजा से जुड़ी मान्यता

कुछ मान्यताओं के अनुसार, अंगारों की होली सूर्य देव की आराधना का प्रतीक है। कहा जाता है कि इस दिन सूर्य देव अपनी पूर्ण शक्ति के साथ चमकते हैं और अंगारों पर चलना उनकी तपस्या और शक्ति को समर्पित किया जाता है। यह परंपरा मानव आत्मा की दृढ़ता और सहनशक्ति का प्रतीक भी मानी जाती है।

अंगारों की होली का महत्व

अंगारों की होली केवल एक अनोखी परंपरा नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था, आत्मविश्वास और वीरता का प्रतीक है। इस परंपरा का महत्व कई धार्मिक और सामाजिक पहलुओं से जुड़ा हुआ है।

धार्मिक आस्था और भक्ति का प्रतीक

अंगारों की होली को भगवान शिव और सूर्य देव की पूजा से जोड़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि अंगारों पर नंगे पांव चलना तपस्या और शक्ति का प्रतीक है, जिससे ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। भक्त इसे आध्यात्मिक परीक्षा और भक्ति की अग्नि परीक्षा मानते हैं।

बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश

यह परंपरा प्रह्लाद और होलिका की कथा से जुड़ी मानी जाती है। अंगारों पर चलने को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है, जिससे यह संदेश मिलता है कि सच्चे विश्वास और साहस से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है।

आत्मबल और साहस की परीक्षा

अंगारों पर नंगे पांव चलना एक मानसिक और शारीरिक परीक्षा है, जिससे व्यक्ति का आत्मविश्वास और साहस बढ़ता है। यह परंपरा सिखाती है कि डर पर विजय प्राप्त कर दृढ़ संकल्प से हर चुनौती को पार किया जा सकता है।

अंगारों की होली कहाँ मनाई जाती है? – राजस्थान की अनोखी परंपरा

अंगारों की होली एक अनोखी और रोमांचक परंपरा है, जो मुख्य रूप से राजस्थान के अजमेर जिले के केकड़ी शहर में मनाई जाती है। यह ऐतिहासिक शहर अजमेर से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है और अपनी इस अग्नि-परीक्षा वाली होली के लिए प्रसिद्ध है।

हालांकि, केवल केकड़ी ही नहीं, राजस्थान के कई अन्य शहरों और गांवों में भी यह अनोखी परंपरा वर्षों से चली आ रही है। अंगारों पर नंगे पैर चलकर भक्त अपनी आस्था, साहस और शक्ति का प्रदर्शन करते हैं।

राजस्थान में अंगारों की होली कहां-कहां मनाई जाती है?

नागौर – अपनी वीरता और ऐतिहासिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध नागौर में भी अंगारों की होली का विशेष आयोजन होता है।

पाली – पाली जिले में यह परंपरा धार्मिक आस्था और सूर्य उपासना से जुड़ी मानी जाती है।

जोधपुर – "ब्लू सिटी" जोधपुर में भी यह अनोखी होली मनाई जाती है, जहां हजारों श्रद्धालु इस आयोजन का हिस्सा बनते हैं।

बीकानेर – ऊँट महोत्सव और रंग-बिरंगे त्योहारों के लिए प्रसिद्ध बीकानेर में भी यह परंपरा देखने को मिलती है।

जयपुर – राजधानी जयपुर में भी कुछ जगहों पर अंगारों की होली खेली जाती है, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक इसे देखने आते हैं।

राजस्थान के कई शहरों में मनाई जाने वाली अंगारों की होली न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह राजस्थान की वीरता, साहस और परंपराओं की अनूठी मिसाल भी पेश करती है। यह आयोजन हर साल हजारों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है।

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Published by Sri Mandir·March 7, 2025

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