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होली लोक गीत 2025

होली 2025 में सुनें पारंपरिक लोक गीत – फाग, रसिया और धमार, जो इस त्योहार को संगीतमय और उल्लास से भर देते हैं।

होली लोक गीत के बारे में

होली लोक गीत भारतीय लोकसंस्कृति का अहम हिस्सा हैं, जो खासतौर पर उत्तर भारत में गाए जाते हैं। ये गीत प्रेम, रंगों और भक्ति से सराबोर होते हैं। ब्रज में राधा-कृष्ण की होली के गीत लोकप्रिय हैं, तो अवध में फाग गीत गाए जाते हैं।

होली लोक गीत

होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का एक अनमोल हिस्सा है, जो प्रेम, उल्लास, और भाईचारे का संदेश देता है। होली के अवसर पर गाए जाने वाले लोकगीत इस पर्व की खुशियों को और भी बढ़ा देते हैं। ये लोकगीत सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनमें भारतीय लोकसंस्कृति, धार्मिक आस्थाओं और ऐतिहासिक संदर्भों की भी झलक मिलती है। इस लेख में पढ़िए कुछ प्रचलित और रसीले होली के लोकगीत, जो इस रंगीन त्योहार को और भी जीवंत बना देते हैं।

होली लोक गीत 2025

अवध में होली खेलैं रघुवीरा

"अवध में होली खेलैं रघुवीरा" गीत भगवान राम की होली को दर्शाता है। इस गीत में श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के हाथों में ढोलक, मंजीरा, पिचकारी और अबीर होने का चित्रण किया गया है। इसे गाकर लोग अयोध्या के होली उत्सव की कल्पना करते हैं और आनंद से झूम उठते हैं।

गीत:

अवध में होली खेलैं रघुवीरा।

ओ केकरे हाथ ढोलक भल सोहै,

केकरे हाथे मंजीरा।

राम के हाथ ढोलक भल सोहै,

लछिमन हाथे मंजीरा।

ए केकरे हाथ कनक पिचकारी,

ए केकरे हाथे अबीरा।

ए भरत के हाथ कनक पिचकारी,

शत्रुघन हाथे अबीरा।

होरी खेलैं राम मिथिलापुर मां

यह गीत माता सीता और भगवान राम के विवाह के बाद मिथिला में होली खेलने की कथा को दर्शाता है। इसमें सीता की एक सखी अन्य सखियों को समझा रही हैं कि प्रभु राम अब जनकपुर दोबारा नहीं आएंगे, इसलिए उनके साथ होली खेलकर इस अवसर को यादगार बना लेना चाहिए।

गीत:

होरी खेलैं राम मिथिलापुर मां।

मिथिलापुर एक नारि सयानी,

सीख देइ सब सखियन का,

बहुरि न राम जनकपुर अइहैं,

न हम जाब अवधपुर का।।

जब सिय साजि समाज चली,

लाखौं पिचकारी लै कर मां।

मुख मोरि दिहेउ, पग ढील

दिहेउ प्रभु बइठौ जाय सिंघासन मां।।

हम तौ ठहरी जनकनंदिनी,

तुम अवधेश कुमारन मां।

सागर काटि सरित लै अउबे,

घोरब रंग जहाजन मां।।

भरि पिचकारी रंग चलउबै,

बूंद परै जस सावन मां।

केसर कुसुम, अरगजा चंदन,

बोरि दिअब यक्कै पल मां।।

सरयू तट पर होली

भगवान राम की नगरी अयोध्या में सरयू तट पर होली खेलने की परंपरा का यह गीत वर्णन करता है। इसमें भगवान राम, लक्ष्मण, सीता और उर्मिला की होली खेलने की सुंदर झलक देखने को मिलती है।

गीत:

सरजू तट राम खेलैं होली,

सरयू तट।

केहिके हाथ कनक पिचकारी,

केहिके हाथ अबीर झोली,

सरजू तट।

राम के हाथ कनक पिचकारी,

लछिमन हाथ अबीर झोली,

सरजू तट।

केहिके हाथे रंग गुलाली,

केहिके साथ सखन टोली,

सरजू तट।

केहिके साथे बहुएं भोली,

केहिके साथ सखिन टोली,

सरजू तट।

सीता के साथे बहुएं भोली,

उरमिला साथ सखिन टोली,

सरजू तट।

आज बिरज में होली रे रसिया

यह गीत भगवान कृष्ण की नगरी बरसाना की होली का वर्णन करता है, जहां कृष्ण और राधा अपने सखाओं और सखियों संग रंगों में सराबोर होकर होली खेलते हैं। इस गीत में मृदंग, ढोल, पिचकारी और गुलाल उड़ने की सुंदर कल्पना की गई है।

गीत:

आज बिरज में होली रे रसिया,

आज बिरज में होली रे रसिया,

होली रे रसिया, बरजोरी रे रसिया।

उड़त गुलाल लाल भए बादर,

केसर रंग में बोरी रे रसिया।

बाजत ताल मृदंग झांझ ढप,

और मजीरन की जोरी रे रसिया।

फेंक गुलाल हाथ पिचकारी,

मारत भर भर पिचकारी रे रसिया।

इतने आये कुंवरे कन्हैया,

उतसों कुंवरि किसोरी रे रसिया।

नंदग्राम के जुरे हैं सखा सब,

बरसाने की गोरी रे रसिया।

दौड़ मिल फाग परस्पर खेलें,

कहि कहि होरी होरी रे रसिया।

होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं बल्कि यह प्रेम, उल्लास और आत्मीयता का पर्व है। यह हमें सभी भेदभाव भुलाकर एक-दूसरे के साथ खुशी से जीने का संदेश देता है। तो इस होली, आप भी इन रसीले लोकगीतों को गाकर और सुनकर अपने पर्व को और भी यादगार बनाएं।

‘श्री मंदिर’ की ओर से आपको और आपके पूरे परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएं!

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Published by Sri Mandir·March 7, 2025

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